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Friday, 22 November, 2024
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‘समर्थन देकर एहसान नहीं किया’, हरियाणा में दुष्यंत की सीट के लिए BJP-JJP की खींचतान तेज़

बिप्लब कुमार देब ने इस हफ्ते की शुरुआत में उचाना में पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेम लता के लिए प्रचार किया, जिसने वर्तमान विधायक दुष्यंत को अपनी ‘कर्मभूमि’ पर दावा करने के लिए प्रेरित किया.

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चंडीगढ़: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसकी हरियाणा की सहयोगी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के बीच तनाव इस चरम पर पहुंच गया है, दोनों पार्टियों के वरिष्ठ नेता अगले साल होने वाले चुनाव से पहले जींद जिले की उचाना कलां विधानसभा सीट को लेकर आपस में भिड़ने लगे हैं.

ये विवाद तब शुरू हुआ जब भाजपा के हरियाणा मामलों के प्रभारी और त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब ने रविवार को उचाना निर्वाचन क्षेत्र में पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेम लता के लिए प्रचार किया. पूर्व विधायक प्रेम लता 2019 में डिप्टी सीएम और जेजेपी प्रमुख दुष्यंत चौटाला से उचाना सीट हार गई थीं.

रविवार को निर्वाचन क्षेत्र में कार्यकर्ताओं की एक बैठक के दौरान, देब ने कार्यकर्ताओं से 2024 में “बीरेंद्र सिंह के आंसुओं” का बदला लेने का आग्रह किया. उन्होंने प्रेम लता का जिक्र करते हुए कहा, “2024 का चुनाव तो मेरी दीदी ही जीतेगी”.

दुष्यंत ने सोमवार को देब पर पलटवार करते हुए कहा कि वे “पेट दर्द से पीड़ित लोगों के लिए दवा” नहीं बन सकते. कैथल में पत्रकारों से बात करते हुए, उन्होंने कहा, “मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि उचाना मेरी कर्मभूमि है और मैं निश्चित रूप से वहां से चुनाव लड़ूंगा.”

डिप्टी सीएम ने आगे कहा कि जब से उनकी पार्टी ने 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद चुनाव के बाद बीजेपी के साथ गठबंधन किया है, तब से कुछ लोग, खासकर मीडिया, इस गठबंधन के खत्म होने पर अटकलें लगा रहे हैं. हालांकि, उन्होंने कहा कि गठबंधन पिछले साढ़े तीन साल से अच्छा काम कर रहा है.

चौटाला ने प्रेम लता को बिप्लब देब के समर्थन के संदर्भ में संवाददाताओं से कहा,“अब कौन कहां से चुनाव लड़ेगा और किसे टिकट मिलेगा, गठबंधन में यह कहना जल्दबाजी होगी. अगर मैं 2024 के चुनाव उम्मीदवारों के रूप में अपने कार्यकर्ताओं के नामों की घोषणा करना शुरू कर दूं, तो यह काम नहीं करेगा.”

उन्होंने आगे कहा, “कल उचाना में मेरे खिलाफ बोलने वालों के लिए, मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि अगर उनके पेट में दर्द होता है तो मैं उनकी दवा नहीं बन सकता. मैं सभी 90 विधानसभा सीटों के लिए तैयारी कर रहा हूं और बीजेपी भी. हर पार्टी को चुनाव से पहले अपने कार्यकर्ताओं को प्रेरित रखना होता है. चुनाव के समय सीटों के बंटवारे की किस तरह की व्यवस्था की जाती है, यह कहना जल्दबाजी होगी.”

एक दिन बाद, देब ने डिप्टी सीएम पर पलटवार किया. मंगलवार को फरीदाबाद में कार्यकर्ताओं की एक सभा को संबोधित करते हुए देब ने कहा कि जेजेपी ने समर्थन देकर भाजपा पर कोई “एहसान” नहीं किया है. उन्होंने कहा, “आखिरकार बीजेपी ने उन्हें मंत्री पद दिया.”

गुरुवार को देब ने अपने नई दिल्ली स्थित आवास पर हरियाणा के चार निर्दलीय विधायकों से भी मुलाकात की—एक ऐसा कदम जिसे भाजपा द्वारा यह संदेश देने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है कि मनोहर लाल खट्टर सरकार की चलती रहेगी, भले ही जेजेपी गठबंधन तोड़ दे.

बैठक के बाद, देब ने अपने ट्विटर हैंडल पर विधायकों—धरम पाल गोंदर, राकेश दौलताबाद, रणधीर सिंह गोलेन और सोमबीर सांगवान के साथ तस्वीरें पोस्ट कीं.

बीजेपी-जेजेपी गठबंधन 2019 के विधानसभा चुनावों के बाद बना था क्योंकि उस समय हरियाणा में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था. भाजपा के पास 41 विधायक हैं, जबकि जेजेपी के पास 10 हैं. भाजपा के पास अब छह निर्दलीय और हरियाणा लोकहित पार्टी के एक विधायक का समर्थन है. 90 सदस्यीय सदन में कांग्रेस के 30 और इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) का एक विधायक है.

गुरुवार को देब से मिलने वाले चार विधायकों के अलावा, ऊर्जा और जेल के कैबिनेट मंत्री रंजीत सिंह और एक निर्दलीय विधायक नयन पाल रावत भी भाजपा का समर्थन कर रहे हैं.

गोपाल कांडा हरियाणा लोकहित पार्टी के एकमात्र विधायक हैं जो भाजपा का समर्थन कर रहे हैं, जबकि बलराज कुंडू अकेले निर्दलीय विधायक हैं जो पार्टी का विरोध कर रहे हैं. शुक्रवार को बिप्लब देब कांडा से भी मिले थे.


