नई दिल्ली: कांग्रेस ने शनिवार को गाजा में संघर्षविराम की मांग वाले संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव से भारत के दूर रहने को “आश्चर्यजनक नैतिक कायरता” बताया और पूछा कि क्या केंद्र की बीजेपी सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के “सिद्धांतों पर आधारित रुख” को छोड़ दिया है.
कांग्रेस के शीर्ष नेताओं, जिनमें पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा और महासचिव (संगठन) के.सी. वेणुगोपाल शामिल हैं, ने सरकार पर समन्वित हमला बोला और कहा कि इस फैसले से साफ है कि “विदेश नीति पूरी तरह से बिखर चुकी है”.
वाड्रा ने एक कदम आगे बढ़ते हुए कहा कि शुक्रवार को ईरान पर इजरायल का हमला उसकी संप्रभुता का उल्लंघन है और अंतरराष्ट्रीय मानकों का पूरी तरह से उल्लंघन करता है.
12 जून को, भारत उन 19 देशों में शामिल था जिन्होंने मतदान से दूरी बनाई, जबकि 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा में से 149 देशों ने ‘नागरिकों की सुरक्षा और कानूनी व मानवीय दायित्वों को बनाए रखने’ वाले प्रस्ताव का समर्थन किया.
न्यूयॉर्क से पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के स्थायी प्रतिनिधि परवथनेनी हरीश ने कहा कि भारत का यह वोट उसके पिछले रुख की निरंतरता में है और “इस विश्वास पर आधारित है कि संघर्षों को सुलझाने का कोई दूसरा तरीका नहीं है सिवाय बातचीत और कूटनीति के. एक संयुक्त प्रयास दोनों पक्षों को करीब लाने की दिशा में होना चाहिए.”
प्रस्ताव में मांग की गई थी कि इजरायल, जो “कब्जा करने वाली शक्ति” है, तुरंत नाकेबंदी खत्म करे, सभी सीमा चौकियों को खोले और यह सुनिश्चित करे कि मानवीय सहायता गाजा पट्टी के पूरे क्षेत्र में फिलिस्तीनी नागरिकों तक तुरंत और व्यापक स्तर पर पहुंचे, जैसा कि अंतरराष्ट्रीय कानून और मानवीय सिद्धांतों के तहत उसका दायित्व है.
यह चौथी बार है जब अक्टूबर 2023 से अब तक भारत ने फिलिस्तीन पर संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव से दूरी बनाई है. इजरायल का सैन्य हमला गाजा में तब शुरू हुआ जब 7 अक्टूबर 2023 को हमास ने इजरायली क्षेत्र पर हमला किया था.
एक्स पर खड़गे ने पूछा कि क्या भारत ने पश्चिम एशिया और मध्य-पूर्व में संघर्षविराम, शांति और संवाद की अपनी स्थायी नीति से दूरी बना ली है?
“अब यह साफ दिख रहा है कि हमारी विदेश नीति बिखर चुकी है. शायद, प्रधानमंत्री मोदी को अब अपने विदेश मंत्री की बार-बार की गलतियों पर निर्णय लेना चाहिए और कुछ जवाबदेही तय करनी चाहिए. 149 देशों ने गाजा में संघर्षविराम के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव के पक्ष में वोट किया. भारत उन 19 देशों में था, जिन्होंने इससे दूरी बनाई. इस कदम से हम लगभग अलग-थलग पड़ गए हैं,” उन्होंने लिखा.
It is now increasingly evident that our Foreign Policy is in shambles. Perhaps, PM Modi must now take a call on his EAM’s repeated blunders and set some accountability.
149 countries voted for a UNGA resolution for a ceasefire in Gaza. India was only one of the 19 countries…
— Mallikarjun Kharge (@kharge) June 14, 2025
एक्स पर वेणुगोपाल ने लिखा कि भारत हमेशा शांति, न्याय और मानव गरिमा के पक्ष में खड़ा रहा है, लेकिन आज वह “गाजा में संघर्षविराम की मांग वाले संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव से दूरी बनाने वाला दक्षिण एशिया, ब्रिक्स और एससीओ का अकेला देश है.” ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन बहुपक्षीय संस्थाएं हैं जिनके सदस्य के रूप में भारत शामिल है.
“60,000 लोग मारे गए. जिनमें से ज्यादातर महिलाएं और बच्चे हैं. हजारों लोग भूखे हैं. अंतरराष्ट्रीय सहायता को रोका गया है. एक मानवीय संकट सामने आ रहा है. क्या भारत ने युद्ध, नरसंहार और न्याय के खिलाफ अपने सिद्धांत आधारित रुख को छोड़ दिया है? विदेश मंत्रालय को बताना चाहिए: पिछले छह महीनों में ऐसा क्या बदल गया कि भारत संघर्षविराम का समर्थन करने से हटकर दूरी बनाने तक पहुंच गया? हम जानते हैं कि इस सरकार को नेहरूजी की विरासत की ज्यादा परवाह नहीं है, लेकिन वाजपेयीजी के सिद्धांत आधारित फिलिस्तीन के रुख को क्यों छोड़ दिया गया?” वेणुगोपाल ने पोस्ट किया.
