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Sunday, 24 November, 2024
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BJP ने UCC पर मुस्लिमों तक पहुंचने की योजना बनाई है- ‘3 लाभ, महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा’

राम मंदिर के निर्माण और अनुच्छेद 370 को खत्म करने के बाद यूनिफॉर्म सिविल कोड बीजेपी का आखिरी बड़ा एजेंडा है जो अबतक अधूरा है. बीजेपी ने वोटर्स को दशकों पहले इसका वादा किया गया था.

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नई दिल्ली: बीजेपी ने यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) के साथ मुसलमानों को जोड़ने के लिए एक आउटरीच योजना तैयार की है. यूनिफॉर्म सिविल कोड का इस समुदाय द्वारा मुखर होकर विरोध किया गया है.

पार्टी मुस्लिम बुद्धिजीवियों और राय-निर्माताओं के साथ परामर्श करना चाह रही है, जहां वह तीन तरीकों को उजागर करने की योजना बना रही है, उनका मानना है कि यूसीसी महिलाओं को सशक्त बनाएगी – गोद लेने, विरासत और बड़े लैंगिक समानता के मामलों में.

जहां ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) जैसे मुस्लिम संगठन यूसीसी को धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला बताते हैं, वहीं बीजेपी इससे इनकार करती है.

बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रमुख जमाल सिद्दीकी ने कहा, “यह मुस्लिम समुदाय में निहित स्वार्थों द्वारा पैदा की गई गलत धारणा है कि यूसीसी धार्मिक स्वतंत्रता को नुकसान पहुंचाएगा.”

उन्होंने कहा, “विभिन्न समुदायों और धर्मों द्वारा प्रचलित प्रथागत कानून में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है. मुसलमान पहले की तरह अपने रीति-रिवाजों का पालन करेंगे. यह देखते हुए कि एक यूसीसी गोद लेने के कानून को मानकीकृत करेगा.”

सिद्दीकी ने कहा, संपत्ति के अधिकार मुस्लिम महिलाओं के जीवन को आसान बना देंगे, जैसा कि “तीन तलाक प्रथा के अंत” के साथ हुआ, उन्होंने “यूसीसी की खूबियों के बारे में समुदाय को जागरूक करने” की आवश्यकता पर जोर दिया.

यूसीसी बीजेपी का आखिरी प्रमुख अधूरा एजेंडा है- जिसका मतदाताओं से दशकों पहले वादा किया गया था. राम मंदिर के निर्माण और अनुच्छेद 370 को खत्म करने के बाद यह बीजेपी का आखिरी आखिरी बड़ा एजेंडा है जो अबतक अधूरा है. बीजेपी का यूसीसी आउटरीच तब आया है जब पार्टी ने इसके संभावित कार्यान्वयन को लेकर परीक्षण करना शुरू कर दिया है. उत्तराखंड ने यूसीसी का मसौदा तैयार करने के लिए सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई के तहत एक पैनल का गठन किया है, और विधि आयोग ने पिछले सप्ताह एक सार्वजनिक नोटिस जारी की है. 

इसके और विभिन्न समुदायों के साथ परामर्श के आधार पर, मोदी सरकार तय करेगी कि 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले इस पहल को आगे बढ़ाया जाए या इसे अभी के लिए अलग रखा जाए.

सिद्दीकी ने कहा, “हम अन्य सामुदायिक संस्थानों और नेताओं के साथ परामर्श कर रहे हैं. जैसे अनुच्छेद 370 को बिना किसी विरोध के निरस्त कर दिया गया, यूसीसी भी लागू किया जाएगा.”

विपक्ष

मुस्लिम समुदाय बड़े पैमाने पर यूसीसी का विरोध करता रहा है. इस सप्ताह की शुरुआत में, प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलमा हिंद ने कहा कि यूसीसी “संविधान के तहत गारंटीकृत धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ” था, और कहा कि अगर इसे लागू किया गया तो यह लोगों को सड़कों पर लाएगा. यह बयान विधि आयोग द्वारा अपनी परामर्श प्रक्रिया शुरू करने के बाद आया है. जमीयत उलमा हिंद ने कहा, यूसीसी का उल्लेख संविधान के निदेशक सिद्धांत के रूप में किया गया है, जो इसे कानूनी रूप से अप्रवर्तनीय बनाता है, जबकि धार्मिक स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है.

एआईएमपीएलबी ने यूसीसी लाने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए भी सरकार की आलोचना की है, बोर्ड अध्यक्ष ने कहा है कि निकाय अन्य मुस्लिम और अल्पसंख्यक संगठनों से मिलने के बाद विधि आयोग को इनपुट देगा.

एआईएमपीएलबी के अध्यक्ष खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने इस सप्ताह कहा था, “यूसीसी बिल्कुल अस्वीकार्य है और यह शरिया के खिलाफ है. उत्तराखंड और गुजरात सरकारों का कदम (राज्य बीजेपी सरकार ने 2022 के चुनावों से पहले घोषणा की थी कि वह यूसीसी के कार्यान्वयन का अध्ययन करने के लिए एक पैनल का गठन करेगी) न केवल मुसलमानों बल्कि लाखों अनुसूचित जनजातियों के अलावा सभी अल्पसंख्यकों के लिए अस्वीकार्य है.”


