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Friday, 29 March, 2024
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छत्तीसगढ़ में BJP कार्यकर्ताओं की हत्या के पीछे साजिश की आशंका : पूर्व सीएम रमन सिंह

रमन सिंह बोले- उन लोगों को तो राहुल, राहुल, राहुल का नारा लगाने के लिए ही तैयार करके लाया गया था. उन्हें उनका नाम ही प्रोजेक्ट करना है. उनके पास कोई नहीं है, गांधी परिवार के सिवाये कांग्रेस के पास कुछ है ही नहीं.

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भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व सीएम रमन सिंह का कहना है कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल राम का नाम तो लेते हैं लेकिन धर्मांतरण कराने वालों के साथ खड़े नजर आते हैं. वह छत्तीसगढ़ में कांग्रेस-नीत सरकार के विकास के दावों पर सवाल उठाते हैं, राज्य में भाजपा कार्यकर्ताओं की टार्गेट किलिंग का आरोप लगाते हैं और अपनी ही पार्टी में दरकिनार किए जाने की आम धारणा को सिरे से खारिज करते हैं. रमन सिंह का कहना है कि पार्टी ने उन्हें जब जो जिम्मेदारी दी, उसे निभाना वो अपना कर्तव्य समझते हैं. छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री ने दिप्रिंट के पोलिटिकल एडिटर डीके सिंह को दिए एक खास इंटरव्यू में अपने उत्तराधिकारी की ‘नरम हिंदुत्व’ की राजनीति, अगले चुनाव में भाजपा के चेहरे, कांग्रेस नेताओं और राज्य के अफसरों के खिलाफ ईडी के छापे और अन्य ज्वलंत मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखी. पेश है, इसी बातचीत के प्रमुख अंश….

सवाल— गुजरात मॉडल से पहले ही एक छत्तीसगढ़ मॉडल ऑफ डेवलपमेंट आ चुका था, वो भी तब जबकि इसे अलग राज्य बने बहुत ज्यादा समय भी नहीं बीता था. इस बारे में आप क्या कहेंगे?

जवाब— छत्तीसगढ़ में 2003 के बाद हमें सरकार बनाने का मौका मिला और फिर लगातार 15 साल तक भाजपा की सरकार रही. अलग छत्तीसगढ़ का गठन विकास के मद्देनजर ही किया गया था. मध्य प्रदेश का हिस्सा रहा यह राज्य विकास के मामले में क्षेत्रीय असंतुलन का शिकार था. विकास के नाम पर हमारे पास कुछ भी नहीं था. सड़क नहीं, पुल नहीं, स्कूल नहीं अस्पताल नहीं, यानी कुल मिलाकर इंफ्रास्ट्रक्चर बेहद कमजोर था. बतौर मुख्यमंत्री मेरे सामने तीन विषय सबसे बड़ी चुनौती बनकर खड़े थे. छत्तीसगढ़ से लोग लाखों की संख्या में पलायन कर रहे थे. भूख से मौतें हो रही थीं और कुपोषण भी एक बड़ी समस्या था. आईएमआर, एमएमआर और कुपोषण सारे ही पैरामीटर में हमारी स्थिति देश में सबसे खराब थी. ऐसे में छत्तीसगढ़ के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही थी कि इन सबका सामना कैसे करें. ऐसे में, जिस छत्तीसगढ़ मॉडल की बात करते हैं, उसमें हमने धान की फसल पर फोकस किया. छत्तीसगढ़ में धान की खेती सिर्फ खेती नहीं है, बल्कि यहां की जीवनशैली का हिस्सा है.

