कोलकाता: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति अचानक बदले सुर ने सियासी गलियारों में हलचल पैदा कर दी है. राज्य विधानसभा में नेता विपक्ष सुवेंदु अधिकारी ने सोमवार को संवाददाताओं से कहा कि तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) प्रमुख प्रधानमंत्री को ‘खुश’ करने की कोशिश कर रही हैं.
ममता बनर्जी ने सोमवार को पश्चिम बंगाल विधानसभा को संबोधित करते हुए कहा था, ‘हर दिन ही भाजपा नेताओं की तरफ से विपक्षी दलों के नेताओं को सीबीआई (केंद्रीय जांच ब्यूरो) और ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) के जरिये गिरफ्तारी की धमकी दी जाती है. क्या एजेंसियों को इसी तरह काम करना चाहिए? मुझे नहीं लगता कि इसके पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं, लेकिन भाजपा के कुछ नेता अपने हितों के लिए सीबीआई और ईडी का दुरुपयोग कर रहे हैं.’
ममता का यह बयान उस दिन आया जब पश्चिम बंगाल सीबीआई और ईडी जैसी केंद्रीय एजेंसियों की कथित ‘ज्यादतियों’ के खिलाफ विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित करने वाला पहला राज्य बन गया. प्रस्ताव के पक्ष में 189 विधायकों ने मतदान किया.
भारतीय जनता पार्टी के 64 विधायकों ने उस प्रस्ताव का विरोध किया जिसमें दावा किया गया है कि भाजपा इन एजेंसियों ‘राजनीतिक रूप से दुरुपयोग’ कर रही है.
इस बाबत दिप्रिंट से बातचीत करने वाले तृणमूल सदस्यों का मानना है कि केंद्रीय एजेंसियों के कथित दुरुपयोग को लेकर हमला करने के दौरान ममता के मोदी के प्रति नरम रुख अपनाने के बहुत ज्यादा सियासी निहितार्थ नहीं निकाले जाने चाहिए.
पश्चिम बंगाल विधानसभा में सोमवार को यह प्रस्ताव पेश करने वाले टीएमएसी के मुख्य सचेतक निर्मल घोष ने कहा, ‘ममता बनर्जी ने अपने विचार जाहिर किए. हम इसकी व्याख्या नहीं कर सकते. हमने इन एजेंसियों के राजनीतीकरण के खिलाफ आवाज उठाई है. उन्होंने पूरी भाजपा की तरफ से एजेंसियों के दुरुपयोग की बात कही है.’
पार्टी विधायक तापस रॉय ने दिप्रिंट से कहा कि ममता ने सोमवार को पीएम की आलोचना से शायद इसलिए परहेज किया होगा क्योंकि इससे एक दिन पहले ही पीएम का जन्मदिन था. रविवार को प्रधानमंत्री मोदी 72 साल के हो गए.
रॉय ने कहा, ‘एजेंसियां (सीबीआई और ईडी) अमित शाह (केंद्रीय गृह मंत्री) के अधीन हैं और इसमें कोई संदेह नहीं है कि भाजपा इनका दुरुपयोग कर रही है. भाजपा नेता सीबीआई, ईडी की कार्रवाई के नाम पर विपक्ष को धमका रहे हैं. लेकिन आज भी, अगर आप मुझसे प्रधानमंत्री को लेकर कोई बयान देने को कहें तो यह अभी भी आक्रामक ही होगा और हमारे रुख में कोई बदलाव नहीं आया है.’
इस बीच, भाजपा ने बंगाल की सीएम की टिप्पणी को पीएम के साथ निकटता बढ़ाने की ममता की एक कोशिश के तौर पर देखा है.
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अधिकारी ने कहा, ‘इस तरह के प्रस्ताव विधानसभा के नियमों और व्यवस्थाओं के खिलाफ हैं. बीएसएफ (सीमा सुरक्षा बल) के अधिकार क्षेत्र के खिलाफ पहले के प्रस्ताव का भी कुछ नतीजा नहीं निकला है. वह केवल पीएम को खुश करने की कोशिश कर रही हैं.’
अपने सदस्यों के खिलाफ सीबीआई और ईडी की कार्रवाई तृणमूल के लिए कोई नई बात नहीं है—पिछले साल विधानसभा चुनावों (जिसमें भाजपा को तृणमूल से हार का सामना करना पड़ा) की घोषणा के बाद हिंसा में टीएमसी की कथित संलिप्तता को लेकर सीबीआई जांच से लेकर टीएमसी नेताओं और पश्चिम बंगाल के मंत्रियों के खिलाफ कथित घोटालों की जांच तक.
