मुंबई: महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य में, दस दिवसीय गणेश चतुर्थी उत्सव का महत्त्व केवल उत्सव मनाये जाने से कहीं अधिक है. इस दौरान राजनेताओं द्वारा एक-दूसरे के घरों में जा कर की गईं ‘शिष्टाचार भेंट’ आमतौर पर पर्दे के पीछे चली जा रहीं चालों की एक झलक देते हैं.
इस साल की ‘गणपति डिप्लोमेसी’ उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना – जो पहले ही मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में विद्रोह के बाद अपंग सी हो गई है -को और कमजोर करने तथा खुद को मुंबई में इस साल के अंत में होने वाले नगर निकाय चुनाव से पहले मजबूत स्थिति में लाने की भाजपा की व्यूह रचना का पूरा-पूरा एहसास कराती है. राज ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) इसी योजना का एक सहायक तत्व है.
भाजपा नेताओं के एक समूह ने पिछले सप्ताह मनसे प्रमुख राज ठाकरे के साथ बैठक की थी. ‘मुख्यमंत्री शिंदे, जिन्होंने शिवसेना में हुए दो फाड़ वाले विभाजन का नेतृत्व किया था, और भाजपा की मुंबई इकाई के अध्यक्ष आशीष शेलार ने गणेश उत्सव के लिए राज ठाकरे के आवास पर अलग-अलग दौरे किए.
हालांकि, इन नेताओं ने अपनी इन मुलाकातों पर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की, मगर भाजपा के अंदरूनी सूत्रों, शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना के विद्रोही गुट के सदस्यों और साथ ही मनसे का भी कहना है कि ये बैठकें और दौरे मनसेको सत्तारूढ़ गठबंधन के और निकट लाने के लिए की जा रही ‘राजनीतिक कवायद’ थे.
उनका कहना है कि मनसे उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना के ‘मराठी हिंदू वोट बैंक’ में कटौती करके उसका खेल बिगाड़ने की क्षमता रखती है, जैसा कि उसने पहले भी किया है. इस बीच, तमाम संकटों से जूझ रही मनसे, जो 2014 से ही अस्त-व्यस्त हालत में है, के लिए यह राजनीतिक रूप से खुद को फिर से जीवंत बनाने का एक अच्छा अवसर है.
मनसे के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने उनका नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, ‘वे [भाजपा] राज साहब के महत्व को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. उनके पाले में एक ठाकरे के होने से नगर निकाय चुनावों में उद्धव साहब के साथ उनकी लड़ाई में उन्हें मदद मिलेगी. और, यह हमारे लिए भी फायदे का सौदा है.’
उन्होंने कहा, ‘क्या यह एक खुले गठबंधन या फिर आपसी मौन समझ के माध्यम से होगा, यह हम अभी तक नहीं जानते हैं. लेकिन, अभी, वे कम-से-कम ऐसे हाव- भाव दिखा कर के उस तरह का माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं.’
‘किसी न किसी तरह से हाथ तो मिलाएंगे हीं’
पिछले सप्ताह के दौरान, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े और महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले जैसे वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने क्रमशः सोमवार और मंगलवार को राज ठाकरे से उनके आवास पर मुलाकात की थी.
इसके अलावा, मुंबई भाजपा अध्यक्ष शेलार और पार्टी एमएलसी प्रसाद लाड ने भी क्रमशः बुधवार और गुरुवार को राज ठाकरे से मुलाकात की थी .
मुख्यमंत्री शिंदे ने भी गुरुवार को राज से शिष्टाचार भेंट की.
इन बैठकों की पृष्ठभूमि में बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) चुनाव के लिए मनसे के साथ किसी संभावित गठबंधन के बारे में पूछे जाने पर, महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने शुक्रवार को पुणे में संवाददाताओं से कहा, ‘हमारी ओर से ऐसी कोई चर्चा नहीं हुई है. शायद, आपकी ओर से कुछ चर्चा हो रही हो.’
हालांकि, भाजपा के एक पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘मनसे किसी न किसी तरह से, गठबंधन में या कुछ सीटों के लिए आपसी सहमति के माध्यम से, इन चुनाव के दौरान भाजपा के साथ हाथ मिलाएगी ही.’
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मुंबई में शिंदे की सेना को समर्थन देगी मनसे
इस बार भाजपा की नजर बीएमसी की उस कुर्सी पर है, जिस पर इस साल मार्च में आम सभा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद एक प्रशासक द्वारा कार्यभार संभाले जाने से पहले लगभग 25 साल तक शिवसेना का नियंत्रण रहा था.
हालांकि शिंदे के नेतृत्व वाले विद्रोह ने ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना को काफी हद तक नुकसान पहुंचाया है और दोनों पक्ष पार्टी के चुनाव चिन्ह को हासिल करने के लिए अदालती लड़ाई लड़ रहे हैं, मगर शिंदे गुट मुंबई में ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना जितना मजबूत नहीं है.
