scorecardresearch
Sunday, 22 December, 2024
होमराजनीति2019 में सिर्फ 29 लोकसभा सीटें जीतने के बावजूद BJP ने अपने 37 NDA सहयोगियों को क्यों अपने साथ रखा है

2019 में सिर्फ 29 लोकसभा सीटें जीतने के बावजूद BJP ने अपने 37 NDA सहयोगियों को क्यों अपने साथ रखा है

उनमें से नौ पार्टियों ने 2019 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा, जबकि 16 कोई भी सीट जीतने में असफल रहे. फिर भी, 2024 में एक साथ आए विपक्ष का सामना करने के लिए भाजपा छोटे दलों को साथ रखने पर विचार कर रही है.

Text Size:

नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की मंगलवार को नई दिल्ली में बैठक हुई. इसमें 38 दलों के गठबंधन का दावा किया गया है, जो कि 1998 में अटल बिहार वाजपेयी के नेतृत्व वाले 24 दलों के गठबंधन से बहुत ज़्यादा है. एनडीए का यह शक्ति प्रदर्शन उस वक्त हुआ जब बेंगलुरु में 26 विपक्षी दलों के बीच गठबंधन के लिए बैठक हो रही थी.

दिल्ली में, भाजपा प्रमुख जे.पी.नड्डा ने एनडीए को देश की सेवा के लिए एक आदर्श गठबंधन बताया, जबकि विपक्षी गठबंधन को “भानुमति का कुनबा” करार दिया. लेकिन, एनडीए के घटक दलों पर करीब से नजर डालने पर पता चलता है कि उनमें से कई की राष्ट्रीय राजनीति में मुश्किल से ही मौजूदगी है, जबकि अन्य 2019 के लोकसभा चुनाव में अपनी छाप छोड़ने में असफल रहे.

उदाहरण के लिए, चुनाव आयोग (ईसी) के आंकड़ों से पता चलता है कि 2019 में भाजपा के वर्तमान सहयोगियों को सामूहिक रूप से 7 प्रतिशत वोट शेयर और 29 सीटें मिलीं. इसके विपरीत, सबसे बड़ी पार्टी भाजपा ने 37.3 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 303 लोकसभा सीटें हासिल कीं.

2019 में कुल 37 सहयोगियों में से नौ ने उम्मीदवार नहीं उतारे और अन्य 16 को कोई सीट नहीं मिली. सात पार्टियां एक-एक सीट जीतने में कामयाब रहीं. असंतुलित सीट शेयर पर विचार करने पर पता चलता है कि भाजपा (303), एकनाथ शिंदे की शिवसेना (13), अपना दल (सोनेलाल) (2) और अब विभाजित लोक जनशक्ति पार्टी (6) के खाते में 324 सीटें हैं.

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अजीत पवार गुट के एक एनसीपी सांसद के समर्थन से एनडीए की कुल संख्या एक पायदान बढ़कर 332 हो गई है.

भाजपा की सबसे बड़ी साझेदार एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना है जिसके 13 लोकसभा सांसद हैं और लोक जनशक्ति पार्टी (दोनों गुट) के छह सांसद हैं. अनुप्रिया पटेल के नेतृत्व वाले अपना दल (सोनेलाल) के लोकसभा में दो सदस्य हैं.

मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा के नेतृत्व वाली नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी), नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो के नेतृत्व वाली नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी), ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (एजेएसयू), सिक्किम क्रांति मोर्चा (एसकेएम), नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) , ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) और मिज़ो नेशनल फ्रंट (MNF) के लोकसभा में एक-एक सांसद हैं.

एनडीए की नौ पार्टियां, जिन्होंने 2019 में चुनाव नहीं लड़ा, वे थीं महाराष्ट्र की जन सुराज्य शक्ति, गोवा स्थित महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी), यूपी की निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद पार्टी), पंजाब की शिअद संयुक्त (ढींडसा), मणिपुर की कुकी पीपुल्स गठबंधन, मेघालय की हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, हरियाणा लोकहित पार्टी, केरल कामराज कांग्रेस और तमिलनाडु स्थित पुथिया तमिलगम.

वहीं एआईएडीएमकी की बात करें तो हालांकि लोकसभा में इसका एक सांसद है, पर 66 विधायकों के साथ अन्नाद्रमुक तमिलनाडु में मुख्य विपक्ष है और भाजपा के लिए एक मजबूत सहयोगी है जो राज्य में अपने पैर जमाने के लिए संघर्ष कर रही है. जहां 2019 में भाजपा अपना खाता खोलने में विफल रही, वहीं 2021 के विधानसभा चुनाव में वह केवल चार सीटें ही हासिल कर पाई.