हमने धान की खेती के प्रॉक्योरमेंट, उसके डिस्ट्रीब्यूशन और फिर प्रोडक्शन यानी एक-दूसरे के पूरक तीनों सर्किल के पूरे सिस्टम में सुधार किया. यानी पहले उसका उत्पादन बढ़ाना, फिर उसका प्रॉक्योरेंट और इसके बाद डिस्ट्रीब्यूशन करना. हम जिस छत्तीसगढ़ मॉडल की बात करते हैं, उसमें हमने इन तीनों सिस्टम को ठीक किया. प्रॉक्योरमेंट सिस्टम सुधारकर बड़े पैमाने पर धान की सरकारी खरीद की गई, धान पर बोनस देने की व्यवस्था शुरू की गई. वहीं डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम के तहत हमने गरीबों के लिए मुख्यमंत्री खाद्य सुरक्षा योजना लागू की, जिसमें शुरुआत में तकरीबन 58 लाख लोगों को एक रुपये प्रति किलो चावल देने की व्यवस्था की गई. फिर इसी योजना को हमने खाद्य सुरक्षा और पोषण सुरक्षा में बदल दिया. प्रोटीन की कमी को पूरा करने के लिए चना दिया और जब देखा कि आयोडीन की कमी की वजह से बस्तर और सरगुजा में दिक्कत हो रही है तो नमक भी मुफ्त दिया.

इस तरह उनको पूरा पैकेज दिया. कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए और भी सिस्टम बदला, और राज्य में कृषि लोन पर जो 16% इंटरेस्ट लगता था—जिसकी वजह से उधार लेने बाद उसे भरते-भरते लोगों की जिंदगी बीत जाती थी, उसे 9% किया. फिर नौ को छह फीसदी किया और फिर उसे तीन फीसदी किया. इसके बाद छत्तीसगढ़ में देश का मॉडल बना, जीरो इंटरेस्ट रेट में हमने लोगों को कोऑपरेटिव बैंक से लोन देना शुरू किया. इससे सिस्टम मजबूत हुआ और उत्पादन लागत घटने के साथ बेहतर कीमतें मिलने लगीं.

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इस सबसे लोगों के लिए खाने की व्यवस्था तो गई लेकिन फिर आगे एक और बड़ी समस्या उनके स्वास्थ्य की थी. इसलिए स्वास्थ्य सुरक्षा देने का फैसला किया और हमने प्रति व्यक्ति स्मार्ट कार्ड बनाया. करीब 50 लाख परिवारों का स्मार्ट कार्ड बनाया और इसमें हर व्यक्ति को 50,000 रुपये तक मुफ्त इलाज की सुविधा दी गई. इस तरह लोगों के खाने की व्यवस्था भी उनके इलाज की भी व्यवस्था हो गई. फिर इंफ्रास्ट्रक्चर पर हमने अपना ध्यान केंद्रित करना शुरू किया. सड़कों का जाल बिछाना, बिजली की व्यवस्था करना, इन सारी व्यवस्थाओं में पूरी ताकत लगा दी.

सवाल— जब आप मुख्यमंत्री थे तो आपने शानदार प्रदर्शन करने वाले मुख्यमंत्री की छवि कायम की थी. आप 15 साल तक सीएम की कुर्सी पर रहे और फिर एक चुनाव में हार के बाद अचानक ऐसा लगने लगा कि आप शायद सियासी परिदृश्य से एकदम गायब हो गए हैं. लोग जानना चाहते हैं कि आखिर रमन सिंह आजकल क्या कर रहे हैं. आप कहां और कितने सक्रिय हैं आजकल?

जवाब— मुझे राष्ट्रीय स्तर पर जो जिम्मेदारी दी गई, उसे तो निभाता ही हूं, छत्तीसगढ़ में बड़ी चुनौती है. छत्तीसगढ़ में जहां जहां जरूरत होती है या पूरे प्रदेश में जहां जरूरत होती है हम लोग जाते हैं और इस सरकार के खिलाफ पूरी ताकत के साथ जनता के बीच खड़े होकर बड़े आंदोलनों में हिस्सा लेते हैं. अभी नड्डा जी आए थे यहां पर, उनके नेतृत्व में एक बड़ा आंदोलन हुआ. महिलाओं का भी एक बड़ा आंदोलन हुआ था, स्मृति ईरानी भी इसमें शामिल होने आई थीं. तो लगातार बड़े-बड़े आंदोलन हो रहे हैं. बस्तर में आंदोलन की रणनीति बनी, सरगुजा में भी आदिवासियों को लेकर एक आंदोलन हुआ. इस सरकार को अभी 4 साल और तीन-चार महीने ही हुए हैं लेकिन जनता के मन में आक्रोश है और यह सरकार सभी मोर्चों में असफल रही है.

