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गुरूवार, 22 मई, 2025
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दोषी करार BJP विधायक कंवरलाल मीणा को SC से भी राहत नहीं, लेकिन अभी तक अयोग्य घोषित क्यों नहीं

राहुल गांधी को मानहानि मामले में सज़ा सुनाए जाने के अगले दिन सांसद के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया, जबकि आज़म खान को नफरती भाषण के मामले में सज़ा सुनाए जाने के एक दिन बाद यूपी विधानसभा के सदस्य के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया.

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नई दिल्ली: राजस्थान हाई कोर्ट द्वारा 2005 के एक मामले में उनकी दोषसिद्धि और तीन साल की जेल की सज़ा को बरकरार रखने के लगभग तीन हफ्ते बाद — और सुप्रीम कोर्ट द्वारा उन्हें राहत देने से इनकार करने के दो हफ्ते बाद — भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता कंवरलाल मीणा राज्य विधानसभा के सदस्य बने हुए हैं और कांग्रेस ने इसे “संविधान की हत्या” करार दिया है.

जनप्रतिनिधित्व (आरपी) अधिनियम, 1951 की धारा 8(3) के मुताबिक, अगर किसी ऐसे अपराध के लिए सांसद को दोषी ठहराया गया है, जिसके लिए न्यूनतम दो साल की सज़ा हो सकती है तो किसी विधायक को अयोग्य ठहराए जाने का प्रावधान है.

पिछली लोकसभा में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को गुजरात की एक अदालत द्वारा मानहानि के एक मामले में दोषी ठहराए जाने और सज़ा सुनाए जाने के ठीक एक दिन बाद 23 मार्च 2023 को सदस्य के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया था. समाजवादी पार्टी के नेता आज़म खान को उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया था, जब रामपुर की एक एमपी-एमएलए अदालत ने उन्हें भड़काऊ भाषण के मामले में तीन साल की जेल की सज़ा सुनाई थी.

इसलिए, कंवरलाल मीणा को दोषी ठहराए जाने के 19 दिन बाद भी सदन की सदस्यता बरकरार रखने में सक्षम होना लोगों को चौंकाता है. झालावाड़ जिले के अकलेरा की एक अदालत ने मीणा को 2005 में एक सिविल सेवक को धमकाने का दोषी ठहराया और 2020 में उन्हें तीन साल जेल की सज़ा सुनाई. बाद में 2 मई को राजस्थान हाई कोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखा.

भाजपा विधायक ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया जिसने उन्हें दो हफ्ते में ट्रायल कोर्ट में आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया. बुधवार को समय सीमा समाप्त हो गई. उन्होंने एक अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया है. इस बीच, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एक समीक्षा याचिका भी दायर की है.

8 मई को मीणा की विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “निर्वाचित प्रतिनिधियों को खुद को अनुशासित करने की ज़रूरत है. यह उन दुर्लभ मामलों में से एक है, जहां किसी को दोषी ठहराया गया है, अन्यथा आप सब कुछ करते हैं और आपके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती.”

राजस्थान कांग्रेस ने आरपी अधिनियम, 1951 के प्रावधानों के तहत मीणा को अयोग्य ठहराने की मांग करते हुए स्पीकर वासुदेव देवनानी और राज्यपाल हरिभाऊ किसनराव बागड़े से संपर्क किया.

राज्य कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने सोमवार को विरोध में विधानसभा की स्थायी समितियों में से एक से इस्तीफा दे दिया. कांग्रेस के एक प्रतिनिधिमंडल ने सोमवार को राज्यपाल से मुलाकात भी की.

डोटासरा ने दिप्रिंट से कहा, “एक देश में दो तरह के कानून नहीं हो सकते. राहुल गांधी की सदस्यता 24 घंटे के भीतर समाप्त कर दी गई और राजस्थान में एक विधायक को तीन साल की सज़ा सुनाई गई. सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने भी उन्हें राहत नहीं दी. फिर भी, स्पीकर ने 19 दिनों में उन्हें अयोग्य नहीं ठहराया.”

उन्होंने कहा, “लिली थॉमस केस (2013) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जिस दिन सज़ा सुनाई जाएगी, उसी दिन सदस्यता रद्द हो जाएगी. अब 19 दिन बीत जाने के बाद भी मीणा की सदस्यता क्यों नहीं खत्म की जा रही है? विधानसभा अध्यक्ष फाइल पर बैठे हैं और उसे इधर-उधर घुमाया जा रहा है.”

डोटासरा ने दावा किया कि अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल के माध्यम से विधायक को माफ करने का प्रयास किया जा रहा है, “लेकिन मीणा मामले में नियम 161 लागू नहीं होता. मुख्यमंत्री भी इस संबंध में राज्यपाल के पास गए थे. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि विधायक को दो हफ्ते में सरेंडर करना होगा. अब दो हफ्ते भी पूरे हो गए हैं. उन्होंने कानून का मज़ाक उड़ाया है.”