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जेजेपी बीजेपी के साथ चुनाव नहीं लड़ना चाहती: बीरेंद्र

बिप्लब देब के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए, जेजेपी के प्रदेश अध्यक्ष निशान सिंह ने हालांकि कहा कि देब एक पूर्व मुख्यमंत्री हैं, लेकिन वे “परिपक्व व्यक्ति” नहीं लगते हैं.

सिंह ने बुधवार को दिप्रिंट को बताया, “जब वे जानते हैं कि दुष्यंत चौटाला उचाना का प्रतिनिधित्व करते हैं, तो वह ‘मेरी दीदी जीतेंगी’ वाला बयान कैसे दे रहे हैं?”

उन्होंने कहा कि देब का बयान गठबंधन की भावना के खिलाफ है और अन्य दलों के साथ नए संबंध बनाने की भाजपा की इच्छा का खंडन करता है. “जब भी निर्वाचन क्षेत्रों को गठबंधन में विभाजित किया जाता है, तो इस बात का ध्यान रखा जाता है कि मौजूदा विधायकों को हमेशा अपने संबंधित निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने की अनुमति दी जाए, लेकिन यहां देब प्रेम लता की जीत की बात कर रहे हैं जहां से दुष्यंत चौटाला 2019 में जीते थे.”

जेजेपी नेता ने आगे कहा कि उन्हें हैरानी है कि एक तरफ जहां बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व कह रहा है कि पार्टी नए संबंधों के लिए तैयार है, उसके सदस्य कह रहे हैं कि जेजेपी समर्थन देकर बीजेपी पर कोई एहसान नहीं कर रही है.

इस बीच, बुधवार को दिप्रिंट से बात करते हुए बीरेंद्र सिंह ने कहा कि बीजेपी को 2024 के चुनावों में जेजेपी की ज़रूरत नहीं है. उन्होंने यह भी दावा किया, “यहां तक कि जेजेपी भी बीजेपी के साथ चुनाव नहीं लड़ना चाहती है और अलग होने के लिए एक उपयुक्त मुद्दे की तलाश कर रही है ताकि वे आगामी चुनावों में उस मुद्दे का उपयोग कर सके.”

उन्होंने आगे आरोप लगाया कि दुष्यंत और उनकी पार्टी के नेताओं ने अपनी जनसभाओं में पर्याप्त संकेत दिए हैं कि वे सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे और उनका लक्ष्य हरियाणा में सीएम का पद लेने के लिए आवश्यक 45 से अधिक सीटें जीतना है.

उन्होंने कहा, “जहां तक भाजपा का संबंध है, कार्यकर्ताओं ने यह सुनिश्चित करने के लिए कड़ी मेहनत की है कि पार्टी सभी 10 संसदीय सीटों पर जीत हासिल करे और अगले साल होने वाले हरियाणा विधानसभा चुनाव में अच्छा बहुमत हासिल करे.”

2019 में बने गठबंधन के बारे में बात करते हुए बीरेंद्र सिंह ने कहा कि यह विशेष परिस्थितियों में और एक विशेष उद्देश्य के लिए किया गया था. उन्होंने कहा, “2019 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को 41 सीटें मिलीं और वो एक साधारण बहुमत से पीछे रह गई, लेकिन राज्य विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते, लोगों को एक स्थिर सरकार प्रदान करना पार्टी का कर्तव्य था ताकि उन्हें फिर से चुनाव का सामना न करना पड़े. इसलिए, पार्टी ने जेजेपी के साथ गठबंधन किया. गठबंधन का एकमात्र उद्देश्य हरियाणा के लोगों को एक स्थिर सरकार प्रदान करना था.”


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उचाना में चौटाला बनाम सिंह

बीरेंद्र सिंह और चौटाला खानदान के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता 2009 से है, जब दुष्यंत चौटाला के दादा ओम प्रकाश चौटाला ने 2009 में सिंह के पारंपरिक गढ़ उचाना को छीन लिया था—वो एक सीट जिसे उन्होंने अतीत में चार बार जीता था.

मई 2014 में जब ओम प्रकाश चौटाला और उनके बेटे अजय सिंह चौटाला जेबीटी शिक्षक भर्ती मामले में जेल की सजा काट रहे थे, तब दुष्यंत ने हिसार संसदीय सीट से चुनाव लड़ा और देश के सबसे युवा सांसद बने.

उचाना हिसार संसदीय सीट का हिस्सा है और उस विधानसभा क्षेत्र से दुष्यंत चौटाला को सबसे ज्यादा बढ़त मिली है.

मंगलवार को, डिप्टी सीएम ने कहा, “अगर किसी को कोई वेहम हो तो वो सुन ले, उचाना मेरी कर्मभूमि है. में 2019 में वहां से चुनाव जीता था. 2014 में हिसार से एमपी बना तो सबसे ज्यादा लीड उचाना से मिली. अगला चुनाव उचाना से ही लड़ूंगा.”

अक्टूबर 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में दुष्यंत ने उचाना से चुनाव लड़ा, लेकिन प्रेम लता से हार गए. 2019 के संसदीय चुनावों में, वे बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह से हिसार सीट हार गए, जिन्होंने राजनीति में कूदने के लिए आईएएस से इस्तीफा दे दिया. हालांकि, उन्होंने प्रेम लता के खिलाफ 47,000 से अधिक मतों से उचाना सीट जीतकर अपनी हार का बदला लिया.

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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