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Wednesday, 6 November, 2024
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MVA संकट पर BJP का गेमप्लान—वेट एंड वाच, शिंदे फ्लोर टेस्ट लायक नंबर जुटा लें तभी कोई पहल करें

महाराष्ट्र में अभी जब एकनाथ शिंदे ने एमवीए सरकार को हिलाकर रखा है, भाजपा 2019 में राज्य में सियासी उठापटक का ‘जोखिम’ लेने और राजस्थान में सचिन पायलट की ‘2020 की असफल बगावत’ के नतीजों से सबक लेते हुए जल्दबाजी में कोई कदम उठाने के मूड में नहीं है.

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नई दिल्ली: भाजपा महाराष्ट्र में जारी सियासी ड्रामे के बीच एकदम फूंक-फूंककर कदम रखती नजर आ रही है, खासकर 2019 के अपने अनुभव को देखते हुए. जब वरिष्ठ नेता देवेंद्र फडणवीस ने जल्दबाजी में मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ तो ले ली थी, लेकिन पर्याप्त संख्याबल के अभाव में उन्हें मात्र तीन दिन में इस्तीफा देना पड़ा था.

महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार अपने विधायक एकनाथ शिंदे की खुली बगावत के कारण एक बड़े सियासी संकट में घिरी हुई है, जिनका दावा है कि उन्हें शिवसेना के 55 में से 45 विधायकों का समर्थन हासिल है.

महाराष्ट्र के शहरी विकास मंत्री शिंदे एक दर्जन से अधिक शिवसेना विधायकों के साथ मंगलवार को गुजरात के सूरत रवाना हो गए थे. हालांकि, बाद में ये सभी विधायक असम के गुवाहाटी शिफ्ट हो गए.

भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने दिप्रिंट को बताया कि यद्यपि पार्टी ने राज्यसभा और राज्य विधान परिषद (एमएलसी) चुनावों में एमवीए को मात देने के बाद राज्य की सत्ता पर अपनी नजरें टिका रखी हैं, लेकिन वह ‘जल्दबाजी में कोई काम नहीं करना चाहती.’

इन नेताओं का कहना है कि एमवीए सरकार पहले से ही मुश्किलों में घिरी नजर आ रही थी, खासकर जब एमएलसी चुनावों के दौरान शिवसेना आपस में बंटी दिखी और कई विधायकों ने कथित तौर पर क्रॉस-वोटिंग में हिस्सा लिया. हालांकि, भाजपा यही चाहती है कि यदि ‘सरकार गिरनी है तो अपने आप ही गिरे.’

पार्टी सदस्यों ने कहा कि भाजपा नेतृत्व ‘स्थिति पर बारीकी से नजर रखे है’ और ‘संख्याबल शिंदे के पक्ष में होने के प्रति आश्वस्त होने के बाद सदन में विश्वासमत हासिल करने की मांग कर सकता है.’

पार्टी के एक नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमें संख्या को लेकर पूरी तरह आश्वस्त होना होगा. अधिक से अधिक विधायकों के शिंदे के साथ आने का इंतजार है. जब तक ऐसा नहीं होता, हम फ्लोर टेस्ट की मांग नहीं करेंगे. एमवीए सरकार काफी समय से संकट का सामना कर रही है और हमें पूरा भरोसा है कि यह अपने-आप की गिर जाएगी.


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2019 की नाकाम कोशिश, 2020 में पायलट का ‘असफल विद्रोह’

2019 की ‘नाकाम कोशिश’ के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री फडणवीस को कुर्सी तो मिली थी, लेकिन वह मात्र 80 घंटे ही पद पर रह पाए. सुप्रीम कोर्ट की तरफ से फ्लोर टेस्ट का फरमान सुनाए जाने और भाजपा को संख्याबल की कमी का अहसास होने के बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.

उनके इस्तीफे ने मोदी-शाह के नेतृत्व वाली भाजपा की काफी किरकिरी कराई थी. क्योंकि ऐसा माना जा रहा था कि एनसीपी प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजीत पवार को साथ लाने और शनिवार तड़के सरकार बनाने के लिए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में रातो-रात बगावत कराने के पीछे भाजपा का ही हाथ था. उस समय फडणवीस ने जहां सीएम पद की शपथ ली थी, वहीं अजीत डिप्टी बन गए थे.

इसके तुरंत बाद, शरद पवार ने अजीत को अलग-थलग घोषित करने के लिए शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के साथ एक संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस की और दावा किया कि शपथ ग्रहण में उनके साथ रहे 10-11 एनसीपी विधायकों में से तीन की ‘वापसी’ हो गई है.

अजीत को बाद में एक बैठक में एनसीपी विधायक दल के प्रमुख के पद से हटा दिया गया, जिसमें पार्टी नेताओं ने बताया कि एनसीपी के 54 में से 42 विधायक मौजूद थे.

भाजपा के एक नेता ने कहा, ‘(शरद) पवार के दबाव में एनसीपी विधायक लौट आए थे लेकिन इस बार स्थिति अलग है. बागी विधायक शिवसेना के हैं, और अपनी ही पार्टी पर उद्धव की पकड़ कमजोर होती जा रही है.’

