मुंबई: गुरुवार को दिल्ली में महायुति नेताओं की बैठक में निराश चेहरे से लेकर शुक्रवार को सतारा जिले में अचानक अपने पैतृक गांव जाने वाले महाराष्ट्र के निवर्तमान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने संकेत दिया है कि राज्य चुनावों में गठबंधन को मिले भारी जनादेश के बाद महायुति 2.0 सरकार की नई व्यवस्था से वे पूरी तरह खुश नहीं हो सकते हैं.
पूरी संभावना है कि महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का ही मुख्यमंत्री होगा, जिसमें देवेंद्र फडणवीस का नाम इस पद के लिए सबसे आगे बताया जा रहा है, जबकि अजित पवार और शिंदे को उपमुख्यमंत्री की भूमिका निभाने के लिए कहा जाएगा. भाजपा ने महाराष्ट्र की 288 विधानसभा सीटों में से 132 सीटें जीतीं, उसके बाद शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने 57 और अजित पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने 41 सीटें जीतीं हैं.
हालांकि, शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना चाहती थी कि महायुति शिंदे को दूसरा कार्यकाल भी दे, लेकिन उसके सहयोगी-भाजपा और अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी-उन्हें भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति सरकार में उपमुख्यमंत्री के रूप में नई भूमिका में देखना चाहते हैं.
महाराष्ट्र में कांग्रेस और गठबंधन राजनीति के भीतर गुटबाजी की लंबी परंपरा में यह कोई असामान्य बात नहीं है. कई बड़े नेता ऐसे रहे हैं जो कि पहले सीएम बने और फिर समय-समय पर राजनीतिक मजबूरियों को पूरा करने के लिए सरकार में अपेक्षाकृत जूनियर पदों पर काम किया.
राजनीतिक टिप्पणीकार हेमंत देसाई ने कहा, “अलग-अलग समय पर नेताओं को अपने राजनीतिक अस्तित्व, सहकारी संस्थाओं और कारोबार को बचाने के लिए सीएम रहने के बाद सरकारों में जूनियर पदों पर काम करना पड़ा है.”
दिप्रिंट आपको यहां ऐसे ही कुछ नेताओं के बारे में बता रहा है:
पी.के. सावंत
कालक्रमानुसार, पी.के. सावंत सबसे पहले हैं, लेकिन बाद में निचले पदों पर काम करने वाले मुख्यमंत्रियों की सूची में, वे सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण नहीं हैं. दिप्रिंट से संपर्क करने वाले कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि वे कोई महान हस्ती या राजनीतिक दिग्गज नहीं थे, लेकिन फिर भी वे एक लोकप्रिय नेता थे, खासकर कोंकण क्षेत्र में.
मारोतराव कन्नमवार की मृत्यु के बाद, 25 नवंबर से 5 दिसंबर 1963 तक सावंत कार्यवाहक मुख्यमंत्री थे. बाद में उन्होंने 5 दिसंबर, 1963 और 1 मार्च, 1967 तक वसंतराव नाइक सरकार में कृषि, संसदीय मामलों और मेडिकल एजुकेशन जैसे विभागों में कैबिनेट मंत्री रहे.
सावंत 1967 से 1972 तक दूसरे वसंतराव नाइक मंत्रिमंडल में भी थे, इस अवधि के दौरान अलग-अलग समय पर राजस्व, वन, जल आपूर्ति, खाद्य और औषधि प्रशासन, खानाबदोश जनजातियों और खार भूमि विकास जैसे विभागों को संभाला.
शंकरराव चव्हाण
शंकरराव चव्हाण फरवरी 1975 से अप्रैल 1977 तक मुख्यमंत्री रहे.
1978 में, जब वसंतदादा पाटिल सरकार में मंत्री रहे शरद पवार ने बागियों के एक समूह के साथ मिलकर सरकार गिरा दी और खुद मुख्यमंत्री बन गए, तो शंकरराव उनके मंत्रिमंडल का हिस्सा बन गए और उनके पास जल संसाधन और उद्योग जैसे विभाग थे.
उक्त कांग्रेस नेता ने कहा, “शंकरराव चव्हाण दिल्ली से समर्थन के कारण मुख्यमंत्री बने थे और आपातकाल के बाद उनकी लोकप्रियता कम हो गई थी. उन्होंने कुछ समय के लिए कांग्रेस का एक गुट महाराष्ट्र समाजवादी कांग्रेस बनाया था और उस समय सत्ता में बने रहना उनके लिए ज़रूरी था. पीके सावंत के पास कुछ नहीं था, लेकिन शंकरराव चव्हाण के पास सहकारी समितियां, चीनी कारखाने और व्यापारिक हित थे.”
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शिवाजीराव पाटिल निलंगेकर
2003 में सुशील कुमार शिंदे के नेतृत्व वाली कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने शिवाजीराव पाटिल-निलंगेकर को मंत्रिमंडल में शामिल किया था. निलंगेकर जून 1985 से मार्च 1986 तक महाराष्ट्र के सीएम रहे थे. अपनी बेटी की मदद के लिए उनके कहने पर मुंबई यूनिवर्सिटी की परीक्षा में धोखाधड़ी के आरोपों के बाद बॉम्बे हाई कोर्ट ने उनके खिलाफ सख्त आदेश पारित किए थे, जिसके बाद उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था.
निलंगेकर को मंत्रिमंडल में शामिल करना मुख्य रूप से सामाजिक गणित का हिस्सा था. वे मराठवाड़ा से मराठा थे और चीनी सहकारी समितियों में उनकी हिस्सेदारी थी.
