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Saturday, 21 December, 2024
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BKU नेता राकेश टिकैत ने कहा- ‘BJP का ध्रुवीकरण UP में काम नहीं करेगा, किसान जानते हैं किसे वोट देना है’

राकेश टिकैत का कहना है कि किसान 31 जनवरी को वादा ख़िलाफी दिवस के तौर पर मनाएंगे, चूंकि मोदी सरकार ने अभी MSP सुनिश्चित करने, और किसानों के खिलाफ दर्ज मुक़दमे वापस लेने का वादा पूरा नहीं किया है.

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सिसौली (मुज़फ्फरनगर): 2020 में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीन विवादास्पद कृषि क़ानूनों के खिलाफ, जो अब वापस लिए जा चुके हैं, एक साल चले किसान आंदोलन के एक सबसे प्रमुख चेहरे, भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत के लिए आंदोलन भले ख़त्म हो गया हो, लेकिन बाक़ी मांगों के लिए केंद्र के खिलाफ उनकी लड़ाई अभी जारी है.

इन मांगों में फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करना, और आंदोलन के दौरान कुछ किसानों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लिया जाना शामिल है.

दिप्रिंट से बात करते हुए टिकैत ने इन ख़बरों को ख़ारिज कर दिया कि इसी महीने केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान के बीकेयू चीफ और उनके भाई नरेश टिकैत से मिलने के बाद, बीकेयू ने बीजेपी के प्रति अपना रुख़ नर्म कर लिया है. यूनियन के सचिव राकेश टिकैत ने कहा कि देशभर के किसान केंद्र द्वारा किए गए वादों के अभी तक पूरा न किए जाने के विरोध में, 31 जनवरी को ‘वादा ख़िलाफी दिवस’ के रूप में मनाएंगे. टिकैत ने कहा कि उस दिन देशभर के किसान अपनी मांगों का ज्ञापन, ज़िला मजिस्ट्रेट्स और सब-डिवीज़नल मजिस्ट्रेट्स को सौंपेंगे.

52 वर्षीय किसान नेता हाल ही में लखीमपुर खीरी से लौटें हैं, जहां स्थानीय लोग मांग कर रहे हैं कि केंद्र की बीजेपी सरकार, केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा ‘टेनी’ को हटा दे, जिनका बेटा उस घटना में अभियुक्त है जिसमें एक क़ाफिले ने आंदोलनकारी किसानों के एक ग्रुप पर गाड़ियां चढ़ा दीं थीं.

सिसौली गांव में अपने घर में बैठे हुए जिसे जाट समुदाय का गढ़ माना जाता है, राकेश टिकैत ने ये भी दावा किया कि अगले महीने होने वाले चुनावों में ‘कैराना का उदाहरण’ देकर मतदाताओं को बांटने की केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की कोशिश कामयाब नहीं होगी, चूंकि चुनाव लड़ने का वो मॉडल अब पुराना हो चुका है.

पिछले हफ्ते यूपी के कैराना में डोर-टु-डोर प्रचार के दौरान शाह उन परिवारों से मिलने गए जो 2017 में सांप्रदायिक हिंसा के बाद इलाक़े से हिंदुओं के कथित पलायन से प्रभावित हुए थे. गृहमंत्री ने दावा किया था कि उनकी वापसी, राज्य में योगी आदित्यनाथ सरकार के अंतर्गत क़ानून व्यवस्था की स्थिति सुधरने से ही मुमकिन हो पाई है.


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‘किसान जानते हैं कि चुनावों में क्या करना है’

टिकैत ने बहुत सारे मुद्दों पर दिप्रिंट के साथ बातचीत की, किसानों के विरोध से लेकर सीएम योगी के इन दावों तक कि यूपी चुनाव ‘80 प्रतिशत बनाम 20 प्रतिशत’ की लड़ाई हैं, जिसका व्यापक रूप से ये मतलब निकाला गया कि इसका इशारा राज्य की आबादी में हिंदुओं और मुसलमानों के अनुपात और पंजाब की किसान यूनियनों की ओर है, जो अगले महीने असेम्बली चुनाव लड़ रही हैं.

