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Thursday, 21 November, 2024
होमराजनीति‘यह बिहार की बेहतरी के लिए कर रहा’- चिराग पासवान ने आगामी उपचुनावों में BJP को समर्थन का वादा किया

‘यह बिहार की बेहतरी के लिए कर रहा’- चिराग पासवान ने आगामी उपचुनावों में BJP को समर्थन का वादा किया

दिवंगत केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान का कहना है कि वह भविष्य में भाजपा के साथ गठबंधन को लेकर बातचीत तो कर रहे हैं. लेकिन इसके लिए उनकी कुछ शर्तें हैं.

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पटना: लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान ने रविवार को साफ कर दिया कि उनकी पार्टी बिहार में विधानसभा की दो सीटों के लिए अगले माह होने जा रहे उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी का समर्थन करेगी.

मोकामा और गोपालगंज में आगामी 3 नवंबर को होने वाले उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवारों को समर्थन का ऐलान करते हुए चिराग पासवान ने कहा, ‘मैंने (अब तक) जो भी फैसले लिए हैं बिहार की बेहतरी को ध्यान में रखकर लिए हैं. हमने भाजपा उम्मीदवारों के लिए समर्थनऔर प्रचार करने का फैसला किया है.’

चिराग दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के एक दिन बाद यहां मीडिया से बात कर रहे थे.

हालांकि, चिराग ने बैठक का कोई ब्यौरा नहीं दिया लेकिन कहा कि भविष्य में गठबंधन के लिए भाजपा के साथ उनकी बातचीत जारी रहेगी.

उन्होंने आगे बताया कि वह पिछले कुछ महीनों से भाजपा के साथ बातचीत कर रहे हैं और अगले महीने अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी दोनों के साथ उनकी एक और दौर की बातचीत होगी.

यह घटनाक्रम बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) के एक बार फिर भाजपा से नाता तोड़ लेने और राष्ट्रीय जनता दल और वामपंथी दलों के महागठबंधन का हिस्सा बनने के करीब 2 महीने बाद सामने आया है.

राज्य में बदले राजनीतिक समीकरण भाजपा के लिए चिराग के साथ गठबंधन को और भी महत्वपूर्ण बनाते हैं. गौरतलब है कि बिहार में करीब 6 फीसदी पासवान मतदाता हैं जिन्हें लोजपा का समर्थक माना जता है. यही वो वोटबैंक है जिसे भाजपा राजद-जदयू के जाति समीकरणों को ध्यान में रखते हुए आगामी उपचुनावों और भविष्य के चुनावों दोनों में अपने पाले में लाना चाहती है.


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‘महीनों से चल रही थी बातचीत’

मीडिया से बातचीत में चिराग ने बताया कि गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय सहित भाजपा के कई महत्वपूर्ण नेता पिछले कुछ महीनों से उनसे इस सिलसिले में बातचीत कर रहे थे.

भाजपा के साथ चिराग के संबंध काफी उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं. उन्होंने नीतीश कुमार के साथ अपने टकराव की वजह से 2020 में विधानसभा चुनाव से ऐन पहले भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से नाता तोड़ लिया था.

जून 2021 में उनके चाचा और केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस ने संसद में खुद को लोजपा विधायक दल का नेता घोषित करके पार्टी के भीतर तख्तापलट कर दिया. इसके बाद चिराग ने अपने चाचा पारस और पांच अन्य सांसदों को पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए निष्कासित कर दिया और भाजपा को आगाह किया कि भविष्य में किसी भी गठबंधन के लिए बातचीत उनके चाचा को केंद्रीय मंत्री के पद से हटाए जाने की शर्त पर ही होगी.

बिहार भाजपा के अध्यक्ष संजय जायसवाल ने शुक्रवार को ऐलान किया था कि चिराग 3 नवंबर को होने वाले उपचुनाव में उनकी पार्टी के लिए प्रचार करेंगे.

हालांकि, इस घोषणा के बावजूद, लोजपा (रामविलास) के नेताओं ने दिप्रिंट को बताया था कि वे अभी तक इस घटनाक्रम से अनजान हैं.

बिहार में लोजपा (रामविलास) के अध्यक्ष राजू तिवारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘जायसवाल जो कुछ कह रहे हैं, हमें उसके बारे में कोई जानकारी नहीं है. जो भी बातचीत हो रही होगी, वह दिल्ली में होनी चाहिए और चिराग पासवान पटना आने पर खुद इस बारे में जानकारी देंगे.’

यह घोषणा बिहार भाजपा के लिए एक राहत की तरह थी. पार्टी को उम्मीद थी कि चिराग 29 अक्टूबर को पटना पहुंचेंगे और इसकी घोषणा कर देंगे. लेकिन उनके आने में देरी पर राज्य के भाजपा नेता चिंतित हो गए. भाजपा के एक नेता ने कहा, ‘यह राहत की बात है कि चिराग आज यहां पहुंचे और उन्होंने जायसवाल की घोषणा की पुष्टि कर दी.’

