लालगंज/वाराणसी/लखनऊ: भले ही आकाश आनंद जब सबके सामने आए तो वह काफी कम महत्वपूर्ण कैंपेनर लग रहे थे, लेकिन अगली पीढ़ी के बहुजन समाज पार्टी (बसपा) नेता आकाश आनंद केवल तीन सप्ताह के भीतर एक तेजतर्रार वक्ता के रूप में उभरे हुए प्रतीत होते हैं. हाल ही में, वह “बड़े पैमाने पर पेपर लीक के पीछे के लोगों को कुचलने” जैसी भावनाओं को आवाज देकर मतदाताओं से जुड़ रहे हैं और लोगों को सत्तारूढ़ भाजपा को उसकी “औकात” दिखाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं.
28 वर्षीय आनंद, जिन्हें पिछले दिसंबर में उनकी ‘बुआ’ मायावती ने बसपा का भविष्य का चेहरा घोषित किया था, 2017 से राजनीति में सक्रिय हैं, जब बसपा उस साल हुए विधानसभा चुनावों में 19 सीटों पर सिमट गई थी. उनके और उनके घटते हुए समर्थन वाली पार्टी के लिए 2024 का आम चुनाव उनके सामने अब तक की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है.
बीएसपी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, उनका आगमन पार्टी द्वारा सोशल मीडिया को अपनाने के साथ हुआ, और उन्हें ‘बहन जी’ को विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर जोड़ने के लिए मनाने का श्रेय दिया जाता है, जिसके लिए मायावती तैयार नहीं थीं. मायावती ने 2019 में ट्विटर (अब, एक्स) को ज्वाइन किया था.
बीएसपी एमएलसी भीमराव अंबेडकर ने दिप्रिंट को बताया कि आकाश छोटी उम्र में ही बीएसपी आंदोलन और उसके उद्देश्यों से परिचित हो गए थे. “पारिवारिक परिवेश के कारण अंबेडकरवादी संस्कार शुरू में ही आ गए….”
स्कूली शिक्षा नोएडा में, एमबीए इंग्लैंड में
आकाश आनंद नोएडा में पले-बढ़े और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के एक प्रमुख निजी स्कूल, पाथवेज़ स्कूल में गए. बाद में वह प्लायमाउथ विश्वविद्यालय में एमबीए करने के लिए इंग्लैंड चले गए.
भारत लौटने पर, सात साल पहले मायावती ने उन्हें आधिकारिक तौर पर पार्टी कार्यकर्ताओं से मिलवाया था, यह लगभग वही समय था जब उन्होंने पूर्व बसपा सांसद राजाराम के पंख कतर दिए थे, जिन्हें कभी उनके उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाता था. एक साल बाद, बसपा सुप्रीमो ने जय प्रकाश सिंह जैसे नेताओं पर अपना भरोसा जताया, जिन्हें बाद में राष्ट्रीय समन्वयक के रूप में पदोन्नत किया गया था.
अंबेडकर ने कहा, “आकाश जी को सामने लाने से पहले बहन जी ने कई नेताओं को आजमाया लेकिन वे उनकी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे.”
दिप्रिंट ने पार्टी नेताओं के एक वर्ग से बात की, जिन्होंने खुलासा किया कि कई उत्तराधिकारियों को या तो किनारे कर दिया गया है या उन्होंने बसपा छोड़ दी है. उन्होंने याद करते हुए यह भी कहा कि कैसे अपने परिवार से किसी को भी अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्त नहीं करने के उनके 2007 और 2019 के बयानों से हटकर, मायावती के भाई लंबे समय तक पार्टी मामलों में शामिल रहे हैं.
