नई दिल्ली: 28 फरवरी, 2000 को तत्कालीन विपक्षी नेता मनमोहन सिंह ने कहा, “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से ग्रस्त एक सार्वजनिक प्रशासन न तो संसदीय प्रणाली की सेवा कर सकता है, न ही उससे धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की रक्षा की उम्मीद की जा सकती है.” 24 साल बाद, आरएसएस के पूर्व प्रचारक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बतौर सांसद अपनी भूमिका के प्रति प्रतिबद्धता के लिए इस फरवरी में अपने पूर्ववर्ती (सिंह) की प्रशंसा की.
91 साल की उम्र में सिंह 3 अप्रैल को राज्यसभा में अपना छठा कार्यकाल समाप्त करेंगे. हाल ही में हुए राज्यसभा चुनावों के लिए कांग्रेस द्वारा उन्हें नामांकित नहीं किए जाने से सांसद के रूप में सिंह के तीन दशक लंबे करियर पर पर्दा पड़ने की संभावना है.
साल 2000 में सिंह ने केशुभाई पटेल के नेतृत्व वाली तत्कालीन गुजरात सरकार द्वारा जारी एक परिपत्र का विरोध करते हुए आरएसएस के बारे में टिप्पणी की थी. 20 महीने बाद पटेल की जगह लेने वाले मोदी ने इस साल 8 फरवरी को सिंह को ट्रिब्यूट दिया.
पीएम ने अगस्त 2023 में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) विधेयक, 2023 के खिलाफ अपना वोट डालने के लिए व्हीलचेयर पर संसद पहुंचे सिंह की ओर ध्यान आकर्षित किया. मोदी ने कहा, “इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे (सिंह) किसका समर्थन कर रहे थे. मेरा मानना है कि वे हमारे लोकतंत्र का समर्थन कर रहे थे.”
विश्व स्तर पर नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री रहते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था को उदार बनाने के लिए सिंह की सराहना की गई है. दो कार्यकालों तक प्रधानमंत्री रहते हुए सिंह ने अक्सर अपनी पार्टी के नेताओं को आड़े हाथों लिया और यहां तक कि अपनी सरकार को भी दांव पर लगा दिया क्योंकि वे भारत-अमेरिका असैनिक परमाणु समझौते के पक्ष में खड़े थे, उनका मानना था कि इससे देश को फायदा होगा.
अर्थव्यवस्था का उदारीकरण
कई लोगों ने सरकार में सिंह की भूमिका के बारे में लिखा है और बात की है, लेकिन एक सांसद के रूप में उनका रिकॉर्ड भी उल्लेखनीय है.
1991 में अपनी पहली संसदीय बहस में पूर्व वित्त मंत्री सिंह ने कहा, “हम एक अभूतपूर्व प्रकृति के भुगतान संतुलन संकट का सामना कर रहे हैं. जुलाई 1990 और जनवरी 1991 में आईएमएफ से महत्वपूर्ण उधार लेने के बावजूद, हमारा विदेशी भंडार बहुत निचले स्तर पर गिर गया है.”
इसके बाद उन्होंने एक ऐतिहासिक बजट पेश किया जिसने अर्थव्यवस्था को उदार बनाया.
खुद को बड़ी कुर्सी पर बैठाया गया एक छोटा आदमी बताते हुए सिंह ने कहा, “हमें कुछ हफ्ते दीजिए और हम दुनिया को दिखा देंगे कि एक नए भारत का जन्म होने वाला है, कि भारत के पास संकट से बाहर निकलने में खुद की मदद करने की क्षमता, इच्छा और साहस है.”
कुछ दिन पहले, इस विषय पर बहस के दौरान, उन्होंने बजट की तैयारी में व्यस्त होने के बावजूद रात 10 बजे के बाद भी कठोर सवालों के जवाब दिए.
संसदीय बहस में उनकी अंतिम पूर्ण भागीदारी सदन में शामिल थी, जहां उन्होंने 33 साल बिताए. सिंह ने 2019 में कहा, “जब राज्यसभा की आलोचना होती है, तो यह मूल रूप से इस प्रतिष्ठित सदन को दी गई ऐतिहासिक भूमिकाओं की गलतफहमी है. यह सुनिश्चित करना हमारा कर्तव्य है कि कोई भी कानून जल्दबाजी और उग्र भावना के माहौल में पारित न हो.”
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पोखरण-2 परीक्षण
सिंह ने सदन के नेता रहते हुए 1998 से 2004 के बीच कई पहलुओं पर विपक्ष के हमले का नेतृत्व किया.