सवाल— आप 70 साल के हो चुके हैं और अभी तक फिट एंड फाइन है. क्या आप खुद को इसमें सक्षम मानते हैं कि भाजपा को सत्ता में लाएं और अगर जीत हासिल होती है तो फिर पांच साल के लिए सरकार का नेतृत्व संभालें?

जवाब— (हंसते हुए) यह तो पार्टी तय करती है किसे मुख्यमंत्री बनाना है. लेकिन पूरे चुनाव में सक्रियता के साथ पार्टी के लिए प्रचार की जिम्मेदारी जरूर है. बड़ा लक्ष्य यही है कि इस कांग्रेस सरकार को सत्ता से हटाया जाए.

सवाल— सियासी स्तर पर एक सामान्य धारणा ऐसी बनी हुई है कि रमन सिंह को साइडलाइन कर दिया गया है. हम दिल्ली में इस बारे में जब आपके पार्टी सहयोगियों से बात करते हैं तो उनका कहना यही होता है कि हम राज्यों में नया नेतृत्व तैयार कर रहे हैं. छत्तीसगढ़ में हम काफी समय से नया नेतृत्व देखने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अब तक ऐसा कुछ नजर नहीं आता है. कोई ऐसा नहीं है जो आपकी लोकप्रियता के आसपास भी कहीं टिकता हो. ऐसे में हमें अगला चुनाव किसके नेतृत्व में लड़ा जाता देखने को मिलेगा?

जवाब— चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़ा जाता है और पहले भी तीन चुनावों के बाद जब मैं मुख्यमंत्री बना तो कभी रमन सिंह को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाकर चुनाव नहीं लड़ा गया था. हम सब मिलकर चुनाव लड़ते हैं और नतीजे आने के बाद जब विधायक दल की बैठक होती हैं तो एक घंटे के भीतर ही हमारा निर्णय हो जाता है. यह तो पार्टी को तय करना है कि क्या अभी किसी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा. लेकिन भाजपा में सामान्यत: हम सभी मिलकर सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ेंगे.

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दिप्रिंट के पोलिटिकल एडिटर डीके सिंह और छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम रमन सिंह

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सवाल— राज्य की प्रभारी रही डॉ. पुरंदेश्वरी ने कुछ महीने एक बयान दिया था कि मोदी ही चेहरा होंगे और मुख्यमंत्री कौन बनेगा इस पर बाद में तय किया जाएगा. इससे कहीं न कहीं यह संकेत गया है कि रमन सिंह को दरकिनार किया जा रहा है और वह मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं होंगे.

जवाब— देखिए अभी एक बात स्पष्ट है, चाहे छत्तीसगढ़ हो या मध्यप्रदेश हो या कोई भी राज्य हो हम जो भी चुनाव लड़ते हैं, उसमें सबसे बड़ा चेहरा अगर कोई है तो नरेंद्र मोदी ही हैं. मोदी के नाम पर ही सारी व्यूहरचना की जाती है और हम उसी के आधार पर चुनाव लड़ते हैं. आप अन्य राज्यों में भी देखेंगे कि कहीं पर मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करने की परंपरा नहीं है. मगर मोदी का नाम, साढ़े आठ साल में देश को ऐतिहासिक स्थिति में पहुंचाने वाला उनका काम चलता है. छत्तीसगढ़ में भी मोदी जी के नाम पर, मोदी जी के काम पर चुनाव लड़ा जाएगा और हम जीत भी हासिल करेंगे.

सवाल— तो क्या आपको लगता है कि मुख्यमंत्री के चेहरे बिना यहां पर चुनाव में जाना ठीक रहेगा?

जवाब— हमेशा यही हुआ है यहां पर, कभी इस बात पर पार्टी ने तय नहीं किया कि ये मुख्यमंत्री का चेहरा है और इस चेहरे के आधार पर चुनाव लड़ा जाएगा. चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़ते हैं और फिर बाद में निर्णय करते हैं

सवाल— अगर पार्टी नेतृत्व तय करता है कि आपके नेतृत्व में चुनाव हो, आप मुख्यमंत्री का चेहरा बने और आपको जिम्मेदारी देती है, अगर पार्टी जीतते हैं तो आप तैयार होंगे?

