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Friday, 19 April, 2024
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होसबले ने PM से मिलने के बाद चार दिन UP में रहकर योगी सरकार की बिगड़ी छवि पर फीडबैक लिया

कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर और पंचायत चुनाव परिणामों, जिसमें सत्ताधारी पार्टी को झटका लगा है, ने राज्य में सरकार की छवि पर प्रतिकूल असर डाला है.

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लखनऊ : आरएसएस सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले, जो सोमवार से गुरुवार तक लखनऊ के चार दिवसीय दौरे पर थे, ने राज्य में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के प्रति जनता की राय के बारे में संगठन के प्रमुख राज्यस्तरीय पदाधिकारियों से फीडबैक लिया है.

कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर और पंचायत चुनाव परिणामों, जिसमें सत्ताधारी पार्टी को झटका लगा है, ने राज्य में सरकार की छवि पर प्रतिकूल असर डाला है.

संघ के पदाधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि होसबले ने सरकार और संघ के बीच ‘समन्वय’ पर जोर दिया.

संघ सरकार्यवाह सोमवार से गुरुवार तक लखनऊ में रहे. उनकी यात्रा इसलिए काफी अहम मानी जा रहे है क्योंकि ये पीएम नरेंद्र मोदी की तरफ से एक बैठक के ठीक बाद हुई है, जिसमें गृहमंत्री अमित शाह और खुद होसबले सहित अन्य लोग शामिल थे, लेकिन मुख्यमंत्री योगी मौजूद नहीं थे. उन्होंने महामारी से निपटने के तरीकों को लेकर योगी सरकार की ‘बिगड़ी छवि सुधारने’ के उपायों पर चर्चा की.

पार्टी, संगठन और प्रशासनिक स्थिति की समीक्षा किया जाना और इस सबमें प्रधानमंत्री और होसबले की संलिप्तता यूपी में जनता की धारणा के बारे में भाजपा आलाकमान की गहरी चिंता को उजागर करती है.

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वह किससे मिले और क्या जानना चाहा

लखनऊ में रहने वाले एक आरएसएस के पदाधिकारी, जो अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहते, के मुताबिक, होसबले ने संघ के कई पदाधिकारियों से मुलाकात की और महामारी से निपटने में संगठन की तरफ से किए जा रहे प्रयासों की जानकारी ली. पूर्व में बतौर संयुक्त सरकार्यवाह लखनऊ सेंटर में तैनात रहे और साल में कई बार यहां का दौरा करते रहने वाले होसबले लखनऊ के निराला नगर में आरएसएस के एक कार्यक्रम में भी शामिल हुए.

एक दूसरे पदाधिकारी ने कहा, ‘सरकार्यवाह की उपस्थिति में संघ नेताओं के बीच यह बंद दरवाजे वाली बैठक थी. मैं इसे एक नियमित बैठक कहूंगा, जहां वरिष्ठ नेताओं ने बैठकर वर्तमान स्थिति पर चर्चा की और यह समझने की कोशिश की कि संघ कैसे भूमिका निभा सकता है. यह कोई राजनीतिक बैठक नहीं थी. वह किसी भाजपा नेता से नहीं मिले.’

अपनी पहचान उजागर न करने के इच्छुक एक संघ सदस्य ने पुष्टि की कि होसबले संघ के 50 से अधिक पदाधिकारियों से मिले और कई प्रचारकों से फोन पर भी बात की. वह आरएसएस के कुछ वरिष्ठ कार्यकर्ताओं से भी मिले, जो किसी पद पर तो नहीं हैं लेकिन वर्षों से संघ के लिए काम कर रहे हैं.

उक्त सदस्य ने कहा, ‘उन्होंने पूछा कि सरकार अब महामारी से कैसे निपट रही है…ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति कैसी है? आम जनता सरकार के बारे में क्या बोल रही है?’

आरएसएस के एक पदाधिकारी ने कहा, ‘अप्रैल में स्थिति सबसे ज्यादा खराब थी, सरकार में बैठे लोग हमारी बात नहीं सुन रहे थे, वे हमारी कॉल का जवाब तक नहीं दे रहे थे. लेकिन मई के मध्य से स्थितियां बेहतर हो रही हैं. मंत्री भी अब जवाब दे रहे हैं. लेकिन यह बात सही है कि महामारी में यूपी सरकार की छवि खराब बिगड़ी है. हमने बैठक में दत्तात्रेय जी को भी यह बात बता दी है. उन्होंने कुछ प्वाइंट नोट किए लेकिन उसके बाद कुछ बोला नहीं.’

