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Wednesday, 20 November, 2024
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‘चीते की गति’- बयान के मायने समझिए, राजनीतिक संदेश से भरा है मोदी का ‘पसंदीदा’ प्रोजेक्ट

भारत में चीते की वापसी ब्रांड मोदी को ‘मजबूत’ करेगी. और इसके साथ ही, जैसा भाजपा के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, मोदी मतदाताओं को यह भी बताना चाहते हैं कि वह नीतिगत निर्णय ‘बेहद तेज गति’ से लेते हैं.

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नई दिल्ली: नामीबिया से आए आठ चीतों को शनिवार को मध्य प्रदेश स्थित कुनो राष्ट्रीय उद्यान के एक बाड़े में छोड़ने के कुछ ही घंटों बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली में नेशनल लॉजिस्टिक पॉलिसी (एनएलपी) का शुभारंभ किया और इस मौके पर उन्होंने कहा, ‘एक समय था जब कबूतर छोड़े जाते हैं. अब, चीतों की बारी है…हम चाहते हैं कि योजनाओं पर अमल चीते की गति से हो.’

मोदी का बयान परोक्ष रूप से जवाहरलाल नेहरू पर सियासी हमला था, जो अपने जन्मदिन (14 नवंबर) पर ‘शांति’ के प्रतीक के तौर पर कबूतर छोड़ते थे. नाम जाहिर न करने की शर्त पर भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, संदेश साफ था—पिछली सरकारों के उलट मोदी सरकार चीते की गति से नीतिगत निर्णय लेने में कतराती नहीं है.

दिल्ली में 17 सितंबर को आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मोदी ने चीते की वापसी को ‘पंच प्रण’ का प्रतिबिंब बताया, जिसकी घोषणा उन्होंने 15 अगस्त को थी. इसमें उन्होंने भारत के अतीत के गौरव को पुनर्जीवित करने और इसे औपनिवेशिक काल के साये से बाहर लाने की बात कही थी.

लेकिन चीते की वापसी राजनीतिक प्रतीकवाद के तौर पर अनुमान से कही ज्यादा भारी नजर आ रही है.

अब जब भाजपा शासित दो राज्यों गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं और एनडीए 2024 में अपना तीसरा कार्यकाल सुनिश्चित करने की कवायद में जुटा है, मोदी अपनी सरकार की ‘निर्णायक’ प्रशासन वाली छवि को और मजबूत करना चाहते हैं. और इसमें चीता एक उपयुक्त प्रतीक है जिसके जरिये मोदी सरकार विकास और बुनियादी ढांचे, हिंदुत्व पर जोर और उपनिवेशवाद के अतीत से बाहर लाने के वादे पर मतदाताओं को अपने साथ जोड़ने में सफल हो सकती है.

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट से कहा कि मोदी तीसरे जनादेश की तलाश में हैं और मतदाताओं को बताना चाहते हैं कि उन्होंने नीतिगत निर्णय ‘तीव्र’ गति से लिए हैं.

भाजपा नेता ने कहा, ‘चीता गति का प्रतीक है; विलुप्त होने के 70 साल बाद भारतीय धरती पर इसकी वापसी काफी ज्यादा मायने रखती है. यह मोदी की ब्रांड वैल्यू, ‘मोदी है तो मुमकिन है’ को और मजबूत करेगा.’ उन्होंने कहा कि कोविड-19 के खिलाफ एक भारतीय वैक्सीन विकसित होने और सेमीकंडक्टर निर्माण उद्योग को केंद्रीय मंत्रिमंडल के प्रोत्साहन ने ब्रांड मोदी को मजबूत ही किया है.

भाजपा नेताओं का कहना है कि प्रतीकवाद का यह इस्तेमाल मोदी की ब्रांड इमेज को एक ऐसे व्यक्ति के तौर पर बढ़ाता है जो देश हित में कोई भी ‘साहसिक निर्णय’ लेने में संकोच नहीं करता, चाहे मामला कूटनीतिक हो या फिर चीते को भारत वापस लाने का.


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‘वन्यजीव संरक्षण और स्थिरता मूलमंत्र हैं’

मोदी के गुजरात के सीएम रहने के दौरान उनके साथ काम करने वाले एक पूर्व नौकरशाह के मुताबिक, प्रधानमंत्री को इस बात की गहरी समझ है कि अपनी राजनीतिक पूंजी बढ़ाने के लिए जानवरों की भूमिका का कब और कैसे उपयोग किया जाए, फिर बात चाहे मध्य वर्ग की हो या आदिवासियों के बीच पैठ की.

2019 में ‘द इकोनॉमिक माइंड ऑफ नरेंद्र मोदी’ शीर्षक से एक पॉलिसी पेपर लिखने वाले हिंडोल सेनगुप्ता ने दिप्रिंट को बताया, ‘यदि आप मोदी सरकार के नीतिगत ढांचे और कूटनीति को देखें, तो पर्यावरण और संरक्षण पर ज्यादा जोर देने की बात साफ नजर आएगी. अफ्रीका से चीतों को लाना, अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन का विस्तार, पेरिस जलवायु समझौते पर हस्ताक्षर करना आदि.

