नई दिल्ली: 60 वर्षीय कमल, जो दिल्ली के जंगपुरा में दर्जी का काम करते हैं और वहीं रहते हैं, के लिए पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल “झूठ नहीं बोलते.”
वह अकेले नहीं हैं. राजधानी के कई निवासियों के लिए, भले ही केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) की चमक कुछ कम हो गई हो, लेकिन उनकी राजनीतिक छवि पर ज्यादा असर नहीं पड़ा है.
कमल, जो लंबे समय से दिल्ली में रह रहे हैं और कई सरकारों के उतार-चढ़ाव देख चुके हैं, ने केजरीवाल को राजनीति में कदम रखने के बाद से ही वोट दिया है. भोगल निवासी कमल ने आप के मुफ्त सेवाओं और स्कूलों और अस्पतालों में सुधार के काम को अपना कारण बताया.
2010 में केजरीवाल अन्ना हजारे के नेतृत्व वाले जन लोकपाल आंदोलन के हिस्से के रूप में राष्ट्रीय मंच पर उभरे. 2012 में, उन्होंने आप की स्थापना की, जिसे उन्होंने “भ्रष्टाचार के खिलाफ हमारी लड़ाई का परिणाम” कहा.
2013 के चुनावों में, आप और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने कांटे की टक्कर दी, जिससे कांग्रेस का राजधानी की राजनीति पर वर्चस्व खत्म हो गया. केजरीवाल कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री बने.
उन्होंने केवल 49 दिनों तक मुख्यमंत्री पद संभाला और इस दौरान, दिसंबर 2013 से फरवरी 2014 के बीच, केजरीवाल ने हर परिवार के लिए प्रति माह 20,000 लीटर मुफ्त पानी और 400 यूनिट तक बिजली उपयोग करने वाले दिल्ली निवासियों के लिए 50 प्रतिशत की दर कटौती की घोषणा की.
2015 के शुरुआती चुनावों में, जब आम आदमी पार्टी ने 70 में से 67 सीटें जीतीं, तो न्यूयॉर्क टाइम्स ने इसे “छोटा राजनीतिक भूकंप” करार दिया, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकसभा चुनाव में जीत के एक साल बाद राजधानी में आया था.
2020 विधानसभा चुनावों से कुछ महीने पहले, केजरीवाल ने दिल्लीवासियों के लिए और अधिक मुफ्त सेवाओं की घोषणा की—महिलाओं के लिए बसों में मुफ्त यात्रा और 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली—जिससे दिल्ली पर आप की पकड़ और मजबूत हुई. उस साल पार्टी ने 62 सीटें जीतीं.
हालांकि, तीसरा कार्यकाल—दूसरा पूर्ण कार्यकाल—ज्यादा प्रभावशाली नहीं रहा, और कोई बड़ी नीति की घोषणा नहीं हुई. इस साल 5 फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले, उन्होंने आप सरकार की महिला सम्मान राशि योजना के तहत पात्र महिलाओं को मिलने वाली मासिक सहायता राशि को 1,000 रूपए से बढ़ाकर 2,100 रूपए करने का वादा किया.
इसके साथ ही उन्होंने कई अन्य मुफ्त सेवाओं की घोषणा की, जैसे वरिष्ठ नागरिकों के लिए मुफ्त स्वास्थ्य सेवा, ऑटो चालकों के लिए जीवन बीमा और दुर्घटना बीमा, वृद्धावस्था पेंशन योजना का विस्तार, और दलित छात्रों के लिए स्कॉलर्शिप.
लेकिन मतदाता इन वादों को लेकर शंकित हैं और आप सरकार के शासन में आई खामियों को भी नोटिस कर रहे हैं.
पिछले दो हफ्तों में, दिप्रिंट ने दिल्ली के 21 झुग्गियों, जे.जे. पुनर्वास कॉलोनियों और निम्न-मध्यम वर्ग के घरों का दौरा किया. 10 साल सत्ता में रहने के बाद, आप सरकार के खिलाफ सत्ता-विरोधी भावना (एंटी-इनकंबेंसी) देखने को मिली. हालांकि, केजरीवाल पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप जनता के बीच ज्यादा असर नहीं डाल सके, क्योंकि लोगों ने इसे बीजेपी की राजनीतिक चाल के रूप में देखा.
