नई दिल्ली: कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने सोमवार को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और जनता दल-सेक्युलर पर कावेरी मुद्दे को लेकर ‘राजनीति करने’ का आरोप लगाया.
सिद्धारमैया ने मीडिया से बातचीत में कहा, “लोकतंत्र में कोई भी विरोध प्रदर्शन कर सकता है. हम विरोध को बाधित नहीं करने जा रहे हैं. बीजेपी-जेडीएस इस मुद्दे पर राजनीति कर रहे हैं. कावेरी मुद्दे को लेकर कल सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई है. हमारे वकील हमारे पक्ष में एक सक्षम तर्क पेश करेंगे.”
विपक्ष द्वारा इस मुद्दे पर उनके इस्तीफे की मांग पर सीएम सिद्धारमैया ने कहा, “जब हमने कावेरी नदी जल बंटवारे के मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुलाई, तो क्या किसी ने कहा कि मुझे सीएम पद से इस्तीफा दे देना चाहिए? सर्वदलीय बैठक में किसी ने नहीं कहा कि मुझे सीएम पद से इस्तीफा दे देना चाहिए.”
तमिलनाडु को कावेरी का पानी छोड़े जाने के विरोध में किसानों और कन्नड़ समर्थक संगठनों के बेंगलुरु बंद के आह्वान पर प्रतिक्रिया देते हुए उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने कहा कि मौजूदा स्थिति में पानी छोड़ना मुश्किल है, लेकिन फिर भी सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक राज्य इसका पालन करने के लिए बाध्य है.
शिवकुमार बोले, “मौजूदा स्थिति में कावेरी का पानी छोड़ना मुश्किल होगा, लेकिन हमें सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का भी पालन करना होगा. हम कोर्ट का सम्मान करते हैं. लेकिन साथ ही हमें अपने राज्य के हितों की रक्षा करनी है, चाहे कुछ भी हो. यह हमारा कर्तव्य है.”
इस बीच, तमिलनाडु को कावेरी जल छोड़े जाने के विरोध में 26 सितंबर को कई किसानों और कन्नड़ समर्थक संगठनों द्वारा बुलाए गए ‘बेंगलुरु बंद’ से पहले राजधानी में कन्नड़ समर्थक संगठनों की एक बैठक हुई.
कन्नड़ समर्थक एक्टिविस्ट और पूर्व विधायक वतल नागराह ने बैठक के बाद मीडिया से कहा, “29 सितंबर को पूरे कर्नाटक बंद रखने का निर्णय लिया गया है. राज्य भर में 1,000 से अधिक संगठनों ने हमारे बंद का समर्थन किया है. करावे शिवरामेगौड़ा और प्रवीण शेट्टी सहित कन्नड़ समर्थक संगठनों का भी समर्थन हमें प्राप्त है.”
राज्य गन्ना उत्पादक संघ उन प्रमुख संगठनों में से एक है जिसने सबसे पहले बंद बुलाया था.
कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (CWMA) ने राज्य को 13 सितंबर से 15 दिनों के लिए अपने पड़ोसी राज्य तमिलनाडु को 5000 क्यूसेक पानी छोड़ने का आदेश दिया है, जिसके बाद से पूरे कर्नाटक में किसान विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
जस्टिस बीआर गवई, पीएस नरसिम्हा और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने गुरुवार को कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी जल विवाद में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा कि CWMA और कावेरी जल विनियमन समिति (CWRC) दोनों नियमित रूप से हर 15 दिनों में पानी की जरूरतों को पूरा कर रहे हैं और निगरानी कर रहे हैं.
अदालत ने कावेरी जल में अपनी वर्तमान हिस्सेदारी को 5,000 से बढ़ाकर 7,200 क्यूसेक प्रतिदिन करने के लिए तमिलनाडु सरकार द्वारा दायर एक आवेदन पर विचार करने से इनकार कर दिया.
तमिलनाडु ने कर्नाटक से कावेरी नदी का पानी छोड़ने के लिए नए दिशा-निर्देश मांगे थे. साथ ही यह दावा किया कि पड़ोसी राज्य ने अपना रुख बदल दिया है और पहले की सहमति के मुकाबले कम मात्रा में पानी छोड़ा है.
आज पत्रकारों से बात करते हुए तमिलनाडु के जल संसाधन मंत्री दुरई मुरुगन ने कर्नाटक से अदालत के आदेश का सम्मान करने का आह्वान किया.
मुरुगन ने कहा, “कावेरी से पानी छोड़ने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार पानी अब तमिलनाडु में आ रहा है. स्थिति को समान्य बनाए रखना तमिलनाडु सरकार का कर्तव्य है. यह राजनीतिक नैतिकता है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करना है या नहीं. हमें उम्मीद है कि छोड़े गए कावेरी जल से हम कुरुवई सिंचाई को बचा सकते हैं.”
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