मुंबई: 2022 में शिवसेना के कार्यकर्ताओं में उस समय हड़कंप मच गया जब पार्टी दो धड़ों में बंट गई. कई विधायकों ने इस बात पर दुख जताया कि अब यह बाल ठाकरे की वही आक्रामक पार्टी नहीं रह गई. कहने का मतलब था कि पार्टी ‘बहुत नरम, बहुत उदार’ हो गई है.
शिव सेना में इस ‘बदलाव’ के लिए नाराज़ विधायकों ने बाल ठाकरे के उत्तराधिकारी उद्धव ठाकरे के अलावा उनके बेटे आदित्य ठाकरे को भी दोषी ठहराया.
शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) या शिवसेना (यूबीटी) अपने सबसे महत्वपूर्ण चुनाव के लिए कमर कस रही है, जो उसके भविष्य से जुड़ा है, लेकिन संगठन अपने मूल एजेंडे- मराठी माणूस (मूल निवासी) और मुंबई की लड़ाई पर वापस आ गया है.
मुंबई के बांद्रा ईस्ट में ठाकरे के निवास मातोश्री में 34 वर्षीय आदित्य इस बात पर जोर देते हैं कि उनके पिता के नेतृत्व वाली पार्टी कभी नहीं बदली. वे कहते हैं कि यह बस और ज्यादा विकसित हो गई है.
आदित्य ठाकरे ने दिप्रिंट को दिए एक साक्षात्कार में कहा, “एक पिता और पार्टी अध्यक्ष के तौर पर उद्धव जी हमेशा कहते हैं कि जब आप कोई मूर्ति बनाते हैं तो आपको हथौड़े और छैनी की जरूरत होती है. लेकिन एक बार जब आप मूर्ति बना लेते हैं और अगर आप हथौड़े और छैनी का इस्तेमाल करते रहते हैं तो मूर्ति टूट जाएगी. इसके बाद आपको बस इसे साफ करते रहना है और इसे चमकाना है और जितना संभव हो सके इसे संरक्षित करना है.”
उन्होंने जोर देकर कहा कि ब्रांड ‘उद्धव और आदित्य ठाकरे’ के तहत पार्टी अभी भी वही है और यहां तक कि वे जो मुद्दे उठाते रहे हैं वे भी वही हैं. हालांकि, उन मुद्दों से निपटने का तरीका बदल गया है.
सड़क पर आक्रामकता दिखाने से दूर, शिवसेना (यूबीटी) अपनी कभी रही आक्रामक छवि जो कि बंद और गुंडागर्दी की याद दिलाती है, की अब धुंधली छाया मात्र है.
वे जोर देकर कहते हैं, “आक्रामकता, संयम – यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि पार्टी किस तरह के मुद्दों को उठाती है. आज भी, ‘भूमिपुत्रों’ (धरती के सपूत) या स्थानीय लोगों के अधिकारों के मुद्दे हमारे दिल के बहुत करीब है. यहां के मराठी माणूस (मूल निवासियों) की राजनीति महत्वपूर्ण है. अगर हम चारों ओर देखें, तो यह दुनिया भर में हो रहा है. हर कोई अंदर की ओर देख रहा है.”
पार्टी ने महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के साथ सीट बंटवारे पर बातचीत में कड़ा रुख अपनाया है, जो कि दिवंगत पार्टी संरक्षक बाल ठाकरे के नेतृत्व वाली अविभाजित शिवसेना की एक खासियत रही है. विपक्षी एमवीए में शिवसेना (यूबीटी), कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) शामिल हैं.
चुनावी राज्य महाराष्ट्र में शिवसेना यूबीटी को 96 सीटें आवंटित की गई हैं, जहां 20 नवंबर को मतदान होगा. 23 नवंबर को नतीजे घोषित किए जाएंगे.
मराठी माणूस और मुंबई की राजनीति
1966 में शिवसेना के गठन के समय, बाल ठाकरे ने यह मुद्दा उठाया था कि कैसे दक्षिण के लोग मराठियों से नौकरियां छीन रहे हैं. छह साल बाद, तेज़ तर्रार नेता बाल ठाकरे और शिवसैनिकों ने मुंबई के नरीमन पॉइंट पर एयर इंडिया की इमारत में घुसकर स्थानीय लोगों के लिए नौकरियों की मांग की और महाप्रबंधक को धमकाया.
अब, उनके बेटे और पोते फिर से उसी मूलनिवासी की राजनीति पर उतर आए हैं जो उन वर्षों में अपनाई गई थी. पिछले ढाई सालों में, जब से एमवीए सरकार गिरी है, शिवसेना (यूबीटी) फिर से ‘मराठी माणूस’ का मुद्दा उठा रही है.
आदित्य का आरोप है कि कई उद्योग गुजरात चले गए और स्थानीय लोगों से नौकरियां छीनी जा रही हैं.
वे बार-बार बताते हैं कि कैसे वेदांता फॉक्सकॉन, टाटा एयरबस जैसी बड़ी परियोजनाएं पड़ोसी राज्य में चली गईं. उन्होंने कहा कि ऑटोमोबाइल और मैन्युफैक्चरिंग हब चाकन के कई उद्योगों ने भी अपना काम बंद कर दिया है.
