scorecardresearch
Saturday, 4 May, 2024
होमदेशराजस्थान में वर्ल्ड बैंक की मदद से बन रहे पहले ‘ग्रीन एंड सेफ हाईवे’ के इस साल के अंत तक पूरा होने की उम्मीद

राजस्थान में वर्ल्ड बैंक की मदद से बन रहे पहले ‘ग्रीन एंड सेफ हाईवे’ के इस साल के अंत तक पूरा होने की उम्मीद

हाईवे पिछले साल दिसंबर में भारत सरकार की तरफ से विश्व बैंक के साथ किए गए 500 मिलियन डॉलर के एक ग्रीन हाईवे कॉरिडोर करार के तहत निर्मित होने वाला पहला हिस्सा होगा.

Text Size:

नई दिल्ली: सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि ग्रीन नेशनल हाईवे कॉरिडोर प्रोजेक्ट (जीएनएचसीपी) के तहत राजस्थान में बनने वाला ग्रीन हाईवे का पहला खंड दिसंबर 2021 तक पूरा होने की उम्मीद है.

पिछले साल दिसंबर में भारत सरकार ने विश्व बैंक के साथ 500 मिलियन डॉलर की परियोजना के लिए एक करार पर हस्ताक्षर किए थे जिसके तहत चार राज्यों— राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश में 781 किलोमीटर लंबा ग्रीन नेशनल हाईवे कॉरिडोर विकसित किया जाना है. इस कॉरिडोर के तहत पांच-छह ‘ग्रीन एंड सेफ हाईवे’ विकसित करने की योजना है जिन्हें 23 हिस्सों में बांटा गया है. इस परियोजना के वित्त वर्ष 2023-2024 के अंत तक पूरे होने की उम्मीद है.

प्रोजेक्ट की कुल लागत लगभग 7,662 करोड़ रुपये आंकी गई थी, जिसमें से 3,500 करोड़ रुपये का योगदान विश्व बैंक दे रहा है.

ग्रीन हाईवे की यूएसपी इसके निर्माण में निहित है. अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि सामान्य राजमार्ग की तुलना में ‘हरित राजमार्ग’ में हरित निर्माण तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा.

विश्व बैंक के एक प्रवक्ता ने दिप्रिंट को बताया कि जीएनएचसीपी के लिए ‘ग्रीन टेक्नोलॉजी अपनाने में स्थानीय सामग्रियों का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल, रोड़े-पत्थरों की जरूरत घटाने के लिए मिट्टी का स्थिरीकरण, फ्लाई ऐश जैसे अपशिष्ट पदार्थों के अलावा रिसाइकिल्ड डामर आदि का उपयोग और जैव-इंजीनियरिंग समाधान, जल संरक्षण और कटाई तकनीक आदि के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को घटाने और सौर ऊर्जा की व्यवस्था करने वाली डिजाइनिंग पर जोर देना शामिल है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

हालांकि, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि सामान्य राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण में भी पिछले पांच-दस सालों में ग्रीन टेक्नोलॉजी को ही अपनाया जाने लगा है.

जीएनएचसीपी पर सीधे मंत्रालय और विश्व बैंक की तरफ से नज़र रखी जा रही है. ऊपर उद्धृत अधिकारी ने कहा, ‘इस प्रोजेक्ट संबंधी निर्माण कार्यों में न तो भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) की कोई भागीदारी है और न ही किसी राज्य के लोक निर्माण विभाग की. उन्होंने कहा कि आमतौर पर हाईवे का निर्माण कराना एनएचएआई या राज्य के पीडब्ल्यूडी के ही जिम्मे होता है.’


यह भी पढ़ें: संवेदनशील अरावली, ‘भू-माफिया’, अवैध गांव—खोरी में घरों को ढहाने के पीछे की कहानी बहुत उलझी हुई है


फायदा और नुकसान

परियोजना के तहत जहां उत्तर प्रदेश में हाईवे का हिस्सा सबसे ज्यादा 240 किलोमीटर रहेगा, वहीं राजस्थान में मात्र 116.76 किलोमीटर के साथ कॉरिडोर का सबसे छोटा हिस्सा होगा.

राजमार्ग मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि हर एक खंड एक अलग ठेकेदार को सौंपा जाएगा. अभी तक परियोजना के 10 खंडों के लिए जमीन ठेकेदारों को आवंटित की जा चुकी है, जबकि चार और के लिए निविदाएं मांगी गई हैं.

विश्व बैंक के प्रवक्ता ने समझाया, ‘यह प्रोजेक्ट सामान्य सड़कों की तुलना में निर्माण प्रक्रिया के दौरान ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन 25 प्रतिशत तक घटाने में मदद करेगा, और राजमार्गों के संचालन और रखरखाव के दौरान भी उत्सर्जन कम ही होगा (क्योंकि ग्रीन हाईवे में प्रदूषण के प्रमुख कारक तत्वों सीमेंट, बिटुमेन और डामर का उपयोग कम से कम होगा).’

मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि ‘परियोजना का उद्देश्य चुने गए राज्यों में सुरक्षित और हरित राष्ट्रीय राजमार्ग गलियारों का निर्माण करना है.’

जीएनएचसीपी के दीर्घकालिक प्रभावों के संदर्भ में विश्व बैंक प्रवक्ता ने बताया कि उम्मीद है कि (ग्रीन) कॉरिडोर बनाने की संस्थागत क्षमता बढ़ेगी और सुरक्षित और पर्यावरण पर कम प्रतिकूल असर डालने वाली सड़क परिवहन प्रणाली तैयार की जा सकेगी.

हालांकि, दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के एक सीनियर प्रोग्राम मैनेजर विवेक चट्टोपाध्याय ने बताया कि इस प्रोजेक्ट की कुछ सीमाएं हैं. उनके अनुसार सड़क यात्रा, खासकर हाईवे से माल ढुलाई किया जाना बहुत ज्यादा उत्सर्जन बचाने वाला नहीं होता.

उन्होंने कहा, ‘सड़कों के माध्यम से माल ढुलाई न तो पर्यावरण के अनुकूल है और न ही उत्सर्जन घटाने वाला.’ साथ ही कहा, ‘इसलिए केवल ग्रीन कह देना भर ही काफी नहीं है और इस परियोजना को कुछ बहुत अलग तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए.’

चट्टोपाध्याय ने कहा कि इसके बजाय रेल नेटवर्क को मजबूत करने की जरूरत है ताकि परिवहन, खासकर माल ढुलाई, ट्रेनों से हो सके जिसमें उत्सर्जन कम होता है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: एक नया वैश्वीकरण उभर रहा है, जो भारत के लिए अच्छा भी साबित हो सकता है और बुरा भी


 

share & View comments