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Wednesday, 20 November, 2024
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‘BJP को खुली छूट न दें, चुनाव लड़ें’- जम्मू-कश्मीर की पार्टियों को उमर अब्दुल्लाह का संदेश

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री का कहना है कि चुनावों से दूर रहने की बात कहना उनकी पार्टी की एक 'गलती' थी, जिससे उन्होंने सबक लिया है. इसलिए आज वह सभी पार्टियों से चुनावी मैदान में उतरने के लिए कह रहे हैं, भले ही राज्य का दर्जा बहाल न किया गया हो.

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श्रीनगर: उमर अब्दुल्ला के लिए राजनीति ‘आदर्शवाद के बजाय व्यावहारिकता का विषय है.’ लेकिन जब भारतीय जनता पार्टी को अगले साल होने वाले जम्मू-कश्मीर चुनावों में न जीतने देने की बात आती है तो वह थोड़ा इतर सोचने लगते हैं.

श्रीनगर के पास सुनहरे चिनार के पेड़ों से घिरे अपने ऑफिस में दिप्रिंट को दिए एक विशेष साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि सभी क्षेत्रीय दलों को चुनाव लड़ना चाहिए, भले ही जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल न हुआ हो.

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और जम्मू-कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस (जेकेएनसी) के उपाध्यक्ष ने बताया, ‘थाली में बीजेपी को जीत परोसने का सबसे आसान तरीका है कि हम उनसे कहें कि हम तब तक चुनाव नहीं लड़ेंगे जब तक कि राज्य का दर्जा बहाल नहीं हो जाता. क्योंकि फिर वे राज्य का दर्जा बहाल नहीं करेंगे और सुनिश्चित कर लेंगे कि हम चुनाव में लड़ने के लिए मैदान में उतरे ही नहीं.’

उन्होंने कहा, अगर क्षेत्रीय दल चुनाव नहीं लड़ते हैं, तो ‘भाजपा इस चुनाव में कश्मीर में अपनी प्रॉक्सी पार्टियों के साथ-साथ जम्मू की तरफ ही जीत हासिल कर लेगी.’

अब्दुल्ला ने 2018 के स्थानीय निकाय चुनावों के जेकेएनसी के ‘बहिष्कार‘ के संदर्भ में बात करते हुए कहा कि उनकी पार्टी ने ‘चुनावों से दूर रहने’ की बात कही थी. यह एक गलती थी, जिससे उन्होंने सबक लिया है.

वह बोले, ‘भाजपा का विरोध करने वाले सभी समझदार दलों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम उन्हें खुली छूट न दें. हमने अतीत में चुनाव से दूर रहकर गलती की है और हम उस गलती को दोबारा नहीं दोहराने जा रहे हैं’.

जम्मू-कश्मीर में आखिरी बार चुनाव 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान हुए थे. इसके कुछ महीने पहले 5 अगस्त, 2019 को इसका राज्य का दर्जा रद्द कर दिया गया था और यह भाजपा केंद्र सरकार के शासन में एक केंद्र शासित प्रदेश बन गया था.

इस अक्टूबर में अपनी कश्मीर यात्रा के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि अगला विधानसभा चुनाव मतदाता सूची में संशोधन के बाद किया जाएगा.

लेकिन उनके लिए आगे का रास्ता आसान रहने वाला नहीं है. गुपकर गठबंधन – जेकेएनसी सहित क्षेत्रीय राजनीतिक संगठनों का एक समूह, जो जम्मू-कश्मीर में राज्य का दर्जा और विशेष दर्जा बहाल करने के लिए अभियान चला रहा है – अपने एजेंडे और रोडमैप पर असहमति से टूटता नजर आ रहा है. वहीं दूसरी तरफ भाजपा जम्मू-कश्मीर में अपनी पैठ बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है, जिसमें अमित शाह ने बड़ी रैलियां कीं और इस महीने की शुरुआत में पहाड़ी समुदाय के लिए आरक्षण की घोषणा भी की है.