उन्होंने कहा, ‘हम यहां ख़ामोश नहीं बैठे हैं. पिछले हफ्ते मैं लखीमपुर खीरी गया था. हम मांग कर रहे हैं कि केंद्रीय मंत्री टेनी को हटाया जाए और जो लोग किसानों की हत्या के ज़िम्मेवार हैं उन्हें सज़ा दी जाए. हम ये भी मांग कर रहे हैं कि सरकार एमएसपी पर क़ानून बनाए’.

‘हमने सरकार को अपनी मांगें पूरी करने के लिए समय दिया है. एमएसपी सुनिश्चित करना उनमें से एक मांग थी. हालांकि इस पर हमारे बीच सहमति बन गई थी, लेकिन इसके लिए अभी तक कमेटी का गठन नहीं किया गया है’.

कुछ आंदोलनकारी किसानों के खिलाफ दर्ज मामलों के अभी तक वापस न लिए जाने पर टिकैत ने कहा कि ‘हरियाणा के अलावा कहीं और मामले वापस नहीं लिए गए हैं’.

उन्होंने कहा, ‘हम 31 जनवरी को पूरे देश में विश्वासघात दिवस के रूप में मनाएंगे. उस दिन हम देशभर के डीएम और एसडीएम कार्यालयों पर विरोध प्रदर्शन करेंगे. अगर वो (सरकार) अपने वादे को पूरा नहीं करते, तो हम अपना आंदोलन फिर शुरू कर देंगे’.

इस सवाल के जवाब में कि क्या आंदोलन की मौजूदा ख़ामोशी का ये मतलब निकाला जाए कि असेम्बली चुनावों के कारण लखीमपुर घटना को लेकर यूनियनें सरकार पर पर्याप्त दवाब नहीं डाल रही हैं, टिकैत ने स्पष्ट किया कि इस समय कोविड मामलों में आए उछाल की वजह से वो लोगों के जमावड़े नहीं लगा रहे हैं.

उन्होंने दावा किया, ‘हम कोविड दिशा-निर्देशों का पालन कर रहे हैं, लेकिन शांत आंदोलन जारी है. कभी कभी शांत आंदोलन देखने में नज़र नहीं आते, लेकिन उनका असर तब महसूस होता है, जब वो व्यवस्था को प्रभावित करते हैं. ये हमारा दबाव ही था जिसकी वजह से सरकार ने लखीमपुर खीरी घटना में प्रभावित लोगों को मुआवज़ा दे दिया है’.

आगामी चुनावों का ज़िक्र करते हुए टिकैत ने आगे कहा, ‘(सभी किसान) जानते हैं कि उन्हें चुनावों में क्या करना है, अपना वोट कहां डालना है. आंदोलन (कृषि क़ानूनों के खिलाफ) के दौरान 13 महीनें मुसीबतें झेलने के बाद, अगर उन्हें अभी भी ये मालूम नहीं है तो इसका मतलब ये है कि मेरी ट्रेनिंग में कहीं कोई ख़ामी है’.

‘BJP का ध्रुवीकरण मॉडल वैसा ही पुराना है, जैसी NGT-प्रतिबंधित पुरानी गाड़ियां’

ये पूछे जाने पर कि क्या सीएम आदित्यनाथ के ‘80 प्रतिशत बनाम 20 प्रतिशत’ वोटों के उल्लेख और गृहमंत्री अमित शाह के कैराना से हिंदुओं के पलायन का मुद्दा उठाने के नतीजे में किसानों के बीच धार्मिक बटवारा हो सकता है, टिकैत ने बीजेपी के ‘धर्म-आधारित ध्रुवीकरण’ की तुलना पुरानी गाड़ियों से की, जिन पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने प्रतिबंध लगा दिया है.

