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Saturday, 2 November, 2024
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नागपुर में अपनी पकड़ क्यों खोती जा रही है BJP, पुराने गढ़ में खोई जमीन वापस पाने में जुटी कांग्रेस

जिला परिषद और पंचायत समिति उपचुनावों में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा, जबकि 1990 के दशक तक नागपुर जिले में नियमित रूप से जीत हासिल करने वाली कांग्रेस बड़ी जीत के रूप में उभरी.

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मुंबई: नागपुर में पिछले कुछ चुनावों के दौरान जो रुझान दिखा है, उससे ऐसा लगता है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अपना यह गढ़ अब कांग्रेस के हवाले करती जा रही है, जहां पार्टी 1990 के दशक तक हावी रही थी.

नागपुर में बुधवार को घोषित जिला परिषदों और पंचायत समितियों के उपचुनावों के नतीजों में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का मुख्यालय है.

नागपुर जिले के 13 तालुकाओं की 16 जिला परिषद सीटों पर हुए उपुचनाव में भाजपा ने सिर्फ तीन पर जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस ने नौ पर और अन्य दलों ने चार पर जीत हासिल की.

इसी तरह, पंचायत समिति के उपचुनावों में नागपुर के 13 तालुकाओं की 31 सीटों में से केवल छह पर भाजपा जीती जबकि 21 सीटें कांग्रेस के खाते में आईं और बाकी अन्य पार्टियों को मिली हैं.

पिछले साल कांग्रेस ने महाराष्ट्र विधान परिषद के लिए नागपुर डिवीजन के स्नातकों के निर्वाचन क्षेत्र का चुनाव भी जीता था, जो कि भाजपा के लिए एक बड़ा झटका था. क्योंकि पार्टी और उसके पूर्ववर्ती संगठन जनसंघ ने पिछले 58 वर्षों से इस सीट पर कब्जा कर रखा था. मौजूदा केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी एक बार इस सीट पर जीत हासिल कर चुके हैं.

2014 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने यहां 11 में से 10 सीटों पर जीत हासिल करते हुए लगभग पूरे जिले पर अपना दबदबा बरकरार रखा था. लेकिन 2019 में पार्टी ने सात सीटों पर ही जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस ने तीन सीटें जीतीं और एक निर्दलीय के खाते में गई.


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‘भाजपा लोगों तक नहीं पहुंच रही’

नागपुर जिले के भाजपा नेताओं ने हालिया जिला परिषद और पंचायत समिति उपचुनावों में पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन के लिए कांग्रेस का प्रभाव बढ़ने समेत कई कारण गिनाए हैं.

उनका कहना है कि पार्टी 2019 के बाद से नागपुर जिले के मतदाताओं तक प्रभावी ढंग से नहीं पहुंच पा रही है.

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया कि कांग्रेस ने उपचुनाव के दौरान इस जिले के मंत्रियों सुनील केदार और नितिन राउत और पार्टी के महाराष्ट्र अध्यक्ष नाना पटोले जैसे सभी बड़े नेताओं की पूरी ताकत झोंक दी थी.

नेता ने कहा, ‘चंद्रशेखर बावनकुले (भाजपा) के पास उपचुनावों में पार्टी का अभियान संभालने की जिम्मेदारी थी. उन्होंने कई रैलियों को संबोधित किया लेकिन वह एक पूर्व मंत्री और तीन बार के विधायक रहे हैं, जिन्हें 2019 के विधानसभा चुनावों में टिकट तक नहीं दिया गया था. हमारे प्रतिद्वंद्वियों ने लोगों से यह कहते हुए उनके खिलाफ अभियान चलाया कि आधिकारिक तौर पर उनकी पार्टी में कोई मजबूत स्थिति नहीं है, और इसलिए पुलिस या प्रशासन पर उनकी कोई पकड़ नहीं होगी.’

उन्होंने आगे कहा, ‘कांग्रेस ने जहां नागपुर जिले में प्रचार के लिए अपने तमाम कद्दावर नेताओं को उतार दिया, वहीं देवेंद्र फडणवीस और नितिन गडकरी जैसे जिले के वरिष्ठ भाजपा पदाधिकारी तस्वीर में कहीं थे ही नहीं.’

बावनकुले ने इस आरोप पर तो कोई टिप्पणी नहीं की कि नागपुर के मतदाताओं ने उनकी रैलियों को गंभीरता से नहीं लिया लेकिन दिप्रिंट से ये जरूर कहा, ‘जमीनी हकीकत यह है कि कांग्रेस के मंत्री, विधायक, प्रदेश अध्यक्ष सभी ने अपनी ताकत का पूरा इस्तेमाल किया. सत्ता और पैसे का खुलकर इस्तेमाल हुआ. इसके अलावा, कुछ हद तक स्थानीय चुनावों का नतीजा इस बात पर भी निर्भर करता है कि राज्य स्तर पर सरकार में कौन है.’

उन्होंने कहा कि कई जगहों पर जहां शिवसेना और एनसीपी ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे, इसने भी महा विकास अघाड़ी राज्य सरकार में उनके सहयोगी दल कांग्रेस की मदद की.

नागपुर पूर्व निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा विधायक कृष्णा खोपड़े ने दिप्रिंट से कहा, ‘जबसे एमवीए सरकार सत्ता में आई है जिले में कोई विकास कार्य नहीं हुआ है. इसके विपरीत भाजपा ने 2014 और 2019 के बीच बहुत काम किया था. लेकिन कुछ कारणों से हम लोगों तक पहुंचने और इसके बारे में उन्हें बताने में सफल नहीं हो पाए.’

कांग्रेस ने खोई जमीन कैसे पाई

नागपुर के साथ-साथ विशाल विदर्भ क्षेत्र, पारंपरिक रूप से 1990 के दशक के अंत तक कांग्रेस का गढ़ था, जब भाजपा ने यहां पैठ बनानी शुरू की थी.

नागपुर के जिला कांग्रेस अध्यक्ष राजेंद्र मुलक ने बताया, ‘अंतरिम अवधि निश्चित तौर पर कांग्रेस के लिए एक संघर्ष की स्थिति थी. अंदरूनी कलह जैसे मुद्दों के कारण भाजपा नागपुर जिले में अपनी जड़ें जमा पाई. कैडर कमजोर हो गया था, उन्हें उचित महत्व नहीं मिल पा रहा था.’

उन्होंने कहा कि हाल के चुनाव नतीजे बताते हैं कि जब कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता साथ आते हैं और एकजुट होकर प्रयास करते हैं तो ‘उन्हें पता चलेगा कि कांग्रेस ने अब भी लोगों के दिलों में जगह बना रखी है.

मुलक ने आगे कहा, ‘हमने पार्टी के सभी आंतरिक मुद्दों को सुलझा लिया है. हमने नए लोगों को अवसर दिए और अपनी स्थानीय इकाइयों को मजबूत किया. यह एक लंबी प्रक्रिया थी और अब नतीजे सामने दिख रहे हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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