नई दिल्ली/हैदराबाद: राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से बाहर निकलने के चार साल बाद, तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ गर्मजोशी से पेश आ रही है.
पिछले एक महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ लगातार हुई बैठकों ने इन अटकलों को हवा दी है कि तेदेपा प्रमुख चंद्रबाबू नायडू 2024 के लोकसभा और आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनावों को मद्देनजर भाजपा के साथ अपने गठबंधन को फिर से पटरी पर लाना चाहते हैं.
इससे पहले जुलाई में, तेदेपा ने भाजपा के औपचारिक रूप से समर्थन मांगे बिना एनडीए के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का समर्थन किया था. हालांकि टीडीपी ने द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करने की वजह उनके आदिवासी समुदाय से जुड़ा होना बताई थी. लेकिन कई लोगों ने इसे पार्टी के तौर पर एनडीए के पाले में लौटने की इच्छा के रूप में देखा.
भाजपा के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि दोनों दलों ने पहले ही ‘शुरुआती बैठक’ कर ली है जिसका मकसद दोनों दलों के बीच आई कड़वाहट को दूर करना था. लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि टीडीपी अभी भी तेलंगाना में कांग्रेस का सहयोगी दल है. और अगर नायडू फिर से बीजेपी से हाथ मिलाना चाहते हैं तो उन्हें और भी ज्यादा प्रयास करने होंगे.
बैठकों ने बढ़ाई अटकलें
6 अगस्त को नायडू ने नई दिल्ली में आजादी का अमृत महोत्सव राष्ट्रीय समिति की बैठक के दौरान मोदी से मुलाकात की थी. सूत्रों ने बताया कि प्रधानमंत्री ने तेदेपा प्रमुख के परिवार और सेहत के बारे में पूछा और राष्ट्रीय राजधानी में होने पर नायडू से मुलाकात करने के लिए भी कहा.
2019 लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए से टीडीपी बाहर हो गई थी. उसके बाद से यह पहली बार है जब नायडू ने मोदी से मुलाकात की. एनडीए से बाहर होते हुए नायडू ने कहा था कि उन्होंने राज्य के हितों को ध्यान में रखते हुए यह फैसला लिया है, क्योंकि केंद्र सरकार आंध्र प्रदेश की ‘विशेष स्थिति’ की मांग पर स्टैंड लेने से पीछे हट गई थी.
और जिस दिन नायडू ने पीएम से बात की, उनके बेटे और टीडीपी महासचिव नारा लोकेश ने कथित तौर पर दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी.
मुनुगोड़े विधानसभा उपचुनाव से पहले जायजा लेने के लिए पिछले हफ्ते ही शाह ने रामोजी फिल्म सिटी के संस्थापक रामोजी राव से मुलाकात की. राव को नायडू का करीबी माना जाता है. भाजपा सूत्रों के मुताबिक, उन्होंने शाह के साथ अपनी बैठक में आंध्र में तेदेपा और भाजपा के शामिल होने की संभावना पर चर्चा की थी.
अपनी इस दौरे में शाह ने अभिनेता जूनियर एनटीआर से भी मुलाकात की, जो टीडीपी के संस्थापक एन.टी. रामा राव के पोते हैं और उन्होंने नायडू की भतीजे से शादी की है. उन्होंने नायडू के लिए प्रचार भी किया था.
भाजपा के सूत्रों ने कहा कि शाह ने जूनियर एनटीआर की नई फिल्म ‘आरआरआर’ की तारीफ की और अभिनेता से 2024 के आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले उनकी ‘भविष्य की योजना और तेलुगु लोगों के लिए उनके संदेश’ के बारे में भी पूछा.
सूत्रों ने कहा, इन बैठकों से संकेत मिलता है कि दोनों पार्टियां राज्य में अपने गठबंधन को फिर से खड़ा करने के लिए एक-दूसरे को तैयार कर रही हैं, हालांकि अभी भी कई मुद्दे हैं जिन पर काम करने की जरूरत है.
वैसे भाजपा आलाकमान अभी इस बात पर विचार कर रहा है कि क्या नायडू के साथ फिर से गठजोड़ करने पर उसे तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में वह फायदा मिलेगा जिसकी उसे जरूरत है. तो उधर पार्टी के स्थानीय नेता भी फिर से टीडीपी के साथ गठबंधन करने के लिए उत्साहित नजर नहीं आ रहे हैं.
