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Sunday, 22 December, 2024
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JKPC प्रमुख सज्जाद लोन बोले—अनुच्छेद 370 हटने के बाद भाजपा के साथ गठबंधन करना मुश्किल

अलगाववादी से नेता बने सज्जाद लोन का कहना है कि उनके और उनकी पार्टी के लिए सबसे अहम मुद्दा जम्मू-कश्मीर को फिर से राज्य का दर्जा दिलाना ही है.

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श्रीनगर: अलगाववादी से नेता बने और जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (जेकेपीसी) के अध्यक्ष सज्जाद लोन का कहना है कि भाजपा ने तीन साल पहले जम्मू-कश्मीर में ‘जो कुछ किया उसके बाद’ उसके बाद गठबंधन करना तो मुश्किल ही है. वह जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में बदल दिए जाने का जिक्र कर रहे थे. लोन पूर्व में जम्मू-कश्मीर की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) सरकार में मंत्री रहे थे.

लोन ने दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि अलग राज्य का मुद्दा उनके और उनकी पार्टी के लिए बेहद अहम है. उन्होंने कहा, ‘आज मेरे पास चुनाव में जाने का एकमात्र कारण जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा वापस पाना होगा और मैं इसे पाने के लिए जो कुछ भी हो सकता है वो जरूर करूंगा.’

अगले चुनाव में अपनी पार्टी के भाजपा के साथ गठबंधन करने की संभावनाओं पर उन्होंने कहा, ‘उन्होंने (भाजपा ने) जो कुछ किया है उसके बाद उनके साथ गठबंधन मुश्किल है. लेकिन हम व्यक्तिगत रूप से साथ आने और राज्य का दर्जा हासिल करने के लिए वोट करने का प्रयास करेंगे. पहली बाद दिमाग में यही आती है कि कोई विकास नहीं किया जा सकता, तब तक कुछ भी नहीं किया जा सकता जब तक हम फिर राज्य का दर्जा हासिल नहीं कर लेते.’

गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर के अन्य राजनीतिक दलों की तरफ से भी राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग उठाई गई है, जो 5 अगस्त 2019 को खत्म कर दिया गया था. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी संसद में कहा है कि दर्जा उचित समय पर राज्य का बहाल किया जाएगा.


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एक ‘मूक’ दर्शक?

लोन खुद को ‘एक मूक दर्शक’ और ‘किसी जमाने के राजनेता’ करार देते हैं.

उन्होंने कहा, ‘देश के बाकी हिस्सों, जहां लोगों के पास (निर्वाचित) विधायक, विधानसभा है, की तुलना में यहां (जम्मू-कश्मीर में) राजनीति के लिए कोई जगह नहीं है. देश के बाकी हिस्से खुद यह तय करते हैं कि क्या करना है, क्या नहीं. लेकिन यहां हम नहीं कोई बल्कि कोई और ही हमारे लिए फैसले करता है. इसलिए मैं खुद को किसी जमाने का राजनेता मानता हूं, क्योंकि एक समय था जब जम्मू-कश्मीर में राजनीति होती थी, जब लोग अपने लोगों को चुनते थे. और मैं खुद को ‘मूक दर्शक’ कहता हूं क्योंकि यहां सच बोलना थोड़ा डरावना है.’

यद्यपि तमाम लोगों का मानना है कि राज्य में अगले साल चुनाव हो सकते हैं, लेकिन लोन का कहना है कि उन्हें अभी दूर-दूर तक ऐसी कोई संभावना नजर नहीं आती है क्योंकि ‘चुनाव न कराने के कारण साफ नजर आते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘मौजूदा प्रशासन में लोग किसी विधायक के प्रतिनिधित्व के बिना, मुख्यमंत्री की निगरानी के बिना, और मंत्री की निगरानी के बिना बने हुए हैं. देशभर में और किस नौकरशाह के पास यह शक्ति होगी?’

पूर्ववर्ती भाजपा-पीडीपी सरकार में पशुपालन मंत्री रहे लोन का कहना है कि 2014 में हुए पिछले चुनाव के बाद से जम्मू-कश्मीर के लोग ‘अशक्त’ हो गए हैं.

जेकेपीसी अध्यक्ष ने यह भी कहा कि ‘हमें अनुच्छेद 370 वापस मिलना चाहिए. इसे बहुमत के बलबूते छीना गया है. हमारे पास एकमात्र अन्य विकल्प (इसे बदलने का) अदालत ही है.’

गौरतलब है कि अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को एक विशेष दर्जा हासिल था जिसने राज्य को एक अलग संविधान और खास शक्तियां प्रदान कर रखी थीं.

1987 के चुनावों में धांधली की न्यायिक जांच जरूरी

जम्मू-कश्मीर में संभावित चुनावों के मुद्दों पर बात करते हुए लोन ने कहा, ‘हमें वास्तव में दिल्ली (केंद्र सरकार) और भारत के लोगों को यह बताने की जरूरत है कि आखिर उग्रवाद-आतंकवाद की असली वजह क्या है. आतंकवादियों को खत्म करो. आतंकवादी नेटवर्क को ध्वस्त करो. लेकिन उन लोगों पर भी तो शिकंजा कसो जिन्होंने आतंकवाद के लिए नेटवर्क और माहौल तैयार किया.’

उन्होंने कहा, ‘हम निश्चित तौर पर 1987 के चुनावों और इसमें धांधली की जांच के लिए एक न्यायिक आयोग चाहते हैं. हम यह सब खत्म करने के पक्ष में हैं और चाहते हैं कि कम से कम ऐसा करने वालों के खिलाफ एक एफआईआर तो दर्ज की जाए.’

चुनावों में कथित धांधली के लिए कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्होंने दावा किया कि इसी चुनाव की वजह से घाटी में बंदूकें आईं, और हत्याओं और जवाबी हत्याओं का एक लंबा दौर चला.

उन्होंने कहा, ‘आज तक, यहां जो भी हत्याएं हुई हैं, उसकी जड़ें 1987 से जुड़ी हैं. यह सब खत्म नहीं हुआ और जम्मू-कश्मीर लोगों के हित में यह सब बंद होना चाहिए.’

इस मुद्दे पर केंद्र सरकार पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं हो सकता कि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार यह चाहती रहे कि लोग भरोसा करें कि समस्या नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस की वजह से है, ‘जबकि वे उन्हें (1987 के चुनावों के लिए) दंडित करने को तैयार नहीं हैं.’

अलगाववाद निष्क्रिय अवस्था में पहुंचा

लोन मुख्यधारा की राजनीति में आने से पहले खुद एक अलगाववादी रहे हैं. वह ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का हिस्सा रहे हैं. हालांकि, उनका मानना है कि अब अलगाववादी आंदोलन ‘एकदम निष्क्रिय अवस्था’ में पहुंच गया है. उन्होंने आगे कहा, ‘अब यही उम्मीद करते हैं कि यह फिर नहीं भड़केगा, खासकर हिंसात्मक रूप में. मैं तो यही कहूंगा कि यह बैक फुट पर है.’

जो लोग यह मानते हैं कि अलगाववादी आंदोलन दम तोड़ रहा है, उन्हें जवाब देते हुए लोन ने कहा, ‘मैं वास्तव में यही चाहता हूं कि एकीकरण वाली ताकतें अच्छा काम करें लेकिन वास्तव में, राजनीतिक रूप से किसी भी चीज को खत्म होने में थोड़ा समय लगता है.’

(संपादनः अमोघ रोहमेत्रा)
(अनुवादः संघप्रिया मौर्य)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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