सेनगुप्ता ने कहा कि सौर ऊर्जा और संरक्षण को बढ़ावा देना मोदी की वैश्विक कूटनीति का हिस्सा है. उन्होंने आगे जोड़ा, ‘दुनिया बदल रही है और विकसित देश अब जलवायु परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. लेकिन प्रधानमंत्री ने अपने कार्यालय के शुरुआती दिनों से ही इन मुद्दों पर जोर दिया है क्योंकि वह बदलते राजनीतिक और कूटनीतिक आधार के बारे में जानते हैं.

राजनीतिक टिप्पणीकार बद्री नारायण भी सेनगुप्ता के इस आकलन से सहमति जताते हैं कि पर्यावरण से जुड़े मुद्दे नीति निर्माण और कूटनीति के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘वन्यजीव संरक्षण और स्थिरता आज के मूल मंत्र हैं और दुनिया के लिए महत्वपूर्ण मुद्दे हैं. यह पूरी दुनिया के लिए विमर्श का एक बड़ा विषय है और प्रधानमंत्री इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.’

उन्होंने कहा कि चीतों की वापसी पर पहल के साथ मोदी ने यह दर्शाया है कि ‘विकास का मतलब मानव-केंद्रित होने तक सीमित रहना ही नहीं है, बल्कि इसमें सभी जीवित चीजें शामिल हैं.’ नारायण ने कहा कि मोदी अपने व्यक्तित्व के एक पहलू को दिखाकर अधिक से अधिक लोगों को इस तरह के मुद्दे उठाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं.

2009 में गुजरात में तत्कालीन मोदी सरकार के एक एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत सिंगापुर चिड़ियाघर से चीतों के दो जोड़े लाए गए थे. और इन्हें जूनागढ़ के सकरबाग चिड़ियाघर में रखा गया लेकिन प्राकृतिक कारणों से उनकी मृत्यु हो गई.

2014 में अपने ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के शुभारंभ के मौके पर मोदी ने विज्ञान भवन में देश की शीर्ष 500 कंपनियों के सीईओ को संबोधित करते हुए कहा था कि यह अभियान भारत को दुनिया का अग्रणी मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने की दिशा में ‘शेर के एक कदम’ जैसा है. इस बात पर जोर देने के लिए ही अभियान के लोगो के रूप में कल-पुर्जों के आकार में ढले एक शेर की छवि का इस्तेमाल करने का फैसला किया गया था.

2016 में असम विधानसभा चुनाव से पूर्व एक रैली को संबोधित करते हुए मोदी ने कांग्रेस पर हमले के लिए असमिया संस्कृति में बेहद अहम माने जाने वाले एक सींग वाले गैंडे का जिक्र किया. उन्होंने कहा, ‘आंखें बंद रखी गईं और गैंडों को मारने की इजाजत दी गई. और गैंडों को मारने वालों को राजनीतिक संरक्षण भी मिला.’

2019 के लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत हासिल करने के कुछ महीनों बाद ही मोदी मैन वर्सेज वाइल्ड विद बेयर ग्रिल्स के एक एपिसोड के लिए कॉर्बेट नेशनल पार्क में हुई शूटिंग का हिस्सा बने. इस एपिसोड के दौरान ही मोदी ने अपने बचपन की एक कहानी सुनाई, जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे उनकी मां ने उन्हें संरक्षण का महत्व सिखाया था.

मोदी ने ग्रिल्स को बताया कि कैसे वह एक बार झील से मगरमच्छ का एक बच्च उठाकर घर ले आए थे. उस घटना को याद करते हुए उन्होंने बताया, ‘मेरी मां ने मुझसे कहा कि यह करना सही नहीं है, और मैंने उसे वापस झील में छोड़ दिया.’

अगस्त 2020 में प्रधानमंत्री ने लोक कल्याण मार्ग स्थित अपने आधिकारिक आवास पर मोर को खिलाने वाला एक वीडियो इंस्टाग्राम पर पोस्ट किया था. वीडियो के साथ हिंदी में एक कविता भी थी.

इस साल जुलाई में विपक्ष ने नए संसद भवन के ऊपर राष्ट्रीय चिन्ह में ‘नुकीले दांत’ दिखाते चार शेरों की छवि पर सरकार को घेरने की कोशिश की. यह तर्क देते हुए कि सारनाथ में सम्राट अशोक की लॉयन कैपिटल शांति का प्रतीक है, विपक्षी नेताओं ने मोदी पर ‘गुस्सैल शेरों’ वाली कृति का अनावरण करके ‘एक दबंग छवि पेश करने’ की कोशिश करने का आरोप लगाया.

लेखक और पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय का मानना है कि इस राजनीति के पीछे वजह संरक्षण और सतत विकास पर जोर देना है.

