पटना: एक लंबे इंतज़ार के बाद, शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सासाराम, गया, और भागलपुर में रैलियों के साथ, बिहार चुनाव प्रचार में शामिल हो गए, लेकिन इनमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए कुछ असहज पल भी आए, जब उन्हें दो बैठकों में दोयम दर्जे की भूमिका निभानी पड़ी, जिन्हें दोनों ने एक साथ संबोधित किया.
अपने भाषणों में मोदी ने धारा 370 हटाने, और तीन तलाक़ ख़त्म करने का ज़िक्र किया- वो मुद्दे जिनका नीतीश के जेडी(यू) ने विरोध किया था. मोदी ने ज़ोर देकर कहा कि राजनीतिक विरोधियों की मुख़ालफत के बावजूद, केंद्र ने अपने क़दम पीछे नहीं हटाए.
प्रधानमंत्री ने 20 महीने चली नीतीश कुमार की अगुवाई वाली महागठबंधन सरकार की भी बात की, जिसके बाद वो राष्ट्रीय जनतांत्रिक मोर्चे (एनडीए) में आ गए थे.
उन्होंने कहा, ‘मुझे उन 20 महीनों के बारे में कुछ नहीं कहना है. नीतीश जी को समझ आ गया होगा, कि उनके (आरजेडी और कांग्रेस) साथ बिहार का विकास करना संभव नहीं है’.
अपनी तीन रैलियों में पीएम मोदी के पास, बिहार के मतदाताओं के लिए पांच स्पष्ट संदेश थे.
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नीतीश हैं एनडीए के सीएम उम्मीदवार
पहला संदेश ये था, कि नीतीश एनडीए के सीएम उम्मीदवार होंगे.
पीएम ने ज़ोर देकर कहा, ‘हम साथ मिलकर केवल तीन साल काम कर पाए हैं. इन तीन सालों में केंद्र की योजनाओं पर तेज़ी से अमल हुआ है’. इसके बाद पीएम ने दावा किया, कि नीतीश के विकास के प्रयास उस समय अवरुद्ध हो गए थे, जब केंद्र की सत्ता कांग्रेस की आगुवाई वाली यूपीए सरकार के हाथ में थी.
मोदी ने कहा, ‘आप देख रहे हैं कि विकास की रफ्तार बढ़ाने के लिए, बिहार में एक प्रक्रिया चल रही है. उन्होंने बिहार में ‘जंगल राज’ की भी बात की.
उन्होंने कहा, ‘बिहार में एक दौर ऐसा था, जब ट्रेन से रात में पहुंचने वाले लोग, घर जाने के लिए सुबह का इंतज़ार किया करते थे, जब लोग नई गाड़ियां नहीं ख़रीदते थे, क्योंकि इससे एक विशेष सियासी पार्टी को उनकी दौलत का पता चल जाएगा, जब सूरज ढलते ही जीवन थम जाता था’.
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चिराग की निंदा नहीं
प्रधानमंत्री ने शायद नीतीश को निराश किया, जब उन्होंने लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) प्रमुख, चिराग पासवान का नाम नहीं लिया, जिन्होंने एनडीए का हिस्सा होने के बावजूद, जेडी(यू) और जीतन राम मांझी के हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (एचएएम) के खिलाफ उम्मीदवार खड़े किए हैं.
पासवान के पैतृक स्थान सासाराम में, मोदी ने अपना भाषण अपने ‘मित्र’, पूर्व केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान को श्रद्धांजलि के साथ शुरू किया. उन्होंने चिराग के विद्रोह पर एक शब्द भी नहीं कहा.
लेकिन प्रधानमंत्री ये ज़रूर कहा कि ‘बिहार के मतदाता एक लीडर विशेष को लेकर, एक वर्ग के प्रचार से भ्रमित नहीं हैं’. लेकिन उन्होंने लोगों के क़यास पर छोड़ दिया, कि उनका मतलब चिराग पासवान से था, या तेजस्वी यादव से.