1998 के पोखरण परमाणु परीक्षणों पर उन्होंने कहा, “11 मई तक, देश की विदेश नीति, रक्षा नीति और परमाणु नीति के बारे में एक व्यापक राष्ट्रीय सहमति थी…मुझे खेद है कि 11 मई और 13 मई की घटनाओं से इस सहमति को बाधित करने की कोशिश की गई है.”
वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए सिंह के लंबे भाषण ने सरकार को रक्षा या परमाणु नीति के साथ “राजनीति नहीं करने” की चेतावनी दी. उन्होंने कहा, “मैं एक बार फिर सरकार से निवेदन करता हूं कि उन्हें हमें सुरक्षा खतरे के बारे में अपनी धारणा के बारे में बताना चाहिए. जैसा कि मैंने कहा, रक्षा मंत्री के लिए रक्षा मंत्रालय की रिपोर्टों, स्थायी समितियों की रिपोर्टों को उद्धृत करना पर्याप्त नहीं है.”
उन्होंने कहा, “अगर सरकार के पास ऐसा कोई सिद्धांत नहीं है, उसने ऐसी कोई समीक्षा नहीं की है, तो मुझे लगता है कि यह धारणा चारों ओर फैल जाएगी कि सरकार ने लोगों पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए इन परीक्षणों को एक राजनीतिक लीवर के रूप में इस्तेमाल किया है. मुझे लगता है कि यह एक दुखद बात होगी.”
चार साल बाद एक अन्य बहस में सिंह ने कहा, “पोखरण-2 परमाणु परीक्षणों के बाद से कश्मीर मुद्दे का इतना अंतरराष्ट्रीयकरण हो गया है जितना पहले कभी नहीं हुआ.”
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अयोध्या राम मंदिर
पोखरण पर चर्चा के दौरान सिंह ने विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) नेता अशोक सिंघल द्वारा इसे “हिंदू बम” कहने और “हिंदू राज्य” का आह्वान करने पर चिंता व्यक्त करते हुए राम मंदिर मुद्दे पर टिप्पणी की.
अयोध्या में मंदिर निर्माण के प्रयासों के बारे में समाचार लेखों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, “अगर आप इन गतिविधियों (स्तंभों और गुंबद का निर्माण) को जारी रखते हैं, तो मैं आपसे निवेदन करता हूं कि आप देश की एकजुटता और सामाजिक संतुलन को खतरे में डाल देंगे. इस देश को आगे आने वाली आर्थिक और अन्य प्रतिबंधों की चुनौती का एकजुट होकर मुकाबला करना होगा.”
हालांकि, बाबरी मस्जिद विध्वंस के चरम के दौरान सिंह अधिक बहसों में शामिल नहीं रहे, लेकिन 6 दिसंबर, 1999 को बतौर विपक्ष के नेता उन्होंने कहा, “6 दिसंबर, 1992, स्वतंत्र भारत के इतिहास में एक बहुत दुखद दिन था जब बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया.”
ट्रायल कोर्ट और जांच आयोग की कार्यवाही में देरी का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा, “एक राष्ट्र के रूप में हमें यह भी संकल्प लेना चाहिए कि ऐसी घटनाओं को कभी भी घटित होने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए और सभी पूजा स्थलों को हमारी सभ्यतागत और सांस्कृतिक विरासत और उनके मूल्यों के अनुरूप सम्मान दिया जाना चाहिए.”
हालांकि, उन्होंने तब किसी का नाम नहीं लिया था, लेकिन कुछ दिनों बाद 1984 के दंगों के बारे में एक अन्य बहस में सिंह ने पूर्व गृह मंत्री पर हमला किया. उन्होंने कहा, “हम सभी आडवाणी के अतीत को जानते हैं, उन्होंने क्या किया और बाबरी मस्जिद घटना में उनके कार्यों के कारण कईं हज़ारों लोगों का नरसंहार हुआ.”
सिंह की टिप्पणी कि आरएसएस द्वारा संचालित सार्वजनिक प्रशासन से धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की रक्षा की उम्मीद नहीं की जा सकती, 28 फरवरी 2000 को आई थी जब उन्होंने संसद में एक विषय उठाया था.
उन्होंने कहा था, “मैं गुजरात राज्य सरकार पर परिपत्र वापस लेने के लिए दबाव न डालकर धर्मनिरपेक्षता, जो कि भारत के संविधान के मूल सिद्धांतों में से एक है, की रक्षा करने की अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी का निर्वहन करने में भारत सरकार की विफलता पर चर्चा शुरू करने के लिए खड़ा हुआ हूं. सिंह ने इस आदेश को “राजनीतिक रूप से तटस्थ सिविल सेवा की बुनियादी इमारत” को नष्ट करने का प्रयास बताया.”
