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Friday, 29 March, 2024
होमराजनीति‘ज़मीर बेच दिया’—महीनों की खामोशी के बाद JD (U) के RS के उपसभापति हरिवंश से दूरी के क्या हैं कारण

‘ज़मीर बेच दिया’—महीनों की खामोशी के बाद JD (U) के RS के उपसभापति हरिवंश से दूरी के क्या हैं कारण

जद (यू) के पिछले साल बीजेपी से नाता तोड़ने के बावजूद हरिवंश नारायण राज्यसभा के उपसभापति बने रहे. अब उनकी पार्टी नए संसद भवन के उद्घाटन में शामिल होने के उनके फैसले से नाराज़ है.

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पटना: राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने नए संसद भवन के उद्घाटन में शामिल होने के बाद अपनी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) को छोड़ दिया है. इस कार्यक्रम का बहिष्कार करने वाले जद (यू) ने उन पर “अपना ज़मीर बेचने” का आरोप लगाया है, लेकिन अब तक उनके खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने से परहेज किया है.

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) द्वारा 2008 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद लोकसभा अध्यक्ष के रूप में इस्तीफा देने की अपनी पार्टी की इच्छा की अवज्ञा के विकास में स्वर्गीय सोमनाथ चटर्जी की गूंज है. चटर्जी ने उस समय तर्क दिया था कि स्पीकर को निर्दलीय रहना चाहिए. हालांकि, सीपी(एम) ने बाद में उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया, लेकिन वे अध्यक्ष बने रहे.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जद (यू) ने अपने सांसद के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से नाता तोड़ने के बावजूद राज्यसभा के उपसभापति के रूप में बने रहने पर लगभग 10 महीने की चुप्पी के बाद अपनी बात रखी है.

जद (यू) के प्रवक्ता नीरज कुमार ने दिप्रिंट से कहा, “हरिवंश ने अपने पद पर बने रहने के लिए अपना ज़मीर बेच दिया है. जिस दिन उनकी पार्टी नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह का विरोध करने के लिए धरना दे रही थी, वे न केवल इसमें सक्रिय रूप से भाग ले रहे थे, बल्कि पीएम की प्रशंसा भी कर रहे थे.”

उद्घाटन के बाद रविवार को नए संसद भवन में सभा को संबोधित करते हुए हरिवंश नारायण ने कहा, “यह बेहद खुशी की बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2.5 साल से भी कम समय में एक नए आधुनिक संसद भवन का निर्माण किया गया.”

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जद (यू) के प्रवक्ता कुमार, एमएलसी, ने कहा कि पार्टी ने उम्मीद की थी कि हरिवंश नारायण समारोह से दूर रहेंगे, “विशेष रूप से बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने घोषणा की थी कि नए संसद भवन की कोई ज़रूरत नहीं है.”

उन्होंने आगे कहा कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष (ललन सिंह) को उनके (हरिवंश) के निष्कासन पर कोई फैसला लेना है.

दिप्रिंट ने फोन कॉल के जरिए हरिवंश नारायण से संपर्क की कोशिश की थी, लेकिन कोई जवाब नहीं मिल पाया. हालांकि, उनके करीबी सहयोगी ने कहा कि चूंकि राज्यसभा के उपसभापति एक संवैधानिक पद पर हैं, इसलिए “उनके लिए टिप्पणी करना अनुचित होगा”.

सहयोगी ने कहा, “हरिवंशजी ने पिछले साल जद (यू) के वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह द्वारा लगाए गए आरोपों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी कि 2017 में नीतीश कुमार के लालू से भाजपा में जाने के मुख्य सूत्रधारों में से एक उप-सभापति थे.”


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एक पेचीदा स्थिति

जद (यू) हरिवंश नारायण को लेकर असमंजस में है—जिन्हें उन्होंने 2018 में भाजपा के साथ गठबंधन में रहते हुए राज्यसभा का उपाध्यक्ष बनाया था—जब से पार्टी ने पाला बदला और पिछले साल अगस्त में लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से हाथ मिला लिया.

