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Wednesday, 18 December, 2024
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कांग्रेस के प्रति वफ़ादार, मोदी को पुरस्कार- तिलक स्मारक ट्रस्ट और स्वतंत्रता सेनानी के परिवार की राजनीति

पीएम मोदी को लोकमान्य तिलक राष्ट्रीय पुरस्कार देने का तिलक परिवार का फैसला कांग्रेस नेताओं को पसंद नहीं आया. हालांकि, तिलक के परपोते और कांग्रेस नेता रोहित तिलक ने उन अफवाहों का खंडन किया है कि वह बीजेपी में जा सकते हैं.

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मुंबई: तिलक परिवार के सदस्यों द्वारा संचालित तिलक स्मारक मंदिर ट्रस्ट, जो काफी हद तक कांग्रेस की विचारधारा से ताल्लुक रखता है, ने अपना वार्षिक लोकमान्य तिलक नेशनल अवार्ड प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देने का निर्णय लेकर एक बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया है.

ट्रस्ट हर साल 1 अगस्त को स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक की पुण्य तिथि पर पुरस्कार देता है.

कांग्रेस की पुणे इकाई ने ऐसे समय में पीएम मोदी को पुरस्कार देने के ट्रस्ट के फैसले पर सवाल उठाया है जब पार्टी मणिपुर में जातीय हिंसा और केंद्रीय जांच एजेंसियों के कथित दुरुपयोग जैसे मुद्दों पर मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को घेरने का प्रयास कर रही है. 

इससे कांग्रेस के भीतर एक आंतरिक लड़ाई छिड़ गई है, जिसमें तिलक परिवार और पार्टी के महाराष्ट्र महासचिव रोहित तिलक एक तरफ हैं, और सभी कार्यकर्ता दूसरी तरफ हैं.

कांग्रेस की पुणे शहर यूनिट के अध्यक्ष अरविंद शिंदे ने सोमवार को एक वीडियो जारी कर कहा कि पार्टी महाराष्ट्र में अन्य विपक्षी दलों, जैसे राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) और शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे गुट) के साथ कांग्रेस मिलकर काम कर रही है. मंगलवार को सभी पार्टी मोदी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी करेंगे.

उन्होंने कहा, “लोकमान्य तिलक राष्ट्रीय पुरस्कार स्वीकार करने से पहले, किसी को यह सोचना चाहिए कि क्या उन्होंने तिलक की किसी शिक्षा का पालन किया है. मैं पुणे के लोगों से अपील कर रहा हूं कि यदि आप अपने घर पर काला झंडा लगा सकते हैं, तो ऐसा करें. साथ ही अपने शरीर में काला गुब्बारा बांधें.” 

उन्होंने आगे कहा, “जब मणिपुर को प्रधानमंत्री की आवश्यकता है, तो उनका पुणे में पुरस्कार लेने आना बिल्कुल भी शोभा नहीं देता है. इसलिए, पुणे शहर प्रधानमंत्री मोदी का स्वागत नहीं करेगा.” 

पुणे स्थित कई कांग्रेस नेताओं ने दिप्रिंट को बताया कि मोदी को प्रतिष्ठित पुरस्कार देने के तिलक स्मारक मंदिर ट्रस्ट के फैसले ने बाल गंगाधर तिलक के परपोते रोहित तिलक के बीजेपी में जाने की अटकलें को बढ़ा दिया है. 

हालांकि, इन अफवाहों के बारे में दिप्रिंट से बात करते हुए, तिलक स्मारक मंदिर ट्रस्ट के उपाध्यक्ष रोहित तिलक ने सोमवार को कहा: “इसमें कोई सच्चाई नहीं है. और इस पुरस्कार को किसी तरह की राजनीतिक अटकलों से नहीं जोड़ा जाना चाहिए क्योंकि यह एक गैर-राजनीतिक कार्य है.”

उन्होंने कहा, “पहले भी हमने विभिन्न राजनीतिक पृष्ठभूमि के लोगों के साथ-साथ अन्य प्रतिष्ठित लोगों को सम्मानित किया है.”