एक पूर्व बसपा सांसद ने कहा, “वह पहले अपने बड़े भाई सिद्धार्थ कुमार के करीब थीं, जिनकी बेटी को आधिकारिक कार्यक्रमों में भी ‘बहन जी’ के साथ देखा जाता था. लेकिन 2003 में जब केंद्रीय जांच एजेंसियों ने उनके घर पर छापा मारा था, तब कथित तौर पर उनके भाई ने उनका साथ नहीं दिया, जिसके बाद वह उनसे अलग हो गईं,”
पूर्व बसपा विधायक ने कहा, “लंबे समय से, (पूर्व राज्यसभा सदस्य) सतीश चंद्र मिश्रा को पार्टी में वास्तव में नंबर 2 और संभावित उत्तराधिकारी माना जाता था, लेकिन उन्हें भी दरकिनार कर दिया गया. बाद में, पूर्व राज्यसभा सदस्य राजाराम को अघोषित उत्तराधिकारी के रूप में देखा गया, लेकिन 2017 में उन्हें सभी पदों से हटा दिया गया. इसके बाद उन्होंने अपने छोटे भाई आनंद कुमार को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया,”
उनके अनुसार, 2003 में सिद्धार्थ कुमार द्वारा उन्हें छोड़ने के बाद, मायावती के छोटे भाई आनंद कुमार का परिवार उनकी मदद के लिए उनके घर में रहने लगा और इसके बाद पार्टी में उनकी पदोन्नति हुई.
भीम आर्मी की तरफ जाने वालों को लुभाने के लिए एक चेहरा
अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, अब 68 साल की हो चुकीं मायावती को अहसास हो गया है कि युवा चेहरे के अभाव में दलित समुदाय के युवा पार्टी से दूर जा रहे हैं.
पूर्वांचल के एक वरिष्ठ बसपा नेता ने कहा कि जहां मायावती पार्टी सुप्रीमो बनी हुई हैं, वहीं दलित और बहुजन युवा एक युवा नेता की तलाश कर रहे हैं और भीम आर्मी प्रमुख चन्द्रशेखर आज़ाद की ओर जा रहे हैं, जिससे उन्हें आकाश को अपना उत्तराधिकारी घोषित करने के लिए मजबूर होना पड़ा. नेता ने कहा, “सिर्फ दलित ही नहीं बल्कि हमारे मूल जाटव मतदाता भी पार्टी से दूर हो गए हैं, जिससे बसपा को नुकसान हुआ है.”
बसपा में आकाश का ऊपर उठना अचानक नहीं, बल्कि धीरे-धीरे हुआ. बसपा के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया, ”2017 में जब उन्हें पार्टी कार्यकर्ताओं से मिलवाया गया, तो उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी गई और वे सार्वजनिक बैठकों से दूर रहे.”
हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले ही आकाश ने आगरा में अपनी पहली सार्वजनिक बैठक को संबोधित करते हुए एसपी-बीएसपी-आरएलडी गठबंधन के उम्मीदवार के लिए वोट मांगे थे. जब उन्होंने बसपा प्रमुख को ‘बुआ जी’ कहा तो भीड़ तालियां बजाने लगी और जयकारे लगाने लगी.
तब से, बसपा में आकाश की ज़िम्मेदारियां बढ़ती गईं और सितंबर 2022 में, उन्हें गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनावों से पहले बसपा के पक्ष में मतदाताओं को एकजुट करने का काम सौंपा गया, जो पार्टी के भीतर उनकी बेहतर होती स्थिति का संकेत था.
उन्होंने तीन राज्यों में सार्वजनिक बैठकों के साथ-साथ पार्टी बैठकों को भी संबोधित किया. राजस्थान में उन्होंने ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ यात्रा निकाली. ग्राउंड पर दिखने का आरोप लगाते हुए एक अंदरूनी सूत्र ने कहा कि जबकि अन्य राज्यों में आकाश की भूमिका बढ़ी है, लेकिन यूपी जैसे राज्यों में, जहां पार्टी का अच्छा वोट बेस है, वहां अभी भी सारे निर्णय बहन जी के ही हाथ में हैं.