आठ चीतों को कुनो में छोड़े जाने का जिक्र करते हुए मुखोपाध्याय ने कहा, ‘उनकी (मोदी की) व्यक्तिगत छाप हर जगह नजर आती है, चाहे खुद ही पिंजरा खोलना हो, या उनकी पोशाक, तस्वीरें लेते समय फोटो खिंचवाना आदि. शुरू से अंत तक सब पूर्व निर्धारित नजर आता है और यह पूरी तरह किसी इवेंट मैनेजमेंट जैसा है. यहां तक कि राष्ट्र के नाम संबोधन को भी बखूबी अंजाम दिया गया. इसलिए, इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि यह सब राजनीतिक कोरियोग्राफी है.’

मुखोपाध्याय ने कहा, ‘हालांकि, हम जानते हैं कि चीतों को लाने की प्रक्रिया 2014 से पहले शुरू हो गई थी, लेकिन इस घटना ने उन सारी यादों को एकदम भुला दिया है, और अब इसे हमेशा मोदी की तरफ से किए गए कार्य के तौर पर ही याद रखा जाएगा.’

नेहरू, इंदिरा और मोदी

सिर्फ मोदी ही नहीं—जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी समेत कई पूर्व प्रधानमंत्री इस बात को अच्छी तरह समझते थे कि राजनीति और कूटनीति में जानवरों की सांस्कृतिक पहचान को किस तरह भुनाया जा सकता है.

गुटनिरपेक्ष आंदोलन के प्रचार के लिए नेहरू ने शांति के प्रतीक के तौर पर कबूतरों का इस्तेमाल किया. इसके अलावा, वो नेहरू ही थे जिन्होंने हाथी को भारत का प्रतीक बताया, उन्होंने इसे ‘बुद्धिमत्ता, धैर्य, मजबूती और कोमलता’ का प्रतीक बताया.

नेहरू के विचारों को ही आगे बढ़ाते हुए वाजपेयी ने 2002 में एक व्यापार शिखर सम्मेलन के दौरान कहा था, ‘भारतीय अर्थव्यवस्था की पहचान अक्सर हाथी से की जाती है. हाथी को अपने शरीर के सभी हिस्सों के साथ आगे बढ़ने में थोड़ा समय तो लग सकता है, लेकिन एक बार जब वो चलना शुरू कर देता है तो गति को थामना, मोड़ना, रोकना या बदलना बहुत मुश्किल होता है.’

वहीं, इंदिरा गांधी ने बाघ को ताकत के प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल किया. अप्रैल 1973 में उन्होंने शेर की जगह बाघ को राष्ट्रीय पशु घोषित कर दिया और 1974 में पोखरण में अपने पहला परमाणु परीक्षण से लगभग एक साल पहले प्रोजेक्ट टाइगर लॉन्च किया.

बेंगलुरु स्थित सेंटर फॉर वाइल्डलाइफ स्टडीज के निदेशक और प्राणी विज्ञानी के. उल्लास कारंत ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘मुझे लगता है कि इंदिरा गांधी एकमात्र ऐसी प्रधानमंत्री थीं, जिनकी वन्यजीव संरक्षण में वास्तविक रुचि थी. उन्होंने इस दिशा में निरंतर प्रयास किए, और उस समय जो भी बेहतरीन लोग हो सकते थे, उन्हें इससे जोड़ा और इस सबसे इतर, मजबूत वन्यजीव कानूनों की शुरुआत और संरक्षण के लिए जनता के बीच अपनी लोकप्रियता का भी पूरा इस्तेमाल किया.’

कारंत ने बताया कि इंदिरा गांधी ने ‘राज्य और केंद्रीय स्तर पर वन्यजीव कानूनों का पूरी सख्ती से अमल सुनिश्चित किया.’ उन्होंने आगे जोड़ा, ‘यह सब 1960 के दशक के मध्य से लेकर 1980 के दशक के मध्य तक के 20 वर्षों के दौरान हुआ, जब देश गरीब था और फंडिंग भी कम थी.’

वहीं, गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान मोदी ने अपने राजनीतिक ब्रांड के निर्माण के लिए ‘गुजराती अस्मिता’—जिसका प्रतीक एशियाई शेर को बनाया गया—पर भरोसा किया.

चार दशकों से अधिक समय से प्रधानमंत्री को जानने वाले गुजरात के एक भाजपा नेता ने कहा कि मोदी राजनीति में अपने शुरुआती दिनों से ही पानी और वन्य जीवों से जुड़े मुद्दों के प्रति संवेदनशील रहे हैं.

उक्त नेता ने कहा, ‘उन्होंने (मोदी ने) गुजरात को सूखाग्रस्त देखा है और नर्मदा बांध के प्रति उनकी प्रतिबद्धता जल संरक्षण को लेकर उनकी चिंता का प्रमाण है. हाल ही में गुजरात में एक जनसभा के दौरान उन्होंने कई धार्मिक ट्रस्टों को सलाह दी कि गांवों में छोटे तालाबों को मिशन मोड में लाने के लिए मिलकर काम करें.’

उन्होंने कहा कि मोदी का ‘वन्यजीव फोटोग्राफी के प्रति लगाव संरक्षण को लेकर उनकी चिंता को दर्शाता है, जो अब आरएसएस के लिए भी एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बन चुका है.’

उन्होंने कहा, ‘राजनीति बदल रही है और मोदी देश की बदलती नब्ज को समझने में माहिर हैं.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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