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Sunday, 1 December, 2024
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प्रशांत किशोर बिल्कुल सही हैं, मोदी की अपराजेयता हिंदुत्व नहीं बल्कि राष्ट्रवाद के कारण है

बुद्धिजीवियों के लिए मोदी के राष्ट्रवादी दावों पर हंसना आसान है लेकिन उन्हें खारिज करना बेवकूफी है क्योंकि सच्चाई यह है कि यह रणनीति काम कर रही है.

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राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने हमेशा इस बात को कहा है: जो लोग नरेंद्र मोदी की सफलता को केवल हिंदुत्व के रूप में देखते हैं, वे गलती कर रहे हैं. हां, हिंदुत्व मोदी की अपील में एक महत्वपूर्ण जगह रखता है. लेकिन अकेले हिंदुत्व उन्हें वहां नहीं पहुंचा सकता जहां वह आज हैं: वर्तमान वक्त में सबसे शक्तिशाली और लोकप्रिय प्रधानमंत्री.

केवल हिंदुत्व पर ध्यान केंद्रित करके, हम अपने जोखिम पर, मोदी के दो महत्वपूर्ण घटकों की उपेक्षा करते हैं. पहला, वेलफेयर (कल्याण) है. अधिकांश मोदी आलोचक स्वीकार करते हैं कि प्रधानमंत्री ने भारत के कल्याणकारी राज्य को पुनर्जीवित किया है, लेकिन क्योंकि वहां कोई तर्क नहीं दिया जा सकता है, उनके पास इसके बारे में कहने के लिए बहुत कुछ नहीं है.

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि वे मोदी की अपील के राष्ट्रवादी घटक की उपेक्षा करते हैं. इसे आमतौर पर अंधराष्ट्रवाद या हिंदू राष्ट्रवाद के रूप में खारिज कर दिया जाता है, जो वैध हो भी सकता है और नहीं भी, लेकिन इस बात को ज्यादा तरजीह नहीं दी जाती.

जब मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले प्रचार किया, तो राष्ट्रवाद का मुद्दा केंद्र में था. उन्होंने कहा कि दुनिया हम पर हंस रही थी. हम घोटालों का देश बन गए थे, जिसे भ्रष्ट राजनेता चला रहे थे और (हालांकि उन्होंने वास्तव में ऐसा नहीं कहा था, उनके अनुयायियों ने निश्चित रूप से कहा था) गोरे लोगों द्वारा शासित थे, जो भारतीयों को अपनी कठपुतली मानते थे. (सोनिया गांधी को शासक के रूप में और मनमोहन सिंह को मूक कठपुतली के रूप में पेश किया गया था.)

उन्होंने सुझाव दिया कि मुझे वोट दें और मैं भारत को दुनिया में उसके सही स्थान पर वापस लाऊंगा. मैं आपको भारतीय होने पर गर्व कराऊंगा. दुनिया हमें देखेगी और हमारी उपलब्धियों की सराहना करेगी.

मोदी कभी भी उस केंद्रीय संदेश से डगमगाए नहीं.


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मजबूत नेता की रणनीति

यह कोई असामान्य रणनीति नहीं है, यह अक्सर लोकलुभावन नेताओं द्वारा नियोजित किया जाता है जो अपने खुद के नाम के आधार पर अधिक वोट हासिल करते हैं बरक्स अपनी पार्टी के जिसका वे प्रतिनिधित्व करते हैं. जब व्लादिमीर पुतिन सत्ता में आए, तो उनके प्लेटफॉर्म ने सोवियत संघ के पतन के बाद विश्व मंच पर रूस की छवि को कम करने पर ध्यान केंद्रित किया. वह इसे ठीक कर देगा, उसने वादा किया था. हाल ही में, डोनाल्ड ट्रंप ने उसी तरह की रणनीति का इस्तेमाल किया जब उन्होंने कहा कि उनका मिशन ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ है.