छह साल बाद मध्य प्रदेश सरकार ने इसी तरह का आदेश जारी किया जब सिंह प्रधानमंत्री थे, लेकिन, कांग्रेस ने उसका विरोध नहीं किया.
2001 आगरा शिखर सम्मेलन
सिंह का पाकिस्तान के साथ निरंतर बातचीत में दृढ़ विश्वास था, यह नीति उनकी सरकार ने कई परेशान करने वाली घटनाओं के बावजूद कायम रखी, लेकिन, सिंह ने 2001 के आगरा शिखर सम्मेलन से कुछ भी हासिल करने में विफल रहने और इसके बजाय तत्कालीन पाकिस्तान राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ की मदद करने के लिए विपक्ष के नेता के रूप में सरकार की आलोचना की थी. अगस्त 2001 में सिंह ने कहा, “(शिखर सम्मेलन) एक उत्कृष्ट उदाहरण होगा, जो हमें बताएगा कि शिखर वार्ता कैसे नहीं करनी चाहिए.”
यह सवाल करते हुए कि देश ने इससे क्या हासिल किया, उन्होंने कहा, “शिखर सम्मेलन की विफलता अपर्याप्त तैयारी को दर्शाती है, लेकिन इस अपर्याप्त तैयारी के पीछे यह तथ्य है कि इस सरकार की पाकिस्तान पर कोई सुसंगत नीति नहीं है; जम्मू-कश्मीर पर भी इसकी कोई सुसंगत नीति नहीं है.”
उन्होंने दावा किया कि मुशर्रफ के साथ शिखर वार्ता पहले से अधिक लाभप्रद स्थिति में समाप्त हुई. “हमारे निमंत्रण ने उन्हें वैधता की एक डिग्री प्रदान की, जिसे कोई अन्य देश प्रदान करने को तैयार नहीं था. दूसरा, उन्होंने कश्मीर मुद्दे को उजागर करने और इस पर अंतरराष्ट्रीय ध्यान केंद्रित करने के लिए बेहद सफल प्रचार अभियान चलाया.”
“तीसरा, वे (मुशर्रफ) असंरचित शिखर सम्मेलन के एजेंडे को हथियाने में कामयाब रहे, जिससे हमारे देश को बैकफुट पर धकेल दिया. चौथा, उन्होंने प्रचार की लड़ाई जीत ली और जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी और पृथकतावादी तत्वों को इस तरह से अतिरिक्त प्रोत्साहन दिया, जैसा पहले कभी नहीं किया गया था.”
अपना हमला जारी रखते हुए सिंह ने कहा कि इसमें कोई हैरानी नहीं है कि कई लोग कह रहे हैं कि राज्य चुनावों में एनडीए के खराब प्रदर्शन और तहलका खुलासे सहित “घरेलू मजबूरियों” ने उसे शिखर सम्मेलन आयोजित करने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने कहा, “कई लोगों ने टिप्पणी की है कि इस शिखर सम्मेलन के लिए हमारे उद्देश्यों, हमारी रणनीतियों के बारे में कोई गंभीर विचार नहीं किया गया है.”
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2002 गुजरात दंगे
2002 के गुजरात दंगों के बाद, सिंह ने संसद में स्थिति को संभालने के अपने उत्तराधिकारी की आलोचना की. दंगों को “एक बड़ी राष्ट्रीय त्रासदी” और “राष्ट्र के लिए शर्मनाक” बताते हुए, सिंह ने मई 2002 में कहा, “सर, यहां एक उदाहरण है जहां दो महीने से अधिक समय तक राज्य सरकार कानून और व्यवस्था को बहाल करने में पूरी तरह विफल रही, जहां निर्दोष नागरिकों के मौलिक मानवाधिकारों का दिन-ब-दिन उल्लंघन होता रहा.”
एक अखबार की रिपोर्ट का हवाला देते हुए जहां तत्कालीन पीएम ने कहा था कि “किसी निर्देश की कोई ज़रूरत नहीं है क्योंकि गुजरात सरकार काफी अच्छा काम कर रही है.” सिंह ने पूछा, “यह साल का एक संक्षिप्त विवरण है. गुजरात में यह नरसंहार दो महीने से अधिक समय से दिन-ब-दिन जारी है. क्या यह इस बात का सबूत है कि गुजरात सरकार काफी अच्छा काम कर रही है?”
मोदी के बारे में उन्होंने कहा, “हमारे पास एक ऐसा मुख्यमंत्री है जो गोधरा के पीड़ितों और अन्य जगहों के पीड़ितों के बीच भेदभाव करने का दुस्साहस करता है…महोदय, इन सभी कारणों से, हम इस दावे से सहमत नहीं हो सकते हैं कि गुजरात सरकार स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए वह सब कुछ कर रही है जिसे किए जाने की ज़रूरत थी.”