India has always stood for peace, justice, and human dignity. But today, India stands alone as the only country in South Asia, BRICS, and SCO to abstain on a UNGA resolution demanding a ceasefire in Gaza.
60,000 killed. Most of them women and children. Thousands starving.…
— K C Venugopal (@kcvenugopalmp) June 14, 2025
वह इस बात का ज़िक्र कर रहे थे कि केंद्र की पिछली सरकारों, जिनमें वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार भी शामिल है, ने हमेशा फिलिस्तीन के समर्थन में भारत की दीर्घकालिक नीति को बनाए रखा है.
इसके अलावा, 11 दिसंबर 2024 को भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के एक प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया था, जिसमें गाजा में तुरंत, बिना शर्त और स्थायी संघर्षविराम की मांग की गई थी और सभी बंधकों की तुरंत और बिना शर्त रिहाई की भी बात कही गई थी.
कांग्रेस के मीडिया और प्रचार विभाग के अध्यक्ष पवन खेड़ा ने भी यूएनजीए वोटिंग पर भारत के अलग रहने की आलोचना की. उन्होंने कहा कि यह “दिसंबर 2024 में गाजा में स्थायी संघर्षविराम के समर्थन में भारत के वोट से डरपोक पलटी है, जिससे यह साबित होता है कि मोदी सरकार को कुछ याद नहीं रहता, वह किसी सिद्धांत पर नहीं टिकती और केवल फोटो खिंचवाने के मौके तलाशती है, चाहे वे खून से सने हाथ मिलाने वाले ही क्यों न हों.”
खेड़ा ने एक्स पर लिखा, “12 जून 2025 को गाजा संघर्षविराम पर यूएन में भारत का वोट से अलग रहना एक बेहद शर्मनाक नैतिक कायरता का काम है – यह हमारे उपनिवेश-विरोधी अतीत और स्वतंत्रता संग्राम के मूल्यों से गद्दारी है… वैश्विक नेतृत्व चुप्पी और चापलूसी से नहीं बनता. अगर हम चाहते हैं कि हमारी आवाज़ वैश्विक मंच पर मायने रखे, तो हमें तब बोलने का साहस दिखाना होगा जब सबसे ज़्यादा ज़रूरत हो.”
भारत पहला गैर-अरब देश था जिसने 1974 में फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (PLO) को “फिलिस्तीनी जनता का एकमात्र वैध प्रतिनिधि” के रूप में मान्यता दी थी. भारत ने 1988 में फिलिस्तीन की राज्य के रूप में औपचारिक मान्यता दी थी.
“जैसे ही इज़राइल ने पश्चिम एशिया में आग लगा दी है – गाजा, वेस्ट बैंक, लेबनान, सीरिया, यमन और अब ईरान पर बमबारी करके – मोदी की मिलीभगत ने भारत की अंतरात्मा को छोड़ दिया है,” खेड़ा ने शुक्रवार को ईरान पर इज़राइल के हमले का हवाला देते हुए कहा, जो संभवतः उसके परमाणु ठिकानों को नुकसान पहुंचाने के लिए किया गया था.
India’s June 12, 2025, UN abstention on the Gaza ceasefire comes as an act of staggering moral cowardice – a shameful betrayal of our anti-colonial legacy and the values of our own freedom struggle.
India once stood tall for Palestine – becoming the first non-Arab state to…
— Pawan Khera 🇮🇳 (@Pawankhera) June 14, 2025
गाज़ा पर इज़राइल के हमले को लेकर लगातार आलोचना करने वाली वाड्रा ने कहा कि यूएनजीए में भारत के रुख के लिए कोई भी तर्क नहीं है. उन्होंने इसे भारत की उपनिवेश-विरोधी विरासत से “दुखद पलटी” बताया.
“यह शर्मनाक और निराशाजनक है कि हमारी सरकार ने गाज़ा में नागरिकों की सुरक्षा और कानूनी व मानवीय ज़िम्मेदारियों को बनाए रखने के लिए लाए गए यूएन प्रस्ताव पर वोट नहीं दिया. 60,000 लोग मारे जा चुके हैं, जिनमें ज़्यादातर महिलाएं और बच्चे हैं, पूरी की पूरी आबादी को कैद करके भूखा मारा जा रहा है, और हम कोई रुख अपनाने से इनकार कर रहे हैं.
यह हमारी उपनिवेश-विरोधी विरासत से एक दुखद पलटी है. वास्तव में, हम न केवल चुप बैठे हैं जबकि श्री नेतन्याहू एक पूरे देश का सफाया कर रहे हैं, बल्कि जब उनकी सरकार ईरान पर हमला कर रही है और उसके नेताओं की हत्या कर रही है—उसकी संप्रभुता का खुला उल्लंघन करते हुए और सभी अंतरराष्ट्रीय मानकों को तोड़ते हुए—तो हम उसका उत्साह भी बढ़ा रहे हैं,” वाड्रा ने एक्स पर लिखा.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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