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Friday, 19 April, 2024
होममत-विमतहिंदूइज़्म को फिर से प्राप्त करने में मददगार साबित होगा डिस्मैन्टलिंग ग्लोबल सम्मेलन

हिंदूइज़्म को फिर से प्राप्त करने में मददगार साबित होगा डिस्मैन्टलिंग ग्लोबल सम्मेलन

यह तथ्य कि हिंदुत्व में विश्वास रखने वाले सैंकड़ों लोग इस विचारधारा की प्रकृति पर विस्तार से बात करने वाले एक सम्मेलन को ध्यान से सुन रहे थे, वास्तव में उल्लेखनीय है.

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10 से 12 सितंबर के बीच आयोजित डिस्मैन्टलिंग ग्लोबल हिंदुत्व या डीजीएच, शिक्षाविदों के एक छोटे समूह द्वारा हिंदुत्व विचारधारा के कारण पनपे खतरों का पता लगाने के लिए एक साधारण सी बैठक करने की योजना बनाने के रूप में शुरू हुआ था. लेकिन जल्द ही इसने इतने सारे शिक्षाविदों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया कि यह 50 से अधिक विश्वविद्यालयों से संबंधित 70 से अधिक सह-प्रायोजकों की भागीदारी के साथ एक अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम में बदल गया. यह अपने आप में एक अभूतपूर्व बात थी.

इस सम्मेलन को मिल रही इस सफलता ने इसे अमेरिका में हिंदुत्व समूहों की नाराजगी का भी कारण बना दिया, जिन्होंने अपनी पहुंच और धन शक्ति का उपयोग करते हुए इस आयोजन को विफल करने के लिए काफ़ी हद तक प्रयास किया, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न विश्वविद्यालय के प्रेसीडेंन्टस और प्रोवोस्टों को दस लाख से भी अधिक पत्र मिले तथा भारत सरकार द्वारा इस मामले में हस्तक्षेप की भी मांग की गई. इसके साथ ही सह-प्रायोजकों और वक्ताओं को लगातार ट्रोल किया गया और उन्हें डराने -धमकाने से लेकर जान से मारने तक की धमकी भी दी गयी.

दि गार्जियन की खबर के अनुसार, ‘मीना कंडासामी नाम की एक वक्ता के बच्चों की तस्वीरें ऑनलाइन पोस्ट की गई थीं, जिसके नीचे ‘आपके बेटे को एक दर्दनाक मौत का सामना करना पड़ेगा’ जैसे कैपशन के और साथ ही जातिवादी गलियां भी दी गयी थी. आयोजकों को एक ईमेल के माध्यम से भेजी गई इसी प्रकार की एक धमकी कुछ इस तरह की थी.

अमेरिकी शिक्षाविदों को लक्ष्य कर के दी जा रही धमकियों का परिमाण/संख्या और क्रूरता भी अभूतपूर्व थी.

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इस तरह के ताबड़तोड़ हमलों के बावजूद, किसी एक भी विभाग या विश्वविद्यालय ने इस सम्मेलन से अपना समर्थन वापस नहीं लिया. इसके विपरीत, इस सब ने और अधिक संस्थानों और व्यक्तियों को इसमें शामिल होने के लिए प्रेरित किया. कई लोगों ने यह भी महसूस किया कि हिंदू राष्ट्रवादियों की यह रणनीति अपने आप में इस तरह के सम्मेलन की तात्कालिक आवश्यकता को बल देती है.

सम्मेलन के समाप्त होने तक, दुनिया भर के 1,100 से अधिक शिक्षाविदों और विद्वानों ने एक एकजुटता वाले बयान (स्टेट्मेंट ऑफ सॉलिडैरिटी) पर हस्ताक्षर कर दिए थे. यह इस बात का प्रमाण था कि हिंदुत्व से भारतीय लोकतंत्र और वास्तव में पूरी दुनिया के अस्तित्व से संबंधित खतरे को वे कितनी गंभीरता से देखते हैं.

