मुंबई: करेंगे या नहीं करेंगे? पुणे और पिंपरी चिंचवड़ में शरद पवार और अजित पवार गुटों के नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) नेता आने वाले स्थानीय निकाय चुनावों के लिए आपस में हाथ मिलाने के पक्ष में हैं.
दरअसल, वोट बंटने से बचने के लिए कागल, कोल्हापुर में स्थानीय निकाय चुनावों के लिए एनसीपी के दोनों गुट पहले ही साथ आ चुके हैं. अब इसी संभावना पर बड़े स्तर पर पुणे और पिंपरी चिंचवड़ में चर्चा हो रही है.
इसके पीछे एक वजह यह भी बताई जा रही है कि दोनों गुट लंबे समय से एक-दूसरे के खिलाफ लड़ते रहे हैं और उनके नेताओं का मानना है कि साथ आने से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को नगर निकायों की सत्ता से बाहर रखा जा सकता है.
पिंपरी चिंचवड़ में NCP (शरद पवार) कोर कमेटी के सदस्य सुनील गव्हाणे ने दिप्रिंट से कहा, “यह ज़मीनी स्तर के कार्यकर्ताओं का चुनाव है और पवार साहब ने हमें कहा है कि हम स्थानीय स्तर पर आपस में बैठकर फैसला लें. इसके अलावा, 2017 के नगर निगम में हम दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थे और BJP सत्ता में थी. इसलिए उन्हें दूर रखने के लिए हमें दादा की पार्टी (अजित पवार गुट) के साथ आकर अपनी ताकत बढ़ानी चाहिए.”
इसी तरह, अजित पवार गुट के नेताओं का मानना है कि पिंपरी चिंचवड़ नगर निगम (पीसीएमसी) में सबसे मजबूत पार्टी रही एनसीपी को फिर से ताकतवर बनने के लिए बीजेपी को सत्ता से दूर रखना ज़रूरी है.
अजित पवार गुट के एक पदाधिकारी जो टिकट मिलने की उम्मीद कर रहे हैं, ने कहा, “हमारे ज़मीनी कार्यकर्ता चाहते हैं कि हम फिर से सत्ता में आएं. अगर हम अलग-अलग लड़ेंगे तो बीजेपी को फायदा होगा और हमारी ताकत और कम हो जाएगी. साथ ही, भले ही राज्य में हम बीजेपी के साथ सत्ता में हैं, लेकिन यहां कम से कम हम बीजेपी के दखल के बिना अपना शासन चाहते हैं,”
पुणे में भी स्थानीय स्तर के नेता साथ आने की संभावना तलाश रहे हैं, लेकिन एनसीपी (शरद पवार) खेमे में कुछ विरोध भी है.
एनसीपी (एसपी) के शहर अध्यक्ष प्रशांत जगताप ने कहा, “हम महा विकास आघाड़ी (एमवीए) का हिस्सा हैं, इसलिए ऐसा कोई प्रस्ताव अजित दादा के गुट को नहीं भेजा गया. हालांकि, हम एक-दो दिन में इस संभावना पर चर्चा करेंगे और अंतिम फैसला लेंगे.”
एनसीपी की पश्चिमी महाराष्ट्र में मजबूत पकड़ रही है. इसलिए पुणे और पिंपरी चिंचवड़ दो अहम जुड़वां शहर हैं, जहां तेज़ी से विकास हो रहा है. दशकों तक एनसीपी का पुणे और पिंपरी चिंचवड़ नगर निगमों पर मजबूत नियंत्रण रहा.
लेकिन 2017 में यह पकड़ ढीली पड़ गई, जब बीजेपी ने अपनी सीटें बढ़ाकर दोनों नगर निगम अकेले ही जीत लिए. जैसे-जैसे शहर बढ़ रहे हैं और पुणे व पिंपरी चिंचवड़ में मेट्रो लाइनें और उद्योग आ रहे हैं, बीजेपी इन नगर निगमों पर सत्ता बनाए रखना चाहती है.
दूसरी ओर, पुणे के पालक मंत्री अजित पवार भी इन दोनों नगर निगमों में सत्ता हासिल करना चाहते हैं, खासकर पिंपरी चिंचवड़ में, जहां सदी के पहले दशक में तेज़ विकास हुआ था.
क्योंकि एनसीपी इस विकास का हिस्सा रही है, इसलिए शरद पवार गुट भी हिस्सेदारी चाहता है, क्योंकि पिछले कार्यकाल में दोनों गुट एकजुट थे. हालांकि, ज़्यादातर पूर्व नगरसेवक उनके भतीजे के खेमे में हैं, इसलिए शरद पवार गुट के कार्यकर्ताओं को लगता है कि सत्ता में आने का उनका मौका अजित पवार के साथ हाथ मिलाने से ही है.