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2005 का मामला

3 फरवरी, 2005 को, मीणा ने तत्कालीन एसडीएम राम निवास मेहता को बंदूक की नोक पर धमकाया और मनोहर थाने के पास खाताखेड़ी गांव में उप सरपंच पद के लिए पुनर्मतदान की सिफारिश करने का दबाव बनाया.

मीणा ने रिवॉल्वर निकाली और मेहता से दो मिनट के भीतर पुनर्मतदान की घोषणा करने को कहा. एसडीएम ने मीणा से कहा कि रिवॉल्वर से जान जा सकती है, लेकिन पुनर्मतदान नहीं हो सकता.

जहां ट्रायल कोर्ट ने शुरू में मीणा को बरी कर दिया, वहीं अकलेरा में अतिरिक्त जिला न्यायाधीश (एडीजे) अदालत ने उन्हें 2020 में दोषी करार देते हुए तीन साल की सज़ा और 3 लाख रुपये का जुर्माना लगाया.

मीणा 2023 में भी वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह के इशारे पर कथित तौर पर भाजपा विधायक ललित मीणा के अपहरण मामले में चर्चा में रहे, उस समय जब राज्य में मुख्यमंत्री चुनने के लिए राजनीतिक गतिविधियां चल रही थीं.

राहुल से आज़म तक: जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत अयोग्य ठहराए गए नेता

गांधी को 2019 में एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उपनाम पर की गई टिप्पणी के लिए सूरत की एक अदालत ने आपराधिक मानहानि का दोषी पाया था और 23 मार्च 2023 को दो साल की जेल की सज़ा सुनाई गई थी. उन्हें ज़मानत मिल गई और अपील करने के लिए 30 दिन का समय दिया गया, लेकिन अदालत ने उनकी सज़ा को निलंबित नहीं किया.

लोकसभा सचिवालय ने 24 मार्च को वायनाड के सांसद की अयोग्यता का नोटिस जारी किया.

13 अक्टूबर 2015 को जारी एक नोट में, चुनाव आयोग ने राज्य के मुख्य सचिवों से संबंधित विभागों को निर्देश देने के लिए कहा कि वे सुनिश्चित करें कि मौजूदा सांसदों या विधायकों की दोषसिद्धि के मामलों को स्पीकर या सदन के अध्यक्ष के संज्ञान में लाया जाए.

2013 से अब तक एक दर्जन से अधिक विधायकों को इस अधिनियम के तहत अयोग्य ठहराया जा चुका है, जब सुप्रीम कोर्ट ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(4) के तहत राहत को खारिज कर दिया था, जिसमें दोषी सांसदों और विधायकों को अपील करने और अपनी सदस्यता बचाने के लिए तीन महीने का समय दिया गया था.

लालू प्रसाद (चारा घोटाला), दिवंगत जयललिता (आय से अधिक संपत्ति मामला) और एनसीपी सांसद मोहम्मद फैजल (हत्या के प्रयास का मामला) जैसे वरिष्ठ नेता इस अधिनियम के तहत अयोग्य ठहराए गए सांसदों में शामिल थे. गांधी और फैजल का निलंबन बाद में रद्द कर दिया गया.

‘संविधान में समय-सीमा के बारे में कोई प्रावधान नहीं’

मीणा के करीबी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की समय-सीमा के अनुसार बुधवार को आत्मसमर्पण कर दिया. “अब गेंद राज्यपाल और न्यायालय के पाले में है. संविधान में स्पीकर द्वारा कार्रवाई करने की समय-सीमा के बारे में कोई प्रावधान नहीं है.”

मीणा के सहयोगियों ने इस बात से भी इनकार किया कि विधायक ने राज्यपाल से उन्हें क्षमादान देने का अनुरोध किया है. उन्होंने दावा किया कि विधायक सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतज़ार कर रहे हैं.

राजस्थान भाजपा प्रवक्ता लक्ष्मीकांत भारद्वाज ने कहा कि अयोग्यता का मुद्दा स्पीकर और संबंधित विधायक के बीच है. “और स्पीकर को उनकी अयोग्यता पर फैसला लेना है. हो सकता है कि विधायक अपने अंतिम कानूनी विकल्पों पर विचार कर रहे हों.”

स्पीकर वासुदेव देवनानी के करीबी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया, “स्पीकर ने कानूनी विशेषज्ञों से सलाह ली है और इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतज़ार कर रहे हैं. इससे फैसले में देरी हो रही है.”

लेकिन कांग्रेस प्रवक्ता स्वर्णिम चतुर्वेदी ने पूछा, “उन्हें कानूनी विकल्प तलाशने के लिए इतना समय क्यों दिया जा रहा है? उन्हें तुरंत अयोग्य क्यों नहीं घोषित किया गया? स्पीकर उनकी सुप्रीम कोर्ट में समीक्षा याचिका का इंतज़ार क्यों कर रहे हैं? यह संविधान की हत्या है. भाजपा नेताओं और विपक्षी नेताओं के लिए अलग-अलग कानून नहीं हो सकते.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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