scorecardresearch
Sunday, 22 December, 2024
होमराजनीतिनीतीश के 'लव-कुश' वोट में सेंध, कलह पर लगाम- बिहार, राजस्थान, दिल्ली, ओडिशा में BJP ने बदले प्रमुख

नीतीश के ‘लव-कुश’ वोट में सेंध, कलह पर लगाम- बिहार, राजस्थान, दिल्ली, ओडिशा में BJP ने बदले प्रमुख

बीजेपी ने बिहार में नीतीश कुमार के मतदाता आधार को हासिल करने, राजस्थान में अंदरूनी कलह को रोकने, ओडिशा में अपने संगठनात्मक ढांचे को नया करने और दिल्ली में आप के खिलाफ मजबूती से कमान संभालने के लिए अपने चार राज्य अध्यक्षों को बदला है.

Text Size:

नई दिल्ली : भारतीय जनता पार्टी ने बृहस्पतिवार को बिहार, राजस्थान, दिल्ली और ओडिशा में नए प्रदेश अध्यक्षों की नियुक्ति की है. निवर्तमान प्रदेश अध्यक्षों का कार्यकाल पूरा होने से सभी नियुक्तियां जरूरी थीं.

बिहार में पार्टी ने एमएलसी सम्राट चौधरी – एक कुशवाहा नेता, जो बिहार विधान परिषद में विपक्ष के नेता भी हैं – को संजय जायसवाल की जगह अपना राज्य प्रमुख नियुक्त किया है. जायसवाल का तीन साल का कार्यकाल पिछले अक्टूबर में समाप्त हो गया था. चौधरी की आक्रामक राजनीति को देखते हुए पार्टी के अंदरूनी लोग इसे 2025 के लोकसभा चुनावों से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मतदाता आधार में सेंध लगाने की भाजपा की रणनीति के हिस्से के रूप में देख रहे हैं.

राजस्थान में चित्तौड़गढ़ लोकसभा सांसद सीपी जोशी ने सतीश पूनिया की जगह ली है. पुनिया के बारे में कहा जाता है कि उनका राज्य भाजपा के वसुंधरा राजे खेमे के साथ टकराव था. राज्य भाजपा के सूत्रों के मुताबिक, पार्टी उम्मीद कर रही है कि जोशी की नियुक्ति बेहतर समन्वय सुनिश्चित करेगी और पार्टी की राजस्थान इकाई के भीतर टकराव को रोकेगी.

दिल्ली में वीरेंद्र सचदेवा ने आदेश गुप्ता से राज्य भाजपा की बागडोर संभाली है. गुप्ता को जून 2020 में इस पद पर नियुक्त किया गया था. पिछले दिसंबर में गुप्ता के इस्तीफे के बाद आम आदमी पार्टी (आप) के खिलाफ मजबूती से कमान संभालने के लिए सचदेवा को दिल्ली भाजपा का अंतरिम अध्यक्ष नियुक्त किया गया था.

इसी तरह ओडिशा में पार्टी ने राज्य के पूर्व मंत्री मनमोहन सामल को समीर मोहंती की जगह राज्य अध्यक्ष नियुक्त किया ताकि पार्टी की संभावनाओं को नया बल दिया जा सके. मोहंती ने 2020 में बसंत कुमार पांडा की जगह ली थी और तीन साल तक ओडिशा भाजपा प्रमुख के रूप में काम किया. हालांकि उन्होंने पिछले नवंबर में धामनगर विधानसभा उपचुनाव में पार्टी की जीत का नेतृत्व किया था, लेकिन दिसंबर में पदमपुर उपचुनाव में उसी परिणाम को दोहराने में सफलता नहीं दिला सके.

मोहंती की जगह लेने वाले सामल अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के नेता हैं, जो तटीय ओडिशा से आते हैं. इस जगह पर भाजपा की उपस्थिति सीमित है. 2004 में बीजेडी-बीजेपी सरकार में मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के कारण पार्टी में कई लोग उन्हें आम सहमति बनाने वाले के रूप में देखते हैं. उन्होंने अतीत में दो बार 1998 में और फिर 2000 में राज्य बीजेपी प्रमुख के रूप में भी काम किया है.

भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव सुनील बंसल को पिछले अगस्त में पार्टी का ओडिशा प्रभारी नियुक्त किया गया था. उन्होंने सार्वजनिक रूप से ओडिशा में एक अधिक मजबूत पार्टी संगठन स्थापित करने की इच्छा व्यक्त की है.