कमल ने भी इस बात से सहमति जताई कि केजरीवाल ने पिछले कुछ वर्षों में कोई बड़ा असरदार कदम नहीं उठाया है, लेकिन इसके लिए उन्होंने उपराज्यपाल को जिम्मेदार ठहराया.
“वह नीतियां लाने की कोशिश करते हैं, लेकिन केंद्र और उपराज्यपाल उन्हें काम नहीं करने देते. अगर उपराज्यपाल को शासन करना है, तो फिर चुनाव क्यों कराते हैं?”
वह अभी भी आगामी विधानसभा चुनावों में आप को वोट देने की योजना बना रहे हैं. “तो क्या हमें बीजेपी को वोट देना चाहिए जो दिल्ली की चुनी हुई सरकार को काम नहीं करने देती? वे गुंडागर्दी कर रहे हैं, और हमें उन्हें वोट देना चाहिए? यह सिस्टम की बात है.”
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भ्रष्टाचार के आरोप बेअसर
कमल पूरी तरह से दिल्ली सरकार के प्रदर्शन से संतुष्ट नहीं थे. उदाहरण के लिए, उन्होंने कहा कि निवर्तमान जंगपुरा विधायक प्रवीण कुमार को लेकर लोगों में असंतोष था. “उन्होंने पहले कार्यकाल में अच्छा काम किया था, लेकिन तीसरे कार्यकाल में ज्यादा कुछ नहीं किया. यहां उनके प्रति नकारात्मक धारणा है, यही कारण है कि लोग उनसे नाराज थे.”
कमल का कहना है कि अगर आप ने कुमार को फिर से उम्मीदवार बनाया होता, तो वोट गिर जाते. लेकिन इस बार पार्टी ने पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को मैदान में उतारा है.
“सिसोदिया ने शिक्षा में बहुत अच्छा काम किया है और उनके प्रति सहानुभूति भी है,” उन्होंने कहा. सिसोदिया ने 2020-2021 की दिल्ली आबकारी नीति में कथित अनियमितताओं की जांच के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के मामलों में लगभग 17 महीने जेल में बिताए. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें पिछले साल अगस्त में जमानत दी थी.
केजरीवाल को भी इस मामले में पिछले साल मार्च में ईडी ने गिरफ्तार किया था, जिससे वह पहले ऐसे वर्तमान मुख्यमंत्री बन गए जिन्हें गिरफ्तार किया गया. उस समय, केजरीवाल और आप नेताओं ने बीजेपी के नेतृत्व वाले केंद्र पर विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने के लिए केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था.
बाद में उन्हें पिछले साल सितंबर में जमानत मिल गई. उनके इस्तीफे के बाद, वरिष्ठ आप विधायक आतिशी को मुख्यमंत्री के पद पर पदोन्नत किया गया.
तब से, दोनों पार्टियों के बीच राजनीतिक विवाद छिड़ गया है, जिसमें एक-दूसरे पर महंगे और भव्य आवास बनाने का आरोप लगाया जा रहा है. बीजेपी ने आप के राष्ट्रीय संयोजक के 6 फ्लैगस्टाफ रोड स्थित बंगले को “शीश महल” कहा, जबकि आप ने पीएम मोदी के आवास को “राज महल” बताया.
इन आरोपों का मतदाताओं पर कोई खास असर नहीं दिखा. वाल्मीकि बस्ती के निवासी लच्छो ने कहा, “जब कोई व्यक्ति ऐसे पद पर होता है, तो वह शीश महल में ही रहता है. क्या मोदी शीश महल में नहीं रहते?”
यह बस्ती नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है, जहां केजरीवाल वर्तमान विधायक हैं। इस बार भी वह इसी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं और उनके खिलाफ बीजेपी के प्रवेश वर्मा और पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे, कांग्रेस उम्मीदवार संदीप दीक्षित हैं.
हालांकि, कई शासन संबंधी मुद्दों ने लोगों को सत्ताधारी पार्टी के प्रति अपने समर्थन पर संदेह करने पर मजबूर कर दिया है.