जवाब—देखिए मैं तो पार्टा की एक कार्यकर्ता हूं और मुझे जब जो दायित्व दिया गया, मैंने उसका निर्वहन किया. जब मैं दिल्ली में था, केंद्रीय मंत्री था और मुझे कहा गया कि प्रदेश अध्यक्ष बनकर छत्तीसगढ़ आना है तो मैं यहां आ गया. 2003 में मैं प्रदेश अध्यक्ष की हैसियत से छत्तीसगढ़ आया था. फिर मुझे एक बार, दो बार नहीं बल्कि तीन बार मुख्यमंत्री बनाया. केंद्रीय मंत्री पद छोड़कर मैं छत्तीसगढ़ आया था, इसलिए पार्टी जब कोई निर्णय करती है तो उस पर शत-प्रतिशत अमल करना डॉ. रमन सिंह अपनी जिम्मेदारी मानते हैं.

सवाल—आप राज्य में कांग्रेस की सरकार है और भूपेश बघेल की सरकार के कामकाज पर आपकी प्रतिक्रिया क्या है?

जवाब—चार-साढ़े चार साल इस सरकार ने सिर्फ नारे लगाते-लगाते समय गुजार दिया है. दरवा-गरवा गुरवा बारी, ऐसी ही बातों को लेकर समय कट गया, इंफ्रास्ट्रक्चर पर कोई काम नहीं हुआ, कहीं एक किलोमीटर सड़क बनी हो तो बता दें, कोई नई बिल्डिंग बनी हो, कोई नया इंस्टीट्यूशन खड़ा किया हो. हम पूछते हैं कि छत्तीसगढ़ में कोई काम हुआ है तो बताएं, किसी जिले में कोई काम किया हो, प्रदेश में कहीं कुछ किया हो. कोई काम नहीं हुआ चार-साढ़े चार साल के समय में, और है तो सिर्फ करप्शन, करप्शन और करप्शन. ऐसी हालत तो हिंदुस्तान के किसी राज्य में नहीं होगी जहां खुलेआम भ्रष्टाचार चल रहा हो. आप देख रहे हैं कि पहले जब छत्तीसगढ़ की बात होती थी तो विकास की चर्चा होती थी लेकिन अब तो कहीं भी बात शुरू करो तो ईडी और सीडी की बात की जाती है. एक तरफ ईडी की रेड और दूसरी तरफ सीडी का मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है.

प्रदेश में मुख्यमंत्री की ऐसी रेप्युटेशन पर आप क्या कहेंगे और ईडी ने जिस प्रकरण में कार्रवाई की, उसमें दस्तावेजों से साफ पता चलता है कि कोयले में 25 रुपया प्रति टन वसूली हो रही. ईडी को 540 करोड़ रुपये से ज्यादा के लेन-देन का पता चला है. सरकार इस कदर भ्रष्ट हो चुकी है. न केवल कोयले में बल्कि शराब की 30 फीसदी बिक्री में अवैध वसूल हो रही है. रेत के लिए नदियां ही बेच दी जा रही हैं. सीमेंट में 20 रुपये प्रति बोरी की वसूली होती है, कोयले में 25 रुपये की हो रही है तो रेत में प्रति ट्रक दो हजार रुपये की अतिरिक्त वसूली हो रही है. तो एक तरह से भूपेश बघेल के कार्यकाल को ईडी और सीडी के लिए, भ्रष्टाचार के लिए और विकास में शून्यता के लिए याद रखा जाएगा.

सवाल—फिर भी विधानसभा के लिए होने वाले उपचुनावों में उन्हें जीत हासिल हो रही है, क्या यह मान सकते हैं कि उन्हें जनता का सपोर्ट मिल रहा है?

जवाब—आम तौर पर उपचुनाव या मध्यावधि चुनाव में सत्ताधारी पार्टी को समर्थन मिलता है और उसका उन्हें लाभ मिल गया. लेकिन अब आठ महीने ही बाकी हैं विधानसभा चुनावों में और आठ महीने में ही स्पष्ट हो जाएगा कि छत्तीसगढ़ की जनता कांग्रेस को किस तरह खारिज करने जा रही है.