होसबले के साथ बैठक में मौजूद रहे आरएसएस के एक अन्य कार्यकर्ता ने कहा कि वरिष्ठ नेता ने उन स्वयंसेवकों के घर-परिवार से संपर्क करने पर जोर दिया, जिन्होंने कोविड-19 के कारण अपने प्रियजनों को खो दिया है.

भाजपा की बनी रही नजर

दिल्ली में मोदी-भाजपा-आरएसएस की बैठक को लेकर शुरू हुई सुगबुगाहट के बाद यूपी भाजपा के नेता भी होसबले के दौरे पर नजरें बनाए हुए थे. लेकिन नेताओं का मानना है कि सरकार और पार्टी में कोई भी बदलाव होने में कुछ समय लगेगा.

पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का दावा है कि कोविड महामारी ने उसकी रणनीतियों की कई खामियां सामने ला दी हैं. भाजपा के एक सूत्र के मुताबिक, पार्टी में पिछड़े और अति पिछड़े वर्गों में यह भावना उपजी है कि उनकी उपेक्षा हो रही है. ब्राह्मण भी खुद को अलग-थलग महसूस करते हैं, क्योंकि माना जाता है कि मौजूदा सरकार में ठाकुरों की ही चल रही है. सूत्र ने कहा, ‘हमें यह धारणा बदलने की जरूरत है.’

यूपी में भाजपा संगठन के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘हमें उम्मीद थी कि दत्तात्रेय जी कुछ पार्टी नेताओं से भी मिल सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बदलाव के बारे में सुगबुगाहट है लेकिन मुझे लगता है कि इसमें समय लगेगा.’

दिल्ली में भाजपा-आरएसएस की बैठक की अहमियत पर जोर देते हुए पार्टी के एक पदाधिकारी ने कहा, ‘भाजपा-आरएसएस बैठक को लेकर सोशल मीडिया पर काफी चर्चा हो रही है, लेकिन हम इन बैठकों को अगले साल के शुरू में प्रस्तावित यूपी चुनावों पर भाजपा की रणनीतिक शुरुआत के तौर पर देखते हैं.’

जिन बदलावों की अटकलें चल रही हैं, उनमें एक केशव प्रसाद मौर्य को डिप्टी सीएम के पद से हटाना और स्वतंत्र देव सिंह की जगह यूपी भाजपा का प्रमुख बनाया जाना है. मौर्य को एक सशक्त ओबीसी चेहरा माना जाता है जो अगले विधानसभा चुनावों में पार्टी के बहुमत हासिल करने में खासे मददगार हो सकते हैं. वहीं, प्रधानमंत्री मोदी के करीबी माने जाने वाले एमएलसी ए.के. शर्मा को योगी आदित्यनाथ की कैबिनेट में शामिल किए जाने की भी चर्चाएं चल रही हैं.

भाजपा के जनप्रतिनिधियों का अपनी ही सरकार पर गुस्सा

पिछले एक महीने में भाजपा के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की तरफ से कोविड प्रबंधन से जुड़े मुद्दों को लेकर अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ आवाज उठाए जाने के कई मामले सामने आए हैं.

अप्रैल के दूसरे हफ्ते में सबसे पहले यूपी के कैबिनेट मंत्री ब्रजेश पाठक ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर राजधानी लखनऊ में स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्दशा के बारे में बताया था.

इसके बाद, अप्रैल के अंतिम सप्ताह में मोहनलालगंज के सांसद कौशल किशोर ने लखनऊ के दो सरकारी अस्पतालों में वेंटिलेटर की खराब स्थिति को लेकर मुख्यमत्री को पत्र लिखा. उन्होंने जिला प्रशासन को चेताया कि यदि अधिकारी ठीक से काम नहीं करेंगे तो वह अनशन शुरू कर देंगे.

फिर, मई के पहले हफ्ते में लखीमपुर खीरी के विधायक लोकेंद्र सिंह ने भी जिले में ऑक्सीजन की कमी के बारे में मुख्यमंत्री को पत्र लिखा, जबकि झांसी के विभिन्न क्षेत्रों के तीन विधायकों ने अस्पतालों की खराब स्थिति और जिले के अधिकारियों के कथित लापरवाह रवैये को उजागर किया.

उसी हफ्ते केंद्रीय श्रम मंत्री और बरेली से सांसद संतोष गंगवार ने भी योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर मेडिकल ऑक्सीजन की कमी, आवश्यक चिकित्सा उपकरणों की कथित कालाबाजारी और लापरवाह अधिकारियों को लेकर चिंता जताई थी.

कानपुर से भाजपा सांसद सत्यदेव पचौरी ने भी मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर बताया था कि कैसे समय पर इलाज न मिलने से शहर में लोग अपने घरों के बाहर, अस्पतालों के बाहर और एम्बुलेंस के अंदर मर रहे हैं.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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