वाल्मीकि बस्ती से 12 किलोमीटर दूर, कालका जी विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत करपुरी ठाकुर जन जीवन कैंप में, महिलाओं का एक समूह कैंप के बीचों-बीच एक बेंच के पास इकट्ठा हुआ. वे अपनी कॉलोनी में शासन की खामियों को लेकर नाराज थीं.
“कोई हमें पीने का पानी नहीं दे सका. हमें जल विहार, नेहरू नगर, निवासपुरी से पानी लाना पड़ता है…हर कोई चुनाव के दौरान वादे करता है, लेकिन हमारे लिए कुछ नहीं करता,” 60 वर्षीय गीता देवी ने दिप्रिंट को बताया. “चुनाव के बाद वे हमें भूल जाते हैं, तो हम किस पर भरोसा करें?”
पिछले दो चुनावों में, उन्होंने केजरीवाल को वोट दिया था.
उन्होंने कहा, “उन्होंने हमें उम्मीद दी, कहा कि वह हमें लीला दिखाएंगे, लेकिन नाटक भी नहीं दिखाया,”
हालांकि, वे अभी भी केजरीवाल को एक और मौका देने पर विचार कर रही थीं.
“उन्होंने हमारे लिए कुछ काम तो किया है. यह मैदान जहां हम खड़े हैं, आतिशी मैडम ने यह पार्क बनवाया. यह पहले दलदल था, लेकिन अब बच्चे यहां खेल सकते हैं,” 38 वर्षीय संगीता देवी ने समझाया.
उन्होंने कहा कि वह तब तक केजरीवाल को वोट देना जारी रखेंगी, जब तक उनके बच्चे—तीन बेटियां और एक बेटा—सरकारी स्कूलों में अच्छी शिक्षा प्राप्त करते रहेंगे.
उन्होंने कहा, “यहां जिसका भी बच्चा सरकारी स्कूल जा रहा है, वे केजरीवाल को वोट देंगे…इस बार सभी बच्चों को मुफ्त यूनिफॉर्म और किताबें मिली हैं, आतिशी मैडम ने यह किया है, वरना यह सब बहुत महंगा पड़ता था.”
आतिशी ने 2020 के विधानसभा चुनाव में कालकाजी विधानसभा क्षेत्र से जीत हासिल की थी. आगामी चुनाव के लिए भी उन्होंने इसी सीट से नामांकन दाखिल किया है और उनके खिलाफ बीजेपी के वरिष्ठ नेता रमेश सिंह बिधूड़ी और कांग्रेस की अलका लांबा हैं.
इस कैंप की महिलाओं ने स्पष्ट किया कि आम चुनाव में पीएम मोदी ही उनकी पसंद हैं.
देवी ने कहा,“लेकिन अगर आप दिल्ली और केंद्र दोनों को एक ही व्यक्ति को सौंप देंगे, तो आपका काम कभी नहीं होगा.”
पूर्वी दिल्ली के गीता कॉलोनी में, सफेदा बस्ती की 24 वर्षीय निवासी निशा ने कहा कि उनके पांच बच्चे हैं और वह पिछले तीन साल से राशन कार्ड के लिए आवेदन कर रही हैं, लेकिन उन्हें अभी तक कार्ड नहीं मिला है। इसके लिए उन्होंने आप सरकार को दोषी ठहराया.
“शुरुआत में उन्होंने बहुत कुछ किया. दवाखाने बनाए, डॉक्टर भी अच्छा काम कर रहे थे. लेकिन अब कुछ भी काम नहीं कर रहा है. पहले यहां मेडिकल स्टोर भी नहीं था, हमें मोहल्ला क्लिनिक, बाथरूम मिले…लेकिन अब कोई हमारी सुनता ही नहीं है,” उन्होंने दिप्रिंट को बताया.
पिछले साल एक राजनीतिक विवाद में, दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना ने मुख्य सचिव को आप सरकार की कथित विफलता की जांच के निर्देश दिए थे, जिसमें 90,000 गरीब लोगों को राशन कार्ड जारी नहीं करने का आरोप था. इसके जवाब में, आप ने इन आरोपों को “निराधार, दुर्भावनापूर्ण, मनगढ़ंत और शरारतपूर्ण” बताया था.
हालांकि, निशा ने इसके लिए कृष्णा नगर क्षेत्र के प्रतिनिधि एस.के. बग्गा को जिम्मेदार ठहराया. अब आप ने उनके बेटे विकास बग्गा को इस सीट के उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा है.
