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शुक्रवार, 9 मई, 2025
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‘JNU का नाम बदलकर स्वामी विवेकानंद पर रखें’- BJP के सीटी रवि ने विचार रखा, पार्टी नेताओं ने सुर में सुर मिलाया

जेएनयू का नाम बदलने की मांग ऐसे समय पर सामने आई है जबकि कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्वविद्यालय परिसर में स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा का अनावरण किया था.

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नई दिल्ली: भाजपा महासचिव सी.टी. रवि की तरफ से सोमवार को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) का नाम बदलकर स्वामी विवेकानंद पर रखने की मांग किए जाने के बाद पार्टी के कई सहयोगियों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है.

1969 में स्थापित यह विश्वविद्यालय भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नाम पर है. विश्वविद्यालय का नाम बदलकर स्वामी विवेकानंद पर रखने की मांग ऐसे समय पर सामने आई है जबकि कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जेएनयू परिसर में 19वीं सदी के इस आध्यामिक नेता की प्रतिमा का अनावरण किया था.

रवि ने ट्विटर पर लिखा था कि स्वामी विवेकानंद ने ‘भारत की विचारधारा’ के लिए आवाज उठाई थी, साथ ही जोड़ा कि ‘भारत के राष्ट्रभक्त संत का जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत बनेगा.’

दिल्ली भाजपा के प्रवक्ता तेजिंदर बग्गा ने इससे सहमति जताई.

बग्गा ने कहा, ‘भारत किसी एक परिवार की बपौती नहीं है और पिछले 70 सालों में न केवल विश्वविद्यालय, बल्कि स्टेडियम, हवाईअड्डों, सड़कों आदि सभी का नाम एक परिवार पर रखा गया है. हमें अपने स्वतंत्रता सेनानियों और उन सभी लोगों को मान्यता और सम्मान देना चाहिए जिन्होंने राष्ट्र निर्माण में भूमिका निभाई है, और इसलिए जेएनयू का नाम स्वामी विवेकानंद के नाम पर रखा जाना चाहिए. बल्कि केवल जेएनयू ही नहीं सभी विश्वविद्यालयों, हवाईअड्डों, स्टेडियमों के नाम बदलकर स्वतंत्रता सेनानियों और भारतीय सेना के शहीदों के नाम पर रखे जाने चाहिए.’


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भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता अपराजिता सारंगी ने कहा कि जो मांग ‘सी.टी. रवि जी ने उठाई है, वह पूरी तरह न्यायसंगत है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘यह कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है और स्वामी विवेकानंद जी अखंड भारत के पक्षधर थे. मुझे पूरा भरोसा है कि सरकार इस पर सभी संबंधित पक्षों से बात करेगी और इस पर विचार करेगी.’

भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने कहा कि किसी विश्वविद्यालय का नाम स्वामी विवेकानंद पर रखने से बेहतर भारत के लिए कुछ नहीं हो सकता. उन्होंने कहा, ‘पिछले कई वर्षों से एक परिवार राष्ट्र को चलाने की कोशिश कर रहा था और अब स्थिति यह है कि उनकी अपनी पार्टी के सदस्य भी उसमें घुटन महसूस कर रहे हैं. स्वामी विवेकानंद की किसी से कोई तुलना नहीं की जा सकती है और यदि किसी विश्वविद्यालय का नाम उन पर रखा जाए तो भारत के लिए इससे बेहतर क्या हो सकता है? वह एक ऐसे शख्स हैं जो भारत के लिए खड़े हुए और हमारा मान बढ़ाया. अगर जेएनयू का नाम उन पर रखा जाता है, तो यह एक स्वागत योग्य कदम होगा.’

नाम बदलने की मांग नई नहीं

भारत के प्रमुख केंद्रीय विश्वविद्यालयों में से एक जेएनयू को वामपंथियों का गढ़ माना जाता है. जेएनयू 2016 में छात्रों के एक वर्ग और ‘बाहरियों’ के विरोध-प्रदर्शनों के बीच तब राजनीति का अखाड़ा बन गया जब दक्षिणपंथी संगठनों ने इसे ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग का अड्डा करार दिया. टकराव तब बढ़ा था जब संसद हमले के दोषी अफजल गुरु की पुण्यतिथि मनाने को लेकर प्रदर्शन के दौरान कथित तौर पर देश विरोधी नारे लगाए गए थे.

विवेकानंद की प्रतिमा का अनावरण करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि लोगों में वैचारिक मतभेद हो सकते हैं लेकिन राष्ट्रहित के मामलों में विचारधारा समर्थन करने वाली होनी चाहिए न कि इसका विरोध करने वाली.

यह पहला मौका नहीं है जब जेएनयू का नाम बदलने की मांग की गई है. 2019 में दिल्ली से भाजपा के सांसद हंसराज हंस ने जेएनयू का नाम बदलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर रखने का सुझाव दिया था.

2018 में विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद ने पूर्व प्रधानमंत्री को श्रद्धांजलि के तौर पर अपने स्कूल ऑफ मैनेजमेंट और आंत्रप्रेन्योरशिफ का नाम बदलकर अटल बिहारी वाजपेयी पर करने का फैसला किया था.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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