अगले ही साल सीएम शिंदे ने अपने मंत्रिमंडल का आकार छोटा कर दिया और निलंगेकर सहित चार कैबिनेट मंत्रियों और 18 राज्य मंत्रियों को हटा दिया.
नारायण राणे
नारायण राणे ने 1970 के दशक में मुंबई के चेंबूर इलाके में शिवसेना के साथ अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी. 1990 के दशक तक वे पार्टी के सबसे ताकतवर लोगों में से एक बन गए थे. पहली शिवसेना-भाजपा सरकार में उन्हें राजस्व मंत्री बनाया गया था. आखिरकार, वे फरवरी से अक्टूबर 1999 के बीच 9 महीने के लिए बहुत ही कम समय के लिए सीएम बने.
हालांकि, बाद के विधानसभा चुनावों में राज्य में एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन सत्ता में आ गया और राणे को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी. 2005 तक, उद्धव ठाकरे के साथ विवाद और मतभेदों के बाद राणे को शिवसेना से निकाल दिया गया.
इसके बाद राणे 2005 में कांग्रेस में शामिल हो गए और उन्हें राजस्व मंत्री का पद दिया गया. उन्होंने कांग्रेस के सीएम विलासराव देशमुख के अधीन काम किया. हालांकि, उन्होंने कांग्रेस पर उन्हें सीएम बनाने के अपने वादे से मुकरने का आरोप लगाया. उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया, लेकिन माफी मांगने के बाद उन्हें वापस ले लिया गया और एक बार फिर पृथ्वीराज चव्हाण के अधीन उद्योग मंत्रालय दे दिया गया.
अशोक चव्हाण
कांग्रेस के कद्दावर नेता अशोक चव्हाण, जो अब भाजपा के साथ हैं, को 26/11 मुंबई आतंकी हमलों के बाद नवंबर 2009 से नवंबर 2010 के बीच एक साल के लिए मुख्यमंत्री बनाया गया. हालांकि, आदर्श हाउसिंग घोटाले और भ्रष्टाचार के आरोपों ने उनकी कुर्सी हिला दी और उन्हें पृथ्वीराज चव्हाण को पद देने के लिए कुर्सी छोड़नी पड़ी. हालांकि वे पार्टी में बने रहे, लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण उन्होंने तुरंत कोई मंत्री पद नहीं संभाला.
2014 में लोकसभा चुनाव के लिए उन्हें पार्टी ने नामित किया और उस साल वे जीत गए, लेकिन कांग्रेस राज्य और केंद्र में सत्ता खो बैठी.
हालांकि, जब उन्होंने 2019 में सांसद के रूप में फिर से चुने जाने का प्रयास किया, तो वे अपनी नांदेड़ सीट हार गए, जिसके कारण पार्टी ने विधानसभा सीट के लिए उनकी उम्मीदवारी की घोषणा की. उन्होंने विधानसभा सीट जीती.
महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के गठन और उद्धव ठाकरे के सीएम पद का दावा करने के बाद, चव्हाण ने पीडब्ल्यूडी मंत्री का पद संभाला.
एमवीए के भीतर दरार की चर्चाओं के बीच, चव्हाण ने 2020 में एक इंटरव्यू में द इंडियन एक्सप्रेस को बताया था कि वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं और मंत्रियों के बीच यह भावना बढ़ रही है कि पार्टी को भागीदार के रूप में वह नहीं मिल रहा है जिसके वे हकदार हैं.
बाद में, उस साल, जब ठाकरे के नेतृत्व वाली अविभाजित शिवसेना ने कांग्रेस को “कमज़ोर और अप्रभावी” बताते हुए कहा था कि शरद पवार संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन का नेतृत्व करें, तो चव्हाण ने उद्धव के नेतृत्व वाली सेना की आलोचना करते हुए कहा था कि वे यूपीए का हिस्सा नहीं है और उन्हें इस बारे में टिप्पणी नहीं करनी चाहिए.
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देवेंद्र फडणवीस
2014 में जब भाजपा सत्ता में आई तो देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. कुछ समय तक सरकार से दूर रहने के बाद, शिवसेना इसमें शामिल हो गई और भाजपा-शिवसेना ने राज्य में अपनी दूसरी सरकार बनाई.
वसंतराव नाइक के बाद, फडणवीस ने 5 साल का कार्यकाल पूरा करने वाले मुख्यमंत्री बनने की दुर्लभ उपलब्धि हासिल की, यह उपलब्धि उनसे पहले केवल एक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री — कांग्रेस के वसंतराव नाइक ने हासिल की थी.
इसके तुरंत बाद, उन्होंने 2019 में अजित पवार के साथ उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेकर महाराष्ट्र के सबसे कम समय तक मुख्यमंत्री रहने का इतिहास भी बनाया. सरकार 72 घंटे में गिर गई.
इन दो उपलब्धियों के बाद, फडणवीस को उपमुख्यमंत्री की भूमिका निभानी पड़ी. जब एकनाथ शिंदे ने जून 2022 में शिवसेना को विभाजित करके एमवीए सरकार को गिरा दिया, तो भाजपा ने समर्थन दिया और शिंदे ने बागियों के साथ मिलकर भाजपा के समर्थन से सरकार बनाई.
हालांकि, फडणवीस ने पहले ही घोषणा कर दी थी कि वे सरकार से बाहर रहेंगे और बाहर से इसका मार्गदर्शन करेंगे, लेकिन उसी शाम उन्हें शिंदे के डिप्टी के तौर पर शपथ दिला दी गई. यह तब हुआ जब भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने घोषणा की कि फडणवीस सरकार से बाहर नहीं रहेंगे और सरकार का हिस्सा बने रहेंगे.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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