गुरुवार को आकाश की लालगंज रैली में शामिल हुए एक बसपा नेता ने कहा, “बहन जी ही अभी भी यूपी के बारे में सभी निर्णय ले रही हैं. जोनल कोऑर्डिनेटरों और जिला अध्यक्षों के साथ बैठकों में बहन जी का संदेश कार्यकर्ताओं तक पहुंचाया जाता है. हम उम्मीद कर रहे हैं कि यूपी में भी आकाश जी की भूमिका धीरे-धीरे बढ़ेगी. लोकसभा चुनाव उनके लिए बहन जी की छाया से बाहर निकलने का एक मंच है,”.
लालगंज में आकाश की रैली के दौरान लोगों ने नारे लगाए, “देखो देखो कौन आया…शेर आया” और “बसपा की क्या पहचान…नीला झंडा हाथी निशान”. यहां तक कि जब अपने प्रतिद्वंदियों पर निशाना साधते वक्त एक मकड़ी ने उनके काम में रुकावट डाली तो उन्होंने कहा, “ये मकड़ियां भी ऐसी ही जाल बांधती हैं जैसे ये विपक्षी पार्टियां… लेकिन हमें कुचलना आता है,” उन्होंने नीला गमछा पहनकर मायावती को नकारने वालों को चेतावनी दी. जो कि भीम आर्मी और अन्य पार्टियों के संदर्भ में था.
उन्होंने पकौड़े तलने को “रोजगार” बताने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी पर उनकी बुलडोजर राजनीति के लिए हमला बोला. साथ ही समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव और कांग्रेस पर भी निशाना साधा.
आकाश ने दिप्रिंट को बताया, “बहन जी ने युवाओं के लिए बसपा में 50 प्रतिशत पद आरक्षित किए हैं. हम उन सभी को भरने की कोशिश करेंगे,”
उन्होंने चन्द्रशेखर आज़ाद के महत्त्व को ख़ारिज करते हुए कहा कि मीडिया आज़ाद समाज पार्टी के प्रमुख को जरूरत से ज्यादा तवज्जो देता है.
कभी मृदुभाषी कहे जाने वाले आकाश के भाषणों के कुछ बयान जैसे- अब “कटोरा थमाया है आपको” और “इनका मन चाहे तो भीख मंगवा कर कहें के ये भी रोज़गार है” को लोकप्रियता मिल रही है.”
रविवार को उत्तर प्रदेश के सीतापुर में एक सार्वजनिक बैठक के दौरान आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल करने के आरोप में आकाश और चार अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था.
‘आकाश आनंद को बहुत कुछ साबित करना है’
राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार, आकाश के पास अब राजनीति में अपनी पहचान बनाने के लिए एक मंच है, लेकिन उन्हें अभी भी बहुत कुछ साबित करना है, खासकर तब जबकि बसपा की खराब होती स्थिति एक ज़मीनी हकीकत है.
बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख शशिकांत पांडेय ने दिप्रिंट को बताया, “आकाश आनंद एक राजनीतिक परिवार से हैं. वह लो-प्रोफाइल थे लेकिन बचपन से ही उन्हें मायावती के आसपास देखा जाता था. राजनीतिक परिवारों के बच्चों के सामने आने से पहले ही उनकी बुनियादी ट्रेनिंग शुरू हो जाती है. आकाश के पिता भी राजनीति में थे, लेकिन भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के कारण सफल नहीं हो सके,”
आकाश की बात करें तो उनकी जिंदगी उनकी बुआ और पिता आनंद कुमार की तुलना में आसान थी, जो कि गौतम बुद्ध नगर के दादरी में एक दलित क्लर्क परिवार में जन्में नौ में से दो बच्चे थे.