दक्षिण एशिया के उन विद्वानों के लिए, जिन्हें अक्सर उनके काम के लिए निशाना बनाया जाता है, यह सम्मेलन एक बड़ी राहत के रूप में सामने आया होगा – ख़ासकर यह जानने के लिए कि वे इस तरह के डराने-धमकाने और शारीरिक खतरों का सामना करने के मामले में अकेले नहीं हैं.

हिंदुत्व को इस तरह से पीछे धकेलने के प्रति दुनिया भर के शिक्षाविदों के बीच एकता का ऐसा प्रदर्शन इस सम्मेलन की एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि थी.

इस सम्मेलन में साझा किए गए शोध आधारित कुछ उत्कृष्ट आंकड़ों ने मेरी इस इच्छा को बल दिया कि काश हमारे मानवाधिकार कार्य में सहायता के लिए भी ऐसी जानकारी हम तक सही समय पर पहुंच पाती हो. बहरहाल, डीजीएच में विचारों के आदान-प्रदान की प्रकृति ने मुझे इस आशा से भर दिया है कि यह हिंदुत्व के अध्ययन में एक व्यापक और निरंतर शैक्षणिक अभीरुचि की शुरुआत हो सकती है. शिक्षाविदों की इस तरह की अंतर्दृष्टि और गहन विमर्श से ही सामान्य कार्यकर्ताओं के रूप में हिंदुत्व के बारे में तथ्यों को व्यापक श्रोतावर्ग तक पहुंचाने के हमारे प्रयासों को बल मिल सकता है.

डीजीएच सम्मेलन से हासिल हुईं ये कुछ ऐसी उपलब्धियां हैं जो भारत की आत्मा को दोबारा जीतने की आगे की बड़ी लड़ाई में अच्छे तरीके से हमारे काम आ सकती हैं.


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डीजीएच पर गलत सूचना का प्रसार

हिंदू राष्ट्रवादी तत्व अब इस बात से काफी नाराज चल रहे हैं कि इस सम्मेलन को विफल करने का उनका अंतरराष्ट्रीय प्रयास शानदार ढंग से विफल रहा. वे अब अमेरिका में अपने आधिपत्य के प्रति एक वास्तविक खतरा महसूस करने लगे हैं, और वे इसे कतई पसंद नहीं करते.

हिंदुत्व के असल चलन के रूप में, हिंदू राष्ट्रवादी अब इस सम्मेलन के बारे में तमाम तरह की गलत सूचना को सभी उपलब्ध तरीकों से फैला रहे हैं. इसके लिए वे कभी-कभी अनधिकृत रिकॉर्डिंग द्वारा प्राप्त की गई चुनिंदा वीडियो क्लिपस का भी उपयोग कर रहे हैं.

बिना किसी आश्चर्य के, हिंदू राष्ट्रवादी अपने कुप्राचार के लिए जिन उद्धरणों का उपयोग कर रहे हैं उनमें से ज्यादातर सिर्फ एक या दो पैनलिस्टों से ही संबंधित हैं. लेकिन अधिकांश पैनलिस्टों ने जिस बारे में बात की – अर्थात वह खतरा जो हिंदुत्व के कारण भारत के अल्पसंख्यकों और भारतीय लोकतंत्र के लिए उत्पन्न हो गया है. – उस पर उनसे एक शब्द भी नहीं कहा गया है.

हिंदू राष्ट्रवादियों द्वारा अपने अनुयायियों को समझाने के लिए तैयार किए गए कुछ वैचारिक आदान-प्रदानों में एक आम लाइन कुछ यह थी कि – ‘हमने आपको पहले ही ऐसा बताया था,’ कि यह सम्मेलन वास्तव में हिंदू धर्म को ‘विखंडित’ करने के बारे में था.

यह सच है कि किसी भी अन्य अकादमिक सम्मेलन की ही तरह, निश्चित रूप से यहां भी कुछ मुद्दों पर वास्तविक मतभेद थे और यही अकादमिक स्वतंत्रता का मतलब भी है. लेकिन वास्तविक तथ्य यह है कि कई पैनलिस्टों ने हिंदुत्व की राजनीतिक विचारधारा और हिंदू धर्म के बीच स्पष्ट रूप से अंतर किया.

