लखनऊ: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मंत्री राकेश सचान का हाल ही में अदालत से गायब होना और बाद में फिर हाजिर होना उत्तर प्रदेश में काफी नाटकीय घटनाक्रम रहा है.
योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री सचान को गत शनिवार को जैसे ही 1991 में शस्त्र अधिनियम के तहत दर्ज एक मामले—जो उनके पास से बरामद हथियार का लाइसेंस पेश न कर पाने से जुड़ा है—में दोषी करार दिया गया, वह कथित तौर पर आदेश की फाइल लेकर कानपुर की एक कोर्ट से ‘फरार’ हो गए.
पुलिस का दावा है कि इस बंदूक का इस्तेमाल कथित तौर पर एक युवा नेता की हत्या में किया गया था.
हालांकि, दो दिन बाद ही उन्होंने अदालत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और उन्हें एक साल कैद की सजा सुनाई गई और 1,500 रुपये का जुर्माना लगाया गया. लेकिन कुछ ही घंटों बाद उन्हें 50,000 रुपये के मुचलके पर जमानत मिल गई.
नोएडा निवासी वकील प्रमेंद्र भाटी ने दिप्रिंट को बताया, ‘किसी आरोपी को दोषी ठहराए जाते ही तुरंत पुलिस हिरासत में ले लिया जाता है. लेकिन इस मामले में स्पष्ट तौर पर ऐसा नहीं हुआ.’
मंत्री के कथित तौर पर भाग जाने के बाद कोर्ट रीडर ने कानपुर पुलिस को लिखित शिकायत दी, लेकिन अभी तक इस मामले में प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है.
शिकायत, जिसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास है, में कहा गया है कि फैसला सुनाए जाने के बाद सचान के ‘वकील ने देखने के लिए कोर्ट के आदेश की फाइल ले ली’ और तभी ‘आरोपी राकेश सचान रिकॉर्ड से निर्णय/सजा का आदेश लेकर भाग गए.’
इसमें कहा गया है, ‘घटना के समय वहां पर सुरक्षाकर्मी, समर्थक और लगभग 40-50 अन्य लोग मौजूद थे और अदालत कक्ष में भारी भीड़ के कारण कोर्ट के कर्मचारी कुछ नहीं कर पाए और आरोपी मंत्री मौके से फरार हो गए.’
एसीपी (कोतवाली) अशोक कुमार सिंह ने दिप्रिंट से कहा, ‘जांच सोमवार को ही शुरू हो गई थी. और इसे एक सप्ताह के भीतर पूरा करके जमा कर दिया जाएगा.’
सचान के आत्मसमर्पण के बाद उनकी पूर्व पार्टी समाजवादी पार्टी (सपा) के कानपुर जिलाध्यक्ष डॉ. इमरान ने दिप्रिंट को बताया, ‘सचान बड़े मंत्री हैं. भाजपा का कहना है कि यह ‘अलग तरह की पार्टी’ है, लेकिन उनके मंत्री पत्रावली (कोर्ट रिकॉर्ड) लेकर कोर्ट से फरार हो गए हैं. अगर भाजपा वास्तव में अलग है और सुशासन के लिए काम करती है, तो उसे उनके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए.’
हालांकि, सचान के छह वकीलों की नई टीम में शामिल राघवेंद्र प्रताप सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि मंत्री ‘अदालत से इसलिए गए क्योंकि वे खुद को अस्वस्थ महसूस कर रहे थे और उन्हें मिचली आ रही थी.’
उन्होंने कहा, ‘वह बिना अनुमति के नहीं गए थे, लेकिन उन्होंने अपने पूर्व वकील की सलाह का पालन किया. वह सोमवार को कोर्ट में पेश हुए, जहां उन्हें हिरासत में लिया गया और फिर जमानत भी मिल गई. निर्धारित प्रक्रिया के तहत हमारे पास सत्र अदालत में अपील करने के लिए 30 दिन का समय है.’
दिप्रिंट से बातचीत में सचान के एक अन्य वकील शिवकांत दीक्षित ने कहा कि मंत्री ने उन्हें रविवार को ये मामला सौंपा है. उन्होंने कहा, ‘मैंने अभी पूरे मामले का गहराई से अध्ययन नहीं किया है, लेकिन मंत्री पर आर्म्स एक्ट की धारा 20, 25 और 30 के तहत आरोप लगाए गए हैं.’
यह पहली बार नहीं है जब सचान गलत कारणों से सुर्खियों में आए हैं. मंत्री का लगभग पूरा राजनीतिक जीवन विवादों से ही घिरा रहा है.
2014 में दिए गए चुनावी हलफनामे के मुताबिक, 1987 में जब सचान के खिलाफ कानपुर कोतवाली में एफआईआर दर्ज की गई थी तब उन पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 147 (दंगे की सजा से संबंधित आरोप), 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत आरोप लगाए गए थे.
हलफनामे में सचान ने खुलासा किया था कि उनके खिलाफ आठ मामले थे जिसमें आरोप तय किए गए थे. हालांकि, 2022 के विधानसभा चुनाव में सचान की तरफ से दायर हलफनामे में बताया गया था कि उनके खिलाफ छह मामले लंबित हैं, जिसमें आर्म्स एक्ट का मामला (1991) भी शामिल है, जो अभी नाटकीय घटनाक्रम के कारण सुर्खियों में है.