यह भी पढ़ें : प्रशांत किशोर बिल्कुल सही हैं, मोदी की अपराजेयता हिंदुत्व नहीं बल्कि राष्ट्रवाद के कारण है


बिहार में ‘लव-कुश’ वोट बैंक को भुनाने की कोशिश

सम्राट चौधरी ने 2014 में जद (यू) में शामिल होने के लिए राजद से नाता तोड़ लिया था. उन्हें जीतन राम मांझी सरकार (2014-15) में और फिर 2020 में नीतीश के नेतृत्व वाली जद (यू)-भाजपा सरकार में मंत्री बनाया गया था.

चौधरी की बिहार भाजपा प्रमुख के रूप में नियुक्ति को पार्टी द्वारा ओबीसी मतदाताओं, खासतौर पर कुर्मी और कुशवाहा (कोइरी) समुदायों के बीच अपने समर्थन को बढ़ाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है. इसे सामूहिक रूप से ‘लव-कुश’ वोट कहा जाता है. 1990 के दशक में जनता दल-यूनाइटेड (जदयू) प्रमुख ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की मुस्लिम-यादव (एमवाई) जाति अंकगणित को चुनौती देने के बाद से ही दोनों समुदाय सीएम नीतीश कुमार के मतदाता आधार की रीढ़ रहे हैं.

‘लव-कुश’ वोट के अलावा, नीतीश अपनी मुख्य चुनावी ताकत ईबीसी (अति पिछड़ी जातियों) के साथ-साथ महादलितों से भी प्राप्त करते हैं. कुल मिलाकर, कुर्मी और कुशवाहा राज्य की आबादी का 12 प्रतिशत हैं, जबकि यादवों की संख्या 7 प्रतिशत है. बिहार में यादवों के बाद ओबीसी में कुशवाहा सबसे बड़ा ब्लॉक है.

मौजूदा समय में बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी और उनके पिता लालू, राज्य के यादवों के निर्विवाद नेता हैं. तो वहीं नीतीश खुद कुर्मियों के सबसे बड़े नेता हैं. लेकिन कुशवाहा के पास राज्यव्यापी उपस्थिति वाला कोई नेता नहीं है. कुशवाहा समुदाय के एकमात्र नेता जो इस ओर जाते दिखे, वे नए राज्य भाजपा अध्यक्ष के पिता शकुनि चौधरी थे, जो 2015 में सक्रिय राजनीति से सेवानिवृत्त हुए और समता पार्टी के संस्थापक सदस्य थे.

इस समुदाय के प्रमुखता से उभरने वाले अन्य नेताओं में उपेंद्र कुशवाहा के अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री नागमणि और बिहार के पूर्व मंत्री तुलसीदास मेहता शामिल हैं. उपेंद्र कुशवाहा के अलावा, मेहता ने इस साल फरवरी में तीसरी बार जद(यू) से नाता तोड़ लिया और एक नई पार्टी बनाई. नीतीश के लिए कुर्मी-कोइरी गठबंधन को बरकरार रखना कुशवाहा को करीब रखने की अहम वजह रही होगी.

पार्टी की बिहार इकाई के सूत्रों ने कहा कि ‘लव-कुश’ वोट बैंक अब विभाजित हो चुका है, भाजपा चौधरी को अपना राज्य प्रमुख नियुक्त करके कोइरी के बीच अपनी संभावनाओं को बढ़ाने का प्रयास कर रही है. सूत्रों ने आगे बताया कि अपनी संभावनाओं को देखते हुए पार्टी आगामी 2024 के लोकसभा चुनावों और 2025 के विधानसभा चुनावों में उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक जनता दल के साथ गठबंधन में प्रवेश कर सकती है, ताकि नीतीश का असर कम होते ही जाति अंकगणित का लाभ उठाया जा सके.

चौधरी की बिहार भाजपा प्रमुख के रूप में नियुक्ति पर बिहार से पार्टी के एक वरिष्ठ विधायक ने दिप्रिंट को बताया, ‘संजय जायसवाल जी अपना कार्यकाल पूरा होने के बाद से बदले जाने की उम्मीद कर रहे थे लेकिन यह कदम लंबे समय से लंबित था क्योंकि पार्टी ईबीसी और ओबीसी के बीच अपने सामाजिक आधार को मजबूत करने की रणनीति पर विचार कर रही थी, विशेष रूप से कुशवाहा और धानुक (कुर्मी) जो नीतीश का मुख्य जनाधार बनाते हैं. उनकी लोकप्रियता घट रही है और पार्टी का लक्ष्य उनके प्रति वफादार जाति समूहों को लुभाना है.’

विधायक ने कहा कि भाजपा ने अपने ‘निम्न-जाति’ और ‘उच्च-जाति’ के मतदाताओं के बीच संतुलन बनाने की रणनीति के तहत सम्राट चौधरी को विधान परिषद में अपना नेता और विजय सिन्हा को बिहार विधानसभा में अपना नेता बनाया है.