भले ही मुंबई में शिवसेना के 14 में से पांच विधायक शिंदे खेमे में आ गए हों, मगर पार्टी के जमीनी कार्यकर्त्ता (कैडर) और इसकी वार्ड-स्तरीय शाखाएं – इसकी प्रशासनिक इकाइयों का सबसे निचला चरण – अभी भी काफी हद तक ठाकरे की शिवसेना के प्रति ही वफादार बना हुआ है.
इस बीच, मनसे शिवसेना के भीतर हुई इस फूट को भुनाने की कोशिश कर रही है और राज ठाकरे को उनके चाचा और शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे के असली उत्तराधिकारी के रूप में पेश कर रही है.
2020 की शुरुआत में पार्टी के झंडे को भगवा में बदलकर हिंदुत्व के एजेंडे को दृढ़ता से अपनाने के बाद से मनसे ने राज ठाकरे द्वारा मस्जिदों के ऊपर लाउडस्पीकर लगे होने जैसे मुद्दों को उठाने के साथ इस विचारधारा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर और अधिक जोर दिया है. मनसे ने अपनी पार्टी में शामिल होने के लिए ‘हिंदवी रक्षक’ और ‘महाराष्ट्र सेवकों’ का आह्वान करते हुए एक सदस्यता अभियान भी शुरू किया है.
मनसे के एक दूसरे पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘शिंदे खेमे को भी हमारी जरूरत है क्योंकि वे जानते हैं कि मुंबई में उनका कैडर नहीं है. और, हम तो अब तक राजनीतिक नैरेटिव में कहीं थे हीं नहीं इससे पहले, सब कुछ भाजपा और शिवसेना के बारे में था. फिर, यह महा विकास अघाड़ी (एमवीए) और भाजपा के बारे में हो गया. अब, शिवसेना के विभाजन के साथ, हमें आखिरकार फिर से राजनीतिक परिदृश्य में दिखाई देने का मौका मिल रहा है.’
शिंदे खेमे के एक विधायक ने कहा, ‘हम मुंबई में अपना विस्तार कर रहे हैं, लेकिन हम जानते हैं कि यह हमारी ताकत नहीं है. मनसे ने पहले भी मुंबई में शिवसेना की संभावनाओं पर असर डाला हुआ है, और भाजपा नेताओं को लगता है कि वह फिर से ऐसा कर सकती है.‘
उन्होंने उनका नाम गुप्त रखे जाने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘मुंबई में उद्धव साहब के नेतृत्व वाले खेमे के लिए परेशानी पैदा करने वाला कारक होने के अलावा मनसे के पास पर्याप्त शक्ति नहीं है. इसलिए, हमें किसी भी तरह से कोई खतरा नहीं है.’
पहले भी शिवसेना का खेल बिगाड़ चुकी है मनसे
बालासाहेब ठाकरे द्वारा अपने बेटे को अपने उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्त करने का फैसला लिए जाने के बाद राज ठाकरे ने शिवसेना से बाहर निकल साल 2006 में मनसे का गठन किया गया था. इसने शिवसेना के ‘भूमि के पुत्र’ और ‘मराठी गौरव’ वाले मुद्दों को स्वयं शिवसेना की तुलना में अधिक आक्रामक तरीके से उठाया और शुरुआती चरणों में कुछ त्वरित सफलता का स्वाद भी चखा.
साल 2009 के लोकसभा चुनावों में, मनसे ने अपने 11 उम्मीदवार खड़े किए, जिनमें से कोई भी निर्वाचित तो नहीं हुआ, लेकिन पार्टी ने कई सीटों पर शिवसेना की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाकर लोगों का ध्यान जरूर खींचा. उसी वर्ष हुए विधानसभा चुनावों में, मनसे ने 143 सीटों पर चुनाव लड़ा और अपने पहले ही प्रयास में राज्य विधानसभा में उसके 13 विधायक चुने गए थे.
फिर 2012 के बीएमसी चुनावों में, एमएनएस ने 227 वार्डों में से 28 पर जीत हासिल की थी और शिवसेना के गढ़ माने जाने वाले दादर और माहिम में सभी छह वार्डों में उसे मात दी थी.
हालांकि 2014 के बाद से ही पार्टी को एक के बाद एक हार का सामना करना पड़ रहा है.
साल 2014 के लोकसभा चुनावों में, मनसे ने 10 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, जिनमें से सभी की जमानत जब्त हो गई. उस वर्ष के विधानसभा चुनावों में, पार्टी ने 288 सीटों में से 219 सीटों पर चुनाव लड़ा और 209 सीटों पर इसके उम्मदीवारों की जमानत जब्त हो गई, और इसे सिर्फ एक पर जीत हासिल हुई.
2017 के बीएमसी चुनावों में भी, मनसे की किस्मत का सितारा लगातार गिरता रहा और पार्टी के पास सिर्फ सात पार्षद रह गए, जिनमें से छह उसी साल शिवसेना में शामिल हो गए.
हालांकि पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में मैदान से बाहर रहने का विकल्प चुना, मगर उसने उसी वर्ष हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में 101 सीटों पर चुनाव लड़ा, और एक बार फिर सिर्फ एक ही सीट जीत सकी.
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