उन्होंने कहा, ‘बीजेपी चुनावों का पुराना ध्रुवीकरण मॉडल शुरू करना चाह रही है. लेकिन किसान बीजेपी के इस चुनावी मॉडल को समझ गए हैं और अब वो इस झांसे में नहीं आने वाले. अगर कोई किसान अपनी उपज को आधे दाम पर बेचना चाहता है, तो वो बीजेपी को वोट देने के लिए स्वतंत्र हैं’.

बीकेयू नेता ने अपनी पहले की टिप्पणी पर भी विस्तार से बात की, जिसमें उन्होंने कहा था कि किसान किसी पार्टी विशेष के नहीं, बल्कि सरकार की नीतियों के खिलाफ थे, जिसका मतलब ये निकाला जा सकता था कि वो बीजेपी के खिलाफ नहीं हैं.

टिकैत ने फिर ज़ोर देकर कहा, ‘हमारा विरोध सरकार के खिलाफ है, किसी राजनीतिक पार्टी के खिलाफ नहीं. लेकिन उन्होंने ये भी कहा: ‘अब समय आ गया है कि सरकार और पार्टी के बीच भेद पर बहस की जाए, ताकि कोई प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री अपनी पार्टी के लिए काम न करे (बल्कि सरकार और देश के लिए काम करे), ताकि कोई प्रधानमंत्री देश की संपत्ति को बेच न सके’.

बुधवार को गया में हुई घटना का उल्लेख करते हुए टिकैत ने पूछा, ‘एक साज़िश चल रही है कि भारत को एक मज़दूरों का देश बना दिया जाए. इस देश में बेरोज़गारी एक बड़ा मुद्दा है. बिहार में, नौकरी के इच्छुक लोग इतने लंबे समय से रेलवे में नौकरियों के लिए आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन कोई सुन नहीं रहा है. बल्कि उन पर आंसू गैस छोड़ी गई. क्या ये तरीक़ा है उनके साथ बर्ताव का’.

‘बेरोज़गारी हमारे एजेंडे में भी है. ये लड़ाई 70 साल (आज़ादी के बाद से), बनाम सात साल (मोदी सरकार के) बनाम अगले 70 सालों की है. उन आने वाले वर्षों के लिए एक रोडमैप की ज़रूरत है. हर राजनीतिक पार्टी वोटों के लिए काम करती है. इस पर रोक लगनी चाहिए. प्रधानमंत्री को अपनी पार्टी के फायदे के लिए क्यों काम करना चाहिए? सभी पार्टियां राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर एकजुट होकर, सर्वसम्मति से एक स्वास्थ्य और शिक्षा नीति क्यों नहीं बना लेतीं, जिसका पार्टी जुड़ाव से हटकर सभी सरकारें पालन करें?’

टिकैत ने कहा, ‘लेकिन चुनाव जीतने की एक होड़ लगी है, और पार्टियां सिर्फ वोट हासिल करने पर ध्यान लगा रही हैं. जो भी सीएम या पीएम बनता है, वो अपनी पार्टी के लिए काम करता है. ये स्थिति दुखद है’.


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‘आंदोलन को 2023 तक चलाने के लिए तैयार था’

ये पूछने पर कि क्या समाजवादी पार्टी (एसपी) नेता अखिलेश यादव और राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के जयंत चौधरी ने, उन्हें आगामी चुनावों में एक सीट की पेशकश करने के लिए बुलाया था, टिकैत ने कहा, ‘मेरे सभी नेताओं के साथ संबंध हैं. उन्होंने मुझे बुलाया है लेकिन एक ऐसे नेता के तौर पर, जो किसानों और छात्रों के लिए लड़ता है, मेरी भूमिका चुनाव लड़ने से ज़्यादा ताक़तवर है’.

