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Thursday, 2 May, 2024
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जीत की सूरत में भी बिहार के ‘सुशासन बाबू’ नीतीश कुमार को क्यों है अपनी प्रतिष्ठा गंवाने का खतरा

सीएम के खिलाफ गुस्सा साफ दिख रहा है- नीतीश कुमार का उपनाम ‘सुशासन बाबू’ अब बदलकर ‘पलटू राम’, ‘पलटू कुमार’ या ‘दल बदलू’ हो रहा है.

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मुज़फ्फरपुर, वैशाली, पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उनके 15 वर्ष के कार्यकाल के अधिकांश समय, अपनी विकास परियोजनाओं के ज़रिए ‘बीमारू’ प्रदेश का हुलिया बदल देने का श्रेय दिया गया है.

नई सड़कें, बेहतर बिजली संपर्क, महिलाओं के लिए स्कीमें और शराबबंदी को उनके प्रमुख प्रयासों के तौर पर प्रचारित किया गया है जिससे उन्हें सुशासन बाबू के नाम से पुकारा जाने लगा.

अब उनके सामने शायद सबसे बड़ी सियासी चुनौती है, चूंकि न सिर्फ उनकी कुर्सी बल्कि एक योग्य प्रशासक की उनकी प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है.

दिप्रिंट ने अभी तक की अपनी तमाम बिहार यात्राओं में देखा कि एक विरोधी लहर है जिसके निशाने पर मुख्यमंत्री हैं- नीतीश कुमार का उपनाम ‘सुशासन बाबू’ अब बदलकर ‘पलटू राम’, ‘पलटू कुमार’ या ‘दल बदलू’ हो रहा है और इन सब का इशारा सीएम की लगातार बदलती राजनीतिक निष्ठा की ओर है.

मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा मुख्यमंत्री से नाखुश है.

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महिलाएं, जिन्हें नीतीश का सबसे कट्टर समर्थक माना जाता हैं, इसलिए नाराज़ हैं कि उन्होंने शराबबंदी के अपने कदम पर आगे काम नहीं किया जिसे उन्होंने 2016 में लागू किया था, जब शराब की अवैध बिक्री और नकली शराब के स्थानीय उत्पादन को रोकने के लिए सख्ती से चेकिंग की जाती थी.

वो लोग भी जो कहते हैं कि टीना फैक्टर (कोई दूसरा विकल्प नहीं है) की वजह से, वो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को वोट देंगे, मुख्यमंत्री से नाखुश हैं.

पटना ज़िले के मसौढ़ी विधानसभा चुनाव क्षेत्र के 36 वर्षीय निवासी प्रिय रंजन कुमार को ही ले लीजिए.

कुमार ने कहा, ‘नीतीश कुमार ने शुरू के 7-8 सालों में अच्छा काम किया और कोई आश्चर्य नहीं कि उन्हें सुशासन बाबू कहा जाता था. लेकिन पिछले कुछ सालों से बिहार वहीं का वहीं है जबकि देश के दूसरे हिस्से विकसित हो रहे हैं’. उन्होंने आगे कहा, ‘मैं बीजेपी का समर्थन करता हूं क्योंकि नरेंद्र मोदी सरकार ने केंद्र में काम किया है. मुझे लगता है कि बीजेपी सरकार बनाएगी’.

फतुहा कस्बे के निवासी 40 वर्षीय पिंटू सिंह ने कहा, ‘बीजेपी को अपने दम पर चुनाव लड़ना चाहिए था, जेडी(यू) के साथ मिलकर नहीं. हमारे इलाके में बस एक काम हुआ है- सड़कें और बिजली. लेकिन हमें रोज़ी-रोटी भी कमानी है. बेरोज़गारी बढ़ती जा रही है. लॉकडाउन के दौरान जो राशन हमें मिला, वो मोदी जी की ओर से था. बस बात सिर्फ इतनी है कि हमारे पास कोई विकल्प नहीं है’.


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सीएम की घटती लोकप्रियता

मतदाता के मूड को भांपने के लिए कई चुनाव क्षेत्रों के अपने दौरों में दिप्रिंट ने भी सीएम नीतीश कुमार की घटती लोकप्रियता को महसूस किया.

कांति विधानसभा क्षेत्र में शाहपुर गांव के निवासी, 60 वर्षीय राजिंदर शाह का कहना था, ‘पिछले पांच सालों में हमने कोई काम नहीं देखा है, जब कोई इतने लंबे समय तक सत्ता में रहता है तो उसमें अहंकार आ जाता है. नीतीश जी के साथ यही हो रहा है’.

‘चिराग पासवान एक युवा नेता हैं और हमारे चुनाव क्षेत्र में स्वतंत्र उम्मीदवार भी होनहार लगता है’.