जेडी(यू) नेता निजी तौर से बीजेपी पर, चिराग को उभारने का आरोप लगा रहे हैं, जो दावा कर रहे हैं कि बीजेपी-एलजेपी मिलकर सरकार बनाएंगे. इस धारणा को ख़त्म करने के लिए, पीएम मोदी ने कुछ नहीं कहा.
स्वामित्व कार्ड
पीएम मोदी ने वादा किया कि एनडीए के सत्ता में लौटने के बाद, स्वामित्व स्कीम को लागू किया जाएगा. स्वामित्व योजना में ज़मीन के नक़्शे बनाकर, उसके मालिकों को क़ानूनी दस्तावेज़ दिए जाएंगे. छह राज्यों में इसे पायलट योजना के तौर पर शुरू किया जा चुका है.
इसी के साथ मोदी उस मुद्दे को फिर से उठा दिया है, जिसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बंद कर दिया था. 2005 में सत्ता में आने के बाद, नीतीश ने एक भूमि सुधार आयोग गठित किया था, जिसके प्रमुख एक पूर्व आईएएस अधिकारी डी बंधोपाध्याय थे, जिन्हें पश्चिम बंगाल में भूमि सुधार लाने का श्रेय दिया जाता है.
आयोग ने ‘ज़मीन जोतने वाले की’ तो नहीं किया, लेकिन उसने भूमि काश्तकारों को क़ानूनी अधिकार देने की सिफारिश ज़रूर कर दी. सभी दलों की ओर से इसका इतना विरोध हुआ, कि नीतीश रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डालने पर मजबूर हो गए- भूमि काश्तकारों की एक भारी संख्या, या तो दलित है या बेहद पिछड़ी जाति है.
स्वामित्व के अपने वादे के साथ, पीएम मोदी ने इस मुद्दे को फिर उठा दिया है, क्योंकि इसे मुख्य रूप से ईबीसी और दलितों के लिए, एक ग़रीब-समर्थक क़दम के रूप में देखा जाता है.
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फिर सामने आईं जातियां
अपनी तीनों रैलियों में पीएम मोदी ने इस बात पर ज़ोर दिया, कि उनकी सरकार वंचित जातियों को पूरी अहमियत दे रही है.
उन्होंने कहा, ‘मेरी सरकार ने पिछड़ी व अति पिछड़ी जातियों, दलितों और आदिवासियों के लिए, आरक्षण को और दस साल के लिए बढ़ा दिया है’.
उन्होंने आरजेडी जैसे विरोधियों पर भी निशाना साधा, जो इन वर्गों के प्रतिनिधि होने का दावा करते हैं. उन्होंने कहा, ‘उन्होंने दबी कुचली जातियों की क़ीमत पर ऐसा किया. उनके कार्यकाल में दबे कुचले वर्गों को कुछ नहीं मिला’.
2015 के विधान सभा चुनावों में, जब बीजेपी का सामना नीतीश और लालू की संयुक्त ताकत से हो रहा था, तो पीएम मोदी ने पिछड़ी जाति की अपनी जड़ों का ख़ूब दिखावा किया था.
‘नक्सलियों से होशियार’
गया में पीएम मोदी ने नक्सलियों का मुद्दा उठाया, जो लालू-राबड़ी राज में सबसे अधिक नक्सल-प्रभावित ज़िलों में से एक था.
उन्होंने कहा, ‘अगर आप उन्हें वोट देते हैं, तो नक्सलवाद फिर लौट आएगा. ये वो पार्टियां हैं जो नक्सल हिंसा पर न केवल ख़ामोश रहीं, बल्कि उनका समर्थन किया’.
आरजेडी ने सीपीआई(एमएल) के साथ गठबंधन किया है, जो इन चुनावों में 19 सीटों पर लड़ रही है. 2005 तक सीपीआई(एमएल) को, बिहार पुलिस की ख़ुफिया विंग माओवादी गुटों के साथ जोड़ती थी. इस संगठन को कई हत्याओं का ज़िम्मेदार ठहराया गया था, और इसपर अपने हथियारबंद स्क्वॉड्स रखने का भी आरोप लगा था.
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