करीमनगर: आंध्र प्रदेश के दिवंगत नेता वाई.एस. राजशेखर रेड्डी की पुत्री वाई.एस. शर्मिला, जिन्होंने पिछले साल अपने भाई और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी के समर्थन के बिना ही वाईएसआर तेलंगाना पार्टी (वाईएसआरटीपी) को लांच कर दिया था- ने अब कहा है कि जगन का समर्थन कोई मायने नहीं रखता है और वह साल 2023 के तेलंगाना विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी को राज्य की सभी 119 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ाने का लक्ष्य बना रही हैं.
दिप्रिंट के साथ एक विशेष साक्षात्कार में शर्मिला ने कहा कि वाईएसआरटीपी साल 2023 के चुनाव में सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) की प्रमुख प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभरेगी. यह राज्य में कोई गठबंधन किये बिना ही चुनाव लड़ेगी.
शर्मिला का कहना है कि उन्होंने अपने दिवंगत पिता और अविभाजित आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाई.एस. राजशेखर रेड्डी (वाईएसआर) की विरासत और शासन प्रणाली को वापस लाने के एकमात्र उद्देश्य के साथ ही वाईएसआरटीपी की स्थापना की है.
उन्होंने कहा, ‘शुरुआत में कई सारे लोगों ने मुझे (यह कहते हुए) खारिज कर दिया था कि वाईएसआर का जमाना एक बीते समय वाला युग है और वह अब तेलंगाना में उतने प्रचलित नहीं है, लेकिन मुझे अपनी पदयात्रा के दौरान बहुत गर्मजोशी और प्यार मिला. वाईएसआर की बेटी होना मेरे लिए सिर्फ एक लॉन्चपैड होगा. वास्तव में तो लोग मेरी क्षमता ही देखेंगे.’
बता दें कि शर्मिला पिछले साल अक्टूबर से ही तेलंगाना में पदयात्रा पर हैं. अब तक, वह 3,300 किमी चल चुकी हैं और राज्य के 64 निर्वाचन क्षेत्रों का दौरा कर चुकी हैं. उन्होंने कहा, ‘मैं कह सकती हूं कि जब से हमने यह पदयात्रा शुरू की है, वाईएसआरटीपी की दृश्यता का ग्राफ राज्य में काफी बढ़ गया है.’
हालांकि, इस पार्टी के पास अभी शर्मिला के अलावा बमुश्किल से कोई और पहचानने योग्य चेहरा है और यह तेलंगाना के राजनीतिक क्षेत्र में खुद के लिए जगह बनाने का प्रयास कर रही है, जहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और टीआरएस एक दूसरे के कट्टर प्रतिद्वंद्वी बन गए हैं और कांग्रेस अपनी स्थिति बचाये रखने भर के लिए संघर्ष कर रही है.
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वाईएसआर का बंटा हुआ परिवार?
उनकी राजनीतिक यात्रा के लिए उनके भाई के समर्थन के बारे में पूछे जाने पर शर्मिला ने इस बात पर जोर दिया कि उन्होंने (शर्मिला ने) उनकी (जगन की) ‘कितनी’ मदद की लेकिन यह भी कहा कि उन्हें इसका प्रतिफल नहीं मिला.
शर्मीला ने कहा, ‘यह (जगन का समर्थन) मायने नहीं रखता. अब, हम किसी को जो मदद देते हैं, उसका यह मतलब नहीं है कि वे बदले में हमारी भी मदद करेंगे. आप वह करते हैं जो आप अपने निर्णय के आधार पर करना चाहते हैं और दूसरा व्यक्ति जो करता है वह पूरी तरह से उसके ऊपर है. मैं इसके बारे में कोई शर्त नहीं रखने जा रही हूं.’
साल 2013 में जब उनके भाई भ्रष्टाचार के आरोपों के साथ जेल में बंद थे, तो शर्मिला ने वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी)- जिसे जगन ने साल 2009 में अपने पिता की आकस्मिक मृत्यु के बाद कांग्रेस पार्टी से अलग होकर बनाया था- के लिए प्रचार करते हुए आंध्र प्रदेश में एक पदयात्रा की थी. उन्होंने आंध्र प्रदेश के 2019 के विधानसभा चुनावों के दौरान भी उनके लिए प्रचार किया था.
मगर, (इन सब के बावजूद) शर्मिला को जगन के मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया. वास्तव में, उन्होंने कभी चुनाव ही नहीं लड़ा और यह अटकल भी कभी पूरी नहीं हुई कि उन्हें राज्य सभा की सीट मिलेगी.
जब शर्मिला ने पिछले साल वाईएसआरटीपी की स्थापना की थी, तो आंध्र प्रदेश सरकार और वाईएसआरसीपी ने कहा था कि दोनों भाई-बहन के बीच ‘वैचारिक मतभेद’ है और उन्होंने जगन की सलाह के खिलाफ यह पार्टी बनाई है.