समर्थन के बदले रखी शर्तें

हालांकि, इस घोषणा के साथ चिराग ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि गठबंधन में उनकी वापसी एक कीमत पर होगी. उनके करीबी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि भविष्य में दोनों पार्टियों के बीच कोई भी गठबंधन दो शर्तों पर टिका होगा.

चिराग के एक करीबी ने कहा, ‘सबसे पहले तो भाजपा को उनके चाचा पशुपति कुमार पारस को केंद्रीय मंत्रालय से हटाना होगा. अमित शाह जी चिराग से कह रहे हैं कि वह अपनी पार्टी का अपने चाचा की लोजपा में विलय कर दें.’

चिराग के सहयोगी ने दिप्रिंट को बताया कि दूसरी शर्त यह है कि भाजपा भविष्य में नीतीश कुमार के साथ कोई रिश्ता नहीं रखेगी, जिसे चिराग पिछले साल अपने पिता की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी के विभाजन के लिए जिम्मेदार मानते हैं.

सूत्र ने कहा कि चिराग अभी भी इस बात को भूले नहीं है कि पिछले साल लोजपा की टूट में जदयू की तरफ से ‘निभाई गई भूमिका’ के बीच भाजपा का क्या रुख था.

लोजपा (रामविलास) से जुड़े सूत्र ने आगे कहा कि पार्टी इस बात से भी नाराज है कि कैसे चिराग की जगह पारस को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह दी गई. यही नहीं उनके पिता और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के 2020 में निधन के बाद खाली हुई राज्यसभा सीट पर चिराग की दावेदारी को भी भाजपा ने नजरअंदाज कर दिया.

चिराग से नजदीकी बढ़ाने की वजह

90 के दशक के उत्तरार्ध में रामविलास पासवान ने बिहार के साथ-साथ राष्ट्रीय राजनीति में भी किंगमेकर के तौर पर अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी. इसकी एक वजह यह भी थी कि अपने पासवान समुदाय, जो कि दलितों की एक उपजाति है, पर उनकी अच्छी पकड़ थी.

बिहार की कुल आबादी में दलितों की आबादी 16 फीसदी है और इसमें एक बड़ा हिस्सा पासवानों का है.

भाजपा प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने दिप्रिंट को बताया, ‘एक भी संसदीय सीट ऐसी नहीं है जिसमें कम से कम 50,000 (पासवान) मतदाता न हों और न ही कोई ऐसी विधानसभा सीट होगी जहां कम से कम 10,000 पासवान न हों.

विधानसभा की जिन दो सीटों के लिए 3 नवंबर को मतदान होना है, वहां भी पासवान मतदाताओं की अच्छी खासी तादात है. एक जदयू विधायक के मुताबिक, गोपालगंज में 15,000 पासवान मतदाता हैं जबकि मोकामा में करीब 18,000 मतदाता हैं.

2020 में एनडीए से बाहर होने के बाद चिराग ने जदयू के खिलाफ कई लोजपा उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था. हालांकि, उनकी पार्टी केवल एक ही सीट जीत पाई थी लेकिन उसने जदयू के वोटबैंक में अच्छी-खासी सेंध लगा दी थी जिससे पार्टी 43 सीटों पर सिमट गई. माना जाता है कि लोजपा की वजह से जदयू को करीब 40 सीटों पर नुकसान उठाना पड़ा था.

बहरहाल, नीतीश कुमार जब तक एनडीए के साथ रहे, चिराग इससे बाहर ही बने रहे. हालांकि, भाजपा ने कभी भी उनकी पार्टी के साथ अपने रिश्तों को पूरी तरह तोड़ा नहीं. यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर ही स्वर्गीय रामविलास पासवान को अपना एक सहयोगी बताते रहे.

लेकिन, जैसा लोजपा (रामविलास) के एक सूत्र ने कहा कि नीतीश कुमार के एनडीए से बाहर होते ही भाजपा चिराग का समर्थन पाने के लिए उत्सुक नजर आ रही है.

चिराग ने यह साबित भी कर दिया है कि अपने पिता की राजनीतिक विरासत के सच्चे उत्तराधिकारी वही हैं. उनकी पार्टी, लोजपा (रामविलास) ने पिछले साल तारापुर और कुशेश्वर अस्थान उपचुनावों में कांग्रेस से ज्यादा वोट हासिल किए. अक्सर उनकी सभाओं में खासी भीड़ जुटती है.

वहीं, पिछले साल लोजपा में टूट के बाद उनके चाचा पशुपति नाथ पारस जब अपने संसदीय क्षेत्र हाजीपुर का दौरा करने पहुंचे थे तो वहां उनके साथ धक्का-मुक्की हुई थी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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