बहुत से चुनाव क्षेत्रों में जिन मतदाताओं ने पिछले चुनावों में जेडी(यू) को समर्थन दिया था, वो भी अब ‘खराब टिकट बटवारे’ और बेरोज़गारी को लेकर दुविधा का शिकार हैं.

‘Have not seen any work for past five years,’ says Rajinder Shah, 60, a resident of Shahpur village | Photo: Praveen Jain | ThePrint
फोटो: प्रवीन जैन/ दिप्रिंट

दिप्रिंट को बहुत से ऐसे लोग मिले, जिनका कहना था कि चूंकि कोई बेहतर विकल्प नहीं है, इसलिए वो नीतीश को एक और मौका दे सकते हैं. पटना ज़िले के कामता चक गांव के निवासी पप्पू कुमार ने कहा, ‘विकल्प भी तो नहीं है, वरना इस बार नीतीश जी को शॉक लगता. मोदी जी तो हैं पर वो सेंटर में हैं, ये लोकल इलेक्शन है’.

बीजेपी, जो इन चुनावों में नीतीश की जेडी(यू) के साथ गठबंधन में है, इस बात से वाकिफ है कि लोग ‘नीतीश से थक गए हैं’, लेकिन उसे उम्मीद है कि मोदी की रैलियां, उन चिंताओं को कुछ हद तक दूर कर देंगी.

प्रधानमंत्री शुक्रवार से बिहार चुनाव प्रचार शुरू करने जा रहे हैं, जिसमें वो सासाराम, गया और भागलपुर में तीन रैलियां करेंगे. अपेक्षा है कि एनडीए प्रत्याशियों के लिए वो कुल 12 रैलियों को संबोधित करेंगे.

एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने दिप्रिंट से कहा, ‘निश्चित रूप से लोग नीतीश से नाराज़ हैं और ऐसा होता है जब कोई 15 साल तक सत्ता में रहा हो. लेकिन लोग जानते हैं कि उनके कार्यकाल में कोई बड़ा घोटाला नहीं हुआ है’.

‘नीतीश की तुलना वो नीतीश से ही कर रहे हैं. 2020 के नीतीश को 2010 के नीतीश से मिला रहे हैं. स्वाभाविक है कि एक विरोधी लहर है लेकिन हमें काफी भरोसा है कि लोग गठबंधन को एक और अवसर देंगे’.

जेडी(यू) को भी विश्वास है कि मतदाताओं को अपनी ओर खींचने के लिए मुख्यमंत्री ने पर्याप्त काम किया है. जेडी(यू) महासचिव और प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा, ‘ग्रामीण क्षेत्रों में घरेलू हिंसा एक आम बात हो गई थी, चूंकि पुरुष शराब पीकर घर आते थे. शराबबंदी ने उसे कम कर दिया है. शराब की बोतल की जगह अब आदमी सब्ज़ियां लेकर घर आता है’. उन्होंने आगे कहा, ‘इसकी वजह से महिलाओं पर होने वाली ज़्यादतियां भी कम हो गई हैं’.

‘जहां तक नीतीश जी की आलोचना का सवाल है, ये नीतीश ही हैं जिन्होंने बिहार की सूरत बदली है. सड़क संपर्क सुधर गया है, 2020 के अंत तक सभी घरों में पाइप द्वारा पानी की सप्लाई पहुंच जाएगी. हम बिहार की तुलना दूसरे राज्यों से नहीं कर सकते लेकिन हमें इसकी तुलना उस बिहार से करनी है, जो लालू यादव के अंतर्गत था’.


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शराब बंदी को आगे नहीं बढ़ाया: महिलाएं

2005 में पहली बार सत्ता संभालने के समय से ही, महिलाएं नीतीश की स्कीमों के केंद्र में रही हैं.

मुख्यमंत्री ने महिलाओं और कन्याओं के कल्याण के लिए, बहुत सारी स्कीमें शुरू की हैं, जैसे मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना, जिसके अंतर्गत स्कूल जाने के लिए लड़कियों को साइकिलें दी गईं थीं.

2014 में उन्होंने एक स्कीम शुरू की जिसमें स्कूली लड़कियों को सैनिटरी नैपकिन्स बांटे गए. उनकी कल्याणकारी योजनाओं को- जैसे कौशल और जीविका पर आधारित स्व-सहायता समूह (एसएचजी) प्रोजेक्ट जीविका- को महिलाओं ने काफी पसंद किया है.

शराबबंदी का मकसद भी महिला मतदाताओं को लुभाना था जिन्होंने इसके खिलाफ राज्यभर में प्रदर्शन किए थे लेकिन अब इसे लेकर भी चिंता व्यक्त की जा रही है.

पटना से कुछ 100 किलोमीटर दूर शाहपुर गांव की निवासी, 34 वर्षीय मुन्नी शर्मा ने कहा, ‘नीतीश जी दुकान बंद किए हैं. पहले दुकान पर जाकर लोग खरीदते थे और अब होम डिलीवरी होता है, वो भी महंगा’.