इन ‘मतभेदों’ के बारे में चर्चा करते हुए शर्मिला ने कहा, ‘हर किसी की अपनी प्राथमिकताएं होती हैं. जब वह आंध्र के सीएम होंगे तो उन्हें हमेशा अपने लोगों का पक्ष लेना होगा. सिर्फ इसलिए कि उनके परिवार का एक सदस्य तेलंगाना में है, अगर वह उस व्यक्ति का पक्ष लेते हैं, तो यह उनकी प्राथमिकताओं से टकराएगा— जो, स्वाभाविक कारणों से शायद उन्हें पसंद न आए. लेकिन, मुझे उनसे बंधे रहने की जरूरत नहीं है. मेरा अपना जीवन है, मेरा अपना क्षेत्र है और मुझे अपने निर्णय लेने का अधिकार है.’
परिवार के करीबी सूत्रों के अनुसार, त्योहारों और अन्य अवसरों पर एक समय में नियमित रूप से होने वाली पारिवारिक बैठकें अब कम हो गई हैं.
शर्मिला ने कहा कि आखिरी बार वह अपने भाई से जुलाई में उनके पिता की जयंती पर मिली थीं. उन्होंने बताया, ‘हम (जगन और मैं) अपने पिता की जयंती पर मिले थे और हमने साथ में डिनर किया था. यह एक अच्छी बातचीत थी और तभी मैंने उन्हें आखिरी बार देखा था. बस इतना ही है.’
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‘क्या मैं अपने दम पर खड़ी नहीं हो सकती?
अपनी पार्टी के भाजपा की ‘बी-टीम’ होने के आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए शर्मिला ने तर्क दिया कि अगर ऐसा होता, तो वह अपनी पार्टी लॉन्च करने और तेलंगाना में इसे स्थापित करने के लिए संघर्ष करने के बजाय बस भाजपा या कांग्रेस में शामिल हो जातीं.
वे पूछती हैं, ‘क्या मैं अपने दम पर (खड़ी) नहीं हो सकती? अगर मेरा किसी पार्टी में शामिल होने की तरफ कोई झुकाव होता, तो क्या मेरे लिए किसी बड़े राजनीतिक दल में शामिल हो जाना आसान नहीं होता? अगर मैं (तेलंगाना में) कांग्रेस या भाजपा में शामिल हो गयी होती तो क्या मेरा जीवन इससे बहुत आसान नहीं होता? इन सब से गुजरने के लिए मैं एक राजनीतिक पार्टी क्यों शुरू करूंगी? यह सिर्फ हास्यास्पद है. मैं किसी के लिए कोई ‘प्लान बी’ नहीं हूं, मैं किसी के लिए काम नहीं करती. अगर मैं भाजपा या कांग्रेस के साथ होती, तो क्या मैं वाईएसआर के बारे में इतनी बात कर पाती, जैसे मैं अभी कर पा रही हूं.‘
शर्मिला मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव, जिन्हें केसीआर के नाम से भी जाना जाता है, के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ टीआरएस की कट्टर आलोचक रही हैं. पिछले महीने, उन्होंने तेलंगाना सरकार की विशाल कालेश्वरम लिफ्ट सिंचाई परियोजना के बारे में यह आरोप लगाते हुए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच की मांग की कि बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार ने इसकी लागत को तीन गुना- 40,000 करोड़ रुपये से 1.2 लाख करोड़ रुपये- तक बढ़ा दिया है. बाद में, उन्होंने नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) के पास भी इस परियोजना के बारे में शिकायत दर्ज करवाई.
हालांकि, शर्मिला का लक्ष्य तेलंगाना में 2023 में सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ना है लेकिन उनकी पार्टी इस महीने की शुरुआत में बड़े शोर-शराबे के साथ हुए मुनुगोडू उपचुनाव में खड़ी नहीं हुई थी. शर्मिला ने कहा कि उन्होंने उपचुनाव नहीं लड़ने का फैसला इसलिए किया क्योंकि यह ‘अनैतिक’ तरीके से हुआ था और भाजपा और टीआरएस के बीच एक ‘डॉग फाइट’ जैसा बन गया था. केसीआर की पार्टी ने भाजपा के मुकाबले बहुत कम अंतर से यह चुनाव जीता था.
राज्य के विपक्षी दलों पर हमला बोलते हुए शर्मिला ने कहा कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां टीआरएस के विकल्प के रूप में उभरने में नाकाम रही हैं. उन्होंने दावा किया, ‘भाजपा जो राजनीति करती है. वह या तो धर्म के नाम पर नफरत की राजनीति करती है या दल-बदल वाली राजनीति है. वे एक ऐसे विधायक को पकड़ते हैं जो पाला बदलने को तैयार है. फिर वे एक उपचुनाव करवाते हैं, बहुत पैसा खर्च करते हैं, अपने विशाल भाजपा बल को भेजते हैं और इस तरह का प्रचार करने की कोशिश करते हैं कि वे एक विकल्प हैं.’
उन्होंने सवालिया लहजे में कहा, ‘अगर भाजपा में थोड़ी भी ईमानदारी है, तो उन्हें कालेश्वरम परियोजना की जांच करवानी चाहिए. वे किस मुंह के साथ हमारे राज्य में आते हैं और कहते हैं कि कालेश्वरम में भ्रष्टाचार है और फिर भी इसकी जांच नहीं करते हैं.’
(अनुवाद: रामलाल खन्ना | संपादन: कृष्ण मुरारी)
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