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‘भाजपा के साथ फिर से गठबंधन करने के लिए बेताब टीडीपी’
आंध्र प्रदेश के एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा कि नायडू ने उस समय खुद को ‘राजनीतिक रणनीति का मास्टर’ साबित कर दिया, जब उन्होंने तेदेपा कैडर को उत्साहित करने और सत्तारूढ़ वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) को भ्रमित करने के लिए पीएम के साथ अपनी छोटी सी बैठक का इस्तेमाल किया.
नेता ने यह भी कहा कि यह नायडू ही थे जिन्होंने 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी और 2018 में नरेंद्र मोदी को ‘धोखा’ दिया था.
उन्होंने आगे बताया, ‘चुनाव करीब आने के साथ-साथ, टीडीपी वाईएसआरसीपी का मुकाबला करने के लिए भाजपा के साथ फिर से गठबंधन करने के लिए बेताब है, लेकिन भाजपा को फायदा-नुकसान का विश्लेषण करना होगा क्योंकि हमें राज्यसभा और केंद्र में वाईएसआरसीपी का समर्थन मिल रहा है.’
नेता ने कहा, ‘क्या तेदेपा के साथ गठबंधन से बीजेपी को आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में अपने पैर जमाने में मदद मिलेगी- यह बड़ा सवाल है’
बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव और आंध्र प्रदेश के सह-प्रभारी सुनील देवधर ने दिप्रिंट को बताया, ‘भगवान कृष्ण कई बार दुर्योधन से मिले थे, लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि वह उनके साथ हाथ मिलाने के पक्ष में थे. उन्होंने अंततः दुर्योधन को खत्म कर दिया.’
नायडू की एनडीए में वापसी की संभावना के बारे में पूछे जाने पर देवधर ने कहा कि वाईएसआरसीपी और तेदेपा दोनों ही ‘वंशवादी’ पार्टियां हैं, जिन्होंने ‘लोगों को लूटा है’. उन्होंने कहा कि बीजेपी ने दोनों से ‘समान दूरी’ बनाए रखी है.
देवधर ने दोहराया, ‘हमारा पवन कल्याण (जन सेना पार्टी) के साथ गठबंधन है और हम उनके साथ ही विधानसभा चुनाव लड़ेंगे.’
लेकिन आंध्र प्रदेश के एक अन्य भाजपा नेता ने दावा किया कि यह अभिनेता से नेता बने पवन कल्याण ही हैं जो तेदेपा के साथ गठबंधन को फिर से खड़ा करने के लिए ‘भाजपा को आगे बढ़ा रहे हैं.’
उन्होंने बताया, ‘भाजपा, टीडीपी और जन सेना को वाईएसआरसीपी के खिलाफ एक साथ मिलकर लड़ाई लड़नी चाहिए. तभी हम उन्हें (वाईएस जगन मोहन रेड्डी) को हरा पाएंगे.’ उन्होंने कहा कि भाजपा सी नायडू के बारे में पहले बहुत उत्साहित नहीं थी, लेकिन अब ऐसा लगता है कि पार्टी ‘अपनी रणनीति फिर से तैयार कर रही है.
नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘नायडु के कमजोर विकेट के साथ, भाजपा को आंध्र प्रदेश के लिए अपनी योजना को आगे बढ़ाने की जरूरत है. हालांकि पार्टी के कई राज्य नेता नायडू के साथ गठबंधन का विरोध कर रहे हैं, लेकिन विधानसभा चुनावों में टीडीपी के पास अभी भी 39 फीसदी वोट शेयर हैं. हालांकि, आगे तभी बढ़ा जा सकता है जब वह आंध्र प्रदेश और तेलंगाना दोनों जगह भाजपा का समर्थन करने की घोषणा करें.’
‘भाजपा ने चुनाव पूर्व गठबंधन के लिए तेदेपा से संपर्क किया’
तेदेपा नेताओं ने कहा कि चंद्रबाबू नायडू जल्द ही आगे के रास्ते पर चर्चा करने के लिए अमित शाह से मिल सकते हैं.
तेदेपा नेता कुटुम्बा राव ने दिप्रिंट को बताया, ‘मोदी ने नायडू से अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य, फायनेंस– सभी क्षेत्रों को कवर करने वाली 25 साल की योजना बनाने के लिए कहा था. यह रिपोर्ट नायडू के एक स्वतंत्र संगठन GFST (ग्लोबल फोरम फॉर सस्टेनेबल ट्रांसफॉर्मेशन) द्वारा तैयार की जाएगी. हमने महामारी के दौरान रिपोर्ट तैयार की और इसे पीएम कार्यालय और उनकी टीमों को भेज दिया था.’