विधायक ने कहा, ‘पार्टी अब ईबीसी में से एक नेता को विधान परिषद में अपने नेता के रूप में नियुक्त कर सकती है. कुरहानी उपचुनाव (पिछले दिसंबर) में भाजपा की जीत एक संकेत था क्योंकि उस सीट पर जद(यू) के उम्मीदवार कुशवाहा थे, लेकिन भाजपा उपचुनाव जीत गई. मौर्य राजा अशोक की विरासत का जश्न मनाने पर भाजपा का जोर भी अधिक से अधिक कुशवाहा मतदाताओं को अपने पाले में लाने की उसकी कहानी का हिस्सा है.’

राजस्थान भाजपा अध्यक्ष के रूप में 7वें ब्राह्मण

राजस्थान में जहां सतीश पूनिया के नेतृत्व में पिछले तीन सालों में भाजपा के भीतर अंदरूनी कलह एक सामान्य बात हो गई थी, पार्टी सूत्रों ने कहा कि उनकी जगह लेना पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के लिए एक संकेत है कि पार्टी अपनी राज्य इकाई से अधिक समन्वित तरीके से काम करने की उम्मीद करती है. वसुंधरा खेमे के नेता इस साल के अंत में राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले पूनिया को हटाने की मांग कर रहे थे.

पूनिया की जगह आए सीपी जोशी, पहली बार 2014 में चित्तौड़गढ़ से लोकसभा के लिए चुने गए थे और 2019 के आम चुनाव में अपनी सीट बरकरार रखी थी. पार्टी के भीतर, वह आरएसएस से संबद्ध अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़े होने से लेकर भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयूमो) भाजपा की युवा शाखा – के प्रदेश अध्यक्ष और फिर प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष नियुक्त किए गए.

हरि शंकर भाभरा, भंवरलाल शर्मा, ललित किशोर चतुर्वेदी, महेश चंद्र शर्मा, रघुवीर कौशल और अरुण चतुर्वेदी के बाद जोशी राजस्थान के भाजपा प्रमुख नियुक्त होने वाले 7वें ब्राह्मण हैं.

रविवार को जोशी ने जयपुर में एक ब्राह्मण महापंचायत में भाग लिया, जहां उन्हें जोधपुर में जन्मे ब्राह्मण केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव के साथ एक मंच साझा करते देखा गया. वैष्णव के कैबिनेट सहयोगी गजेंद्र सिंह शेखावत और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का भी यही मैदान है.

ब्राह्मण समुदाय राजस्थान की आबादी में हिस्सेदारी 7.5 प्रतिशत है और उसने हीरा लाल शास्त्री, जय नारायण व्यास और टीका राम पालीवाल और हरि देव जोशी सहित राज्य को कई मुख्यमंत्री दिए हैं.

राज्य भाजपा प्रमुख के रूप में जोशी की नियुक्ति पर टिप्पणी करते हुए राजस्थान के एक भाजपा सांसद ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह दर्शाता है कि पार्टी ब्राह्मणों पर ध्यान दे रही है. घनश्याम तिवारी राज्य में पार्टी के एक और ब्राह्मण चेहरे हैं. गुलाब चंद कटारिया को (असम का) राज्यपाल बनाए जाने के बाद से पार्टी ने अब तक विपक्ष का नेता नियुक्त नहीं किया है.

75 वर्षीय तिवारी राजस्थान में भाजपा का सबसे प्रमुख ब्राह्मण चेहरा हैं और छह बार विधायक रह चुके हैं. लेकिन जोशी के उत्थान से पता चलता है कि पार्टी अब एक दूसरे ब्राह्मण नेता को बढ़ावा देना चाह रही है.

एक वरिष्ठ केंद्रीय भाजपा नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘राजस्थान इकाई के अध्यक्ष को बदलना जरूरी था. सतीश पूनिया ने अच्छा काम किया लेकिन पार्टी की राज्य इकाई के नेताओं के बीच तालमेल नहीं रहा. एक युवा चेहरे (जोशी) को लाना पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं के लिए काम करेगा क्योंकि इससे वे एकजुट होकर काम कर पाएंगे और विधानसभा चुनाव में पार्टी की जीत सुनिश्चित होगी.

हालांकि, पूनिया ने अतीत में राजस्थान भाजपा प्रमुख के रूप में बने रहने की इच्छा व्यक्त की थी, लेकिन पार्टी की राज्य इकाई के सूत्रों ने कहा कि राजे खेमे के अधिक प्रतिरोध को रोकने के लिए उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया गया था.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद- संघप्रिया मौर्या | संपादन- इन्द्रजीत)


यह भी पढ़ें: अराजकता, अंदरूनी कलह, संतुलन साधने की कवायद—येदियुरप्पा को लेकर दुविधा में क्यों फंसी कर्नाटक BJP


 

share & View comments