‘डिसमेंटलिंग’ शब्द के बारे में भी बहुत कुछ कहा गया है. ‘हिंदू फॉर ह्यूमन राइट्स’ की तरफ़ से हम हमेशा इस बारे में स्पष्ट करते रहे हैं कि जिस चीज़ को ‘विखण्डित’ किए जाने की आवश्यकता है वह है अल्पसंख्यकों और सदियों पुरानी जाति व्यवस्था के खिलाफ हो रहे अत्याचार जिनकी आज के भारतीय समाज में कोई जगह नहीं है

‘हिंदू धर्म और हिंदुत्व’ पर बने पैनल ने बहुत ज़्यादा ध्यान आकर्षित किया. सबसे चर्चित सवाल यह था कि क्या हिंदुत्व हिंदू धर्म का एक हिस्सा है अथवा नहीं?’

कर्नाटक गायक टी.एम. कृष्णा द्वारा पेश किए गये तीन वैकल्पिक प्रस्तावों की भी जांच-पड़ताल की गई..

पहला प्रस्ताव यह था कि, ‘हिंदुत्व पूरी तरह से स्वतंत्र विचारधारा है और यह हिंदू धर्म से एकदम अलग है’: जैसा कि कुछ पैनलिस्टों ने बताया, यह हिंदुओं और हिंदू धर्म को उन सभी हिंसा और विभाजनकारी कृत्यों से पूरी तरह से बरी कर देता है जो हिंदुत्व समर्थकों ने उसके नाम पर किया है, जिसमें जातिवाद का वह अभिशाप भी शामिल है, जिसके बारे में हिंदुत्ववादी केवल दिखावा करते रहते है.

दूसरा प्रस्ताव था, ‘हिंदू धर्म हीं हिंदुत्व है’: यह अत्यधिक समस्या उत्पन्न करने वाला विचार है क्योंकि यह सभी हिंदुओं को गुजरात की तरह के विजिलॅंटी हिंदुत्व में शामिल करने का प्रयास करता है. यह विचार पद्धति प्रगतिशील हिंदुओं के लिए एक हिंदू के रूप में अपना काम जारी रखने के लिए कोई जगह नहीं छोड़ती है. एचएफएचआर की सह-संस्थापक सुनीता ने इस बारे में विस्तार से बताया कि यह क्यों एक परेशान करने वाला प्रस्ताव है: ‘हमारी ऐड्वकसी में, हम स्पष्ट रूप से कहते रहे हैं कि हिंदुत्व की विचारधारा उस हिंदू धर्म के समकक्ष नहीं है जिसकी हम आकांक्षा करते हैं. लेकिन हम इस बात से भी इनकार नहीं कर सकते कि हिंदुत्व के समर्थक यह सब एक अखंड हिंदू धर्म के नाम पर और हिंदुओं के रूप में ही कर रहे हैं. जैसा कि शाना सिप्पी ने कहा है, संपूर्ण हिंदू धर्म हिंदुत्व नहीं हैं, लेकिन स्पष्ट रूप से हिंदुत्व हिंदू धर्म की एक तरह की अभिव्यक्ति है.‘

तीसरा प्रस्ताव कुछ इस तरह का था, कि ‘हिंदुत्व हिंदू धर्म में अवस्थित है, लेकिन संपूर्ण हिंदू धर्म हिंदुत्व में शामिल नहीं हो सकता हैं.’ डीजीएच सम्मेलन के दो पैनलिस्ट शाना सिप्पी और शैलजा कृष्णमूर्ति ने इसे संक्षेप में कुछ इस तरह बताया: ‘धार्मिक विद्वानों के रूप में, हम देखते आ रहे हैं कि हिंदुत्व के साथ हिंदू धर्म का गहरा संबंध है. डिस्मैन्टलिंग ग्लोबल हिंदुत्व सम्मेलन में हमने बार-बार सुना है कि ‘हिंदुत्व हिंदू धर्म नहीं है’. यहां हम इस बात पर जोर देते हैं कि हालांकि सारा-का-सारा हिंदू धर्म हिंदुत्व नहीं हैं, फिर भी हिंदुत्व वास्तव में हिंदू धर्म ही है.’