कई छोटी पार्टियां भाजपा के लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि उनका कुछ जिलों और निर्वाचन क्षेत्रों पर प्रभाव है.

उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में, भाजपा को कुल 80 सीटों में से 62 सीटें मिलीं, लेकिन उसकी जीत का अंतर आठ सीटों पर कांग्रेस को मिले वोटों से कम था. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के अब एनडीए में लौटने से भाजपा की जीत की संभावना अधिक है.


यह भी पढ़ेंः बंगाल के ग्रामीण चुनावों में BJP को फायदा हुआ, गढ़ों में हार बताती है कि 2024 से पहले रणनीति की जरूरत है 


एक वरिष्ठ भाजपा महासचिव ने दिप्रिंट को बताया, “अजित पवार के हमारे साथ आने से हम महाराष्ट्र को भी ठीक करने में कामयाब रहे हैं. हम 2019 जैसा प्रदर्शन केवल शिव सेना के साथ से नहीं कर सकते थे… हमें अपनी दक्षिण रणनीति को आकार देने की जरूरत है, खासकर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में,”

जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, 25 एनडीए सहयोगियों के पास लोकसभा में संभवतः एक भी सांसद नहीं है, लेकिन उनके संबंधित राज्यों में उनकी उपस्थिति है. उदाहरण के लिए, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया-अठावले के अध्यक्ष रामदास अठावले राज्यसभा सदस्य हैं, जबकि पार्टी के महाराष्ट्र विधानसभा में दो विधायक हैं.

इसी तरह, असम गण परिषद (एजीपी) के पास एक राज्यसभा सांसद और नौ विधायक हैं, जबकि यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) के पास एक राज्यसभा सांसद और सात विधायक हैं. तमिलनाडु की पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) के पास एक राज्यसभा सांसद और पांच विधायक हैं. एसबीएसपी प्रमुख ओम प्रकाश राजभर उत्तर प्रदेश में पार्टी के छह विधायकों में से एक हैं.

इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) के पास केवल एक विधायक है, कोई लोकसभा सांसद नहीं है. शिअद (ढींडसा) के पास कोई विधायक या सांसद नहीं है. हरियाणा की जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के पास 10 विधायक हैं, लेकिन कोई सांसद नहीं है.

एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने दिप्रिंट को बताया. “भगवान राम ने रावण के खिलाफ लड़ाई में सभी की मदद मांगी. हम भी जोखिम नहीं उठा सकते. हो सकता है कि हमारे पास एआईएडीएमके, एकनाथ शिंदे, अजीत पवार और चिराग पासवान को छोड़कर बड़े गठबंधन सहयोगी न हों – लेकिन कभी-कभी, वोट शेयर में 1 प्रतिशत का अंतर भी जीत दिला सकता है,”

छोटा, लेकिन परिणाम को प्रभावित करने के लिए काफी

उत्तर प्रदेश में, अपना दल (सोनेलाल) को 2019 में 1.2 प्रतिशत वोट मिले और दो सीटें जीतीं, लेकिन इससे भाजपा को पूर्वी क्षेत्र में कुर्मी वोटों को मजबूत करने में मदद मिली.

इसी तरह संजय निषाद के एनआईएसएचएडी पार्टी ने एक उम्मीदवार – उनके बेटे प्रवीण कुमार निषाद – को संत कबीर नगर से भाजपा के चुनाव चिह्न पर मैदान में उतारा और जीत हासिल की.

एसबीएसपी के राजभर ने 2019 में एनडीए छोड़ दिया, लेकिन पिछले हफ्ते इसमें फिर से शामिल हो गए. हालांकि 2019 में उसे 0.5 प्रतिशत वोट मिले, राजभर का दावा है कि उनकी पार्टी पूर्वी यूपी की 12 लोकसभा सीटों पर काफी प्रभाव रखती है.

उदाहरण के लिए, भाजपा मछलीशहर को सुरक्षित करने में कामयाब रही और 2019 में बलिया में उसे कड़ी टक्कर मिली क्योंकि एसबीएसपी ने स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ा था.

