नई दिल्ली: पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने रविवार को कहा कि जम्मू-कश्मीर के मुख्यधारा के नेतृत्व के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू की गई संवाद प्रक्रिया को केन्द्र शासित प्रदेश में ‘दमनकारी युग’ के अंत और इस समझ के साथ विश्वसनीयता मिल सकती है कि असहमति रखना कोई आपराधिक कृत्य नहीं है.
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, ‘लोगों को चैन से जीने का अधिकार दीजिये, अमन उसके बाद आएगा.’ उन्होंने जम्मू-कश्मीर के 14 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल की बृहस्पतिवार को प्रधानमंत्री के साथ हुई बैठक को तत्कालीन राज्य और अब केन्द्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की जनता की ‘दुश्वारियों’ के अंत की दिशा में एक कदम बताया.
प्रतिनिधिमंडल में शामिल रहीं महबूबा ने स्पष्ट किया कि संवाद प्रक्रिया को विश्वसनीय बनाना केन्द्र के हाथ में है. उन्होंने कहा कि उसे विश्वास बहाली की शुरुआत और ‘लोगों को चैन से जीने’ देना चाहिये. साथ ही उसे लोगों की नौकरियों और जमीन की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिये.
महबूबा ने कहा, ‘लोगों को चैन से जीने देने से मेरा मतलब है कि आज असहमति रखने वाले किसी भी पक्ष को जेल में डाले जाने का खतरा रहता है. हाल ही में एक व्यक्ति को अपने भाव प्रकट करने के लिये जेल में डाल दिया गया कि उसे कश्मीरी सलाहकार से बहुत उम्मीदें थीं. संबंधित उपायुक्त ने यह सुनिश्चित किया कि उसे अदालत से जमानत मिलने के बावजूद कुछ दिन जेल में रखा जाए.’
महबूबा ने कहा कि जब प्रधानमंत्री कहते हैं कि वह ‘दिल की दूरी’ मिटाना चाहते हैं तो इस तरह के दमन का तत्काल अंत हो जाना चाहिये. गौरतलब है कि ऐतिहासिक बैठक में प्रधानमंत्री ने कहा था कि वह जम्मू-कश्मीर की जनता को दिल्ली के करीब लाने के लिये ‘दिल्ली की दूरी’ के साथ-साथ ‘दिल की दूरी’ मिटाना चाहते हैं.
पीडीपी प्रमुख ने कहा, ‘जम्मू-कश्मीर के अवाम के साथ दिल की दूरी कम करने के लिये सभी काले कानूनों को पारित करना बंद करना होगा. नौकरियों और भूमि अधिकारों की रक्षा करना होगी.’ उन्होंने कहा, ‘पहली और सबसे जरूरी बात यह है कि इस दमनकारी युग का अंत होना चाहिये और सरकार को यह समझना चाहिये कि अस्वीकृति प्रकट करना आपराधिक कृत्य नहीं है. पूरा जम्मू-कश्मीर राज्य और मैं इसे केवल एक ऐसा राज्य कहूंगी, जो जेल बन गया है.’
महबूबा ने कहा कि उन्होंने दिल्ली में हुई बैठक में केवल केंद्रीय नेतृत्व को लोगों की समस्याओं से अवगत कराने के लिए हिस्सा लिया. उन्होंने कहा, ‘मैं किसी भी सत्ता की राजनीति के लिए नहीं आई हूं क्योंकि मेरा रुख स्पष्ट है कि मैं जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा वापस मिलने तक कोई चुनाव नहीं लड़ूंगी.’
तत्कालीन राज्य जम्मू-कश्मीर की अंतिम मुख्यमंत्री महबूबा ने कहा, ‘चूंकि निमंत्रण प्रधानमंत्री की ओर से आया था, इसलिए मैंने इसे 5 अगस्त, 2019 के बाद लोगों की पीड़ा को उजागर करने के अवसर के रूप में लिया, जब अनुच्छेद 370 को खत्म कर राज्य को असंवैधानिक रूप से विभाजित कर दिया गया था.’ महबूबा ने दोहराया कि जब कि जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा वापस नहीं दिया जाता, तब तक वह चुनाव नहीं लड़ेंगी.
उन्होंने कहा, ‘मैंने कई बार स्पष्ट किया है कि मैं केंद्र शासित प्रदेश के तहत कोई चुनाव नहीं लड़ूंगी, लेकिन साथ ही मेरी पार्टी इस बात से भी वाकिफ है कि हम किसी को अपना राजनीतिक स्थान नहीं देंगे. हमने पिछले साल हुए जिला विकास परिषद का चुनाव लड़ा था. इसी तरह, यदि विधानसभा चुनाव की घोषणा की जाती है तो हमारी पार्टी इस पर बैठकर विचार करेगी.’
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