सच कहा जाए तो, इस पैनल की वेचारिक समृद्धि हममें से कुछ को थोड़ा सा रुक कर उन शब्दों और वाक्यांशों के बारे में एक बार फिर से विचार करने के लिए प्रेरित कर रही जिनका उपयोग हम हिंदुत्व के हिंदू धर्म के साथ संबंधों का वर्णन करने के लिए करते हैं.

हालांकि, हिंदुत्व समर्थको समूहों में जो कुछ कहा जा रहा है, उसके विपरीत, यहां इस बात पर कोई असहमति नहीं थी कि हिंदुत्व आज के दिन में वास्तविक रूप में किस बात का प्रतिनिधित्व करता है. जैसा कि एचएफएचआर ने पहले ही कहा है, ‘ इसकी सशब्द परिभाषा की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि हिंदुत्व भारत की सड़कों पर अपने हिंसक शब्दों और कृत्यों से स्वयं ही खुद को परिभाषित करता है. आज जो नया हो रहा है वह यह है कि हिंदुत्व की ऐसी ही हिंसक प्रवृत्ति अब अमेरिका में भी खुलेआम प्रदर्शित की जा रही है.’


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हिंदुत्व का मौन

हिंदू राष्ट्रवादियों द्वारा इस सम्मेलन के बाद की गई तीव्र प्रतिक्रिया में मेरे लिए वास्तविक रूप से उल्लेखनीय जो बात रही है वह है भारत में उनके सहयोगियों द्वारा अल्पसंख्यक विरोधी नीतियों और अत्याचारों, मॉब लिंचिंग, यह तय करना कि कोई क्या खा सकता है और किससे शादी कर सकता है, मुसलमानों को मताधिकार से वंचित करने के लिए नागरिकता कानूनों को हथियार बनाने के प्रयास, झूठे आरोपों में राजनीतिक विरोधियों को जेल में डालना, अभिव्यक्ति और प्रेस की एकतरफा स्वतंत्रता आदि-आदि के बारे में चर्चा पर उनकी पूरी तरह से चुप्पी.

अंततः, उनकी विचारधारा के कारण गंवाई गई हजारों कीमती जान गंवाने और नष्ट हुए अनेक परिवारों के प्रति उनकी सहानुभूति का लुप्त होना ही इस डीजीएच सम्मेलन के औचित्य को सही ठहराता है

यह तथ्य कि भारत में हिंदू राष्ट्रवादियों ने इस सम्मेलन में व्यवधान डालने की भरपूर कोशिशे की, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद और भारतीय जनता पार्टी के उच्चतम स्तरों पर मिली कुछ प्रतिक्रियाओं से स्पष्ट होता है.

उदाहरण के तौर पर, आरएसएस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य राम माधव ने ट्वीट करते हुए लिखा

‘डिस्मैन्टलिंग ग्लोबल हिंदुत्व का प्रचार एक गर्जना के रूप में किया गया था, लेकिन @HinduAmerican और अन्य हिंदू समूहों के प्रयासों के कारण यह एक ‘फुसफुसाहट’ के रूप में समाप्त हो गया. किसी ने इसकी कोई परवाह नहीं की. कोई समाचार भी नहीं. सुना है दर्शकों से ज्यादा वक्ता ही थे.’

यहां कई मामलों में गलत पाए गये

सबसे पहले, यह ‘गर्जना’ इस सम्मेलन के आयोजकों के प्रयासों का परिणाम नहीं था, बल्कि यह इसके विरोधियों, जिसमें आरएसएस और अमेरिका में इसके सहयोगी शामिल थे. द्वारा किए गये नकारात्मक प्रचार का असर था. वास्तव में, हो सकता है क़ी उनके हमलों के परिणामस्वरूप ही पंजीकरण (10,000 से अधिक) में भारी उछाल आया.

इन पंजीकरण करवाने वाले लोगों में एक महत्वपूर्ण संख्या डीजीएच के उन विरोधियों हो सकती है, जिन्हें इसमें पंजीकृत होने के लिए और उस बात का गवाह बनने के लिए प्रोत्साहित किया गया था जिसे उनमें से कुछ द्वारा हिंदुओं के नरसंहार के आह्वान के रूप में प्रचारित किया गया था.