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राजनीति में कैसे बनाया दबदबा
कानपुर क्षेत्र में ओबीसी कुर्मी जाति के एक वरिष्ठ नेता माने वाले सचान के बारे में कहा जाता है कि समाजवादी पार्टी में रहने के दौरान उनके सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव और उनके भाई शिवपाल यादव से काफी करीबी रिश्ते थे.
सपा के साथ तीन दशक से अधिक समय तक जुड़े रहने के बाद 2019 में फतेहपुर लोकसभा सीट से टिकट न मिलने पर सचान ने यह आरोप लगाते हुए कांग्रेस का दामन थाम लिया था कि सपा अपने वादे से मुकर गई है. कांग्रेस में रहने के दौरान वह प्रियंका गांधी के नेतृत्व वाले यूपी के वरिष्ठ नेताओं के कोर ग्रुप का भी हिस्सा बन गए.
हालांकि, उस चुनाव में वह तीसरे नंबर पर रहे, जिसमें भाजपा की साध्वी निरंजन ज्योति ने जीत हासिल की. सचान को लगा कि यूपी में कांग्रेस का कमजोर आधार उनकी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में मददगार नहीं होगा, इसलिए, इस साल जनवरी में 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन प्रक्रिया (तीसरा चरण) शुरू होने के दो दिन बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की उपस्थिति में भाजपा में शामिल हो गए.
सचान के पूर्व संस्थान और कानपुर यूनिवर्सिटी से संबंद्ध डीएवी कॉलेज के हिंदी विभाग के पूर्व प्रमुख डॉ. रमेश वर्मा ने बताया, ‘सचान को लगा कि उन्हें कांग्रेस से कोई फायदा नहीं मिलने वाला है और भाजपा में शामिल हो गए, जो विवादों में रहने वाले पूर्व विधायक विनोद कटियार की जगह भोगनीपुर से लड़ने के लिए किसी कुर्मी नेता को ढूंढ़ रही थी. सचान भाजपा को उपयुक्त उम्मीदवार लगे.’
सचान के लिए भी यह बदलाव काफी फायदेमंद रहा. उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा और एमएसएमई, खादी और ग्रामोद्योग और रेशम उत्पादन समेत कई विभागों का प्रभार मिला.
छात्र राजनीति से की शुरुआत
कानपुर नगर जिले के घाटमपुर क्षेत्र के मूल निवासी सचान ने राजनीति की शुरुआत छात्र राजनीति से की थी, जैसी ज्यादातर सपा राजनेताओं की पृष्ठभूमि रही है.
डॉ. वर्मा ने दिप्रिंट को बताया, ‘सचान 1980 के दशक में कानपुर आए और छात्र राजनीति का हिस्सा बने. इसके बाद से वह अक्सर विवादों में घिरे रहे हैं. उदाहरण के तौर पर जब उन्हें डीएवी में प्रवेश नहीं मिल रहा था, तो उन्होंने इसके के लिए अपने ओबीसी दर्जे का इस्तेमाल किया.
सचान के समय ही राजनीति में आए बबेरू से सपा के मौजूदा विधायक विशंभर सिंह यादव ने दिप्रिंट को बताया कि कुर्मी नेता नरेंद्र सिंह, जो यूपी में पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में कृषि मंत्री थे, ने सचान को डीएवी में प्रवेश दिलाने के लिए हस्तक्षेप किया था.
यादव ने बताया, ‘मैं 1982 में छात्र संघ अध्यक्ष था जब वह राजनीति में आए. सचान ने 1983 में महासचिव पद के लिए चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए.’ साथ ही यह भी बताया कि 10 साल बाद सचान को जनता दल से टिकट मिला और 1993 में घाटमपुर से विधायक बने.’
विवादों से लंबा नाता
2022 के विधानसभा चुनावों से पहले, सचान तब सुर्खियां में रहे थे जब कथित तौर पर किसान बीमा योजना के तहत मिलने वाले धन का लाभ उठाने के लिए इलाज में फर्जीवाड़े का सुझाव देते हुए कैमरे में कैद हो गए थे.
उन्हें यह कहते सुना गया कि गांव वाले मृतक के पैरों पर नकली चोट का निशान बना लें और उसका पोस्टमार्टम कराएं. उन्होंने आगे कहा कि इसके आधार पर डॉक्टर नतीजों को ‘संदिग्ध’ करार देंगे और फिर स्लाइड को आगरा फोरेंसिक प्रयोगशाला में भेजा जा सकेगा, जिसके बाद वे आसानी से राशि का दावा कर सकेंगे.
फिलहाल जो मामला सुर्खियों में है वो 1991 में कानपुर के नौबस्ता पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धारा 304ए (लापरवाही से मौत) और आर्म्स एक्ट की धारा 20 और 25 के तहत दर्ज किया गया था, जिसमें नवंबर 2006 में आरोप तय किए गए थे. इसका उल्लेख सचान के हलफनामे में भी है.
13 अगस्त 1991 को राकेश सचान के पास से एक लाइसेंसी हथियार बरामद किया गया था, जिसके संदर्भ में आरोप लगाया गया था कि इसका इस्तेमाल युवा नेता नृपेंद्र सचान की हत्या में किया गया. एक न्यूज रिपोर्ट के मुताबिक, सचान के वकीलों ने तर्क दिया है कि बरामद हथियार राकेश सचान के दादा के नाम पर था, लेकिन उस समय सचान इसका लाइसेंस दिखाने में नाकाम रहे थे, जिसके कारण उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी.
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