रोहित तिलक ने यह भी कहा कि मोदी के ‘आत्मनिर्भर’ राष्ट्र के आह्वान से वह ट्रस्टियों की “सर्वसम्मत पसंद” थे, जो लोकमान्य तिलक के ‘स्वदेशी’ दर्शन के अनुरूप है. सरकार की नई शिक्षा नीति सहित, भारतीय सांस्कृतिक जड़ों पर गर्व करने जैसे विषयों के कारण यह तिलक के विचार से मेल खाते हैं. उन्होंने कहा, “ये सभी विचार लोकमान्य तिलक के थे.”

पुरस्कार समारोह में विरोधी नेता भी मंच पर मौजूद होंगे.

पीएम मोदी न केवल महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और डिप्टी सीएम देवेंद्र फड़नवीस, अजीत पवार के साथ मंच साझा करेंगे, बल्कि एनसीपी प्रमुख शरद पवार भी मंच पर मौजूद होंगे. शरद पवार को कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया है.

अजीत पवार की बगावत के बाद यह यह पहली बार होगा कि वह शरद पवार के साथ एक मंच पर होंगे. इस महीने की शुरुआत में अजित पवार ने अपने चाचा शरद पवार से बगावत कर दी थी और एनसीपी विधायकों के एक समूह के साथ महाराष्ट्र में शिंदे-फडणवीस सरकार में शामिल हो गए थे.

तिलक परिवार और उसकी राजनीति

बाल गंगाधर तिलक के परिवार के अधिकतर सदस्य कांग्रेस से जुड़े हुए हैं. लेकिन, जब 2000 के दशक की शुरुआत में बीजेपी ने लोकमान्य तिलक की परपोती मुक्ता तिलक को अपने में मिलाया तो यह परंपरा टूट गई. 

लोकमान्य तिलक के पोते जयंतराव तिलक पहले हिंदू महासभा में थे. लेकिन तिलक महाराष्ट्र विद्यापीठ की वेबसाइट के अनुसार, वह 1950 के दशक में कांग्रेस में शामिल हो गए और 12 साल तक राज्यसभा सांसद और 16 साल तक राज्य विधान परिषद के अध्यक्ष रहे.

उनके बेटे दीपक तिलक महाराष्ट्र विद्यापीठ के चांसलर हैं, और तिलक स्मारक मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष और ट्रस्टी हैं. वह केसरी मराठा ट्रस्ट के मुख्य ट्रस्टी भी हैं, जो 1881 में लोकमान्य तिलक द्वारा स्थापित दैनिक समाचार पत्र केसरी चलाता है.

दीपक तिलक के बेटे रोहित तिलक ने 2009 और 2014 में दो बार कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में कसबा पेठ विधानसभा से चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए. बीजेपी के गिरीश बापट ने उन्हें दोनो बार हराया. 

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, रोहित तिलक 2017 में एक बड़े विवाद में फंस गए थे जब उन पर 41 वर्षीय एक महिला की शिकायत के आधार पर बलात्कार का मामला दर्ज किया गया था.

उपर्युक्त पुणे बीजेपी नेता ने दिप्रिंट को बताया: “2000 के दशक की शुरुआत में, गोपीनाथ मुंडे (दिवंगत बीजेपी नेता) ने तिलक परिवार को साधने का फैसला किया और मुक्ता तिलक को पार्टी में शामिल किया. उन्होंने यह छवि बनाने की कोशिश की कि तिलक परिवार बीजेपी के साथ है. उससे पहले तक यह माना जाता था कि तिलक परिवार पूरी तरह से कांग्रेस के साथ जुड़ा हुआ है.”

मुक्ता तिलक, जिनकी कैंसर से लंबी लड़ाई के बाद पिछले साल दिसंबर में मृत्यु हो गई थी, चार बार बीजेपी पार्षद रही हैं और उनका पहला कार्यकाल 2002 में शुरू हुआ था. बीजेपी के सत्ता में आने पर पार्टी ने 2017 में उन्हें पुणे नगर निगम का मेयर भी बनाया था. 

2019 में, जब पार्टी ने गिरीश बापट को लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए चुना, तो मुक्ता तिलक ने कस्बा पेठ विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. 

मुक्ता तिलक का विवाह जयंतराव तिलक के भतीजे शैलेश तिलक से हुआ था.