हालांकि, मेरे विचार से यह तथ्य कि हिंदुत्व में विश्वास रखने वाले सैंकड़ों लोग इस विचारधारा की प्रकृति पर विस्तार से बात करने वाले एक सम्मेलन को ध्यान से सुन रहे थे, वास्तव में उल्लेखनीय है.

कुछ ई-मेल और सोशल मीडिया पोस्ट इस तथ्य की भी पुष्टि करते हैं कि हो सकता है कि डीजीएच ने कुछ हिंदुओं को इस बारे में अवगत करने और ध्यान दिलाने का काम किया जैसे कृष्ण कुमार जिन्होंने ट्वीट किया:

अगर हम आयोजकों द्वारा साझा किए गए नंबरों पर विश्वास करे तो यह सम्मेलन काफ़ी सफल रहा: इसे 30,000 से अधिक बार देखा गया और अभी भी देखा जा रहा है. प्रत्यक्ष रूप से देखने वाले दर्शकों की संख्या औसतन 4,000 से अधिक थी, जिसमें लगभग 70 प्रतिशत लाइक्स थे – यह आंकड़े एक तीन दिवसीय सम्मेलन के लिए उल्लेखनीय संख्या है.

यह कहना कि सम्मेलन एक ‘विफल आयोजन’ था, हिंदुत्व राष्ट्रवादियों की एक साझा भावना है, जो निश्चित रूप से इस बात से निराश हुए होंगे कि इस सम्मेलन की शुरुआत से पहले उनके द्वारा किए जा रहे बेतुके दावों का समर्थन करने के लिए कोई सुलगती चिंगारी प्रदान नही की. लेकिन जैसा कि मैंने पहले ही समझाया है, इस सम्मेलन ने इससे मूल रूप से की गई अपेक्षा से कहीं अधिक प्राप्त किया है.

मैं अपनी बात को एक लोकप्रिय हिंदू आध्यात्मिक नेता सद्गुरु जग्गी वासुदेव, जिन्होंने नए नागरिकता कानूनों सहित नरेंद्र मोदी सरकार की कुछ नीतियों का मुखर समर्थन किया है, के उद्धरण के साथ समाप्त करता हूं.

‘हमें किसी के बारे में यह चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है कि वह हिंदू जीवन शैली को खत्म करने की कोशिश कर रहा है. बशर्ते हम इसे मजबूत करते हैं और जाति और पंथ के भेदों को दूर करते हुए इसे लोगों के लिए आकर्षक बनाते हैं…’

जाति को समाप्त करने के उनके इस प्रस्ताव से भला कौन असहमत हो सकता है?

दुर्भाग्य से, अमेरिका में हिंदू राष्ट्रवादी हिंदू धर्म से जाति को विलग करने में इतने अधिक व्यस्त हैं कि उनसे जातिवाद को समाप्त करने के लिए कुछ भी रचनात्मक करने की संभावना नहीं हैं. इसके बजाय, वे उन लोगों की निंदा कर रहे हैं जो अमेरिका में जातिगत भेदभाव को अवैध बनाना चाहते हैं.

आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव ने कहा है: ‘हिंदुत्व को संयुक्त राज्य अमेरिका में किसी विश्वविद्यालय में खत्म नहीं किया जा रहा है … बल्कि हिंदुत्व को खत्म करने का काम हमारे गांवों में, हमारे शहरों में हो रहा है क्योंकि हमने अपने लोगों के साथ भेदभाव किया है. यही समय है कि इन बाधाओं को तोड़ दिया जाए.’

अंततः एक हिंदू गुरु द्वारा एक ऐसे विषय के बारे में जमीनी हकीकत को कुछ मान्यता मिली है जिसके बारे में डीजीएच सम्मेलन में शामिल कई वक्ता पूरे जोश के साथ बात कर रहे थे.

मैं कहता हूं, सद्गुरु के आह्वान पर ही सही, पर जातिगत भेदभाव को समाप्त करने के लिए सभी दिशाओं से अच्छे विचारों को आने दें.

( राजू राजगोपाल हिंदू फॉर ह्यूमन राइट्स (@Hindus4HR) के सह-संस्थापक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.)

( इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )


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