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Monday, 22 April, 2024
होमदेशउन्नाव में गंगा किनारे रेत में दबे 100 शवों पर अधिकारी हैरान, ग्रामीणों ने ‘बाहरियों’ को जिम्मेदार बताया

उन्नाव में गंगा किनारे रेत में दबे 100 शवों पर अधिकारी हैरान, ग्रामीणों ने ‘बाहरियों’ को जिम्मेदार बताया

अधिकारियों के पास मृतकों की पहचान के बारे में कोई पुष्ट जानकारी नहीं है और न ही ये पता है कि वे कोविड पीड़ित थे या नहीं. स्थानीय ग्रामीणों ने कहा कि कई लोगों ने शवों को दफनाया क्योंकि वे लकड़ी नहीं खरीद सकते थे.

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उन्नाव: उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले की बीघापुर तहसील निवासी राकेश कुमार पिछले एक माह में अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए कम से कम छह बार गंगा किनारे बक्सर घाट पर जा चुके हैं. पहले भी वह कुछ लोगों को नदी के रेतीले किनारों पर शव को दफनाते देख चुके हैं— लेकिन इस तरह का नजारा देखने के लिए शायद कतई तैयार नहीं रहे होंगे जो उन्होंने गुरुवार को अपनी चाची के अंतिम संस्कार में शामिल होने के दौरान देखा. रेत में दबाए गए शवों की संख्या सौ से ऊपर पहुंच गई थी.

क्षेत्र का दौरा करने के बाद एक अधिकारी भी यह कहने को मजबूर हो गए कि ‘स्थिति भयावह लग रही है’

हाल ही में बारिश और तूफान के कारण कुछ शव और यहां तक कि कंकाल रेत के ऊपर नज़र आने लगे, जिससे स्थानीय ग्रामीणों में भी काफी दहशत है.

हालांकि, अधिकारी न तो मृतकों की पहचान की पुष्टि कर सकते हैं, न ही ये बता पा रहे हैं कि क्या वे कोविड पीड़ित थे, जबकि ग्रामीणों का दावा है कि वे ‘बाहरी’ थे.

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स्थानीय प्रशासन ने कहा कि शवों की संख्या बढ़ी है क्योंकि यह जगह गंगा नदी से करीब है और दो सीमावर्ती जिलों—फतेहपुर और रायबरेली के लोग यहीं पर अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार करने को तरजीह देते हैं.

कुछ इसी तरह की स्थिति शुक्लागंज में हाजीपुर क्षेत्र के पास स्थित रौतापुर गंगा घाट पर भी है, जहां लगभग 50 शव रेत में दबे पाए गए हैं.

स्थानीय पुलिस जहां इस संबंध में पूछताछ की प्रक्रिया में लगी है, वहीं आसपास के इलाकों में यह पता लगाने की कोशिश भी की जा रही है कि कहीं और शव तो नहीं दफन हैं.

जिला मजिस्ट्रेट रविंदर कुमार ने कहा, ‘हमारी टीम को नदी से दूर एक इलाके में कुछ शव दबे मिले हैं. अन्य क्षेत्रों में भी शवों की खोज की जा रही है. मैंने एक टीम को जांच का जिम्मा सौंपा है, उसके अनुसार ही कार्रवाई की जाएगी.’

बक्सर घाट के पास रहने वाले ग्रामीणों का कहना है कि कई लोगों ने अपने मृत परिजनों या रिश्तेदारों को रेत में दबाने का तरीका अपनाया क्योंकि वे अंतिम संस्कार के लिए लकड़ी का इंतजाम नहीं कर सकते थे.

राकेश ने बताया, ‘कुछ हफ्ते पहले, यहां एक लंबी कतार थी और दाह संस्कार के लिए जगह मिलना बहुत मुश्किल था. मैंने देखा कि कुछ लोग रेत में शव दबा देते हैं. उन्होंने मुझे बताया कि वे पैसे और लकड़ी की कमी के कारण ऐसा कर रहे थे.’

बक्सर घाट के पास फूल बेचने वाले सोनू वर्मा ने कहा कि उन्होंने भी लोगों को शव लाते और रेत में दबाते देखा है. उनके मुताबिक, पूरे विधि-विधान के साथ सही तरह से अंतिम संस्कार करने में 8,000 से 9,000 रुपये का खर्च आता है. सोनू ने कहा, ‘यहां तक कि अंतिम संस्कार कराने वाले पंडित भी बहुत पैसे मांगने लगे हैं.’


