नई दिल्ली: माकपा ‘वैचारिक शुचिता’ को अपनाने की अपनी परंपरागत विशेषता से पीछे हट रही है और उसने हाल ही में केरल में कांग्रेस के दलबदलुओं को अपने पाले में लाना शुरू कर दिया है.
कांग्रेस के कम से कम तीन वरिष्ठ नेता अकेले इस महीने ही सत्ताधारी पार्टी में शामिल हुए हैं और कुछ और जल्द ही इसका दामन थाम सकते हैं.
माकपा के साथ जाने वाले नेताओं में केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी (केपीसीसी) के पूर्व सचिव पी.एस. प्रशांत, केपीसीसी के पूर्व आयोजन सचिव के.पी. अनिल कुमार और पूर्व महासचिव जी. रेथीकुमार शामिल हैं. ये तीनों ही कई दशकों तक कांग्रेस से जुड़े रहे हैं.
इनमें से प्रशांत और अनिल कुमार को कांग्रेस के राज्य नेतृत्व पर बार-बार किए जाने वाले हमलों के कारण ‘अनुशासनहीनता’ की कार्रवाई के तहत पिछले महीने पार्टी से अस्थायी तौर पर निलंबित कर दिया गया था.
वरिष्ठ नेताओं ओमन चांडी और रमेश चेन्नीथला की तरफ से ये आरोप लगाए जाने कि पार्टी के नए जिला अध्यक्षों की नियुक्ति में उनसे सलाह नहीं ली गई थी, के साथ ही दिप्रिंट ने बताया था कि कैसे केरल कांग्रेस के भीतर असंतोष उभर रहा है. प्रशांत और कुमार सहित कई नेताओं ने इस मुद्दे पर राज्य नेतृत्व के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर टीका-टिप्पणी की थी.
प्रशांत ने सत्ताधारी पार्टी में शामिल होने के मौके पर प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा था, ‘कांग्रेस में कोई लोकतंत्र नहीं बचा है. माकपा एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसका रुख धर्मनिरपेक्ष है और वह भाजपा के नेतृत्व वाली सांप्रदायिक ताकतों का प्रतिरोध करती है.’
करीब 43 वर्षों तक कांग्रेस से जुड़े रहे कुमार ने भी इसी तरह के कारण गिनाते हुए हुए पार्टी पर ‘तानाशाहीपूर्ण ढंग से व्यवहार करने’ का आरोप लगाया.
एक अन्य वरिष्ठ कांग्रेस नेता ए.वी. गोपीनाथ भी पिछले हफ्ते कांग्रेस से इस्तीफा दे चुके हैं और उनके माकपा में ही शामिल होने की उम्मीद है, लेकिन उन्होंने अभी तक इस बारे में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की है.
ये सब माकपा की तरफ से वैचारिक शुचिता पर जोर देने की परंपरा के एकदम विपरीत है, जहां पार्टी रैंक में आमतौर पर वही लोग शामिल होते हैं जो वामपंथी कैडर का हिस्सा रहे हों.
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माकपा का बचाव, राजनीति में निरंतरता, भाजपा से डटकर मुकाबला करने के इच्छुक
माकपा के प्रभारी सचिव विजयराघवन ने पिछले सप्ताह ट्वीट किया था कि केवल यही कांग्रेसी नेता नहीं, बल्कि आने वाले दिनों में कुछ अन्य भी माकपा में शामिल हो सकते हैं.
उन्होंने लिखा था, ‘वामपंथियों की तरफ से अपनाए गए राजनीतिक रुख के मद्देनजर आने वाले दिनों में कुछ और नेता कांग्रेस छोड़कर वाम दलों में शामिल होंगे.’
UDF is heading towards a major crisis. More leaders will leave the Congress & join the Left in the coming days, in recognition of the political stance adopted by the Left. UDF does not represent the interests of the people, but just another element of reactionary politics.
— A Vijayaraghavan (@VijayraghavanA) September 14, 2021
विजयराघवन ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि कांग्रेस के पूर्व नेताओं को पार्टी में शामिल करने का माकपा का निर्णय इस तथ्य पर आधारित है कि वे अब ‘पार्टी के साथ सहयोग कर रहे हैं.’
विजयराघवन ने कहा, ‘माकपा में शामिल किए जाने के दौरान उन्होंने कांग्रेस के प्रति अपने असंतोष और माकपा का सक्रिय कार्यकर्ता बनने की इच्छा को लेकर अपने विचार स्पष्ट तौर पर जाहिर किए.’
विजयराघवन ने इस बात से इनकार किया कि पार्टी एक नया तरीका अपना रही है.
उन्होंने कहा, ‘हमारा राजनीतिक दृष्टिकोण पहले की तरह ही है. माकपा में शामिल होने वालों को एहसास होता है कि हम राज्य के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बनाए रखने के लिए ही प्रतिबद्ध हैं, और हम भाजपा से डटकर मुकाबला करते हैं. अन्य राज्यों के विपरीत ये दलबदलू भाजपा में शामिल नहीं हो रहे हैं. वे माकपा के साथ आ रहे हैं.’
नेता ने कांग्रेस पर ‘अवसरवादी और सांप्रदायिक’ होने का आरोप भी लगाया.
उन्होंने कहा, ‘वे जमात-ए-इस्लामी जैसी सांप्रदायिक ताकतों के साथ सहयोगी हैं. उन्होंने पर्दे के पीछे भाजपा से ही हाथ मिला रखे हैं और उनका कोई आंतरिक लोकतंत्र नहीं है.’
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‘माकपा की रणनीति व्यावहारिक और वास्तविक राजनीतिक नजरिये वाली’
हालांकि, विश्लेषकों का कहना है कि माकपा का कांग्रेस के दलबदलुओं को शामिल करना उसके नजरिये में बदलाव का संकेत है— जो वैचारिक स्तर के बजाये अधिक व्यावहारिक रुख अपनाए जाने को दिखाता है.
केरल के एक राजनीतिक विश्लेषक जे. प्रभाष ने दिप्रिंट को बताया, ‘माकपा को इस बात का एहसास है कि यदि वे इन दलबदलुओं को स्वीकार नहीं करेंगे तो बहुत संभव है कि वे भाजपा में शामिल हो जाएं. यह केरल में भाजपा को मजबूती देने का ही काम करेगा- जो कुछ ऐसा है जिसे माकपा बर्दाश्त नहीं कर सकती.’
उन्होंने कहा, ‘ऐसे समय में जब भाजपा देश में सबसे प्रभावशाली पार्टी बनी हुई है, माकपा केरल में भी उसकी पैठ न होने देने के लिए वह सब करेगी जो वह कर सकती है.’
प्रभाष ने कहा कि माकपा ने अपनी रणनीति में बदलाव इन नेताओं को भाजपा में शामिल होने से रोकने के लिए ही किया है. उन्होंने कहा, ‘यह हमें बताता है कि माकपा अब केरल में अधिक व्यावहारिक रुख अपना रही है. वैचारिक सिद्धांत ठीक हैं, लेकिन मौजूदा दौर में इसे राजनीतिक वास्तविकताओं के साथ-साथ चलना होगा.’
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