एक और अनुभव भी है जिसका सबक भाजपा नेतृत्व ने अभी तक भुलाया नहीं है, और वह है राजस्थान में 2020 में सचिन पायलट की तरफ से किया गया ‘असफल विद्रोह’.

कांग्रेस ने उस समय भाजपा पर राज्य में उसकी सरकार को अस्थिर करने और उसके विधायकों की खरीद-फरोख्त की कोशिश करने का आरोप लगाया था. लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस अपनी सरकार बचाने में सफल रही थी.

केंद्रीय मंत्री नारायण राणे ने जहां खुलकर शिंदे का समर्थन किया है, वहीं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल का कहना है कि उनकी पार्टी का एमवीए सरकार के संकट से कोई लेना-देना नहीं है.

राणे ने एक ट्वीट में लिखा, ‘बहुत अच्छा, एकनाथ जी, आपने उचित समय पर सही निर्णय लिया. अन्यथा, आपका भी जल्द ही आनंद दिघे जैसा हाल हो जाता.’

वहीं, पाटिल ने मीडिया से बातचीत में दावा किया कि ‘अभी तक, सरकार गठन के संबंध में कोई प्रस्ताव नहीं रखा गया है, न भाजपा की तरफ से और न ही एकनाथ शिंदे की तरफ से. हालांकि राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है.’

पाटिल ने ‘इतना साहस’ दिखाने के लिए शिंदे की तारीफ करते हुए कहा कि महाराष्ट्र के मंत्री के ‘मित्र सभी दलों में’ हैं.

ऊपर उद्धृत दूसरे भाजपा नेता ने कहा कि पार्टी को ‘अजीत पवार वाले पिछले घटनाक्रम के मद्देनजर और अन्य निर्दलीय विधायकों को साथ लाने की शरद पवार की राजनीतिक ताकत को देखते हुए अपना अगला कदम उठाने से पहले पूरी सावधानी बरतनी चाहिए.’

‘जरूरी संख्याबल हासिल करना पहली रणनीति’

महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के गठबंधन वाली एमवीए सरकार के पास 152 विधायक (निर्दलीय सहित 169) हैं. यह संख्या 288 सदस्यीय सदन में बहुमत के आंकड़े 144 से अधिक है.

भाजपा के पास 106 विधायक हैं. एमएलसी चुनावों में पार्टी को अपनी ताकत से 28 अधिक वोट मिले (छोटे दलों और निर्दलीय के 7 विधायकों के वोटों सहित). उसे 134 वोट मिले, लेकिन इस संख्या के साथ भी बहुमत के लिए करीब एक दर्जन विधायकों की जरूरत होगी.

बताया जा रहा है कि पार्टी और अधिक विधायकों के शिंदे के साथ आने का इंतजार कर रही है, ताकि अगर वह सरकार बनाएं तो उसमें किसी तरह की कोई बाधा न आए.

महाराष्ट्र में भाजपा के वरिष्ठ नेता किरीट सोमैया ने दिप्रिंट से कहा, ‘हम कह रहे हैं कि एमवीए गठबंधन में भारी अशांति है. नेता उसका साथ छोड़ने को बेताब हैं. विधान परिषद के चुनावों के बाद यह और भी स्पष्ट हो गया है कि एमवीए ने अपने ही सदस्यों के साथ-साथ छोटे दलों और निर्दलीय विधायकों का भरोसा भी खो दिया है.

एक अन्य वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा कि ‘पार्टी की पहली रणनीति एमवीए सरकार गिराने के लिए आवश्यक संख्या बल हासिल करना है.’

उन्होंने कहा, ‘विधानसभा अपना आधा कार्यकाल पूरा कर चुकी है. कई विधायक इस समय चुनाव में जाने से हिचकिचा रहे हैं क्योंकि पवार यह मुद्दा उठा सकते हैं कि एजेंसियों के माध्यम से जनादेश का अपमान किया गया, इसलिए शेष कार्यकाल के लिए सरकार चलाना ही सबसे ज्यादा उपयुक्त होगा.’

नेता ने आगे कहा कि ‘बदली परिस्थितियों में कोई स्पष्टता नजर नहीं आ रही है.’

उन्होंने कहा, ‘हम हालिया उपचुनावों के नतीजे जानते हैं जहां एमवीए जीता है. इसलिए सबसे बेहतर राजनीतिक परिदृश्य यही होगा कि चलने दी जाए.’

उन्होंने कहा, ‘सरकार चलाने का मौका कौन खोना चाहता है? लेकिन सभी निर्णय तब लिए जाएंगे जब हमें यह विश्वास हो जाएगा कि असंतुष्टों के पास आवश्यक संख्याबल है और अन्य पार्टियां भी हमारे साथ हैं.’

नेता ने कहा कि यदि शिंदे आवश्यक संख्याबल हासिल करने में विफल रहते हैं, तो राष्ट्रपति शासन अगला विकल्प है. उन्होंने कहा, ‘यदि शिंदे आवश्यक संख्या जुटा लेते हैं, तो फ्लोर टेस्ट में एमवीए के अल्पमत में आने पर भाजपा कुछ समय के लिए राष्ट्रपति शासन की मांग भी कर सकती है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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