scorecardresearch
Tuesday, 7 May, 2024
होमदेशआठ बावली, 2 शहर, 10 साल - कैसे सहयोग से ढहती मुगल 'बावलियों' को फिर से नया रूप दिया गया

आठ बावली, 2 शहर, 10 साल – कैसे सहयोग से ढहती मुगल ‘बावलियों’ को फिर से नया रूप दिया गया

'रिस्टोरिंग स्टेपवेल्स, रिवाइविंग लाइफ' नामक एक आईआईसी प्रदर्शनी, जो 22 जुलाई को शुरू हुई और आज बंद हो गई, यह दर्शाती है कि कैसे आठ बावलियों - 2 दिल्ली में, 6 हैदराबाद में - को कड़ी मेहनत से फिर से नया रूप दिया गया था.

Text Size:

विशाल तस्वीर निज़ामुद्दीन दरगाह के पास 14वीं शताब्दी की बावली की जर्जर स्थिति को दर्शाती है – इसकी ढही हुई दीवार, तैरते हुए कचरे के ढेर और रुका हुआ पानी. वह 2008 की बात है. एक अन्य तस्वीर में, वही बावड़ी अब फिर से पूरी हो गई है; पानी की लहरें धीरे-धीरे दीवारों से टकरा रही हैं. आगा खान ट्रस्ट फॉर कल्चर, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और दिल्ली के नगर निगम द्वारा एक दशक से अधिक लंबे जीर्णोद्धार प्रयास के सचित्र रिकॉर्ड अब इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में 10-दिवसीय प्रदर्शनी का हिस्सा हैं.

‘रिस्टोरिंग स्टेपवेल्स, रिवाइविंग लाइफ’ नामक प्रदर्शनी, जो 22 जुलाई को शुरू हुई और आज बंद हो गई, दिखाती है कि कैसे आठ बावड़ियों – दो निज़ामुद्दीन क्षेत्र में और छह कुतुब शाही हेरिटेज पार्क, गोलकुंडा, हैदराबाद में कड़ी मेहनत से पुनर्जीवित किए गए थे.

 'Restoring Stepwells, Reviving Life' exhibition at IIC, Delhi | Photo credit: Vidhi Taparia, ThePrint
आईआईसी, दिल्ली में ‘रिस्टोरिंग स्टेपवेल्स, रिवाइविंग लाइफ’ प्रदर्शनी | फोटो क्रेडिट: विधि तापारिया, दिप्रिंट

प्रदर्शनी में आगा खान ट्रस्ट फॉर कल्चर के सीईओ रतीश नंदा ने कहा, “हम यहां मॉडल परियोजनाएं स्थापित करने और हमने जो सीखा है उसे प्रदर्शनियों और प्रकाशनों के माध्यम से प्रसारित करने के लिए हैं ताकि इन्हें पूरे देश में दोहराया जा सके.” वे केस स्टडी के रूप में काम करते हैं और अन्य वास्तुशिल्प परियोजनाओं और शिक्षण मॉड्यूल को सूचित कर सकते हैं.

उद्घाटन के अवसर पर, जल शक्ति मंत्रालय की विशेष सचिव देबाश्री मुखर्जी ने इसे जल प्रबंधन, संरक्षण और पानी और विरासत के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक लाइटहाउस परियोजना बताया.

निज़ामुद्दीन बावली का जीर्णोद्धार

निज़ामुद्दीन बावली, जो सूफी संत हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के समय में बनाई गई थी, दिल्ली की एक मात्र बावड़ी है जिसमें अभी भी भूमिगत झरने हैं. इसे 2007 में निज़ामुद्दीन शहरी नवीकरण परियोजना के हिस्से के रूप में पुनरुद्धार के लिए चिह्नित किया गया था.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

बावली का जीर्णोद्धार अकेले नहीं किया गया था. नंदा के अनुसार, टीम को निवासियों से जुड़ने और उन्हें परियोजना और इसके महत्व के बारे में समझाने में दो-तीन महीने लग गए. अधिकारियों ने उनके स्थानांतरण के लिए प्रयासों में मदद की.

जिन निवासियों के घरों से बावड़ी दिखाई देती थी वे इसे पवित्र मानते थे. इसके सांस्कृतिक महत्व और तीर्थयात्रियों और निवासियों के लिए इसका क्या अर्थ है, इसे नकारा नहीं जा सकता. जब 2008 में पूर्वी दीवार ढह गई, तो इससे दक्षिणी छत पर रहने वाले 18 परिवारों और लगभग 5,000 तीर्थयात्रियों के लिए सुरक्षा खतरा पैदा हो गया, जो दरगाह जाने के लिए रोजाना गलियारे का उपयोग करते थे.