सीएम ममता बनर्जी और पीएम मोदी के बीच पूर्व में आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहा है. पश्चिम बंगाल में 2021 के हाई वोल्टेज इलेक्शन के दौरान प्रधानमंत्री का ‘दीदी-ओ-दीदी’ कहकर तृणमूल पर निशाना साधना रहा हो या फिर ममता बनर्जी का उस समय मोदी को ‘झूठा’ करार देना.
सीएम ने चुनावों के दौरान एक सभा को संबोधित करते हुए पहले तो कहा, ‘मोदी झूठे हैं…पीएम झूठे हैं.’ लेकिन फिर उसमें सुधार करते हुए बोलीं, ‘झूठा एक असंसदीय शब्द है. प्रधानमंत्री जनता को गुमराह कर रहे हैं.’
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री द्वारा सोमवार को भाजपा की आलोचना करने के दौरान मोदी को उससे बाहर रखे जाने से माकपा और कांग्रेस जैसे प्रमुख प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दल काफी हैरान हैं.
राजनीतिक विश्लेषक और रवींद्र भारती यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर बिश्वनाथ चक्रवर्ती ने इसे लंबे समय से चल रही ममता की रणनीति करार देते हुए कहा, ‘जब विपक्ष की बात आती है तो वह फूट डालो और राज करो की रणनीति अपनाती हैं.’
चक्रवती ने कहा, ‘वह कहेंगी (पूर्व पीएम और भाजपा नेता अटल बिहारी) वाजपेयी अच्छे हैं और (पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री और भाजपा नेता लालकृष्ण) आडवाणी बुरे हैं. उन्होंने कहा कि आडवाणी अच्छे हैं और मोदी बुरे हैं और अब वह कह रही हैं कि मोदी अच्छे हैं और अमित शाह बुरे हैं. लेकिन यह सब एक रास्ता बनाए रखने का प्रयास है. मुझे लगता है कि आरएसएस और पीएम की प्रशंसा करने से उनका अल्पसंख्यक वोट प्रभावित होगा.’
इस माह के शुरू में मीडिया से बातचीत के दौरान बनर्जी ने कहा था, ‘कुछ लोग आरएसएस का नाम इस्तेमाल करके मीडिया घरानों को धमकाते हैं. आरएसएस पहले इतना बुरा तो नहीं था, और मुझे विश्वास है, वे अब भी बुरे नहीं हैं. आरएसएस में कई अच्छे लोग हैं. वे भाजपा के गलत कृत्यों का समर्थन नहीं करते हैं. एक दिन वे आगे आएंगे और उनके (भाजपा) खिलाफ बोलेंगे.’
‘राजनीति कम, निजी हमला ज्यादा’
पार्टी नेताओं से जुड़े भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर तृणमूल कांग्रेस पिछले कुछ महीनों से बैकफुट पर है.
ईडी ने जुलाई में पश्चिम बंगाल के (पूर्व) मंत्री पार्थ चटर्जी को पश्चिम बंगाल सरकार संचालित स्कूलों में ग्रुप सी, ग्रुप डी, सहायक शिक्षकों और प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती में कथित अनियमितताओं के एक मामले में गिरफ्तार किया था. ईडी ने अब तक इस मामले में कुल 103.10 करोड़ रुपये की कुर्की/जब्ती की है.
अगले महीने, सीबीआई ने टीएमसी के बीरभूम जिला अध्यक्ष अनुब्रत मंडल को कथित तौर पर सीमा पार मवेशियों की तस्करी के एक मामले में गिरफ्तार किया.
भाजपा विधायक और पार्टी के मुख्य सचेतक मनोज तिग्गा ने दिप्रिंट से कहा, ‘ममता बनर्जी यह कहकर पीएम की सहानुभूति हासिल करने की कोशिश कर रही हैं कि भाजपा नेता ईडी और सीबीआई की कार्रवाई करा रहे हैं. लेकिन इसका कोई मतलब नहीं है क्योंकि पीएम ने भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है और जीरो टॉलरेंस की नीति भी लागू की है.’