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हालांकि, दिप्रिंट से बात करते हुए, बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के कई सदस्यों ने कहा कि यूसीसी का विरोध अशरफ मुसलमानों तक ही सीमित है, जो समुदाय के अभिजात वर्ग का हिस्सा हैं.

उनका कहना है कि पसमांदा मुसलमान, जो मुस्लिम आबादी का 90 प्रतिशत हिस्सा हैं, पहले से ही सबसे निचले तबके का हिस्सा हैं, उनका मानना है कि वे पहले से ही एक से अधिक विवाह करने के लिए आर्थिक रूप से सशक्त नहीं हैं और साथ ही इसके कारण संपत्ति के अधिकार और अन्य शरिया कानूनों के चलते हमेशा नुकसान में रहते हैं.

बीजेपी 2024 में अपनी चुनावी बढ़त बढ़ाने के लिए समुदाय के इस वर्ग को लुभाने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रही है.

परीक्षण

यूसीसी का उल्लेख संविधान में मिलता है. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 44 कहता है, “राज्य पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक यूनिफॉर्म सिविल कोड सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा.”

हालांकि, यह राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत है, जिसका अर्थ है कि इसे लागू करना जरूरी नहीं है. उदाहरण के लिए, अनुच्छेद 47 राज्य को नशीले पेय पदार्थों के सेवन पर रोक लगाने का निर्देश देता है. हालांकि, शराब देश के अधिकांश राज्यों में उपभोग के लिए बेची जाती है.

2018 में विधि आयोग ने यह सुझाव देते हुए कहा कि किसी विशेष धर्म और उसके व्यक्तिगत कानूनों के भीतर भेदभावपूर्ण प्रथाओं, पूर्वाग्रहों और रूढ़िवादिता का अध्ययन और संशोधन किया जाना चाहिए था. साथ ही यूसीसी “इस स्तर पर न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय है”. 

गोवा वर्तमान में यूनिफॉर्म सिविल कोड वाला एकमात्र राज्य है, जो 1867 के पुर्तगाली नागरिक संहिता से लिया गया है. अन्य बातों के अलावा, कानून एक नागरिक प्राधिकरण के समक्ष विवाह के अनिवार्य पंजीकरण का प्रावधान करता है, और कहता है कि पत्नियों को तलाक की स्थिति में सामान्य संपत्ति का  50 प्रतिशत का अधिकार है- जिसमें पतियों द्वारा विरासत में मिली संपत्ति भी शामिल है.

मोदी सरकार यूसीसी पर कदम उठाने से पहले इसका टेस्ट कर रही है- पहले, रंजना देसाई समिति की रिपोर्ट के माध्यम से और बाद में विधि आयोग की रिपोर्ट के माध्यम से.

उसे उम्मीद है कि इससे उसे यह तय करने में मदद मिलेगी कि लोकसभा चुनाव से पहले यूसीसी लाया जाए या बड़ी सहमति बनने तक इसे रोक दिया जाए.

बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रवक्ता यासीर जिलानी ने कहा, “हम मुस्लिम समुदाय को यूसीसी के तीन लाभों के बारे में बताना चाहते हैं – इससे निःसंतान दंपत्तियों के लिए गोद लेना आसान हो जाएगा, महिलाओं के लिए विरासत कानून लागू किया जाएगा और महिलाओं के साथ पुरुषों के समान व्यवहार किया जाएगा.” 

उत्तराखंड बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रमुख इंतेज़ार हुसैन ने कहा कि वे “यूसीसी के लाभ के बारे में बातचीत कर रहे हैं और मुस्लिम समुदाय को जागरूक कर रहे हैं”.

उन्होंने कहा, “हमने तीन बैठकें आयोजित की हैं और अपनी जिला इकाइयों से कोड के बारे में अपने सुझाव भेजने को कहा है. ज्यादातर लोग संपत्ति के अधिकार, विवाह, तलाक, गोद लेने के लिए संहिताबद्ध नियम चाहते हैं.”

हुसैन ने कहा, “हर कोई जानता है कि सरकार मुसलमानों के अपने धर्म का पालन करने के तरीके को नहीं बदल सकती है. लेकिन एक बार कोड लागू हो जाने के बाद, मुस्लिम महिलाओं के जीवन में भारी बदलाव आएगा. यह मुसलमानों के हित में है – केवल मुस्लिम नेता ही ऐसा सुधार नहीं चाहते हैं.”

हुसैन ने कहा, जब मोदी सरकार ने तीन तलाक पर प्रतिबंध लगाया तो इसी तरह का विरोध शुरू हो गया. उन्होंने कहा, “लेकिन अब भारी बदलाव आया है.”

हालांकि, बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के एक पदाधिकारी ने कहा, “मुस्लिम संगठनों के विरोध को जानते हुए, हमें कोई भी कोड लाने से पहले सावधानी से आम सहमति बनानी होगी.”

पदाधिकारी ने कहा, ”हमने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) पर शाहीन बाग में मुस्लिम समुदाय का विरोध देखा है. सरकार को नियम बनाने से पीछे हटना पड़ा. ऐसी स्थिति लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी की चुनावी संभावनाओं को नुकसान पहुंचा सकती है.”

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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