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Sunday, 28 April, 2024
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बिहार में बदले राजनीतिक हालात में BJP चाहती है चिराग पासवान का साथ, पर उनकी हैं ‘अपनी शर्तें’

भाजपा चाहती है कि लोजपा (रामविलास) राज्य में जदयू और राजद से मुकाबले में उसकी मदद करे. लेकिन चिराग पासवान की एक ‘शर्त’ है कि इससे पहले उनके चाचा पशुपति पारस का एनडीए से बाहर का रास्ता दिखाया जाए.

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नई दिल्ली: लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान ने भारतीय जनता पार्टी को संकेत दिया है कि वह पार्टी के साथ गठबंधन के बारे में फिर तभी सोचेंगे, जब उनके चाचा पशुपति कुमार पारस के गुट को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से बाहर कर दिया जाएगा. दिप्रिंट को विश्वसनीय सूत्रों के हवाले से यह जानकारी मिली है.

चिराग पासवान के एक करीबी ने दिप्रिंट को बताया कि जहां पार्टी की तरफ से संभावित गठबंधन के लिए ‘संदेश’ भेजे जा रहे हैं, वहीं चिराग ने कुछ पूर्व शर्तें रखी हैं.

लोजपा (रामविलास) के एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘चिराग पासवान का रुख एकदम साफ हैं कि अब वह अपने चाचा पशुपति पारस के साथ नहीं रह सकते हैं. उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि बिहार में लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए कोई भी गठबंधन इसी पर टिका होगा.’

पशुपति कुमार पारस और उनके सांसद फिलहाल एनडीए का हिस्सा हैं. पारस केंद्रीय मंत्री भी हैं.

भाजपा के लिए ऐसे समय में चिराग के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के साथ गठबंधन विशेष तौर पर महत्वपूर्ण हो गया है जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पिछले महीने भाजपा को छोड़कर महागठबंधन—राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस और लेफ्ट—के साथ मिलकर सरकार बना ली है.

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पार्टी सूत्रों ने कहा कि हालांकि चिराग ने साफ कर दिया है कि वे पारस को बाहर करने पर ही भाजपा के साथ गठबंधन पर विचार करेंगे, लेकिन भाजपा नेतृत्व का मानना है कि दोनों विरोधी गुटों को एकजुट करके ही उसे जदयू-राजद गठबंधन के मजबूत जातीय समीकरण का मुकाबला करने में मदद मिल सकती है.

पार्टी के एक सूत्र ने कहा, ‘भाजपा को राजद और जदयू के साथ मुकाबले के लिए एक स्पष्ट रणनीति बनानी होगी. यदि आप पशुपति पारस को छोड़ दें तो अभी इसका एक भी सहयोगी नहीं है. बिहार की राजनीति विशुद्ध रूप से जाति समीकरणों पर केंद्रित है और इसलिए वह सहयोगियों की तलाश में है.’

रामविलास पासवान की तरफ से 2000 में स्थापित लोक जनशक्ति पार्टी में अंदरूनी कलह के बाद लोकसभा में लोजपा के छह सांसदों में से पांच ने जून में चिराग पासवान का साथ छोड़कर उनके चाचा और सांसद पशुपति कुमार पारस को पार्टी प्रमुख चुन लिया था.

पारस ने नई जिम्मेदारी संभालने के तुरंत बाद दावा किया कि वह पार्टी को ‘संकट’ से बचाने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा था कि वह एनडीए का हिस्सा बने रहेंगे और नीतीश कुमार के नेतृत्व की भी प्रशंसा की थी, जो उस समय एनडीए गठबंधन का हिस्सा थे.

बहरहाल, अंत में पार्टी टूट गई और भारतीय निर्वाचन आयोग ने दोनों प्रतिद्वंद्वी गुटों को अलग-अलग नाम और चुनाव चिह्न आवंटित कर दिए.

चुनाव आयोग ने चिराग की पार्टी को ‘लोजपा (रामविलास)’ का नाम और ‘हेलीकॉप्टर’ का चुनाव चिन्ह आवंटित किया और पारस धड़े को ‘सिलाई मशीन’ चुनाव चिह्न के साथ ‘राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी’ नाम दिया. लोजपा के नाम और चुनाव चिह्न पर फिलहाल रोक लगी हुई है.

चिराग ने पार्टी में इस विभाजन के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जिम्मेदार ठहराया था.

उन्होंने तब संवाददाताओं से बातचीत में कहा था, ‘चुनावों से पहले और चुनावों के बाद पार्टी के ही कुछ लोगों और जदयू के कुछ लोगों ने हमारी पार्टी को तोड़ने की कोशिश की. मेरे पिता जब आईसीयू में थे, तब उन्होंने पार्टी को तोड़ने के प्रयासों के बारे में मुझे बताया था. उन्होंने मेरे चाचा से भी बात की थी.’