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अधिकारी हैरान हैं

बीघापुर सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट दया शंकर पाठक ने दिप्रिंट को बताया, ‘फतेहपुर और उन्नाव जिलों के अधिकारियों की एक टीम ने घटनास्थल का दौरा किया लेकिन वे इस नतीजे पर नहीं पहुंच पाए कि शव कहां से आए और उन्हें रेत में क्यों दबाया गया.’

उन्होंने कहा कि दाह संस्कार के लिए लकड़ी की तो कोई कमी नहीं है.

एक अन्य अधिकारी ने कहा कि कुछ दिनों पहले इलाके में अधिक संख्या में दाह संस्कार हो रहे थे लेकिन किसी ने लकड़ी की कमी जैसी कोई शिकायत तो प्रशासन से नहीं की.

उन्होंने कहा, ‘यह सच है कि कुछ दिन पहले तक काफी संख्या में दाह संस्कार हो रहे थे लेकिन जिन्होंने अपने परिजनों या परिचितों के शवों को दफनाया, उन्होंने किसी भी तरह की मदद के लिए प्रशासन से संपर्क नहीं किया. अगर लकड़ी की कमी होती तो हम इसे संभाल सकते थे.’

अधिकारी ने यह भी बताया कि तूफान आने के कारण रेत उड़ जाने से ये शव सामने आ गए.

उन्होंने कहा, ‘बारिश और तूफान के कारण रेत हट जाने से यहां का नजारा एकदम भयावह हो गया. हम यकीन के साथ ये नहीं कह सकते कि ये शव कोविड-19 मरीजों के हैं या नहीं.’

यूपी सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, उन्नाव में 12 मई तक कोविड-19 के 1,980 सक्रिय केस थे, जिसमें पिछले 24 घंटों में 84 नए मामले सामने आए हैं और कोई मौत नहीं हुई. 11 मई को 92 नए केस सामने आए और तीन मौतें हुईं.


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‘यह बाहरी लोगों का काम’

बक्सर घाट के आसपास करीब आधा दर्जन गांव हैं. लेकिन जिन ग्रामीणों से दिप्रिंट ने बात की उनमें से अधिकांश ने दावा किया कि शवों को रेत में दबाने वाले ‘बाहरी’ लोग थे.

कल्याणपुर गांव निवासी बउआ पांडे ने कहा, ‘पिछले 15 दिनों में हमारे गांव में तीन लोगों की मौत हुई है लेकिन सभी का विधि-विधान से अंतिम संस्कार किया गया है. मैं तीनों अंतिम संस्कार में शामिल हुआ था. गांव में लकड़ी की कोई कमी नहीं है. लेकिन मैंने घाट पर इसकी कमी के बारे में सुना, इसलिए हम गांव से लकड़ी ले गए. मैंने सुना है कि बाहरी लोगों ने अपने मृतकों के शव रेत में दफन कर दिए हैं.’

सीतल खेड़ा गांव निवासी अंकित कुमार ने यह भी दावा किया कि स्थानीय निवासी ‘उचित दाह संस्कार’ करते हैं, साथ ही कहा कि वे इसकी ‘ढंग से जांच’ की मांग भी कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘हिंदू यह सब पारंपरिक विधि-विधान के साथ करते हैं.’

सिर्फ बक्सर घाट पर ही नहीं, शुक्लागंज के हाजीपुर क्षेत्र में स्थित रौतापुर घाट पर भी गंगा के किनारे दबे शव मिले हैं.

अपने ससुर के दाह संस्कार के लिए घाट पर आए एक फैक्ट्री कर्मचारी और कानपुर निवासी अनिल कुमार सक्सेना ने कहा, ‘अगर रिश्तेदार वित्तीय मदद नहीं करते तो हमारे लिए उचित तरह से अंतिम संस्कार करना मुश्किल हो जाता. आर्थिक तंगी के अलावा चिता के लिए लकड़ी की कमी होने से भी लोगों ने शवों को नदी के किनारे दफनाना शुरू कर दिया है.’

एक स्थानीय पंडे ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पिछले मंगलवार को घाट पर 15 शव लाए गए थे जिसमें करीब 10 रेत में ही दफन कर दिए गए हैं.

उन्होंने कहा कि महामारी के पहले घाट पर एक दिन में दो या तीन शव ही अंतिम संस्कार के लिए लाए जाते थे.


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