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पुणे स्थित एक कांग्रेस नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा: “पिछले साल से, पुणे के राजनीतिक गलियारों में इस बात की जोरदार चर्चा हो रही है कि रोहित तिलक बीजेपी के साथ अपने लिए राजनीतिक भविष्य सुरक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं. खासकर पुणे में कांग्रेस की हार के बाद.”

उन्होंने कहा कि, 2022 में, कांग्रेस के भीतर कई लोग आश्चर्यचकित रह गए जब तिलक स्मारक मंदिर ट्रस्ट ने पुरस्कार समारोह के लिए मुख्य अतिथि के रूप में बीजेपी के चंद्रकांत पाटिल को आमंत्रित किया, जो उस समय पार्टी की महाराष्ट्र इकाई के प्रमुख थे.

पाटिल उस समय पुणे जिले के संरक्षक मंत्री भी नहीं थे और उन्हें उस वर्ष सितंबर में ही यह पद दिया गया था.

कांग्रेस और बीजेपी दोनों के नेताओं ने कहा कि मुक्ता तिलक के निधन के बाद रोहित तिलक द्वारा बीजेपी को अपने लिए एक अवसर के रूप में देखने की चर्चाएं मजबूत हो गईं.

हालांकि, रोहित तिलक ने ऐसी अफवाहों का खंडन किया है. इस साल की शुरुआत में मुक्ता तिलक की मृत्यु के बाद हुए कसबा पेठ उपचुनाव के प्रचार के दौरान भी उन्होंने स्पष्ट किया था कि वह कांग्रेस के साथ हैं.

तिलक स्मारक मंदिर ट्रस्ट और उसके पुरस्कार

लोकमान्य तिलक राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चयन कभी भी विवादों में नहीं रहा, पिछले साल को छोड़कर जब बीजेपी के पाटिल को निमंत्रण के बारे में रोहित तिलक द्वारा बीजेपी के लिए एक प्रस्ताव के रूप में चर्चा की गई थी.

इस पुरस्कार की स्थापना 1983 में जयंतराव तिलक द्वारा देश के लिए असाधारण कार्य करने वाले व्यक्तित्वों को सम्मानित करने के लिए की गई थी.

तिलक स्मारक मंदिर ट्रस्ट के ट्रस्टियों में दीपक तिलक और उनके परिवार के सदस्य – रोहित, रोहित की पत्नी और उनकी बहन – साथ ही कांग्रेस नेता सुशील कुमार शिंदे शामिल हैं.

ट्रस्ट ने पिछले कुछ सालों में उद्योगपतियों, इंजीनियरों और वैज्ञानिकों के अलावा पूर्व प्रधानमंत्रियों इंदिरा गांधी, मनमोहन सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व राष्ट्रपतियों शंकर दयाल शर्मा, प्रणब मुखर्जी जैसी हस्तियों को सम्मानित किया है.

पिछले पांच वर्षों में, ट्रस्ट ने वैज्ञानिक टेसी थॉमस, उद्योगपति साइरस पूनावाला, शिक्षक और वैज्ञानिक सोनम वांगचुक, व्यवसायी बाबा कल्याणी और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के पूर्व प्रमुख के. सिवन को सम्मानित किया है.

रोहित तिलक ने दिप्रिंट को बताया कि “पुरस्कार किसे देना है इसका निर्णय अचानक नहीं लिया जाता है और यह कई महीनों की चर्चा का परिणाम है.”

उन्होंने कहा कि पुरस्कार समारोह एक “गैर-राजनीतिक मंच” है.

हालांकि, कांग्रेस नेता अनंत गाडगिल ने कहा कि यह पुरस्कार मोदी सरकार के खिलाफ पार्टी के अभियान के मूल आधार के खिलाफ है.

उन्होंने दिप्रिंट को कहा, “कांग्रेस का रुख है कि मोदी सरकार ने कोई काम नहीं किया है. लेकिन, उन्हें अवॉर्ड देकर आप उनके काम की तारीफ कर रहे हैं और स्वीकार कर रहे हैं कि उन्होंने अच्छा काम किया है. इसलिए, पार्टी के कार्यकर्ता खुश नहीं हैं.”

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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