अब्दुल्ला के मुताबिक, गुपकर गठबंधन को अभी पूरी तरह से नकारा नहीं जा सकता है. भाजपा के लिए उन्होंने कहा कि वह सिर्फ चुनावी फायदे के लिए काम करते हैं और वादों को पूरा करने की तुलना में ‘आकड़ों के जोड़-तोड़ की बाजीगरी’ में ज्यादा कुशल है.

12 अक्टूबर की दोपहर को एक व्यापक बातचीत में अब्दुल्ला ने ‘अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए लड़ाई’ – जिसने जम्मू-कश्मीर को विशेष शक्तियां और ‘स्वायत्तता’ दी – और कांग्रेस के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद को इस प्रयास को ‘कमजोर’ करने का प्रयास क्यों नहीं करना चाहिए, इस पर बात की.


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‘कोई कारण नहीं है कि आप गठबंधन की तरफ नहीं जाएंगे…’

हालांकि अब्दुल्ला ने उन पार्टियों के साथ चुनाव के बाद संभावित गठजोड़ का संकेत दिया है, जो गुपकर गठबंधन का हिस्सा हैं, लेकिन उन्होंने सरकार बनाने के लिए भाजपा के साथ मिलकर काम करने की किसी भी संभावना से इनकार किया.

उन्होंने कहा, ‘नेशनल कॉन्फ्रेंस खंडित जनादेश के लिए चुनाव नहीं लड़ेगी. भाजपा के उलट नेशनल कांफ्रेंस उस तरह के गठबंधन की तलाश में चुनाव नहीं लड़ रही है.’

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि गुपकर गठबंधन का गठन चुनाव लड़ने के लिए नहीं बल्कि अनुच्छेद 370 और 35ए को बहाल करने और जम्मू-कश्मीर को अलग राज्य का दर्जा देने के लिए किया गया था. मगर वह ये भी मानते हैं कि ‘राजनीतिक लड़ाई’ अलग-अलग रूप धारण कर सकती है.

Signatories to the Gupkar Declaration, including Farooq and Omar Abdullah and Mehbooba Mufti, announce their political alliance in Srinagar Thursday | Photo: ANI
फारुख अब्दुल्लाह, उमर अब्दुल्लाह और महबूबा मुफ्ती सहित गुपकर घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करने वाले नेताओं की फाइल फोटोः फोटोः एएनआई

उन्होंने कहा, ‘राजनीति आदर्शवाद के बजाय व्यावहारिकता का विषय है. मैं उस गठबंधन के बारे में श्रद्धांजलि नहीं लिखने जा रहा हूं जो मरा नहीं है. हमारे बीच एक राजनीतिक लड़ाई है, हम इसे लड़ रहे हैं. हम उस राजनीतिक लड़ाई से लड़ने का चयन कैसे कर सकते हैं, जो बदलाव, परिवर्तन और इंटरप्रिटेशन के लिए खुली है. समय बदलने के साथ-साथ हमें भी बदलना होगा.’ वह आगे कहते हैं, ‘ऐसा कोई कारण नहीं है कि आप गठबंधन की तरफ नहीं देखेंगे.’

छह दलों के गठबंधन के रूप में जो शुरू हुआ था, उसमें अब सिर्फ जेकेएनसी, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस (एएनसी) बचे हैं. जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और जम्मू-कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट (जेकेपीएम) मतभेदों के कारण गठबंधन से अलग हो गए हैं.

पीपुल्स कॉन्फ्रेंस जनवरी 2021 में वापस ले लिया था, लेकिन जिला विकास परिषद चुनावों में मैदान में उतरे पर्दे के पीछे के गठबंधन के सदस्यों पर आरोप लगाते हुए, जेकेपीएम इस साल जुलाई में यह कहते हुए अलग हो गया कि गुप्कर गठबंधन का ‘कोई स्पष्ट रोडमैप नहीं है’.

‘कहां है 55,000 करोड़ रुपये का निवेश?’