प्रतिद्वंद्वी पार्टी के नेताओं ने भी सोमवार को सदन में की गई टिप्पणी के लिए ममता बनर्जी को फटकार लगाई.
माकपा नेता सुजान चक्रवर्ती ने कहा, ‘एक तरफ ममता बनर्जी भाजपा नेताओं को खुश करने में लगी हैं तो दूसरी तरफ यह भी दिखा रही हैं कि राजनीतिक स्तर पर वह पार्टी से लड़ रही हैं. टीएमसी भाजपा की स्वाभाविक सहयोगी है और कोई माने या नहीं, लेकिन यह आरएसएस की एक शाखा ही है.’
इस बीच, कांग्रेस सांसद और पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रमुख अधीर रंजन चौधरी ने तृणमूल को भाजपा के खिलाफ विपक्ष की सबसे कमजोर कड़ी बताया और कहा, ‘भाजपा और टीएमसी के बीच एक मौन समझ है और अब यह खुलकर सामने आने लगी है.’
टीएमसी के नेतृत्व वाली पश्चिम बंगाल सरकार और केंद्र सरकार के बीच रिश्ते मई 2021 में उस समय कुछ ज्यादा ही बिगड़ गए थे जब ममता और राज्य के तत्कालीन मुख्य सचिव (सीएस) अलपन बंद्योपाध्याय यास चक्रवात के बाद हालात की समीक्षा के लिए पीएम मोदी की अध्यक्षता में जारी बैठक छोड़कर चले गए.
सीएम और सीएस उस समय नुकसान के आकलन के लिए खुद जिलों का दौरा कर रहे थे. उन्होंने पीएम को एक फाइल सौंपी और बैठक से बाहर चले गए जहां तत्कालीन राज्यपाल जगदीप धनखड़ और भाजपा नेता, अधिकारी मौजूद थे.
उसी महीने तीन माह का सेवा विस्तार पाने वाले बंद्योपाध्याय ने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) की तरफ से केंद्र सरकार को अपनी सेवाएं देने के लिए रिपोर्ट करने को कहे जाने के बीच कैबिनेट सेक्रेटरी पद से सेवानिवृत्ति लेने का विकल्प चुना और उन्हें मुख्यमंत्री का मुख्य सलाहकार नियुक्त किया गया.
इस घटना पर टिप्पणी करते हुए पश्चिम बंगाल की सीएम ने कहा था कि ‘किसी नौकरशाह को कैसे परेशान किया जाता है’ बंद्योपाध्याय इसका एक उदाहरण हैं.
इस साल मई में ममता बनर्जी ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) और पीएम आवास योजना योजना के तहत राज्य को आवंटित धन जारी करने में केंद्र की तरफ कथित देरी को लेकर पीएम मोदी को पत्र लिखा और उनसे हस्तक्षेप की मांग की.
उनकी सरकार ने जीएसटी बकाया पर भी प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखा, और ममता ने अगस्त में नीति आयोग की बैठक के दौरान 27,000 करोड़ रुपये के बकाया जीएसटी के मुद्दे को पीएम के सामने उठाया.
पश्चिम बंगाल की सीएम की टिप्पणी का जिक्र करते हुए राजनीतिक विश्लेषक और गैंगस्टर स्टेट : द राइज एंड फॉल ऑफ द सीपीआई (एम) इन वेस्ट बंगाल के लेखक शौर्य भौमिक ने कहा, ‘एजेंसी को लेकर इस तरह के बयान का उद्देश्य राजनीति कम और व्यक्तिगत हमला अधिक लगता है. उन्होंने कहा कि पीएम अच्छे हैं, लेकिन गृहमंत्री अमित शाह और अन्य भाजपा नेता बुरे हैं.’
भौमिक ने कहा, ‘हमने अक्सर देखा है कि जब भी एजेंसी सक्रिय होती है, ममता दिल्ली जाती हैं. वह कह सकती हैं कि राज्य के वित्त को लेकर बैठकें कर रही हैं, लेकिन विपक्ष की यह धारणा धीरे-धीरे मजबूत होती जा रही है कि उनमें ‘सेटिंग’ (ममता और मोदी के बीच) चल रही है. वह इस बात को समझती हैं और हाल की जनसभाओं, भाषणों में हमने उन्हें मोदी के साथ अपनी बैठकों का इसी तरह बचाव करते देखा हैं, और अब यह मोदी का ध्यान आकृष्ट करने की एक कोशिश हो सकती है.’
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