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Tuesday, 23 April, 2024
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पहली बार आजादी का जश्न मनाने जा रही है माकपा, भाजपा ने बताया ‘अस्तित्व संकट’

1964 में माकपा के गठन के बाद पहली बार इस साल 15 अगस्त को पार्टी के सभी कार्यालयों में राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगा) फहराया जाएगा. सीपीआई(एम) ने कहा कि पिछले 75 वर्षों में यह पहली बार हुआ है जब हम सब महसूस कर रहे हैं कि 'आइडिया ऑफ इंडिया' खतरे में है.

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कोलकाता: इस दावे के साथ कि ‘आइडिया ऑफ इंडिया’ खतरे में है, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) अथवा माकपा ने भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में एक साल के कार्यक्रम की घोषणा की है.

साल 1964 में माकपा के गठन के बाद पहली बार इस साल 15 अगस्त को पार्टी के सभी कार्यालयों में राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगा) फहराया जाएगा. हालांकि पार्टी के भीतर तिरंगा झंडा फहराने के खिलाफ कभी कोई नियम नहीं रहा है, लेकिन माकपा नेताओं और उसके सदस्यों को शायद ही कभी ऐसा करते देखा गया हो.

पार्टी की केंद्रीय समिति द्वारा इस सोमवार को जारी एक विज्ञप्ति में इसके क़ैडर (सदस्यों) से ‘स्वतंत्रता संग्राम के वास्तविक इतिहास को पुनर्जीवित करने’ और इस महासंग्राम में कम्युनिस्टों की भूमिका को उजागर करने के उद्देश्य के साथ एक सालभर चलने वाले अभियान को शुरू करने के लिए कहा गया है.

इस विज्ञप्ति मे लिखा गया है, ‘(पार्टी की) केंद्रीय समिति ने यह फैसला किया है कि पार्टी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कम्युनिस्टों की भूमिका; आधुनिक भारत के निर्माण और ‘भारत के विचार’ (आइडिया ऑफ इंडिया) को मजबूत करने में कम्युनिस्ट पार्टी के योगदान; आरएसएस का स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पूर्ण रूप से गायब रहना एवं कभी-कभी अंग्रेजों के साथ मिलीभगत; और आज की तारीख में भारत के संवैधानिक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य की घोर अवहेलना, जैसे मुद्दों पर प्रकाश डालते हुए आज़ादी की यह सालगिरह मनाएगी.’

माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य एवं पूर्व राज्यसभा सांसद नीलोत्पल बसु ने कहा, ‘इस वर्ष, हम औपचारिक रूप से भारत के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े हुए वास्तविक मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए एक सघन एवं व्यापक अभियान शुरू करेंगे, क्योंकि, पिछले 75 वर्षों में यह पहली बार हुआ है जब हम सब महसूस कर रहे हैं कि ‘आइडिया ऑफ इंडिया’ खतरे में है.’

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यह कार्यक्रम अपने आप में इसलिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि साल 1964 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से अलग होते हुए पार्टी के गठन के बाद से यह पहला मौका होगा जब माकपा स्वतंत्रता दिवस मनाएगी.

आजादी के ठीक बाद, साल 1948 में, अविभाजित भाकपा ने ‘ये आज़ादी झूठी है’ का नारा दिया था ताकि इस बात पर ज़ोर दिया जा सके कि ‘असली आज़ादी’ एक अहिंसक संघर्ष के रास्ते हासिल नहीं की जा सकती. इस नारे के पीछे तत्कालीन भाकपा प्रमुख बी.टी. रणदीव, जिन्होंने कथित तौर पर भारत में एक सशस्त्र क्रांति के पक्ष में तर्क दिए थे, का दिमाग़ था. तब से लेकर आज तक कम्युनिस्ट पार्टियों द्वारा 15 अगस्त के कार्यक्रम को मनाने के लिए कोई आधिकारिक अथवा औपचारिक कार्यक्रम आयोजित नहीं किया गया है.

हालांकि, बसु ने इस ओर ध्यान दिलाया कि भाकपा से अलग होने के बाद, माकपा ने ‘देश की आज़ादी के बारे में गलत समझ’ की भूल को सुधार लिया था और ‘इस तरह के राजनीतिक विचार’ को त्याग दिया था.


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‘साम्यवाद का विचार (आइडिया ऑफ कम्युनिज्म) मर चुका है’

दूसरी तरफ, दक्षिणपंथी विचारकों का कहना है कि माकपा अब एक ‘राष्ट्रवादी चेहरा’ ओढ़ कर स्वयं के राजनीतिक अस्तित्व को बचाने की कोशिश कर रही है.

वरिष्ठ स्तंभकार और वर्तमान मे सूचना मंत्रालय के वरिष्ठ सलाहकार कंचन गुप्ता ने दिप्रिंट को बताया, ‘साम्यवाद का विचार मर चुका है. यही कारण है कि वे एक राष्ट्रवादी चेहरा अपनाने की कोशिश कर रहे हैं, और अपनी नीतियों और विचारधाराओं में बदलाव करके भूल सुधार कर रहे हैं.‘

गुप्ता आगे बताते हैं, ‘वे किस ‘आइडिया ऑफ इंडिया’ की बात कर रहे हैं? यह सूत्रवाक्य रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा गढ़ा गया था और यह एक यूरोपीय उदारवादी विचार था. ‘आइडिया ऑफ इंडिया’ राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक सहित कई स्तरों पर हो सकता है. वे (कम्युनिस्ट) कभी भी टैगोर में विश्वास नहीं करते थे और उन्हें बुर्जुआ-कवि कहते हैं.’