पिछले हफ्ते बारामूला में अमित शाह ने एक रैली में ‘अब्दुल्ला, मुफ्ती और कांग्रेस’ पर ‘कश्मीर को बर्बाद करने’ और कोई विकास नहीं करने का आरोप लगाया था. इस रैली के बारे में बात करते हुए उमर अब्दुल्ला ने 55,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के निवेश पर सवाल उठाया, जिसके लिए भाजपा ने दावा किया था कि उसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लेकर आए हैं.

उन्होंने कहा, ‘वे इस निवेश के बारे में बात करते रहते हैं, लेकिन मैं पूछना चाहता हूं कि यह किस क्षेत्र में किया गया है? क्या यह पर्यटन में आया है? क्योंकि मैंने जम्मू-कश्मीर में कोई नया होटल नहीं देखा है. क्या यह बिजली उत्पादन में आ गया है? क्योंकि मैंने कोई नई बिजली परियोजना नहीं देखी है. क्या यह ट्रांसमिशन में आया है? क्योंकि मैंने कोई नई ट्रांसमिशन लाइन नहीं देखी है. अस्पतालों में आया है? क्योंकि मैंने कोई नया सरकारी अस्पताल नहीं देखा है. मैंने कोई नया शिक्षा ढांचा नहीं देखा है.’

वह आगे कहते है, ‘प्लीज मुझे बताएं कि किस क्षेत्र ने इस 55,000 करोड़ रुपये के निवेश को देखा है? अगर आप इसे मुझे बता सकते हैं, तो मुझे खुशी होगी’.

उन्होंने आगे कहा कि जिन परियोजनाओं की बात भाजपा कर रही है, उनमें से अधिकांश परियोजनाओं की शुरुआत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) ने की थी, जो 2014 से पहले सत्ता में थी.

वह बताते हैं, ‘अगर आप मुझे पिछली यूपीए सरकार में आए प्रोजेक्ट दिखा रहे हैं, तो कम से कम यह तो बता दें कि हम जिस परियोजना का उद्घाटन कर रहे हैं उसे किसी और ने शुरू किया था.’

उन्होंने कहा, ‘जिस पुल के बारे में वे चिनाब में बात करते रहते हैं – वह तब शुरू हुआ जब मैं सीएम और मनमोहन सिंह पीएम थे … भले ही इसे आपने पूरा कराया हो, लेकिन यह आपने शुरू नहीं किया था. राष्ट्रीय राजमार्ग पर सुरंगें, जोजिला के नीचे की सुरंगें, चार लेन वाला जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग, आईआईटी, आईआईएम, केंद्रीय विश्वविद्यालय, एम्स मेडिकल कॉलेज – इन परियोजनाओं की शुरुआत भाजपा सरकार से पहले की है.’


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‘वे यात्रियों को सैलानियों के रूप में गिन रहे हैं, आंकड़ों के साथ बाजीगरी का खेल’

गृह मंत्री के इस दावे पर कटाक्ष करते हुए कि जनवरी 2022 से 1.62 करोड़ सैलानी जम्मू-कश्मीर आए हैं, जो पिछले 75 सालों में सबसे अधिक संख्या है, अब्दुल्ला ने कहा, ‘यह अविश्वसनीय है. वे अपनी सुविधा के अनुसार आंकड़ों को अपने अनुसार बदलने में माहिर हैं.’

अब्दुल्ला ने बताया कि 1.62 करोड़ के आंकड़े तक पहुंचने के लिए सरकार ने ‘अमरनाथ यात्रा और वैष्णो देवी की यात्रा पर जाने वाले यात्रियों को भी इसमें जोड़ा है. ऐसा पहले नहीं किया जाता था.

उन्होंने कहा, ‘एक सुविचारित निर्णय के रूप में, हमने कुछ समय पहले तक यात्रियों को पर्यटकों के रूप में नहीं गिनते थे क्योंकि वे वहां कोई पर्यटक गतिविधि नहीं करते हैं. वे जम्मू पहुंचेंगे, सीधे वैष्णो देवी तक कटरा जाएंगे और फिर चले जाएंगे. वे उस अपने विशेष ट्रैक से 100 मीटर बाएं या दाएं कदम नहीं रखेंगे. कितनी भी कोशिश कर लें, हम उन्हें कभी भी भद्रवाह या मनसा या पाटनी जाने के लिए तैयार नहीं कर सकते हैं.’

