चंडीगढ़: कांग्रेस ने इसी साल सितंबर में चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का नया मुख्यमंत्री नियुक्त किया था. उन्हें अब तक इस दफ्तर में तीन तीन महीने बीत चुके हैं और विधानसभा चुनावों होने में कुछ ही महीने बाकी है, ऐसे में चन्नी को अपनी सरकार का कामकाज दिखाने और पार्टी को फिर से सत्ता में लाना सुनिश्चित करने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है.
हालांकि, कैप्टन अमरिंदर सिंह से शासन की बागडोर लेने वाले वाले पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री चन्नी बहुत मुश्किल से ही कांग्रेस को चुनाव मैदान में उतरने की स्थिति में ला पाए हैं. आइये पांच ऐसी वजह जानें जो बताती हैं कि क्यों चन्नी पंजाब में अपनी जमीन खोते जा रहे हैं.
अमरिंदर के समय की परिपाटी बदलना
सबसे पहले तो चन्नी के लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह के समय से जारी परिपाटी को बदलना जरूरी था, जिनके करीब साढ़े चार साल के कार्यकाल को निष्क्रियता का प्रतीक माना जाता है.
अमरिंदर सरकार पिछले विधानसभा चुनावों से पहले पूर्व सीएम की तरफ से किए गए तमाम वादे पूरे करने में नाकाम रही थी. 2017 के चुनावों से पहले उन्होंने जो वादे किए थे, मसलन ड्रग्स की समस्या खत्म करना, बिजली बिल कम करना, दलितों को पांच मरला जमीन देना, किसानों का कर्ज माफ करना, हर घर के एक सदस्य को नौकरी, और बेअदबी की घटनाओं के मामलों में न्याय, वे या तो सिर्फ कागजों पर ही रह गया या फिर कुछ शर्तों के साथ पूरे हुए.
अमरिंदर की अपनी ही पार्टी के लोगों ने, जिनमें कुछ उनके करीबी सहयोगी भी शामिल थे, इन मुद्दों को लेकर उनके खिलाफ बगावत कर दी. उन्होंने यह भी पाया कि अमरिंदर से मिलना काफी मुश्किल काम था और वह हमेशा बड़े नौकरशाहों से घिरे रहते थे जो उन्हें उनसे मिलने नहीं देते थे.
हालांकि, अमरिंदर के इस्तीफे के बाद कांग्रेस को फिर पर पटरी पर लाने के लिए चन्नी ने एक के बाद एक लोकलुभावन फैसलों की घोषणा की.
उन्होंने सुनिश्चित किया कि पुलिस 2015 के बेअदबी के मामलों में डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम से पूछताछ करे. 2017 के विधानसभा चुनाव में बेअदबी की घटनाएं एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बन गई थीं. हत्या और बलात्कार के कई मामलों में सजा काट रहे डेरा प्रमुख के अनुयायियों की पंजाब के मालवा बेल्ट में अच्छी खासी तादात है और सभी राजनेता आमतौर पर उन्हें खुश रखने की कोशिश करते हैं क्योंकि डेरा विभिन्न दलों के लिए एक महत्वपूर्ण वोट बैंक रहा है.
चन्नी सरकार ने 21 दिसंबर को ड्रग्स मामले में कथित तौर पर शामिल होने के आरोप में अकाली नेता बिक्रम सिंह मजीठिया पर मामला दर्ज कराया. हालांकि, अकालियों ने इसे बदले की कार्रवाई कर दिया. कांग्रेस पार्टी में अमरिंदर विरोधी रहे नेताओं ने आरोप था कि वह बादल के साथ मिले हुए थे, जिसके कारण मजीठिया के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही थी.
चन्नी के मंत्रियों ने राज्य में एक सार्वजनिक परिवहन कंपनी चलाने को लेकर भी बादल पर निशाना साधा है, जो कथित तौर पर सरकारी हितों को नुकसान पहुंचाती है. जब अकाली सत्ता में थे, तब ये व्यापार फलाफूला था, लेकिन बाद में चीजें ठीक करने के लिए कुछ नहीं किया गया.