उधर, भाजपा नेताओं के अनुसार, माकपा द्वारा हाल मे की गयी यह घोषणा इस साल के विधानसभा चुनावों में उसके प्रदर्शन निराशाजनक प्रदर्शन को देखते हुए पार्टी के राजनीतिक अस्तित्व पर छाए संकट का एक लक्षण है. इस पार्टी, जिसने 34 वर्षों तक पश्चिम बंगाल पर शासन किया था, को इस राज्य के हाल में संपन्न विधानसभा चुनावों में सिर्फ़ 5 प्रतिशत वोट मिले और विधानसभा में एक भी सीट नहीं मिल पाई और इस तरह वह राज्य में राजनैतिक रूप से समाप्त सी हो गई है.’

भाजपा की पश्चिम बंगाल इकाई के अध्यक्ष और सांसद दिलीप घोष कहते हैं, ‘उनकी पार्टी के गठन के बाद से यह पहली बार हो रहा है कि माकपा भी ‘भारतीय’ बनाने की कोशिश कर रही है. यह देखना अच्छा लगता है कि मोदी ने माकपा को तिरंगा फ़हराने और स्वतंत्रता संग्राम, जिसमें यकीन करने से वे हमेशा इंकार करते थे, के लिए एक साल लंबा अभियान चलाने पर मजबूर कर दिया. यह उनका अपना अस्तित्व संकट है.’

तृणमूल कांग्रेस के प्रदेश महासचिव कुणाल घोष ने भी इस फैसले को काफ़ी देर से हुआ एहसास बताया.

इस तृणमूल नेता ने कहा, ‘उन्हें तिरंगे के महत्व का एहसास तब जाकर हुआ. जब वे बंगाल में शून्य पर पहुंच गए. उन्होंने कभी भी किसी बंगाली प्रतीक का सम्मान नहीं किया, और अब अचानक उन्हें यह एहसास हुआ. हम उनके इस कदम का स्वागत करते हैं. वे हर समय इंटरनेशनेले (एक वामपंथी गीत) गाने को स्वतंत्र हो सकते हैं, लेकिन किसी-न-किसी समय तो उन्हें हमारे राष्ट्रगान का भी सम्मान करना ही चाहिए.’

वयोवृद्ध कांग्रेस नेता प्रदीप भट्टाचार्य ने कहा कि माकपा अपने ‘हठधर्मी वाले रवैये’ में बदलाव ला रही है. और उन्हें अब लगने लगा है कि उनके अंध-राजनीतिक विचारों ने उन्हें आम लोगों से काट दिया है.

हालांकि, बसु का कहना है कि उनकी पार्टी कभी भी मूलरूप से राष्ट्रीय ध्वज का विरोध नहीं करती थी. उन्होंने कहा, ‘आरएसएस के विपरीत, हम कभी भी मूलरूप से तिरंगे के विरोधी नहीं रहे हैं. हमारी पार्टी की छवि खराब करने उद्देश्य से मीडिया और राजनीतिक दलों का एक वर्ग यह कहते हुए इस निर्णय को तोड़ने-मरोड़ने की अनावश्यक कोशिश कर रहा है कि हमने कभी राष्ट्रीय झंडा नहीं फहराया.‘

इस बीच, कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद और पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस कमिटी के प्रमुख अधीर रंजन चौधरी ने माकपा के इस कदम का स्वागत करते हुआ कहा की पार्टी अब विकसित हो रही है और उसका यह निर्णय उसे ‘लोगों के साथ और अधिक जुड़ने’ में मदद करेगा.

‘आरएसएस का आज़ादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं’

पूर्व सांसद और माकपा पोलित ब्यूरो सदस्य मोहम्मद सलीम के अनुसार, आज़ादी की लड़ाई में कम्युनिस्टों के इतिहास और उनके योगदान की याद को फिर से जिंदा करने के लिए यह सालभर चलाने वाला अभियान ज़रूरी था.

सलीम ने कहा, ‘यह पूरी तरह से लिखित तथ्य है कि आरएसएस स्वतंत्रता संग्राम के खिलाफ था और वह अंग्रेजों को भारत पर शासन करने में सहायता करता था. वे बस हिंदुओं का सैन्यीकरण चाहते थे. (आज़ादी की लड़ाई में) उनका कोई योगदान नहीं था.‘

सलीम बताते हैं, ‘लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी ने इसमें परिवर्तन लाया. इसने भूमि आंदोलन एवं वर्ग संघर्ष का आगे बढ़कर नेतृत्व किया और एक वर्गहीन समाज के बारे में बात की. दुर्भाग्य से, वही स्वतंत्रता-विरोधी ताक़त, आरएसएस, आज देश पर शासन कर रही है.’

सलीम ने आगे कहा कि इस साल भर के अभियान के हिस्से के रूप में, माकपा इससे जुड़ा साहित्य प्रकाशित करेगी, बहस, विचार-विमर्श और सम्मेलन आयोजित करेगी तथा भारत के स्वतंत्रता संग्राम और इसके पीछे के इतिहास पर गंभीर बातचीत शुरू करेगी. उनका कहना था क़ि इस तरह के कार्यक्रम पूरे देशभर में होंगे.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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