सवाल—भूपेश बघेल कहते हैं कि ईडी की जांच में अब तक कुछ नहीं निकला है. जब कुछ महत्वपूर्ण होना होता है, विरोध होता है और ईडी की जांच के लिए सामने खड़ी हो जाती है. यह सब राजनीतिक बदले की कार्रवाई से प्रेरित हैं और केंद्रीय एजेंसियां हमेशा से ऐसा करती रही हैं.

जवाब—भूपेश बघेल का यह कहना कि ईडी जांच में कुछ निकला नहीं है, दुनिया का सबसे बड़ा मजाक है. 540 करोड़ से ज्यादा के लेन-देन से जुड़े दस्तावेज उनके पास हैं और आज इनके अधिकारी जेल में, आईएएस अधिकारी, माइनिगं से जुड़े प्रमुख अधिकारी और व्यापारी जेल में हैं और इतने ज्यादा मामले चल रहे हैं. रोज छापे पड़ रहे हैं और ईडी के पास दस्तावेज हैं और आगे ये दस्तावेज जनता के बीच भी जाएंगे.

सवाल—अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का तीन दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन हाल ही में खत्म हुआ है. वहां जो कुछ कहा गया, उस पर आपकी क्या राय है?

जवाब—सिर्फ और सिर्फ एक परिवार की खुशामद के लिए इतना पैसा बर्बाद किया गया. प्रियंका आईं तो उनके लिए कहीं दो किलोमीटर तक सड़क पर गुलाब के फूल बिछा दिए गए. कहीं सौ-सौ गाड़ियों का काफिला चलने लगा. तीन दिन के सत्र में करोड़ो रुपये बर्बाद कर दिए गए. मुझे तो नहीं लगता कि यहां कोई राजनीतिक चर्चा, कोई राजनीतिक बहस हुई या कांग्रेस को लेकर कोई रोडमैप बनाया गया. कांग्रेस इतनी बुरी स्थिति में है इसके बावजूद मुझे नहीं लगता कि उसकी राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने आने वाले समय के लिए कोई निर्णायक फैसला लिया या 2024 को लेकर कोई रोडमैप बनाया. इसमें किसी कार्ययोजना पर कोई चर्चा नहीं हुई और भूपेश बघेल ने पूरी ताकत एक परिवार के तीन सदस्यों को खुश करने में ही लगा दी.

सवाल—कांग्रेस का रोडमैप और रणनीति तो तैयार है कि राहुल गांधी ही 2024 में पार्टी का चेहरा होंगे. भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस को ऐसा लग रहा है कि वह सत्ता के करीब पहुंच रही है. इस पर आप क्या कहेंगे?

जवाब—यह तो इसी से जाहिर है कि भारत जोड़ो यात्रा के पहले और बाद में चुनावों में कांग्रेस की क्या स्थिति रही. उनके अंदर विभाजन की रेखा कितनी गहरी खिंची हुई है, राजस्थान से लेकर मध्य प्रदेश तक जहां कुछ बची-खुची रह गई है, वहां भी कांग्रेस बंटी हुई दिख रही है. वो पहले पार्टी को ही जोड़ लें, भारत तो बाद में जोड़ेंगे.

सवाल—कुछ लोगों ने तो मंच से ही राहुल गांधी को अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बता दिया.

जवाब—उन लोगों को तो राहुल, राहुल, राहुल का नारा लगाने के लिए ही तैयार करके लाया गया था. उन्हें उनका नाम ही प्रोजेक्ट करना है. उनके पास कोई नहीं है, गांधी परिवार के सिवाये कांग्रेस के पास कुछ है ही नहीं.

सवाल—आप लंबे समय से राजनीति में हैं, वैसे तो वह प्रतिद्वंद्वी हैं लेकिन क्या आपको भारत जोड़ो यात्रा के बाद नेतृत्व में या जनता के बीच छवि में कोई बदलाव नजर आता है?

जवाब—(मजाकिया लहजे में) हां चेंज दिख रहा है कि दाढ़ी उसकी बढ़ गई है. दूसरा, उन्होंने दिखा दिया कि चलने में बहुत माहिर हैं और अगली बार मैराथन में चलने की तैयारी कर चुके हैं. वह लंबी यात्रा कर सकते हैं. उनकी पर्सनलिटी भले ही बदली हो लेकिन मुझे नहीं लगता कि इस सबसे उनकी बातचीत में कोई बड़ा परिवर्तन आया है या फिर वह कोई खास संदेश देने में सफल रहे हों.