मछलीशहर में, भाजपा ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के खिलाफ 181 वोटों से जीत हासिल की और अगर एसबीएसपी के 11,223 वोट विपक्षी गठबंधन को जाते तो वह हार जाती. बलिया में, भाजपा ने 15,519 वोटों के अंतर से जीत हासिल की और एसबीएसपी के 39,000 वोट आसानी से चुनाव को विपक्ष की तरफ में मोड़ सकते थे.

झारखंड में, AJSU को 2019 में 4.3 प्रतिशत वोट और एक सीट मिली, लेकिन इससे भाजपा के लिए कुशवाहा वोट को मजबूत करने में मदद मिली. भाजपा को इस पूर्वी राज्य की कुल 14 लोकसभा सीटों में से 11 पर जीत मिली थी.

खोई हुई जमीन हासिल करना

बिहार में, भाजपा को 2019 में 24.05 प्रतिशत वोटों के साथ 17 लोकसभा सीटें मिलीं, जबकि जदयू ने 22.3 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 16 सीटें जीतीं.

नीतीश के पाला बदलने के बाद से 20 फीसदी वोट शेयर का नुकसान बीजेपी के लिए चिंता का विषय है. जेडीयू का वोट शेयर, राजद के 15.36 प्रतिशत, कांग्रेस के 7.8 प्रतिशत और वाम मोर्चा के 2.2 प्रतिशत के साथ मिलकर, 45 प्रतिशत से अधिक हो जाता है जो कि काफी महत्त्वपूर्ण है.

राज्य में भाजपा के सहयोगियों में, एलजेपी के पास दलित आधार है, जबकि राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) उसे कुशवाहा वोटों पर कब्जा करने में मदद कर सकती है. इसी तरह, मुकेश साहनी के नेतृत्व वाली विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) को मल्लाह (मछुआरे) समुदाय का समर्थन हासिल है. पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा को आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों का समर्थन प्राप्त है.

एक अन्य वरिष्ठ भाजपा नेता ने दिप्रिंट को बताया, “बिहार में महागठबंधन का मुकाबला करने के लिए हमें और पार्टियों की जरूरत है. कई पार्टियां स्वतंत्र रूप से सीटें नहीं जीतती हैं, लेकिन वे वोट जोड़ सकती हैं और भाजपा के लिए समीकरण बदल सकती हैं. इसीलिए, कुशवाहा, मांझी और पासवान हमारे लिए महत्वपूर्ण हो जाते हैं,”

कर्नाटक में बीजेपी ने 2019 में 28 में से 25 लोकसभा सीटें जीतीं. लेकिन मई में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत पार्टी के लिए चिंता का विषय है. चुनाव आयोग के आंकड़ों से पता चलता है कि कांग्रेस ने विधानसभा में 42.9 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 135 सीटें जीतीं, जबकि भाजपा को 36 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 66 सीटें और जेडीएस को 13.3 वोट शेयर के साथ 19 सीटें मिलीं.

ऐसी अटकलें हैं कि जेडी(एस) और भाजपा मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ेंगे, लेकिन इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. ऊपर उद्धृत भाजपा महासचिव ने दिप्रिंट को बताया, ”जेडी(एस) में शामिल होने से हमारा नुकसान कम हो सकता है, जो कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद हमारी सबसे बड़ी चुनौती है.”

पंजाब में, SAD-भाजपा गठबंधन ने 2019 में कुल 13 लोकसभा सीटों में से केवल चार पर जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस को आठ सीटें मिलीं. 2020 में, शिरोमणि अकाली दल (SAD) ने अब निरस्त किए जा चुके कृषि कानूनों के विरोध में एनडीए छोड़ दिया. हालांकि, इससे टूटा हुआ गुट शिअद (संयुक्त) एनडीए में शामिल हो गया.

2022 के पंजाब चुनाव में, आम आदमी पार्टी ने 92 सीटें जीतीं, जबकि भाजपा सिर्फ दो सीटें – पठानकोट और मुकेरियां जीत पाई. अकाली दल को तीन सीटें मिली थीं. इस साल के जालंधर लोकसभा उपचुनाव में AAP ने 34.05 प्रतिशत वोट शेयर के साथ जीत हासिल की, बीजेपी को 15.2 प्रतिशत जबकि SAD को 17.9 प्रतिशत वोट मिले. पार्टी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि पूर्ववर्ती शिअद गठबंधन के लिए भाजपा के साथ बातचीत कर रही है.

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ेंः PK को अपना वारिस बनाना चाहते थे नीतीश, महिला बिल पर शरद यादव को दी थी चेतावनी – बिहार CM के अनजाने किस्से 


 

share & View comments