‘आम आदमी‘ की छवि
केजरीवाल की भ्रष्टाचार विरोधी विचारधारा, जिसने 2013 में शीला दीक्षित सरकार को सत्ता से बेदखल किया था, AAP सरकार के तीसरे कार्यकाल के दौरान सवालों के घेरे में आ गई, खासकर कथित आबकारी नीति घोटाले के कारण, जिसमें न केवल वरिष्ठ नेता, उस समय के आबकारी मंत्री मनीष सिसोदिया और आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह, बल्कि खुद मुख्यमंत्री भी फंसे.
बीजेपी ने पिछले दशक में दिल्ली निवासियों के बीच गूंजने वाली उनकी ‘आम आदमी’ छवि पर भी सवाल उठाए, और 6 फ्लैगस्टाफ रोड स्थित बंगले में जिम, सॉना रूम, जैकूज़ी और महंगे झूमरों के वीडियो जारी किए.
हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक चंद्रचूड़ सिंह ने कहा कि कई भारतीय नेता भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद चुनावी रूप से सफल रहे हैं.
“मुझे नहीं लगता कि ये भ्रष्टाचार के आरोप मतदाताओं के लिए वास्तव में मायने रखते हैं,” सिंह ने दिप्रिंट को बताया.
यह बात जमीनी भावना से भी प्रमाणित होती दिख रही है. मेहरौली के मोतीलाल नेहरू कैंप की निवासी रेखा ने कहा, “हमें उन पर विश्वास है.”
“उनका समय इंदिरा गांधी के समय जैसा लगता है. उन पर भी आरोप लगे थे. लेकिन केजरीवाल हमारे लिए सबसे अच्छे हैं,” 48 वर्षीय रेखा ने कहा.
हालांकि, सिंह ने कहा कि इन आरोपों का प्रभाव मध्यम वर्ग के मतदाताओं के बीच अधिक महसूस किया जा सकता है.
“भले ही उन्हें अपनी योजनाओं के कारण निम्न वर्ग का समर्थन मिलता रहे, लेकिन उनके वोट बैंक में मध्यम वर्ग और कुछ हद तक निम्न मध्यम वर्ग के बीच काफी हद तक कमी आई है.”
सिंह ने इसका कारण बताते हुए कहा कि केजरीवाल ने कांग्रेस के खिलाफ एक सामाजिक आंदोलन के बल पर सत्ता में कदम रखा, जिसने 2014 में नरेंद्र मोदी को सत्ता में लाने में भी योगदान दिया, लेकिन वह इस गति को बनाए रखने में असफल रहे.
“हुआ यह कि मोदी ने उस गति को जारी रखा, जो उन्हें कांग्रेस के खिलाफ भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के कारण मिली थी, इसे शासन के मुद्दों, राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के साथ जोड़कर,” सिंह ने कहा. “लेकिन केजरीवाल के मामले में हुआ यह कि उन्होंने बहुत जल्दी ही अपनी गति खोनी शुरू कर दी.”
सिंह ने कहा कि समस्या इस तथ्य में निहित है कि एक आदर्शवादी मंच से केजरीवाल ने बहुत जल्दी व्यावहारिक राजनीति (रियलपॉलिटिक) की ओर रुख किया और अपनी महत्वाकांक्षाओं को स्पष्ट कर दिया।
सिंह ने कहा, “वहां से, उन्होंने अपने वादों पर पूरी तरह से पकड़ खो दी.”
‘शासन को छोड़कर सब कुछ’
चुनावों में आप के नागरिक मुद्दों पर प्रदर्शन की भी परीक्षा होगी. 2022 में आप ने दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) पर नियंत्रण के लिए हाई-स्टेक्स लड़ाई जीती, जिससे स्थानीय निकाय पर बीजेपी के 15 साल के नियंत्रण का अंत हुआ.
पिछले दो साल बिल्कुल भी सहज नहीं रहे, दोनों पार्टियां लगातार एक-दूसरे से भिड़ती रहीं. महापौर चुनाव और 18 सदस्यीय स्थायी समिति के चुनावों को लेकर विवाद हुआ, जिसके बिना 5 करोड़ रुपये से अधिक की कोई भी नागरिक सेवा स्वीकृत नहीं हो सकती. इसके कारण कई नागरिक मुद्दे अनसुलझे रह गए.