उन्होंने कहा, ‘पिछले साल मैंने राजस्थान में अपने क़ाफिले पर हुए एक हमले के बारे में ट्वीट किया था. आठ घंटे के अंदर उस मामले को सुलझा लिया गया. ये है आंदोलन की ताक़त. आंदोलन चलते रहना चाहिए’.

हालांकि एसपी और आरएलडी दोनों ने किसान आंदोलन का समर्थन किया, लेकिन टिकैत पार्टियों का खुला समर्थन करने में झिझकते रहे हैं. लेकिन उन्होंने कहा, ‘लोग मेरी भाषा समझते हैं, उन्हें पता हा कि किसे वोट देना है’.

क्या योगी सरकार के कार्यकाल में यूपी में क़ानून व्यवस्था वास्तव में सुधर गई, जैसा कि बीजेपी दावा करती है, इस पर टिकैत ने कहा, ‘अब मामले दर्ज ही नहीं होते, इसलिए संख्या पता नहीं चलती. लेकिन भ्रष्टाचार बढ़ गया है. अगर पहले 500 रुपए का भ्रष्टाचार था (रिश्वत या किकबैक के रूप में), तो अब वो बढ़कर 5,000 रुपए पहुंच गया है’.

नेता ने इन सवालों का जवाब भी दिया कि किसान आंदोलन को अराजनीतिक बताए जाने के बावजूद, आंदोलन के कुछ सदस्यों ने चुनाव लड़ने का फैसला क्यों किया. उन्होंने कहा, ‘हमने फैसला किया है कि हम चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, संयुक्त किसान मोर्चा (आंदोलन की अगुवाई कर रहा किसान यूनियनों का छाता संगठन एसकेएम) अराजनीतिक है. लेकिन कुछ सदस्यों ने चुनाव लड़ने के लिए मोर्चे से चार महीने की छुट्टी ले ली है. चुनावों के बाद वो मोर्चे में वापस आ जाएंगे. चुनाव लड़ना हर किसी का अधिकार है, ये हर व्यक्ति का लोकतांत्रिक अधिकार है’.

किसानों के हितों के सवाल पर वापस लौटते हुए, जो उनके दिमाग़ में सबसे ऊपर है, टिकैत ने देश के लिए एक मज़बूत कृषि नीति की ज़रूरत की भी बात की.

उन्होंने कहा, ‘1966-67 में देश में पहली बार गेहूं के लिए एमएसपी शुरू किया गया था. (उस समय) तीन क्विंटल गेहूं के बदले आप एक तोला गेहूं ख़रीद सकते थे’.

उन्होंने आरोप लगाया कि ‘उसके बाद से दूसरी चीज़ों के दाम बढ़ गए हैं, सोने की क़ीमतें कई गुना बढ़ गईं हैं, बाज़ार बढ़ गया है, लेकिन सरकार एक क्विंटल गेहूं के लिए 15,000 रुपए नहीं देगी (गेहूं का वर्तमान मूल्य 1,500-1,600 प्रति क्विंटल है). सरकार मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल मुहैया कराती है, लेकिन आप किसानों को कुछ नहीं देंगे. किसानों की किसी को चिंता नहीं है’. उन्होंने ये भी कहा, ‘लंबे समय तक ऐसा नहीं चलेगा, किसानों को अपनी ताक़त का अहसास हो गया है’.

ये पूछने पर कि क्या किसी समय पर उन्हें ऐसा लगा कि किसानों को दबाव के आगे झुकना पड़ेगा, और सरकार के तीनों क़ानूनों को वापस लिए बग़ैर, अपना आंदोलन वापस लेना पड़ेगा, टिकैत ने कहा, ‘हम आंदोलन को 2023 तक खींचने के लिए तैयार थे. लेकिन सरकार की जल्द समझ में आ गया कि ये क़ानून किसानों के हित में नहीं हैं, और उसने उन्हें वापस लेने का फैसला कर लिया. अब हम इंतज़ार कर रहे हैं कि प्रधानमंत्री (एमएसपी सुनिश्चित करने का) अपना वादा निभाएं’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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