अब्दुल्ला ने दावा करते हुए कहा कि कश्मीर में इतने पर्यटकों को रखने की क्षमता नहीं है. और पिछले 20 सालों में कोई नया होटल नहीं खोला गया है.

वह सवाल करते हैं, ‘हमारे पास 1 करोड़ 50 लाख पर्यटकों को संभालने की क्षमता नहीं है. होटल में इतने बेड कहां हैं? ये सैलानी कहां ठहरे थे? अपनी कारों में? सड़कों पर? फ्लाईओवर पर? अगर नए होटल नहीं हैं, तो अचानक ये पर्यटक कैसे आ गए?’ उन्होंने आगे कहा, ‘कुछ भी विकास नहीं हुआ है’.

अब्दुल्ला के अनुसार, पर्यटकों की संख्या में सिर्फ ‘मामूली’ वृद्धि हुई है.

उन्होंने कहा, ‘अगर आप स्थानीय पर्यटन उद्योग से बात करेंगे, तो पाएंगे कि पर्यटकों की संख्या में वृद्धि हुई है, लेकिन यह मामूली है. कश्मीर आने वाले पर्यटकों की संख्या 14 से 18 लाख है, जो कोई बड़ी बात नहीं है.

पहाड़ियों के आरक्षण पर

जब अमित शाह ने पहाड़ी लोगों के लिए एसटी श्रेणी के तहत आरक्षण की घोषणा की, तो अपनी दशकों पुरानी मांग को पूरा करने के लिए समुदाय में कई लोगों ने उनकी सराहना की. इसमें मुस्लिम और हिंदू दोनों समुदाय के लोग शामिल हैं.

हालांकि, गुर्जर और बकरवाल जैसे अन्य गैर-कश्मीरी भाषी समुदायों ने माना है कि इस कदम से उनके आरक्षण में कटौती होगी. हालांकि शाह ने ऐसी किसी भी आशंका को दरकिनार करते हुए कहा कि ऐसा नहीं होगा.

Amit Shah addressing a rally in Baramulla on 5 October 2022
अमित शाह 5 अक्टूबर 2019 को बारामूला में एक रैली को संबोधित करते हुए । पीटीआई फोटो

इस मामले पर अब्दुल्ला ने कहा कि नेशनल कांफ्रेंस कभी भी पहाडि़यों को आरक्षण देने के खिलाफ नहीं थी.

उन्होंने अपनी बात रखते हुए कहा, ‘आपको पहाड़ी लोगों को उनका हिस्सा देना चाहिए लेकिन गुर्जरों के अधिकारों की भी रक्षा करनी होगी. हम पहाडि़यों को एसटी का दर्जा देने के हिमायती रहे हैं. लेकिन पहाड़ी की थाली में खाना डालने के लिए, हमें गुर्जरों की थाली में छेद नहीं करना है. गुर्जरों को जो मिल रहा है, वो मिलता रहना चाहिए और पहाड़ियों को उनका हक मिले’.

यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें लगता है कि भाजपा ने पहाड़ी बहुमत के साथ सात विधानसभा सीटों पर चुनावी लाभ को ध्यान में रखते हुए आरक्षण की घोषणा की, अब्दुल्ला ने कहा कि भाजपा एक ‘चिकनी चुपड़ी बात करने वाली चुनावी मशीन’ है और ‘राजनीतिक नतीजों को देखे बिना’ कुछ भी नहीं करती है.’

उन्होंने कहा, ‘वे अपने फैसलों के चुनावी फायदों के बारे में क्यों नहीं सोचेंगे? परिसीमन से लेकर गैर-स्थानीय मतदाताओं को सूची में जोड़ने तक, उन्होंने जो कुछ भी किया है वह उनके चुनावी एजेंडे में मदद करने के लिए किया गया है और यह भी उन चीजों में से एक ही है.’