इस दृष्टिकोण का उपयोग करने वाले मजबूत नेता आमतौर पर अपने समर्थकों की दीर्घकालिक वफादारी बनाए रखते हैं. पुतिन अभी भी रूस में सबसे लोकप्रिय नेता हैं. डोनाल्ड ट्रंप फिर से राष्ट्रपति पद के लिए रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार हो सकते हैं.

उदारवादी नेता जो खुद को मजबूत पुरुष (या महिला) के रूप में पेश नहीं करते हैं, वे शायद ही कभी इस तरह के दावे करते हैं. बराक ओबामा ने यह कहना जरूरी नहीं समझा कि दुनिया ने अमेरिका के प्रति सम्मान खो दिया है और वह देश को उसका पुराना गौरव लौटा देंगे. और यूपीए के वर्षों में किसी भी मंत्री (मनमोहन सिंह को छोड़ दें) ने ऐसा कुछ नहीं कहा.

इसके विपरीत, यह मोदी और उनके समर्थकों का निरंतर विषय रहा है. अपने कार्यकाल की शुरुआत में, प्रधानमंत्री ने विदेशों में रहने वाले भारतीयों से पूछा कि क्या वे अब बेहतर महसूस करते हैं कि उन्होंने भारत के गौरव को फिर से लौटा दिया है. और भाजपा समर्थक हमेशा थोड़ा-सा रहस्यमय दावा करते हैं कि दुनिया अब भारत को अलग तरह से देखती है, कि भारतीयों का आज विश्व स्तर पर कहीं अधिक सम्मान है.

भारतीय मूल का प्रत्येक व्यक्ति जो किसी पश्चिमी कंपनी का प्रमुख बन जाता है, उसका इस तरह से जश्न मनाया जाता है जिससे पता चलता है कि उसकी सफलता मोदी सरकार द्वारा आयोजित भारतीय पुन: जागृति का हिस्सा है. जी20 में भारत की अध्यक्षता को प्रधानमंत्री के लिए एक व्यक्तिगत उपलब्धि के रूप में प्रचारित किया जा रहा है.


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राष्ट्रवादी दृष्टिकोण काम कर रहा है

इन दावों पर हंसना बुद्धिजीवियों या शहरी अमीरों के लिए आसान है. लेकिन उन्हें खारिज करना उनके लिए मूर्खतापूर्ण है. क्योंकि सच्चाई यह है कि यह रणनीति काम कर रही है. उनके कई समर्थकों के मन में, नरेंद्र मोदी एक अति-राष्ट्रवादी हैं, जो निचले स्तर से ऊपर उठे और भारत के खोए हुए गौरव को बहाल किया, जिसे भ्रष्ट और आलसी नेताओं ने खत्म कर दिया था.

इस कथानक ने कांग्रेस को नुकसान पहुंंचाया है, जो स्पष्ट कारणों से, इस आरोप के प्रति काफी संवेदनशील है कि यह गोरे विदेशियों की पार्टी है. जब सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष थीं, तो उन्होंने भारतीयता को गले लगाकर इस धारणा से लड़ाई लड़ी. गांधी के जन्मस्थान को छोड़कर अब इटली से उनका कुछ भी संबंध नहीं है.

दूसरी ओर, राहुल ने बार-बार विदेशी छुट्टियां लेकर भाजपा के हाथों में खेल रहे हैं, जिससे मोदी समर्थकों को यह दावा करने की अनुमति मिल गई है कि सभी यूरोपीय शासकों की तरह, वह यूरोप में सबसे ज्यादा छुट्टियां मना रहे हैं, जबकि प्रधानमंत्री दिन-रात काम करते हैं.

जब राहुल ने अंततः भारत जोड़ो यात्रा की सफलता के साथ इस कैरिकेचर से किनारा कर लिया, जहां उन्होंने रास्ते में मिलने वाले लोगों के साथ एक मजबूत और वास्तविक संबंध का प्रदर्शन किया, तो भाजपा ने पलटवार करने के अवसर की प्रतीक्षा की.