जद (यू) के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “चूंकि हरिवंशजी एक संवैधानिक पद पर हैं, इसलिए वे पार्टी की इच्छाओं को मानने के लिए बाध्य नहीं हैं. अगर नीतीशजी ने उन्हें पद छोड़ने के लिए कहा होता और हरिवंशजी ने इससे इनकार कर दिया होता, तो इसका मतलब सार्वजनिक अपमान होता.”

पार्टी के भीतर के सूत्रों ने संकेत दिया कि जब से नीतीश कुमार ने भाजपा छोड़ी है, तब से उनके और हरिवंश के साथ उनका कोई संवाद नहीं हुआ है.

उक्त सूत्र ने दिप्रिंट से कहा, “पिछले साल दिसंबर में हरिवंश पटना पुस्तक मेले में अपनी पुस्तक का प्रचार करने के लिए पटना आए थे. हरिवंश ने बिहार के मुख्यमंत्री से मिलने का समय मांगा था, लेकिन उन्हें नज़रअंदाज़ कर दिया गया.”

जद (यू) के एक अन्य नेता ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा, “ऐसा लगता है कि हरिवंश पार्टी से निष्कासन का सामना करने के लिए तैयार हैं और वे पहले ही पीएम नरेंद्र मोदी की ओर झुक चुके हैं.”

प्रशांत किशोर ने डाला आग में घी

पूर्व चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने जद (यू) के घावों पर नमक छिड़का है. नए संसद भवन के उद्घाटन से एक दिन पहले किशोर ने अपनी ‘राजनीतिक पहल’ जन सुराज यात्रा के जरिए, एक महीने से अधिक समय पहले दिए गए अपने ही बयान को दोहराया. उन्होंने दावा किया कि 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए एक एकीकृत विपक्ष बनाने के नीतीश कुमार के प्रयासों में विश्वसनीयता की कमी है.

किशोर ने समस्तीपुर में शनिवार को कथित तौर पर कहा, “नीतीश कुमार भाजपा के साथ अपना चैनल खुला रख रहे हैं. हरिवंश नारायण सिंह जद (यू) के सांसद हैं, लेकिन उनके (नीतीश) के भाजपा छोड़ने के बाद, उन्हें (हरिवंश) अपने पद पर बने रहने की अनुमति दी गई है. पार्टी ने उनसे इस्तीफा देने के लिए नहीं कहा है.”


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पत्रकार, पीएम के मीडिया सलाहकार, राज्यसभा सांसद

हरिवंश नारायण, (67) उत्तर प्रदेश के बलिया से हैं और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्र शेखर के करीबी रहे हैं, जिनके छोटे कार्यकाल (नवंबर 1990 से जून 1991) के दौरान उन्होंने उनके मीडिया सलाहकार के रूप में कार्य किया. उनके पास एक पत्रकार के रूप में पहले कोलकाता स्थित एक हिंदी साप्ताहिक में और फिर रांची में एक हिंदी समाचार पत्र में काम करने का 40 वर्षों का अनुभव है.

बिहार के लिए विशेष दर्जे की सीएम की मांग का समर्थन करने के बाद वे नीतीश कुमार के करीबी बन गए. 2014 में हरिवंश को भारत के वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एन के सिंह के स्थान पर जद (यू) का राज्यसभा सांसद बनाया गया था.

2018 में हरिवंश विपक्ष के उम्मीदवार को हराकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के समर्थन से राज्यसभा के उपसभापति चुने गए थे. 2020 में उन्हें राज्यसभा के लिए और फिर इसके उपाध्यक्ष के रूप में दोबारा से चुना गया.

हरिवंश, इसके बाद पवन वर्मा एन के सिंह और प्रशांत किशोर जैसे नेताओं के एक समूह में शामिल हो गए, जिन्हें नीतीश कुमार जद (यू) में लाए थे, लेकिन तब से उनका बिहार के मुख्यमंत्री से मोहभंग हो गया है.

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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