सवाल—छत्तीसगढ़ में एआईसीसी के अधिवेशन में उन्होंने राजीव गांधी किसान न्याय योजना की बात की कि यह एक मॉडल स्कीम है और इसे अन्य राज्यों को भी अपनाना चाहिए.

जवाब—छत्तीसगढ़ में हमने बोनस देने की योजना शुरू की थी, 300 रुपये बोनस दिया और प्रॉक्योरमेंट के लिए सिस्टम बनाया, उसी योजना को उन्होंने आगे बढ़ाया है. उस समय भी मैं कहता था कि छत्तीसगढ़ मॉडल निश्चित तौर पर देश के लिए आदर्श मॉडल है और आज भी कहता हूं कि राज्य में हमने जो सिस्टम बनाया था, वो देश के लिए एक मॉडल है.

सवाल—कांग्रेस का दावा है कि हम अच्छी-खासी इनपुट सब्सिडी दे रहे हैं और रमन सिंह सरकार के समय धान पर जो एमएसपी 1800-1900 रुपये होती है उसे लगभग डेढ़ गुना बढ़ाकर 2700 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंचा दिया है.

जवाब—इस पर हम लोग भी कोई रास्ता निकालेंगे और चुनाव के पहले देखेंगे कि इस मामले में क्या कर सकते है.

सवाल—भूपेश बघेल की सरकार सॉफ्ट हिंदुत्व की तरफ रुख कर रही है. इस बात को प्रोमोट किया जा रहा है कि भगवान राम छत्तीसगढ़ के भांजे थे और इस आधार पर एक पूरा टूरिस्ट सर्किट बनाया जा रहा है कि राम-सीता यहां से गुजरे थे. फिर गोबर इकोनॉमी को भी बढ़ावा दे रहे हैं. तो क्या उनका ये सॉफ्ट हिंदुत्व आपके हिंदुत्व वाले नैरेटिव की धार कुंद कर सकता है?

जवाब—सॉफ्ट हिंदुत्व जैसा कुछ होता नहीं है. फिर ये इस तरह की बातें भले कर रहे हों लेकिन क्या इन्होंने छत्तीसगढ़ में कोई ऐसा काम किया है जो धर्म से जुड़ा हुआ हो, राम से जुड़ा हो. ये राम गमन पथ जैसे पुराने स्ट्रक्चर को लेकर बात करते हैं. और राम गमन पथ तो भारत सरकार की योजना का हिस्सा है. भारत सरकार ने इसके लिए मंजूरी दी और इसके लिए काम भी शुरू हुआ. कई जगह काम चल भी रहा है. भूपेश बघेल सिर्फ नारेबाजी और कोरे वादे करते हैं, राम के प्रति आस्था और निष्ठा जैसी कोई भावना उनमें नहीं है. बस्तर में आदिवासियों का धर्मांतरण हो रहा है और जब वे इसके खिलाफ सड़कों पर उतरते हैं तो उन्हें जेल में डाल दिया जाता है. पूरा राज्य में इनके इशारे पर धर्मांतरण हो रहा है. ये एक तरफ राम का नाम लेते हैं और दूसरी तरफ धर्मांतरण करने वालों के साथ खड़े हैं. ये उन आदिवासियों को प्रताड़ित करते हैं जो धर्मांतरण के खिलाफ हैं.

सवाल—कांग्रेस का दावा है कि उसने जो गोबर इकोनॉमी शुरू की, उसे लेकर आरएसएस वालों ने भी कहा कि हमें काम दे दो. इस पर आपकी प्रतिक्रिया?