गव्हाणे ने कहा, “हमारे ज़मीनी कार्यकर्ता भी मानते हैं कि हमें बीजेपी को पीसीएमसी जीतने नहीं देना चाहिए और इसके लिए हमारा सबसे अच्छा मौका दादा के गुट के साथ रहना है, क्योंकि हम पहले साथ काम कर चुके हैं. हमने हमेशा बीजेपी का विरोध किया है और इसलिए कार्यकर्ता भी अजित दादा के साथ गए अपने पुराने साथियों के साथ काम करने के विचार से सहमत हैं.”
उन्होंने कहा कि कोर कमेटी ने इस मुद्दे पर एमवीए के सहयोगी दलों—सेना यूबीटी, कांग्रेस, यहां तक कि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) और अन्य छोटे दलों—से भी चर्चा की है और सभी का रुख सकारात्मक रहा है. उनके मुताबिक, किसी भी त्रिकोणीय मुकाबले का फायदा सिर्फ बीजेपी को होगा.
पवार गुट के अंदरूनी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया, अजित पवार अगले कुछ दिनों में अंतिम फैसला लेंगे और उस फैसले का पालन किया जाएगा.
इस बीच, गुरुवार को कांग्रेस ने पीसीएमसी चुनावों के लिए गठबंधन पर चर्चा करने के लिए अजित पवार से संपर्क किया. खबरें हैं कि कांग्रेस ने 123 सदस्यीय नगर निकाय में किसी भी सीट-बंटवारे के तहत 20 सीटों की मांग की है.
“हमारे नेताओं ने हमें स्थानीय स्तर पर फैसला लेने को कहा है और हमारा मकसद बीजेपी को सत्ता से दूर रखना है, जिसे उन्होंने भी स्वीकार किया है.”
सभी 29 नगर निगमों के लिए मतदान 15 जनवरी को होगा, जबकि नतीजे 16 जनवरी को घोषित किए जाएंगे.
क्या गठबंधन होगा?
इन दोनों नगर निगमों में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस पहले ही कह चुके हैं कि एनसीपी (एपी) के साथ कोई गठबंधन नहीं होगा और वास्तव में दोनों पार्टियों के बीच “दोस्ताना मुकाबला” होगा.
गुरुवार को एनसीपी (एपी) ने नगर निगम चुनावों में आगे की रणनीति पर चर्चा करने के लिए कार्यकर्ताओं और नेताओं की बैठक की.
पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील तटकरे ने मीडिया से कहा कि प्राथमिकता और पसंद सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन को दी जाएगी. उन्होंने कहा, “मुझे दूसरी एनसीपी के साथ हाथ मिलाने के किसी प्रस्ताव की जानकारी नहीं है. पहली प्राथमिकता महायुति होगी और उसके बाद हम देखेंगे कि किन-किन संयोजनों पर प्रयोग किया जा सकता है. नामांकन दाखिल होना अभी बाकी है, इसलिए इस पर फैसला लेने के लिए हमारे पास समय है.”
इसके बाद, एनसीपी (एपी) के चुनाव प्रभारी नाना काटे ने कहा कि वरिष्ठ नेताओं ने ज़मीनी स्तर के नेताओं को वोट बंटने से बचने के लिए गठबंधन की संभावना पर चर्चा करने को कहा है.
उन्होंने मीडिया को बताया, “कुछ दिन पहले अजित पवार ने हमें दूसरी एनसीपी गुट से बातचीत करने को कहा था, क्योंकि वे हमारे चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ने को तैयार हैं. यहां तक कि सुप्रिया सुले ताई ने भी हाल ही में मुझे फोन किया और कहा कि स्थानीय नेता आपस में बात करें और बीजेपी के खिलाफ साथ लड़ने की संभावना तलाशें, ताकि वोट बंटने से बचा जा सके.”
आपसी समझ बढ़ाने की एक और वजह उम्मीदवारों की बड़ी संख्या भी है. काफी समय बाद चुनाव हो रहे हैं, इसलिए स्थानीय नेताओं ने दिप्रिंट को बताया कि बहुत से लोग अपनी किस्मत आज़माना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि जो बागी होंगे या जिन्हें टिकट नहीं मिलेगा, वे सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल हो सकते हैं.
इसके अलावा, ज़्यादातर ज़मीनी कार्यकर्ता अपने ही गठबंधन के कुछ साझेदार दलों के खिलाफ लड़ते रहे हैं—चाहे वह एमवीए हो या महायुति. जैसे, कांग्रेस और शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के बीच खींचतान है, या एनसीपी का शिवसेना और बीजेपी से टकराव रहा है.
ऐसी स्थिति में, सत्तारूढ़ और विपक्षी—दोनों ही गठबंधनों में सभी को जगह देना मुश्किल होता जा रहा है, यह चिंता तटकरे ने भी जताई.
तटकरे ने मीडिया से कहा, “इन दोनों जगहों पर बीजेपी और एनसीपी मज़बूत हैं. इसलिए अगर हम साथ लड़ते हैं, तो जिन्हें टिकट नहीं मिलेगा, वे विपक्ष के साथ हाथ मिला सकते हैं. इसी वजह से हम यह सोच रहे हैं कि आगे कैसे बढ़ा जाए.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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