पार्टी को यह मौका राहुल के ब्रिटेन दौरे से मिल गया. जबकि राहुल ने ब्रिटेन में उसी तरह की बातें कही हैं, जैसा कि वह भारत में कहते हैं, भाजपा ने यह बताया कि वह विदेश में केवल अन्य विदेशियों को भारत की बुराई करने के लिए गए थे. मीडिया के समर्थन से, इसने झूठा दावा किया कि उसने विदेशी शक्तियों को भारत में हस्तक्षेप करने के लिए कहा था. ऐसा लगता है कि जानबूझकर देशभक्त भारतीयों पर औपनिवेशिक शासन की यादें जगाने के लिए डिजाइन किया गया है.

मोदी ने जो सारी राष्ट्रवादी भावना पैदा की है, वह सभी नकारात्मकता पर आधारित नहीं है. इसका ज्यादातर हिस्सा सकारात्मक है. पिछले महीने, मैंने रेलवे, टेलीकॉम और आईटी के कैबिनेट मंत्री अश्विनी वैष्णव के साथ एबीपी न्यू समिट में एक सत्र की एंकरिंग की थी. वैष्णव न केवल इस सरकार के सबसे सक्षम तकनीकी मंत्रियों में से एक हैं, बल्कि वे एक उत्कृष्ट संचारक (कम्युनिकेटर) भी हैं.

सत्र के पहले तीन मिनट के भीतर ही उन्होंने दर्शकों से संपर्क बना लिया. जैसा कि उन्होंने रेलवे की सफलताओं, वंदे भारत ट्रेनों के पीछे के विचार और रेलवे स्टेशनों को बदलने की उनकी योजनाओं को रेखांकित किया, शिक्षित मध्यम वर्ग के दर्शकों ने खुशी मनाई. जब तक उन्हें पता चला कि दुनिया टेलीकॉम में भारत की उपलब्धियों को कैसे सराह रही है, दर्शक खुशी से झूम उठे थे. जैसा कि उन्होंने प्रत्येक उपलब्धि को रेखांकित किया, उन्होंने इसकी योजना बनाने के लिए प्रधानमंत्री की प्रशंसा की और बाद में, सत्र के साक्षात्कार भाग में जब मैंने उन्हें उनके द्वारा बताई गई उपलब्धियों के लिए श्रेय देने की कोशिश की, तो उन्होंने यह कहते हुए इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि सारा श्रेय प्रधानमंत्री और उनके विज़न के कारण है.

उनकी प्रतिक्रिया को सुनकर इस भावना से बचना मुश्किल था कि दर्शकों का मानना था कि एक नया भारत बनाया जा रहा है, जहां विकास घोटाला मुक्त हो और जहां दुनिया हमारी उपलब्धियों की सराहना कर रही हो. इसका हिंदुत्व से कोई लेना-देना नहीं था. शिखर सम्मेलन में दर्शकों को ऐसा लग रहा था जैसे वे वास्तव में मोदी की प्रशंसा करते हैं, जो उन्होंने दशकों के भ्रष्टाचार को समाप्त करने और एक नया भारत बनाने के लिए उनके प्रयास के रूप में देखा.

मुझे नहीं लगता कि कांग्रेस को यह मिलता. बेशक, भारत में भयानक धार्मिक भेदभाव है, लेकिन यहां तक कि जो लोग इसे अस्वीकार करते हैं (और हर मोदी समर्थक हिंदुत्व प्रेमी नहीं है) वे इस तमाशे से रोमांचित हो जाते हैं कि वे एक पुनरुत्थान भारत को एक महाशक्ति बनने के रास्ते पर दिखा रहे हैं. राहुल की कोई भी बात इस विश्वास को हिलाती नहीं दिखती.

किशोर बिल्कुल सही है. राष्ट्रवाद मोदी की अपील का एक मजबूत हिस्सा है. और जब तक विपक्ष इस क्षेत्र में उनके दावों का मुकाबला करने में कामयाब नहीं हो जाता, तब तक नरेंद्र मोदी अपराजेय रहेंगे.

(वीर सांघवी प्रिंट और टेलीविजन पत्रकार और टॉक शो होस्ट हैं. उनका ट्विटर हैंडल @virsangvi है. व्यक्त विचार निजी हैं)

(संपादन: कृष्ण मुरारी)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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