विहिप की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा, “विहिप जैसे संस्थानों या निकायों को देखते हुए, जो हद तक नफरत का प्रचार करते हैं, जैसा कि वे कर रहे हैं, यह एक उपयुक्त मामला है जहां उन निकायों या संस्थानों के खिलाफ नागरिक मुकदमे लाए जाने चाहिए, जो सांप्रदायिक भावनाएं भड़काते हैं, ऐसी स्थिति पैदा करते हैं जैसी गुजरात में की.”
अन्ना हजारे आंदोलन
अन्ना हजारे के नेतृत्व में 2011 के लोकपाल बिल आंदोलन को व्यापक रूप से मनमोहन सिंह सरकार के पतन की शुरुआत के रूप में देखा जाता है. उस “भ्रष्टाचार विरोधी” आंदोलन के चेहरों में से एक, अरविंद केजरीवाल, जिन्होंने तब सिंह की कड़ी आलोचना की थी, अब कांग्रेस के सहयोगी हैं. सिंह पिछले साल अपने मुद्दे का समर्थन करने के लिए व्हीलचेयर पर राज्यसभा आए थे.
पुलिस द्वारा अन्ना हजारे को गिरफ्तार करने के एक दिन बाद, सिंह ने 17 अगस्त, 2011 को संसद में कहा, “…मैं किसी भी संवैधानिक दर्शन या सिद्धांत से अवगत नहीं हूं जो किसी को कानून बनाने के लिए संसद के एकमात्र विशेषाधिकार पर सवाल उठाने की अनुमति देता है.” उन्होंने कहा, “उन्होंने (हजारे) विधेयक के अपने मसौदे को संसद पर थोपने के लिए जो रास्ता चुना है, वो गलत है और हमारे संसदीय लोकतंत्र के लिए गंभीर परिणामों से भरा है.”
तब तक, सरकार लोकपाल की स्थापना पर एक विधेयक लोकसभा में पेश कर चुकी थी और इसे स्थायी समिति को भेज दिया गया था.
हजारे के विरोध के बारे में सिंह ने यह भी कहा, “अब हम विश्व मंच पर महत्वपूर्ण खिलाड़ियों में से एक के रूप में उभर रहे हैं. कई ताकतें यह नहीं देखना चाहेंगी कि भारत को राष्ट्रों के समूह में अपनी असली जगह का एहसास हो. हमें उनके हाथों के खिलौने नहीं बनना है. हमें ऐसा माहौल नहीं बनाना चाहिए जिसमें हमारी आर्थिक प्रगति आंतरिक कलह के कारण बाधित हो जाए.“
अंतिम चरण
अपनी सरकार के पिछले कुछ वर्षों में, सिंह को ज्यादातर केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा कोयला ब्लॉक आवंटन की जांच, किसानों के लिए कर्ज़ माफी योजना में वित्तीय अनियमितता और दुरुपयोग और देश में आर्थिक स्थिति जैसे मुद्दों पर बचाव करना पड़ा.
विपक्षी नेता के तौर पर सिंह ने जहां अर्थव्यवस्था को लेकर सत्ताधारी पार्टी पर हमला बोला, वहीं उन्हें सबसे ज्यादा हमलों का सामना भी इसी मोर्चे पर करना पड़ा. 28 जुलाई, 1998 को जब वे विपक्ष के नेता थे, उन्होंने कहा, “सर, सरकार की चौतरफा विफलता ही गंभीर मूल्य स्थिति का मूल कारण है.” पंद्रह साल बाद, अगस्त 2013 में उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में कहा, “देश एक कठिन आर्थिक स्थिति का सामना कर रहा है.”
प्रधानमंत्री कार्यालय छोड़ने के बाद सिंह ने समय-समय पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, हालांकि, उन्होंने मई 2014 के बाद से केवल आठ बहसों में भाग लिया. इनमें आंध्र प्रदेश पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2015, नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर, असम में सिलचर डिटेंशन सेंटर में विदेशियों की स्थिति और नोटबंदी जैसे विषय शामिल थे.
उन्होंने मोदी सरकार के खिलाफ एक तीखे भाषण में नोटबंदी को “भारी प्रबंधन विफलता” और “संगठित लूट और वैध लूट” कहा.
उन्होंने कहा, “मैं प्रधानमंत्री से लोगों के संकट को दूर करने के लिए व्यावहारिक, व्यावहारिक तरीके और साधन खोजने का आग्रह करता हूं, जो हमारे लोगों का एक बड़ा हिस्सा है.”
(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)
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