जवाब—ये जो गोबर इकोनॉमी है या फिर जो दरवा-गरवा गुरबा-बारी हिंदुस्तान की और छत्तीसगढ़ की सबसे फ्लॉप स्कीम है. बड़ी-बड़ी बातें जरूर की गईं लेकिन कोई गऊठान नहीं बने हैं. गऊठान में न पानी की व्यवस्था और न ही भूसे और चारे की. चहारदीवारी नहीं हैं, और डॉक्टरों का भी कोई इंतजाम नहीं है. जितनी भी गाय-भैंसे हैं, वो सड़कों पर रहती हैं. किसी भी गऊठान में जाकर देख लीजिए, आपको वहां एक भी गाय नहीं मिलेगी. सारे जानवर लावारिस घूमते रहते हैं, इसमें सिर्फ भ्रष्टाचार हुआ है. मैं तो कहता हूं आपको बिहार में लालू से जुड़े चारा घोटाले के बारे में पता है और भविष्य में जब यहां की योजना की चर्चा होगी तो इसे गोबर घोटाला के नाम से जाना जाएगा.

सवाल—आप जब पहली बार मुख्यमंत्री बने थे नक्सली एक बड़ी चुनौती थे. अभी उनका इलाका कुछ घटा भले ही हो पर घटनाओं पर पूरी तरह अंकुश नहीं लगा है. पिछले कुछ महीनों में समय में नक्सलियों ने आपकी पार्टी के तीन लोगों को मार दिया है.

जवाब—लगातार भाजपा कार्यकर्ताओं को चिह्नित करके चार जिलों में चार प्रमुख कार्यकर्ताओं की हत्या हुई है. पिछले 15 दिनों के अंदर छह-सात पुलिसकर्मी भी शहीद हुए हैं. और ये कहते हैं कि हम नक्सलियों की समस्या खत्म कर देंगे. पार्टी कार्यकर्ताओं की सुरक्षा हटाई जा रही है. भाजपा कार्यकर्ताओं को टार्गेट करके मारा जा रहा है. इस स्थिति में हम कैसे कहें कि कहीं भी नक्सलवाद कम हुआ है.

सवाल—क्या आपको इन हमलों के पीछे कोई राजनीति नजर आती है?

जवाब—निश्चित तौर पर मैंने पहले भी बोला था कि इस तरह की घटनाओं से ऐसा संदेह होता है कि कहीं न कहीं हमारे कार्यक्ताओं को चिहिनित करके मारा जा रहा है. और इसके पीछे साजिश भी हो सकती है.

सवाल—लेकिन इसमें केंद्रीय बल भी शामिल हैं. फिर गृह मंत्री अमित शाह भी कहते हैं कि हमने नक्सलवाद पर काफी हद तक काबू पा लिया है. तो केंद्र और राज्य में अलग-अलग नैरेटिव क्यों चल रहा है?

जवाब—नक्सलियों पर दबाव के लिए राज्य की भूमिका और इच्छाशक्ति बहुत जरूरी है. अमित शाह चाहते हैं और अमित शाह ने फोर्स भी बहुत दी, राज्य की तरफ से जो सहयोग मांगा गया, वो दिया गया. केंद्र ने अपनी तरफ से पूरा सपोर्ट किया. लेकिन जब तक राज्य की इच्छाशक्ति नहीं होगी, राज्य मुख्यमंत्री नहीं चाहेगा, जब तक सभी प्रभावित जिलों में लगातार अभियान नहीं चलेगा, तब तक नक्सलियों को खदेड़ा नहीं जा सकता है. ये सरकार एक कदम आगे बढ़ती है और दो कदम पीछे हटती है.

सवाल—इस बार जब चावल वाले बाबा चौथे कार्यकाल के लिए जनता के बीच जाएंगे तो क्या ऑफर करेंगे.

जवाब—हम तो दो मुद्दे लेकर ही जनता के सामने जाएंगे. दो मुद्दे हैं हमारे पास. एक तरफ मोदी सरकार को देखिए उनके आठ साल चार महीने की उपलब्धियों को देखिये और फिर राज्य में भाजपा शासनकाल के 15 सालों की उपलब्धियों को भी देखिए. दूसरा, जिस डबल इंजन सरकार की बात होती पूरे देश में, वो छत्तीसगढ़ के लिए बहुत जरूरी है. ताकि मोदी सरकार का सहयोग मिले और हम छत्तीसगढ़ में अधूरी कार्ययोजना को पूरी किया जा सके. इस तरह मिलकर छत्तीसगढ़ को आगे बढ़ाया जा सकता है.

(संपादन: आशा शाह)


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