“हमारे राज्य से उद्योगों का गुजरात की ओर पलायन हो रहा है.”
धारावी पुनर्विकास भी आदित्य की कार्ययोजना का हिस्सा है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “(व्यवसायी गौतम) अडानी को मुफ़्त में ज़मीन मिल रही है… हालांकि हम किसी ख़ास उद्योगपति के ख़िलाफ़ नहीं हैं, हम मुंबई की लूट के ख़िलाफ़ हैं. किसी को भी टेंडर से ज्यादा कुछ नहीं मिलना चाहिए.”
दूसरी ओर, उद्धव ठाकरे ने वार्षिक दशहरा रैली में कहा था कि अगर अघाड़ी सत्ता में आई तो वह अडानी को दिए गए टेंडर को रद्द कर देगी.
कड़ा रुख
लोकसभा चुनाव के ठीक बाद और जब राज्य में चुनाव की तारीख घोषित की गई तब शिवसेना (यूबीटी) चाहती थी कि सीएम का चेहरा घोषित किया जाए. एमवीए के कई संयुक्त मंचों पर, उद्धव ने अघाड़ी सहयोगियों से सीएम का चेहरा घोषित करने का आग्रह किया था, लेकिन कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार) ने इसका विरोध किया.
आदित्य ठाकरे के अनुसार, सर्वेक्षणों से पता चलता है कि उनके पिता एक लोकप्रिय मुख्यमंत्री थे और शिवसेना में विभाजन के बाद भी वे लोकप्रिय बने हुए हैं.
आदित्य कहते हैं, “हम घोषणा नहीं करना चाहते थे, लेकिन यह बेहतर होता क्योंकि लगभग हर सर्वेक्षण दिखा रहा है कि अगर कोई एक व्यक्ति है जो लोगों को भारी बहुमत के साथ सबसे अधिक स्वीकार्य है, तो वह उद्धव बालासाहेब ठाकरे हैं, सरकार गिराए जाने के ढाई साल बाद भी.”
“तो, इसका मतलब साफ है कि लोगों के साथ उनका जुड़ाव है, चाहे वह कृषि ऋण माफी हो, या कोविड के दौरान उठाए गए कदम हों, या शहरी विकास कार्य हो, या लोगों को दिया गया उनका समर्थन हो.”
वह स्पष्ट तौर पर कहते हैं कि यह कोई व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा नहीं है और पद के लिए कोई झगड़ा नहीं है. “अगर हमारे सहयोगियों के पास बेहतर चेहरा है, तो हम उसके साथ जा सकते हैं. यह लड़ाई महाराष्ट्र के बारे में है.”
‘रोज़गार सृजन जरूरी है’
अपने दादा की तरह आदित्य भी नौकरियों के मामले में महाराष्ट्र के ‘माणूस’ (लोगों) पर ध्यान केंद्रित करने के पक्ष में हैं.
वे कहते हैं, “आज, महाराष्ट्र को (मुख्यमंत्री) एकनाथ शिंदे और भाजपा ने नीचे की ओर धकेल दिया है. हम जो देख रहे हैं वह नौकरियों की कमी है. कृषि मुद्दों और कानून-व्यवस्था के अलावा इस समय हमारे राज्य में सबसे बड़ा संकट नौकरियों का है. ग्रामीण क्षेत्रों में लोग MIDC (महाराष्ट्र औद्योगिक विकास निगम) की ओर रुख कर रहे हैं या सरकारी नौकरियों के लिए प्रयास कर रहे हैं,”
“लेकिन ऐसे लोग बहुत ज़्यादा नहीं हैं. सरकारी परीक्षाएं समय पर हों, इसके लिए लोगों को विरोध करना पड़ता है. निजी क्षेत्र में, उद्योगों का दूसरे राज्यों में पलायन हो रहा है. यही सबसे बड़ा मुद्दा है.”
वर्ली से विधायक आदित्य ठाकरे आगे कहते हैं कि उनके पिता पहले मुख्यमंत्री हैं जिनका जन्म और पालन-पोषण मुंबई में हुआ. “हमारे लिए, मुंबई ‘जन्मभूमि’ और ‘कर्मभूमि’ है. मुंबई आसानी से महाराष्ट्र को नहीं दी गई. हमें इसके लिए लड़ना पड़ा.”
पूर्व राज्य मंत्री आदित्य ठाकरे ने आरोप लगाया कि भाजपा और एकनाथ शिंदे मुंबई को “सोने के अंडे देने वाली मुर्गी” मानते हैं. उन्होंने दावा किया कि एमवीए सरकार के तहत कई उद्योगपति आएंगे और महाराष्ट्र में निवेश करेंगे. उन्होंने कहा कि जिन सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर किए जाएंगे, उन्हें ज़मीनी स्तर पर लागू किया जाएगा.
उन्होंने जोर देकर कहा, “इसलिए हमारे लिए ग्रामीण और शहरी विकास दोनों पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है. शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा पर भी ध्यान दिया जाएगा. लेकिन इसके साथ ही मेरे लिए सबसे बड़ी प्राथमिकता नौकरी, नौकरी और नौकरी है. रोज़गार सृजन बहुत जरूरी है.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
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