यह पूछे जाने पर कि क्या तेदेपा की एनडीए में वापसी पर दोनों पार्टियों के शीर्ष नेताओं के बीच चर्चा हुई है, राव ने कहा कि यह सिर्फ ‘वे दोनों (मोदी और नायडू) ही बता सकते हैं.’
इस महीने की शुरुआत में मोदी के साथ नायडू की बैठक के दौरान मौजूद राव ने कहा. ‘लेकिन भाजपा के साथ हमारे संबंधों में बहुत सुधार हुआ है. अब हम उनके साथ अच्छी स्थिति में हैं. मैंने भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से भी मुलाकात की है.’
उन्होंने बताया कि तेदेपा आंध्र प्रदेश में वाईएसआरसीपी का मुकाबला करने के लिए ‘संयुक्त विपक्ष’ के विचार के लिए तैयार है. राव ने यह भी कहा कि भाजपा ने राज्य में 2023 विधानसभा चुनावों से पहले तेलंगाना में चुनाव पूर्व गठबंधन के लिए तेदेपा से संपर्क किया था.
उन्होंने साफ किया कि तेदेपा ने अभी तक एनडीए में वापसी पर कोई ठोस फैसला नहीं लिया है.
राव बताते हैं, ‘आंध्र प्रदेश में अगर हम गठबंधन करते हैं तो तेदेपा पर बीजेपी की जिम्मेदार बढ़ जाएगी.’ राव टीडीपी के 23 की तुलना में शून्य विधायकों के साथ राज्य में भाजपा की सीमित उपस्थिति की ओर इशारा कर रहे थे.
आंध्र प्रदेश के सीएम वाईएस जगन मोहन रेड्डी के सलाहकार वाईएसआरसीपी नेता सज्जला रामकृष्ण रेड्डी ने कहा कि टीडीपी 2019 के विधानसभा चुनावों में अपनी हार के बाद से ‘वेंटिलेटर स्टेज’ पर है.
बीजेपी को टीडीपी की जरूरत क्यों
राज्य में भाजपा का विधानसभा वोट शेयर 2014 में 4.13 प्रतिशत (संयुक्त आंध्र) से गिरकर 2019 में 0.8 प्रतिशत हो गया. आंध्र प्रदेश को ‘विशेष दर्जा’ देने के लिए केंद्र की अनिच्छा के चलते ऐसा हुआ था. यहां तक कि भाजपा की गठबंधन सहयोगी जन सेना 2019 के विधानसभा चुनाव में हुए कुल मतों का केवल 5.53 प्रतिशत ही हासिल कर पाई थी.
2019 के लोकसभा चुनावों में NOTA ने 1.5 फीसदी वोट को साथ, आंध्र प्रदेश में भाजपा (0.96 फीसदी) से बेहतर प्रदर्शन किया था. 2014 की तुलना में जब उसने तेदेपा के साथ गठबंधन किया और संयुक्त आंध्र प्रदेश में तीन लोकसभा सीटें और नौ विधानसभा सीटें जीतीं, तो भी भाजपा 2019 में दोनों मोर्चों पर अपना खाता खोलने में विफल रही थी.
इसका सिकुड़ता वोट शेयर, सीमित जमीनी कैडर और भावनात्मक मुद्दों की कमी आंध्र प्रदेश में भाजपा के लिए एक लंबी राह की ओर इशारा करती है.
जहां तक टीडीपी का सवाल है, हालांकि 2019 के विधानसभा चुनावों में उसे भारी हार का सामना करना पड़ा था. वाईएसआरसीपी की 151 के मुकाबले उसे सिर्फ 23 सीटें मिली थीं. उसके बावजूद वह 39 प्रतिशत वोट हासिल करने में सफल रही थी.
तेदेपा नेता स्वीकार करते हैं कि ‘नायडू को न सिर्फ केंद्र सरकार के समर्थन की जरूरत है, बल्कि वाईएसआरसीपी को घेरने के लिए मोदी की लोकप्रियता की भी जरूरत है.’
तेदेपा का अभी भी पर्याप्त वोट शेयर आंध्र प्रदेश में भाजपा के लिए फायदेमंद हो सकता है, लेकिन यह भाजपा को आकलन करना है कि क्या नायडू के साथ अपने गठबंधन को पुनर्जीवित करने से पार्टी को राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी.
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