इसके अलावा, चन्नी बिजली खरीद के लिए निजी बिजली कंपनियों के साथ शिरोमणि अकाली दल की सरकार के समय किए गए समझौत रद्द करने की दिशा में भी आगे बढ़ रहे हैं, जिसके कारण राज्य को महंगी बिजली खरीदनी पड़ रही है.
चन्नी ने यह भी सुनिश्चित किया है कि हर हफ्ते कम से कम एक बार कैबिनेट की बैठक हो और उनकी सुरक्षा में कटौती की जाए.
लेकिन इन फैसलों के जरिये चन्नी को जो कुछ भी हासिल किया था उस पर पिछले हफ्ते पूरी तरह पानी फिर गया जब अमृतसर और कपूरथला में कथित बेअदबी के प्रयासों में लिंचिग की दो घटनाएं हुईं और लुधियाना में एक बम धमाका हो गया.
इन तीनों घटनाओं ने सीमावर्ती राज्य का नेतृत्व संभालने के लिए एक मजबूत और अनुभवी नेता की जरूरत को साबित किया. अमरिंदर सिंह के अलावा, राज्य के किसी अन्य राजनेता ने लिंचिंग की घटनाओं की आलोचना नहीं की.
चन्नी ने जहां लिंचिंग की घटनाओं पर चुप्पी साधे रखने का फैसला किया, वहीं सिद्धू ने कहा कि जो कोई भी बेअदबी की घटना में शामिल है उसे सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटका दिया जाना चाहिए.
राज्य पुलिस ने 24 घंटे में लुधियाना बम विस्फोट मामले के खुलासे का दावा करते हुए बताया कि इसके पीछे एक असंतुष्ट पूर्व पुलिस कर्मी का हाथ था, जिसके पाकिस्तान स्थित खालिस्तानी आतंकियों से संबंध थे, यह विस्फोट कैप्टन अमरिंदर की चेतावनी की गंभीरता को दर्शाता है.
अमरिंदर पिछले एक साल से केंद्रीय एजेंसियों के समक्ष यह मुद्दा उठाते रहे हैं कि पाकिस्तान ड्रोन का इस्तेमाल करके सीमा पार से बम भेजने की साजिश रच रहा है.
हालांकि, सिद्धू पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ अपनी निकटता में कोई रोड़ा नहीं आने देना चाहते हैं. इस माह के शुरू में चन्नी और सिद्धू दोनों ने दोनों देशों के बीच व्यापार के लिए अटारी सीमा खोलने का सुझाव दिया था.
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नवजोत सिंह सिद्धू
चन्नी सरकार के खराब प्रदर्शन की एक और वजह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू भी हैं. सिद्धू मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल थे लेकिन चन्नी को यह पद मिलने के बाद सिद्धू उनके सबसे बड़े आलोचक बन गए हैं.
सिद्धू राज्य के दो प्रमुख पदों डीजीपी और महाधिवक्ता के लिए चन्नी की पसंद से भी नाराज थे. उन्होंने पार्टी प्रमुख के पद से इस्तीफा दे दिया और इन पदों पर अपनी पसंद के अधिकारियों की नियुक्ति के बाद ही पद फिर संभाला.
सरकार के कामकाज में उनका कितना दखल होता है, इसका पता इससे भी चलता है कि वह सार्वजनिक तौर पर अपने भाषणों और ट्वीट्स के जरिये चन्नी के लिए एजेंडा तय करते हैं. उन्होंने यह चेतावनी भी दे रखी है कि अगर उनकी पार्टी की सरकार मादक पदार्थों पर विशेष कार्य बल (एसटीएफ) की तरफ से हाई कोर्ट में दाखिल की गई रिपोर्ट सार्वजनिक करने में नाकाम रही तो वह आमरण अनशन करेंगे.
पार्टी आलाकमान ने चुनाव से पहले सिद्धू को और भी अहम जिम्मेदारियां सौंप दी है. ऐसे में ज्यादातर मंत्रियों और विधायकों का टिकट के लिए सिद्धू के पास चक्कर काटना शुरू कर देने से अपनी पार्टी के लोगों पर चन्नी की पकड़ कमजोर पड़ गई है.