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राजद-जदयू से मुकाबला

चिराग के सहयोगी ने दिप्रिंट को बताया कि जहां पार्टी के केंद्रीय नेता और यहां तक कि एनडीए के कुछ मंत्री पिछले कुछ समय से पासवान के संपर्क में रहे हैं, वहीं बिहार में ताजा राजनीतिक घटनाक्रम के बाद से यह संपर्क बढ़ गया है.

बहरहाल, सूत्रों के मुताबिक, भाजपा ने अभी इस पूरे मामले पर स्पष्ट तौर पर कुछ तय नहीं किया है लेकिन पार्टी नेतृत्व दोनों प्रतिद्वंद्वी गुटों को एकजुट करना चाहता है जो लोकसभा चुनाव के लिहाज से फायदेमंद साबित हो सकता है. यही नहीं, इस संबंध में चिराग और भाजपा नेतृत्व के बीच अभी तक कोई औपचारिक बैठक भी नहीं हुई है.

नीतीश कुमार के एनडीए से बाहर हो जाने के बाद भाजपा एक प्रमुख हिंदी भाषी राज्य में किसी नए सहयोगी दल की संभावनाएं तलाश रही है.

चिराग के एक करीबी ने दिप्रिंट को बताया, ‘पशुपति पारस पहले ही अपनी ही पार्टी में बगावत का सामना कर रहे हैं, इसलिए नया राजनीतिक परिदृश्य चिराग पासवान के पक्ष में है.’

नीतीश और चिराग पासवान के बीच अनबन काफी समय से जारी है. गौरतलब है कि चिराग ने 2020 के विधानसभा चुनावों से पहले बिहार के मुख्यमंत्री को हराने की कसम खाकर ही एनडीए से नाता तोड़ा था. उन्होंने जदयू के खिलाफ कई लोजपा उम्मीदवारों को भी मैदान में उतारा. वैसे वह केवल एक ही सीट जीत पाए लेकिन उन्होंने जदयू के वोटबैंक में अच्छी-खासी सेंध लगाई, जिससे पार्टी 43 सीटों पर ही सिमट गई. माना जाता है कि लोजपा ने जदयू को 40 सीटों पर नुकसान पहुंचाया.

चिराग बुधवार को एक हिंदी दिवस समारोह में हिस्सा लेने सूरत गए थे, जिसे गृह मंत्री अमित शाह ने भी संबोधित किया था. इस घटनाक्रम ने राजनीतिक गलियारों में अटकलों को हवा दे दी है.

पासवान ‘राजभाषा’ पर संसदीय समिति के सदस्य हैं और इसी समिति के हिस्से के तौर पर सूरत में थे.

पता चला है कि पासवान को बैठक में शामिल होने के लिए भाजपा नेतृत्व ने ही राजी किया था.


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बिहार के जाति समीकरण

एनडीए ने 2019 में बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से 39 पर जीत हासिल की थी. हालांकि, यह नीतीश कुमार के गठबंधन से बाहर होने की पहले की स्थिति थी.

अब राजद-जदयू के ‘मजबूत जाति समीकरण’ का मुकाबला करना इसके लिए एक चुनौती है और पार्टी को उम्मीद है कि चिराग की लोजपा और अन्य छोटे दलों के साथ गठबंधन से यह काम आसान हो सकता है.

बिहार में 6 फीसदी पासवान मतदाता हैं जो अतीत में लोजपा के समर्थक किया है. यही वो हिस्सा है जिस पर अब भाजपा की नजरें टिकी हैं.

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘अब तक, पार्टी ने राज्य नेतृत्व से यही कहा है कि उन्हें राज्य इकाई को मजबूत करने और चुनावी तैयारी पर ध्यान देने की जरूरत है. गठबंधन पर कोई निर्णय उचित समय पर लिया जाएगा. अभी कई छोटे दल हैं जो भाजपा के साथ गठबंधन करना चाहते हैं.’

सूत्रों ने दिप्रिंट को आगे बताया कि चिराग भी ‘जल्दबाजी’ में कोई फैसला नहीं लेंगे.

बिहार विधानसभा चुनाव चिराग की लोजपा के साथ नहीं लड़ने के बावजूद भाजपा ने उनके साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बना रखे हैं. उन्हें केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने आमंत्रित भी किया था, जिन्होंने भाजपा की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को समर्थन के लिए उनसे संपर्क साधा था.

वहीं, चिराग भी यह कहते रहे हैं कि वह अब एनडीए का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन उन्होंने उसके साथ सौहार्दपूर्ण रिश्ते बनाए रखे हैं.

सूत्रों ने कहा, ‘अभी, चिराग की तुलना (भाजपा की जरूरत) में भाजपा को उनकी कहीं ज्यादा जरूरत है. अगर भाजपा उनके साथ गठबंधन नहीं करती है, तो भी उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं है. लेकिन भाजपा को लोकसभा चुनाव के दौरान अपना कुल संख्या बल ठीक रखने के लिए 39 सीटें जीतने में सफलता हासिल करनी है तो उसके लिए चिराग मायने रखते हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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