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Tuesday, 17 December, 2024
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‘धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों का घोर उल्लंघन’ — इलाहाबाद HC के जज हुए वीएचपी कार्यक्रम में शामिल

वीएचपी लीगल सेल का कार्यक्रम, जिसमें न्यायमूर्ति दिनेश पाठक और शेखर यादव ने शामिल हुए, हाई कोर्ट की लाइब्रेरी हॉल में आयोजित किया गया था. वीएचपी का कहना है कि उन्हें ‘फैकल्टी के रूप में विशिष्ट विषयों पर बोलने के लिए’ आमंत्रित किया गया था.

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नई दिल्ली: इलाहाबाद हाई कोर्ट के दो मौजूदा न्यायाधीश न्यायमूर्ति दिनेश पाठक और शेखर कुमार यादव ने रविवार को दक्षिणपंथी संगठन विश्व हिंदू परिषद के कानूनी प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया.

यह कार्यक्रम कोर्ट की लाइब्रेरी के हॉल में आयोजित किया गया था. न्यायमूर्ति पाठक और यादव इस कार्यक्रम में गए, जिसमें वक्फ कानून, समान नागरिक संहिता (यूसीसी) और धर्म परिवर्तन के कारणों और रोकथाम पर चर्चा हुई.

न्यायमूर्ति यादव ने इससे पहले 2021 में केंद्र सरकार से गायों की सुरक्षा के लिए कानून लाने और गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने का आग्रह किया था. उन्होंने सुझाव दिया था कि गायों की सुरक्षा को हिंदुओं का मौलिक अधिकार घोषित किया जाना चाहिए.

दिप्रिंट से बात करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा, “यह न्यायपालिका द्वारा संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों का घोर उल्लंघन है. वही न्यायपालिका जो धर्मनिरपेक्षता और संविधान की कसम खाती है, अपने ही फैसलों का अपमान कर रही है.”

उन्होंने कहा, “यह अन्य समुदायों के लिए बहुत अपमानजनक है.”

इस आयोजन की निंदा करते हुए जयसिंह ने एक्स पर पोस्ट किया, “एक मौजूदा न्यायाधीश के लिए हिंदू संगठन द्वारा अपने राजनीतिक एजेंडे पर आयोजित कार्यक्रम में सक्रिय रूप से भाग लेना कितनी शर्म की बात है.”

हालांकि, दिप्रिंट से बात करते हुए वीएचपी के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा, “जहां तक ​​पूर्व न्यायाधीशों का सवाल है, हम उनसे मिलते हैं, उनसे बातचीत करते हैं और उनसे हिंदुत्व के लिए काम करने का अनुरोध करते हैं, जहां तक ​​मौजूदा न्यायाधीशों का सवाल है, कभी-कभी हम उन्हें फैकल्टी के रूप में किसी विशिष्ट विषय पर बोलने के लिए आमंत्रित करते हैं और हम उनसे वीएचपी की किसी गतिविधि में भाग लेने की उम्मीद नहीं करते हैं.”

कुछ साल पहले विहिप के कानून प्रकोष्ठ को और अधिक संवादात्मक बनाने के लिए नया स्वरूप दिया गया था.

उन्होंने कहा, “अब हमने अपने विधिक प्रकोष्ठों से सार्वजनिक मुद्दों पर जागरूकता पैदा करने के लिए कार्यक्रम आयोजित करने को कहा है और हम उसमें सभी बुद्धिजीवियों को बुलाते हैं…जहां तक ​​अधिवक्ता परिषद (आरएसएस से संबद्ध) का सवाल है, न्यायाधीश नियमित रूप से इस तरह के कार्यक्रमों को संबोधित करते रहे हैं.”

कुमार ने कहा, “यह कोई गुप्त मामला नहीं है, वह इस तरह के कार्यक्रमों का खुलेआम आयोजन करते हैं.”

इंदिरा जयसिंह की टिप्पणी पर विहिप अध्यक्ष ने कहा, “कुछ अति-आधुनिक शिक्षाविद अभी भी हिंदू शब्द को बहिष्कृत मानते हैं. लोकतंत्र लोहे के कक्षों में नहीं चलता और हस्तक्षेप का स्वागत किया जाना चाहिए.”

दिप्रिंट से बात करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेक्का जॉन ने कहा कि वे इस कार्यक्रम में न्यायाधीशों की भागीदारी से “दुखी” हैं.

उन्होंने कहा, “मैं एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य में पली-बढ़ी हूं और मुझे बहुत दुख हुआ है. कोर्ट मेरा वर्किंग प्लेस है, यहीं से आम नागरिक न्याय की उम्मीद करते हैं. जब हम उन संगठनों के साथ खुला गठबंधन करते हैं जो भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने का विरोध करते हैं और जब वर्तमान जज ऐसे आयोजनों में शिरकत करते हैं, तो यह संविधान पर हमला है.”

क्या था कार्यक्रम

कार्यक्रम की शुरुआत न्यायमूर्ति दिनेश पाठक द्वारा “दीप प्रज्वलन और आशीर्वाद” से होनी थी.

इसके बाद विश्व हिंदू परिषद कानून प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय सह-संयोजक अधिवक्ता अभिषेक आरे और इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल तिवारी द्वारा वक्फ कानून पर व्याख्यान दिया जाना था.

अगला व्याख्यान — ‘धर्मांतरण के कारण और रोकथाम’ पर — वरिष्ठ अधिवक्ता और इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष वी.पी. श्रीवास्तव और सरकारी अधिवक्ता ए.के. सैंड द्वारा दिया गया.

यूसीसी पर तीसरा लेक्चर न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव और वरिष्ठ अधिवक्ता और इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष राधाकांत ओझा द्वारा दिया जाना था. यह लेक्चर संघ नागरिक संहिता के “संवैधानिक अनिवार्यता” होने पर था.

इस साल सितंबर में न्यायिक सुधारों पर वीएचपी कानून प्रकोष्ठ के कार्यक्रम में कथित तौर पर सुप्रीम कोर्ट के दो सेवानिवृत्त न्यायाधीशों सहित 30 पूर्व न्यायाधीश शामिल हुए थे. वीएचपी पदाधिकारियों ने इसे बंद कमरे में हुई बैठक करार दिया था.

पिछले साल अप्रैल में कानून प्रकोष्ठ ने भी समलैंगिक विवाह के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया था और कहा था कि जिस “जल्दबाजी” से सुप्रीम कोर्ट कानूनी मान्यता के लिए याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है, वह उचित नहीं है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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