नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पांच साल पहले 50 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर के साथ जिन 224-संसदीय सीटों पर जीत हासिल की थी, उनमें से 2024 के लोकसभा चुनावों में वह 46 सीटें खो चुकी है.
शिवहर (बिहार), कोलार (कर्नाटक) और बागपत (उत्तर प्रदेश) में तीन सीटें उसके सहयोगियों को आवंटित की गई थीं.
इस बीच, सत्तारूढ़ पार्टी इस बार इनमें से शेष 175 सीटों को बरकरार रखने में सफल रही.
भाजपा के हाथ से फिसली सभी 46 सीटें इंडिया के घटक दलों के पास चली गईं, जिनमें कांग्रेस के खाते में सबसे ज़्यादा 29 सीटें गईं, समाजवादी पार्टी ने 9 सीटें और एनसीपी (शरद पवार) समेत अन्य ने 4 सीटें जीतीं.
महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश (10-10 सीटें) और राजस्थान (9) — वे राज्य जहां भाजपा का प्रदर्शन गिरा — इन नुकसानों में से आधे से ज़्यादा सीटों के लिए ज़िम्मेदार थे.
ये 224 सीटें एक महत्वपूर्ण विश्लेषण हैं क्योंकि वे 2019 में जीती गई सीटों की संख्या से कहीं ज़्यादा भाजपा के वर्चस्व को दर्शाती हैं. हालांकि, जैसा कि नतीजे दिखाते हैं, विपक्षी दलों ने पांच साल के अंतराल में बाजी पलट दी है.
भाजपा ने 2019 में न केवल दिल्ली (7), उत्तराखंड (5), हिमाचल प्रदेश (4), अरुणाचल प्रदेश (2), चंडीगढ़ (1) और गुजरात (26) में जीत हासिल की, बल्कि उसने सभी 45 सीटों पर 50 प्रतिशत से ज़्यादा वोट शेयर के साथ जीत हासिल की.
भाजपा ने पहले चार राज्यों में फिर से सभी सीटें जीत लीं, लेकिन, भाजपा गुजरात के बनासकांठा में चुनाव हार गई, जिस राज्य में उसने पिछले दो आम चुनावों में जीत हासिल की थी.
2019 में भाजपा ने यहां 3.68 लाख से अधिक मतों के अंतर से जीत दर्ज की थी, जबकि कांग्रेस की गेनीबेन ठाकोर ने 30,000 से अधिक मतों के अंतर से जीत दर्ज की थी. भाजपा ने इस सीट पर मौजूदा सांसद प्रभातभाई सवाभाई पटेल का टिकट काटकर रेखाबेन हितेशभाई चौधरी को मैदान में उतारा था.
चंडीगढ़ कांग्रेस के खाते में गया. हालांकि, दो कार्यकाल भाजपा के साथ रहने के बाद यह सीट मामूली अंतर से ही गई.
राजस्थान में 2019 में भाजपा 24 सीटें जीतने में सफल रही थी और एक सीट उसके सहयोगी दल के खाते में गई थी. एक सीट को छोड़कर बाकी सभी सीटें भाजपा ने 50 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर के साथ जीती थीं. इस बार कांग्रेस पार्टी ने आठ सीटें छीन ली हैं. इनमें से एक गंगानगर है, जहां पिछली बार भाजपा ने 4 लाख से अधिक मतों से जीत दर्ज की थी.
कांग्रेस के कुलदीप इंदौरा ने इस बार जयपुर में 88,000 मतों से जीत दर्ज की. भाजपा ने यहां अपने मौजूदा सांसद का टिकट काट दिया था. सीकर, जिसे 2019 में भाजपा ने करीब 3 लाख वोटों से जीता था, माकपा ने 73,000 वोटों के अंतर से जीत लिया.
इसके अलावा, मध्य प्रदेश में भाजपा ने अपना प्रदर्शन बेहतर किया और सभी 29 सीटें पार्टी की झोली में गईं. पिछले चुनाव में यह संख्या 28 थी, जिसमें 25 सीटें 50 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर वाली थीं.
दक्षिण की बात करें तो, भाजपा ने 2019 में कर्नाटक में मजबूत प्रदर्शन किया था, जहां उसने 28 में से 25 सीटें जीती थीं. इनमें से 22 सीटों पर 50 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर था.
इस बार, भाजपा ने इनमें से छह सीटें कांग्रेस के हाथों गंवा दीं और कोलार सीट जेडीएस को दे दी. कर्नाटक में उसके सहयोगी दल ने यह सीट जीत ली.
2019 में भाजपा को ऐतिहासिक जनादेश उत्तर प्रदेश में उसके प्रदर्शन से मिला, जहां उसने 2014 में 17 सीटों के मुकाबले इतने अधिक अंतर से 40 सीटें जीतीं. कुल मिलाकर, राजनीतिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण राज्य में पार्टी की कुल सीटें 62 थीं.
