जम्मू: कांग्रेस के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद का कहना है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में चल रही भारत जोड़ो यात्रा से पहले ‘कांग्रेस जोड़ो’ का प्रयास किया जाना चाहिए था. उन्होंने दिप्रिंट को दिए एक साक्षात्कार में कहा, ‘अगर आपका अपना घर ठीक नहीं है, तो आप उन लोगों से समर्थन कैसे जुटा सकते हैं जो आपके साथ नहीं हैं? पहले आपको खुद एकजुट होना होगा.’
भारत जोड़ो यात्रा को कांग्रेस के पुनरुत्थान के रूप में देखा जा रहा है, क्या ऐसा सोचना सही है? आजाद ने कहा कि यह तब तक नहीं कहा जा सकता जब तक राहुल गांधी जिन राज्यों का दौरा कर रहे हैं, वहां चुनाव नहीं हो जाते. उनके मुताबिक, ‘सिर्फ चुनावी नतीजे ही यह निर्धारित कर सकते हैं कि क्या यह एक पुनरुद्धार है.’
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री ने दावा किया कि कांग्रेस में सभी राज्यों में अंदरूनी कलह चल रही है. उन्होंने राजस्थान और केरल का उदाहरण देते हुए कहा कि पार्टी सत्ता में है या नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. पार्टी में अंदरूनी कलह बनी हुई है.
उन्होंने इस साल की शुरुआत में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था. अपने रेजिगनेशन लैटर में उन्होंने तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी को आड़े हाथ लेते हुए कहा था कि ‘अनुभवहीन चाटुकार’ पार्टी चलाते हैं और यह उस पॉइंट पर पहुंच गया है, जहां से वापसी संभव नहीं है.
सितंबर में अपने इस्तीफे के एक महीने से भी कम समय में उन्होंने एक नई पार्टी, डेमोक्रेटिक आज़ाद पार्टी के गठन की घोषणा कर दी थी. उन्होंने इस विचार का कड़ा विरोध किया कि उनकी पार्टी भाजपा से जुड़ी है. उन्होंने अनुच्छेद 370 पर अपने समर्थन के बारे में भी बात की.
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‘एक आजाद शख्सियत, किसी की टीम- बी नहीं’
भविष्य में भाजपा के साथ संभावित गठबंधन के बारे में पूछे जाने पर आजाद ने कहा, ‘भाजपा से जुड़े होने का सवाल ही नहीं उठता. भाजपा के साथ कभी कोई संबंध होने का सवाल ही नहीं है.
‘मैं एक स्वतंत्र व्यक्ति हूं,’ उन्होंने उन आरोपों पर पलटवार करते हुए कहा जिसमें उन्हें ‘बीजेपी की बी-टीम’ कहा गया था.
आजाद ने कहा कि राज्य की जो पार्टियां उन पर भाजपा के साथ गठबंधन करने का आरोप लगा रही हैं, वे खुद ‘प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भाजपा के साथ जुड़ी हुई हैं.’ उन्होंने दावा किया कि जो लोग उन्हें एक खतरे के रूप में देख रहे हैं, वही उन पर कीचड़ उछालने में लगे हैं.
उन्होंने विपक्ष के नेता के रूप में राज्यसभा से विदा होने पर मोदी की भावनात्मक विदाई पर ध्यान देने वालों की भी आलोचना की. उन्होंने कहा कि जो लोग इसे रेखांकित कर रहे हैं उनके इससे ‘अन्य हित’ जुड़े हुए हैं.
उन्होंने कहा, ‘वे सिर्फ उन्हीं बातों को सामने क्यों ला रहे हैं जो प्रधानमंत्री ने मेरे बारे में कहीं थी. 24 दलों ने भी तो मेरे लिए कुछ न कुछ कहा था. उन्होंने मेरे बारे में बहुत मजबूत शब्दों में अपनी बात रखी थी. क्या इसका मतलब यह है कि मैं उनके साथ भी जुड़ रहा हूं.’
धारा 370 ‘गलत नहीं’
जम्मू और कश्मीर के नेता की राय है कि अनुच्छेद 370 में कोई ‘बुराई नहीं’ थी. अनुच्छेद 370 ने राज्य को विशेष दर्जा दिया हुआ था, इसमें उसका अपना संविधान भी शामिल था. इसे 5 अगस्त 2019 को निरस्त कर दिया गया था.
उन्होंने कहा, ‘अनुच्छेद 370 काफी महत्वपूर्ण है और मेरा मानना है कि यह बुरा नहीं था. कोई भी चीज जो 70 साल से भारतीय संविधान का हिस्सा रही है, वह खराब कैसे हो सकती है.’
आजाद ने कहा कि इसे बहाल करना संभव है. उन्होंने दो संभावित तरीके सुझाए जिसके जरिए इसे वापस पाया जा सकता है, ‘एक संसदीय बहुमत है और दूसरा सुप्रीम कोर्ट का फैसला.’
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उनकी पार्टी और राज्य का भविष्य
डेमोक्रेटिक आज़ाद पार्टी के अध्यक्ष के रूप में उन्हें दो महीने हो गए हैं. अपनी नई भूमिका के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि पूरे स्पेक्ट्रम से प्रतिक्रिया उत्साहजनक रही है ‘पूरे राज्य में, यहां के हर क्षेत्र और उप-क्षेत्रों में बहुत अच्छा चल रहा है.’
उन्होंने कहा कि लोग उनका समर्थन करते हैं क्योंकि वह अपने पूरे राजनीतिक जीवन में अपने विश्वासों पर अडिग रहे हैं. ‘अपने पूरे जीवन में मैंने कभी भी सांप्रदायिकता या क्षेत्रवाद या जातिवाद में विश्वास नहीं किया है.’
पार्टी के लिए उनका विजन एक ‘कर्ता’ के रूप में उनकी छवि के साथ मजबूती से जुड़ा हुआ है.
उन्होंने कहा, ‘मैं 24×7 मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री रहा हूं, जो तीन पारियों में काम किया करता था और अधिकारियों को भी ट्रिपल शिफ्ट में काम कराता था. अगर मौका दिया गया, तो दोहरी पारियों का पुनरुद्धार होगा.’
आजाद जम्मू-कश्मीर में चुनाव के लिए काफी जोर लगा रहे हैं. राज्य में पिछले चार साल से कोई चुनी हुई सरकार नहीं है. आजाद कहते हैं कि निर्वाचित प्रतिनिधियों को लाने का यह ‘सही समय’ है.
उन्होंने कहा, ‘नौकरशाही कई सालों तक सरकार नहीं चला सकती है. यह उनका काम नहीं है.’
आजाद बताते हैं, ‘हमने पहले ही लगभग पांच साल इंतजार किया है. 2018 में विधानसभा भंग होने के छह महीने के भीतर चुनाव हो जाना चाहिए था. पूरे राज्य में लोग परेशान हैं.’
(अनुवाद: संघप्रिया मौर्य )
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