पार्टी की अंतर्कलह
शीर्ष पर सत्ता के कई पावर सेंटर होने के कारण पार्टी के कई नेताओं के बीच जमकर अंतर्कलह छिड़ी हुई है, जिससे चन्नी के लिए अपनी पार्टी को एकजुट रखना किसी चुनौती से कम नहीं है.
सुल्तानपुर लोधी से कांग्रेस विधायक नवतेज सिंह चीमा को लेकर उपमुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा और कैबिनेट मंत्री राणा गुरजीत सिंह के बीच तलवारें खिंची हुई हैं. राणा गुरजीत की नजरें सुल्तानपुर लोधी सीट से अपने बेटे राणा इंदर प्रताप सिंह को टिकट दिलाने पर टिकी हैं जो कि चीमा का निर्वाचन क्षेत्र है. चीमा को सुखजिंदर का समर्थन हासिल है.
राणा गुरजीत को दोआबा के कम से कम आधा दर्जन कांग्रेस नेताओं के विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है.
राज्यसभा सांसद प्रताप सिंह बाजवा और उनके भाई फतेह जंग सिंह बाजवा, जो कादियां से मौजूदा विधायक हैं, भी एक-दूसरे के विरोधी हो गए हैं. फतेह जंग ने अपने दामाद को महाधिवक्ता कार्यालय में नियुक्त करने के लिए सुखजिंदर रंधावा का विरोध किया था.
इससे पहले, फतेह जंग ने एक अन्य कांग्रेस नेता बलविंदर सिंह कोटलाबामा को सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई पंजाब जेनको का अध्यक्ष नियुक्त किए जाने का विरोध किया था. बलविंदर सिंह को कैबिनेट मंत्री तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा का करीबी माना जाता है, जो फतेहगढ़ चूड़ियां से विधायक हैं.
बटाला से पूर्व विधायक अश्विनी सेखरी भी तृप्त बाजवा के विरोधी हैं. पिछले महीने ही उन्होंने आरोप लगाया था कि तृप्त बाजवा शिरोमणि अकाली दल के साथ मिले हुए हैं.
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धन की कमी
चन्नी ने अपने मुख्यमंत्री बनने के पहले महीनों में ही जो लोकलुभावन घोषणाएं की थी, उससे राज्य के खजाने पर पहले ही भारी बोझ पड़ चुका है. बिजली बिल घटाने, पेट्रोल और डीजल की कीमतें कम करने, अनुसूचित जाति के लोगों को पांच मलरा भूखंड देने और शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में जल सेवा शुल्क कम करने के उनके फैसले से राज्य के खजाने को 10,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ा है.
अब राज्य के वित्त विभाग ने उन तमाम घोषणाओं को अपनी सहमति देना बंद कर दिया है जो वह करना चाहते हैं.
राज्य के वित्त विभाग के सूत्रों का कहना है कि चन्नी लगभग दो लाख कर्मचारियों को नियमित करना चाहते हैं, लेकिन राज्य सरकार इस पर आने वाला खर्च वहन नहीं कर सकती. पार्टी के शीर्ष नेताओं का कहना है इसी तरह वह महिलाओं, छात्रों और बुजुर्गों के लिए कुछ अन्य मुफ्त सुविधाओं की घोषणा करना चाहते हैं, लेकिन उनकी योजनाओं को इस वजह से हरी झंडी नहीं मिल पाई क्योंकि अगर कांग्रेस सरकार सत्ता में लौटी तो राज्य इन वादों को पूरा करने की वित्तीय स्थिति में नहीं है.
बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार
चन्नी सरकार राज्य में भ्रष्टाचार से निपटने में नाकाम रही है.
अमरिंदर के इस्तीफे के बाद हटाए गए कुछ गिने-चुने मंत्रियों के अलावा चन्नी की कैबिनेट में लगभग वही चेहरे हैं, जिनमें से कई पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं.
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘सिर्फ एक कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटा देने भर के साथ राज्य में सत्ता विरोधी लहर को खत्म नहीं किया जा सकता है. जनता के लिए विधायक और मंत्री तो वही हैं और इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता कि उनमें से कई जनता की नापसंद बन चुके हैं.’
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