इस साल पार्टी ने इन हाई-मार्जिन सीटों में से 10 खो दीं. नौ समाजवादी पार्टी के खाते में गईं, जबकि 1 कांग्रेस के खाते में गई. अखिलेश यादव की अगुआई वाली पार्टी से हारी गई सभी 9 सीटों पर भाजपा के मौजूदा सांसद फिर से आए थे.
महाराष्ट्र में भाजपा के पास 50 प्रतिशत से ज़्यादा वोट शेयर वाली 15 सीटें थीं. इसमें 10 सीटें कांग्रेस से, चार एनसीपी (सपा) से और एक शिवसेना (यूबीटी) से हारी. इसमें जालना की सीट भी शामिल है, जिसे पार्टी ने 2019 में 3 लाख से ज़्यादा वोटों के अंतर से जीता था. इस बार वो कांग्रेस से 1 लाख से ज़्यादा वोटों से हारी. महाराष्ट्र के नतीजे खास तौर पर दिलचस्प हैं, क्योंकि इस साल के आखिर में यहां चुनाव होने हैं.
इस साल के आखिर में हरियाणा में भी चुनाव होने हैं. यहां भाजपा ने सभी 10 सीटें जीती थीं, लेकिन रोहतक में जीतने वाला वोट शेयर 50 प्रतिशत से कम था. राज्य में यह संख्या घटकर 5 सीटों पर आ गई.
2019 में भाजपा ने अंबाला, सिरसा और हिसार में 3 लाख से ज़्यादा वोटों से जीत दर्ज की थी, लेकिन वहां नतीजे उलट रहे. दरअसल, सिरसा में भाजपा कांग्रेस की वरिष्ठ नेता कुमारी शैलजा से 2.6 लाख से ज़्यादा वोटों से हार गई.
बिहार के आरा में जनादेश दक्षिणपंथी से वामपंथी की ओर जाने से सभी हैरान हो गए. सीपीआई-एमएल के सुदामा प्रसाद ने केंद्रीय मंत्री आर.के. सिंह को करीब 60,000 वोटों से हराया. 2019 में सिंह ने 1.5 लाख से अधिक वोटों से जीत दर्ज की थी.
इसी तरह सासाराम भी कांग्रेस के खाते में गया. भाजपा ने शिवहर की सीट जेडी(यू) को दे दी, जिसने 30,000 वोटों से जीत हासिल की. बिहार की इन तीनों सीटों पर भाजपा ने 50 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर के साथ जीत दर्ज की.
नतीजों से साफ पता चलता है कि विपक्ष ने भाजपा के गढ़ में सेंध लगा दी है और अब वह हिंदी पट्टी में सत्तारूढ़ पार्टी को हराने में सक्षम है.
राजनीतिक वैज्ञानिक सुहास पलशिकर ने दिप्रिंट को बताया, भारत में फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट (एफपीटीपी) चुनावी प्रणाली अपनाई जाती है — जिसमें सबसे ज़्यादा वोट पाने वाला उम्मीदवार जीतता है, भले ही उसके पास बहुमत हो या न हो. इसलिए वोट शेयर की केवल सीमित प्रासंगिकता है.
पलशिकर ने कहा, “हमारी एफपीटीपी प्रणाली में किसी निर्वाचन क्षेत्र में 50 प्रतिशत से अधिक मतों से जीतने वाले उम्मीदवार का मतलब उम्मीदवार या पार्टी की स्थानीय लोकप्रियता से ज़्यादा कुछ नहीं होता, लेकिन अगर ऐसे निर्वाचन क्षेत्रों में संख्या बढ़ती है, जैसा कि 2019 में भाजपा के मामले में हुआ, तो यह निश्चित रूप से उस पार्टी के बढ़ते वर्चस्व को रेखांकित करता है.”
इसके अलावा 2019 में 7 सीटें ऐसी थीं, जहां भाजपा का वोट शेयर 70 प्रतिशत से ज़्यादा था. सबसे ज़्यादा 74.47 प्रतिशत वोट सूरत में मिले, जहां भाजपा उम्मीदवार मुकेश दलाल इस साल निर्विरोध जीते. इसके बाद 74.37 प्रतिशत वोट के साथ नवसारी का नंबर आता है. मौजूदा सांसद सी.आर. पाटिल ने अपना दमदार प्रदर्शन दोहराते हुए 7.7 लाख से ज़्यादा वोटों से जीत दर्ज की.
वडोदरा में जहां पार्टी ने 2024 में 72.3 प्रतिशत वोट हासिल किए थे, वहां उसे 5.8 लाख वोटों से जीत मिली. पार्टी ने बाकी बची चार सीटों कांगड़ा, भीलवाड़ा, मुंबई उत्तर, करनाल पर अच्छे अंतर से जीत हासिल की. पाटिल को छोड़कर, भाजपा ने इन सात सीटों पर सभी मौजूदा उम्मीदवारों को हटा दिया था.
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