दरगाह कमेटी और स्थानीय समुदाय के साथ कई दौर की बातचीत के बाद ढहे हुए हिस्सों पर काम शुरू हुआ, साथ ही बावड़ी से मलबे और 700 साल से जमी धूल को साफ करने का प्रयास किया गया. 40 फीट से अधिक कीचड़ को डि-सिल्ट करना पड़ा. पहल की वेबसाइट पर कहा गया है, “कीचड़ को मैन्युअल रूप से उठाने में मजदूरों को करीब 8,000 दिनों तक काम करने की ज़रूरत है.”

प्रदर्शनी में अरब सराय की तस्वीरें भी दिखाई गईं, जो हुमायूं के मकबरे के परिसर के भीतर 16वीं सदी का प्रवेश द्वार था, जो जर्जर हो गया था. प्रवेश द्वार का बड़ा हिस्सा ढहने के करीब था.

2021 में, निज़ामुद्दीन क्षेत्र की संरक्षण परियोजना, जिसमें हुमायूं का मकबरा, निज़ामुद्दीन बस्ती और सुंदर नर्सरी, अन्य मुगल-युग के स्थल शामिल हैं, ने 2021 में दो यूनेस्को पुरस्कार जीते.

बड़ी बावली को Restore करने की चुनौतियां

आगा खान ट्रस्ट फॉर कल्चर और तेलंगाना सरकार ने 2012 में गोलकोंडा किले के पास 106 एकड़ के कुतुबशाही कॉम्प्लेक्स में बहाली का काम करने के लिए टाटा ट्रस्ट के साथ हाथ मिलाया. यहां, टीम ने छह बावड़ियों की खोज की जो जल-संग्रह कक्षों के रूप में काम करती थीं.

ट्रस्ट ने संरक्षण के लिए पारंपरिक भारतीय तकनीकों का इस्तेमाल किया, जो आठ वर्षों में किया गया. निज़ामुद्दीन बावली के विपरीत, इनका कोई पवित्र महत्व नहीं था और ये निकटवर्ती बगीचे के बाड़ों को सींचने का काम करते थे.

16वीं शताब्दी की इन बावड़ियों में से कुछ समय के साथ मिट्टी से भर गईं, जबकि अन्य ढह गईं. उदाहरण के लिए बड़ी बावली को लीजिए. जैसे ही 2013 में संरक्षण कार्य शुरू हुआ, भारी बारिश के कारण इसका पश्चिमी हिस्सा ढह गया, जिससे बहाली के प्रयासों में कई महीनों की देरी हुई.

यह उनके रास्ते में एक मात्र बाधा नहीं थी. रिस्टोर करने के काम पर टाटा ट्रस्ट के एक लेख के अनुसार, एक और बड़ी चुनौती बड़ी बावली परिसर से 450 क्यूबिक मीटर पत्थर के मलबे और गाद को हटाना था. इसे लगभग 21 मीटर की गहराई से मैन्युअल रूप से उठाया गया और इसे पूरा करने में 4,000 दिन लगे. पारंपरिक भवन निर्माण उपकरणों और तकनीकों के साथ तीन वर्षों के भीतर छह सौ घन मीटर पत्थर की चिनाई का पुनर्निर्माण किया गया.

आज, बावड़ी 33 लाख लीटर से अधिक वर्षा जल एकत्र करती है, जिसका उपयोग संरक्षण कार्य जारी रखने के लिए किया जाता है और साइट पर वार्षिक जल परिवहन लागत बचाने में मदद करता है.

राजस्थान के रेगिस्तानों से लेकर हैदराबाद के बगीचों तक, सदियों पहले बहने वाले और वर्षा जल को इकट्ठा करने के लिए बनाई गई बावड़ियां एक समस्या का समाधान पेश कर सकती हैं.

गिरते भूजल स्तर और जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न सूखे से दुनिया त्रस्त है. कहा जाता है कि निज़ामुद्दीन बावली में रोगों को सही करने का गुण है, लेकिन असली जादू तो इसके जीर्णोद्धार में है.

(संपादनः शिव पाण्डेय)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ेंः अपने सिक्कों के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने काफी लड़ाई लड़ी, यहां तक कि औरंगज़ेब भी उसे नहीं रोक सका 


 

share & View comments