45 वर्षीय सीमा, जो मेहरौली के मोतीलाल नेहरू कैंप में एक किराना दुकान चलाती हैं, ने इलाके में व्याप्त समस्याओं की एक सूची बताई, जिसमें सीवर की सफाई की कमी और मानसून के दौरान जलभराव शामिल हैं.
इस बीच, 23 किलोमीटर दूर, पूर्वी दिल्ली के सफेदा बस्ती में 22 वर्षीय ज्योति ने भी कहा कि उनकी झुग्गी के आसपास का क्षेत्र पिछले 10 वर्षों में साफ नहीं किया गया है. उन्होंने गली के बीच से बहते खुले सीवर की ओर इशारा किया. उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार ने 2022 में दो शौचालय बनाए थे, लेकिन तब से उनकी देखभाल नहीं की गई.
उन्होंने कहा, “यह बिल्कुल साफ नहीं है. पुरुष शौचालय के दरवाजों से झांकते हैं, सब कुछ टूटा हुआ है. पानी भी नहीं है.”
राजनीतिक विश्लेषकों ने कहा कि केजरीवाल का शासन पर ध्यान न देना राजधानी में उनके समर्थन आधार को कमजोर कर रहा है.
“वह कुछ उम्मीदों के साथ आए थे, लेकिन वह उसे उस प्रभाव में बदल नहीं सके, जो उन्हें होना चाहिए था,” सिंह ने कहा.
“केजरीवाल अब सब कुछ हैं, सिवाय शासन के। यही सबसे बड़ा नुकसान है.”
हालांकि, इनमें से कई निवासी अभी भी केंद्र और केजरीवाल की गिरफ्तारी को शहर के शासन में मंदी के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं.
पुरानी नीतियां अभी भी प्रभावी
कई निवासी अब भी केजरीवाल को उनकी दूसरी पारी में शुरू की गई तीन मुफ़्त सुविधाओं—बिजली, पानी और बस सवारी—और सरकार द्वारा मोहल्ला क्लीनिक व सरकारी स्कूलों पर किए गए काम से जोड़ते हैं.
राष्ट्रीय राजधानी में एक दशक लंबे शासनकाल में, आप ने दिल्ली भर में 500 से अधिक मोहल्ला क्लीनिक स्थापित किए हैं, जिससे स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत किया गया है. पार्टी का दावा है कि उसने शहर की शिक्षा प्रणाली में “क्रांति” ला दी है, जिसमें शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम और बुनियादी ढांचे का विकास शामिल है.
यही यादें उनके अवसरों को मजबूत करती दिखाई दीं. जबकि 57 वर्षीय गीता कॉलोनी निवासी, देवकी, को लगता है कि उनके लिए किसी भी पार्टी ने कुछ नहीं किया, वह फिर भी केजरीवाल की आभारी हैं, जिन्होंने 2022 में उनके पति को एसिड पीने के बाद “बचाया.”
“निजी अस्पताल ने कहा कि इलाज में लगभग 50-55 लाख रुपये लगेंगे. तो हम एलएनजेपी (लोक नायक अस्पताल) भागे. वहां सब कुछ केजरीवाल (दिल्ली सरकार) ने संभाल लिया,” उन्होंने अपनी अस्थायी साइकिल मरम्मत की दुकान के सामने बैठे हुए याद किया.
“वह मेरे पति की बेटे की तरह मदद कर रहे हैं, उन्हें इलाज दे रहे हैं,” उन्होंने आगे कहा.
पूर्वी दिल्ली के न्यू सीलमपुर में, 55 वर्षीय गुलशन के घर के सामने की दीवार केजरीवाल से पहले के समय की याद दिलाती है. दीवार के उस पार का मैदान तब उनका सहारा हुआ करता था जब घर में बिजली नहीं होती थी.
“हम चटाई बिछाकर बाहर सोते थे. लाइट नहीं थी…अगर वह हमें वादा किए गए 2100 रुपये में से एक पैसा भी न दें, तब भी हम उन्हें वोट देंगे.”
“पैसे से वोट नहीं देते, दिल से देते हैं.”
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