‘बहुत सारे परिवार इससे प्रभावित हुए हैं. बहुत से लोग नकली शराब पीने से मर गए हैं और बहुत से क़र्जे में हैं क्योंकि लोग महंगी शराब खरीद रहे हैं’.

Munni Sharma of Shahpur village says Nitish didn't follow up on his Prohibition policy | Photo: Praveen Jain | ThePrint
फोटो: प्रवीन जैन/ दिप्रिंट

हाजीपुर विधानसभा क्षेत्र की 55 वर्षीय निर्मला देवी ने भी, उनकी बात का समर्थन किया. उहोंने कहा, ‘उन्होंने बच्चों को भी शराब बनाने के काम में लगा लिया है. अब ये हर घर में बनाई जा रही है’. उन्होंने आगे कहा, ‘नीतीश जी ने काम तो सही किया लेकिन जब लागू कराने की बात आई तो वो फेल हो गए’.


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तेजस्वी छोड़ने लगे अपनी छाप

इस सारे असंतोष का फायदा जिस एक नेता को मिल रहा है वो हैं राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव, जो 10 लाख रोज़गार देने के अपने वादे के साथ, खासकर युवाओं में चर्चा का विषय बन गए हैं.

23 वर्षीय अमितोश सिंह, जिन्होंने अपना ग्रेजुएशन पूरा कर लिया है लेकिन फिलहाल हाजीपुर में एक ढाबे पर काम कर रहे हैं, ने कहा, ‘मुझे वास्तव में पीएम पसंद हैं लेकिन ये उनका चुनाव नहीं हैं. जहां तक बिहार का सवाल है, बदलाव ज़रूरी है और हर किसी को मौका दिया जाना चाहिए’.

‘तेजस्वी कम से कम बात कर रहे हैं कि वो क्या करना चाहते हैं, भले ही वो दस लाख रोज़गार देने की बात हो. मौका सबको देना ज़रूरी है, अगर ये फेल होंगे तो इन्हें भी चेंज करेंगे’.

उन्हीं जैसे विचार एक दूसरे 23 वर्षीय युवक गुड्डू कुमार ने व्यक्त किए, जो सिविल सर्विसेज़ की तैयारी कर रहे हैं और कांति विधानसभा क्षेत्र में रहते हैं.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘नीतीश जी ने शुरू में बहुत अच्छा काम किया, करीब 7-8 साल तक. उस दौरान बिहार में जो विकास हुआ, वो यकीनन सराहनीय है. उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन अब वो बहुत बदल गए हैं. वो अब पहले जैसे नीतीश नहीं हैं. बेरोज़गारी बढ़ रही है और उन्होंने कुछ नहीं किया है. उन्हें अब कुर्सी चाहिए और डटे रहना है. अब बदलाव का समय है’.

कुछ इलाकों में वोटर्स दुविधा में हैं और कहते हैं कि वो उसे वोट देंगे जिसके जीतने की उम्मीद होगी. मुज़फ्फरपुर निवासी 68 वर्षीय ईश्वर दयाल का कहना था, ‘मैं अपना वोट उस उम्मीदवार को दूंगा, जो जीतने वाला होगा. ऐसे उम्मीदवार को वोट क्यों देना, जो जीतने वाला नहीं है?’

Guddu Kumar is among those batting for change | Photo: Praveen Jain | ThePrint
फोटो: प्रवीन जैन/ दिप्रिंट

लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनका मानना है कि जिस तरह का विकास नीतीश के अंतर्गत देखा गया है, वो बेमिसाल है.

कुरहानी विधान सभा क्षेत्र में रहने वाले 55 वर्षीय जोगिंदर पंडित, जो एक छोटा सा ढाबा चलाते हैं, का कहना था, ‘सड़क, बिजली, और अब पाइप द्वारा पानी की सप्लाई भी मुहैया की जा रही है. बिहार में बहुत विकास हुआ है और ये सब नीतीश कुमार के अंतर्गत हुआ है’. उन्होंने आगे कहा, ‘हम उनके काम से खुश हैं, हालांकि अभी बहुत सारा काम है जो किया जाना बाकी है’.

मुज़फ्फरपुर निवासी 38 वर्षीय गुड्डू कुमार ने कहा,‘ उन्होंने काम किया है और कोई कितना भी काम कर ले और अधिक की गुंजाइश हमेशा रहती है. ये देखने की जरूरत है कि बिहार में पिछले 15 सालों में क्या हुआ है. चीज़ें बदली हैं. लॉकडाउन के दौरान हमें राशन मिला, जिससे हमें अपना गुज़ारा करने में मदद मिली. उन्हें एक और कार्यकाल मिलना चाहिए’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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