पांडेय ने कहा, “उनके भाषण देने के अंदाज़ और सार्वजनिक मुद्दों को उठाने की उनकी कला के कारण, जिन लोगों को मायावती पर भरोसा है, उन्हें आकाश में आशा की किरण दिखाई दे रही है. यह संभव है कि समय के साथ वह आगे बढ़ें, लेकिन उनकी पहली चुनौती एससी (अनुसूचित जाति) और ईबीसी (आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग) समुदायों के बीच समर्थन हासिल करना होगा. यह देखना होगा कि वह मतदाताओं से कितना जुड़ पाते हैं क्योंकि यह काफी साइलेंट चुनाव है, और कुछ सीटों पर लोग इंडिया ब्लॉक की ओर भी आकर्षित हो रहे हैं,”
दिप्रिंट से बातचीत में आकाश ने साफ कर दिया है कि हाल-फिलहाल में वह चुनाव नहीं लड़ेंगे.
‘कांशीराम से प्रेरित’
पांडेय ने कहा कि आकाश ने जनता के साथ जुड़ाव सुनिश्चित करने के लिए अपने लुक में भी बदलाव किया है. उनकी आधी बाजू की सफेद शर्ट और ढीली पैंट, बसपा के दिवंगत संस्थापक-नेता कांशीराम के पहनावे से मेल खाती है.
उन्होंने कहा, “जब उन्हें पहली बार जनवरी 2019 में एक रैली में मायावती द्वारा राजनीति में लॉन्च किया गया था, तो उन्होंने ऐसे जूते पहने थे जिन्होंने अपनी कथित उच्च कीमत के कारण ध्यान अपनी ओर खींचा. फिर उन्हें सीख मिली होगी कि राजनीति में, हर चीज़ पर ध्यान दिया जाता है और उन्होंने अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव जैसे अन्य नेताओं पर भी ध्यान दिया होगा.”
पांडेय ने कहा, “यह कहना जल्दबाजी होगी कि वह खुद को युवा कांशीराम के रूप में पेश कर रहे हैं, जिन्होंने पार्टी बनाई, लेकिन अगर वह पांच से दस साल तक काम करते हैं, तो बहुत सारी संभावनाएं होंगी. बसपा केवल दलितों को ही साथ लेकर कुछ नहीं कर पाएगी और उसे अन्य समुदायों को भी साथ लेना होगा, और उन लोगों को भी अपने साथ लाना होगा जो किसी और पार्टी की तरफ मुड़ गए हैं.”
आकाश जानते हैं कि उन्हें मुसलमानों और अन्य पिछड़े वर्गों के साथ-साथ बसपा के मुख्य मतदाता आधार को पार्टी के पाले में वापस लाना है. लेकिन, चुनाव के बाद भाजपा के साथ गठबंधन के बारे में एक सवाल पर उनकी हालिया प्रतिक्रिया ने संकेत दिया कि उनकी राजनीति किस दिशा में जा सकती है.
एक मीडिया चैनल से बात करते हुए, आकाश ने दावा किया कि बसपा का लक्ष्य सत्ता में आना है. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक अगर इसे इस तथ्य के साथ मिलाकर देखें कि हाल ही में भाजपा सरकार ने उन्हें Y+ सुरक्षा मुहैया कराई है तो कहा जा सकता है कि बसपा भाजपा के साथ गठबंधन को लेकर बहुत खिलाफ नहीं हो सकती है.
पांडेय ने कहा, “एक क्षेत्र तक सीमित छोटी पार्टियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे सत्ता में बने रहें; अन्यथा, वे अपने समर्थकों को लाभ पहुंचाने में असमर्थ होंगे. अजित सिंह के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय लोक दल का यही हाल था और अब अनुप्रिया पटेल के नेतृत्व वाले अपना दल (के) और चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) का भी यही हाल है. बीजेपी ने छोटे दलों के साथ गठबंधन किया है. यह आश्चर्य की बात नहीं है कि आकाश भी इसके लिए तैयार हो सकते हैं. यह देखना होगा कि क्या बसपा कुछ सीटें जीत पाती है, जो कि नतीजे आने पर ही पता चलेगा,”
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