कश्मीर में कई राजनेताओं ने जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश के लिए परिसीमन आयोग के चुनावी निर्वाचन क्षेत्रों की मैपिंग के बारे में शिकायत की है, जिसमें जम्मू संभाग के लिए छह नई सीटें जोड़ी गईं और मुस्लिम-बहुल कश्मीर के लिए सिर्फ एक. कश्मीर के 68 लाख आबादी (2011 की जनगणना के अनुसार) के लिए 47 विधायक होंगे जबकि लगभग 53 लाख की आबादी वाले जम्मू में 43 विधायक होंगे.

इस हफ्ते की शुरुआत में जम्मू में एक विवादित आदेश पेश किया गया था और फिर उसे तुरंत वापस ले लिया गया. रद्द किए गए आदेश ने उन निवासियों को मतदाताओं के रूप में पंजीकृत करने की अनुमति दी थी, जो एक साल से अधिक समय से इस क्षेत्र में रह रहे हैं. इस आदेश के बाद से क्षेत्रीय राजनीतिक दलों में काफी आक्रोश था.

‘अनुच्छेद 370 पर सुनवाई टालने की कोशिश कर रही है सरकार’

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर अब्दुल्ला ने कहा कि इसे बहाल करने की लड़ाई जारी है और वे उनके मामले की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का इंतजार कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि पार्टी ने 5 अगस्त 2019 के बाद जम्मू-कश्मीर में किए गए सभी बदलावों का विरोध किया है.

उन्होंने कहा, ‘हमारा विरोध किसी एक चीज को लेकर नहीं है … हम 5 अगस्त के बाद जम्मू-कश्मीर में लाए गए सभी परिवर्तनों का विरोध कर रहे हैं. हम मानते हैं कि तब जो हुआ वह गैरकानूनी और असंवैधानिक था. हमें उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट इस पर सुनवाई शुरू करेगा. हम जानते हैं कि हमारे पास एक मजबूत मामला है और हमें न्याय मिलने की उम्मीद है.’

अब्दुल्ला ने हालांकि सरकार पर मामले की सुनवाई शुरू नहीं होने देने का आरोप लगाया.

उन्होंने कहा, ‘हम मानते हैं कि हमारे पास एक मजबूत मामला है और मैं व्यक्तिगत रूप से मानता हूं कि हम इस मामले को अब तक सुप्रीम कोर्ट में क्यों नहीं देख रहे हैं क्योंकि सरकार इसमें देरी करने के लिए अपने स्तर पर पूरी कोशिश कर रही है.’

‘गुलाम नबी आजाद लड़ाई को कमजोर न करें’

अगस्त में कांग्रेस से अलग हुए जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम गुलाम नबी आजाद ने सितंबर में एक राजनीतिक पार्टी – डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी – बनाई.

पिछले महीने कश्मीर में अपनी पहली रैली में आजाद ने कहा था कि कश्मीर में धारा 370 के बहाल होने की संभावना नहीं है, लेकिन उनका एजेंडा इस क्षेत्र को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष करना होगा.

इस पर अब्दुल्ला ने कहा कि आजाद को अपनी टिप्पणी से अनुच्छेद 370 को बहाल करने की लड़ाई को कमजोर नहीं करना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है जब नेता जरूरत से पहले आत्मसमर्पण कर देते हैं. कोई भी आजाद से 5 अगस्त 2019 के खिलाफ हमारी लड़ाई में साथ लड़ने के लिए नहीं कह रहा है. वह ऐसा न करने के लिए स्वतंत्र है. सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई शुरू होने से पहले ही, यह सुझाव देना कि लड़ाई हार चुके हैं, दुर्भाग्यपूर्ण है’.

वह बताते है, ‘इस लड़ाई में हमारे साथ शामिल न होने पर मैं आजाद साहब का स्वागत करता हूं. लेकिन मैं विनम्रतापूर्वक उनसे कह रहा हूं कि कम से कम अपने बयान से सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश करने का मौका मिलने से पहले इस लड़ाई को कमजोर न करें. इस तरह के बयान हैं जो इस मामले की सुनवाई के बाद सबूत के रूप में इस्तेमाल किए जा सकते हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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