नई दिल्ली: गोवा में अगले विधानसभा चुनावों के संदर्भ में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और आम आदमी पार्टी (आप) जैसे दलों की तरफ से राज्य में जड़ें जमाने का प्रयास करना रणनीतिक तौर पर काफी पसंद आ रहा है.
हालांकि, भाजपा नेता गोवा की राजनीति में प्रवेश को लेकर इन दलों पर निशाना साधते रहे हैं लेकिन सत्ताधारी पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि इससे विपक्षी वोट बंटेगा और यह भाजपा के लिए ही फायदेमंद होगा.
बहरहाल, इस चुनाव में भाजपा के लिए खुद अपने टिकट दावेदारों को संभालना किसी चुनौती से कम नहीं होगा. इसके अलावा, जैसा दिप्रिंट से बात करने वाले नेताओं का मानना है, उत्तरी गोवा में वोट बंटने से रोकने के लिए महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी) के साथ गठबंधन भी एक बड़ा सवाल बना हुआ है.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अक्टूबर में जब गोवा का दौरा किया था तो उन्होंने काफी जोर देकर एक बात राज्य के भाजपा नेताओं से कही थी कि विपक्षी वोट जितना अधिक बंटेगा, पार्टी के लिए चुनाव जीतना उतना ही आसान होगा.
इसलिए, अपना गठबंधन मजबूत करने के साथ-साथ भाजपा ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और गोवा फॉरवर्ड पार्टी (जीएफपी) जैसे दलों के साथ गठबंधन करने के कांग्रेस के प्रयासों पर भी नजर बना रखी है. भाजपा के रणनीतिकारों का कहना है कि उनके लिए यह राहत की ही बात है कि कैथोलिक बहुल दक्षिण गोवा में भाजपा विरोधी वोट टीएमसी और आप जैसी पार्टियों के बीच बंट जाएगा. इससे सत्ताधारी दल को फायदा ही होगा.
2017 में पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने 40 सदस्यीय विधानसभा में सिर्फ 13 सीटें जीती थीं. कांग्रेस दक्षिण गोवा में कैथोलिक जनाधार के व्यापक समर्थन के बलबूते 17 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी. हालांकि, दोनों ही दल बहुमत के आंकड़े से पीछे थे और भाजपा ने सरकार बनाने के लिए छोटे दलों के साथ गठबंधन कर लिया.
गोवा भाजपा अध्यक्ष सदानंद तनवड़े ने दिप्रिंट से कहा, ‘टीएमसी कांग्रेस के वोटबैंक में सेंध लगाएगी, न कि भाजपा के वोट काटेगी. भाजपा विरोधी वोटों का बंटवारा इन पार्टियों के बीच होगा. 2017 के चुनाव में आप ने 36 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन सभी सीटों पर जमानत तक गंवा दी थी. गोवा के हर बिजली के खंभे पर सिर्फ झंडे लगाने से आपको वोट नहीं मिलता. गोवा में सभी का स्वागत है. इससे हमारा काम आसान ही होने वाला है.’
प्रत्याशी चयन पर तनवड़े ने कहा, ‘हम इंतजार कर रहे हैं कि कौन कहां पाला बदलता है. हमने किसी से जाने को नहीं कहा. फिर भी यह तय है कि केवल जीतने योग्य उम्मीदवारों को ही टिकट मिलेगा. दिसंबर अंत तक स्थिति साफ हो जाएगी. हमारे पास प्लान ए, बी और सी सब तैयार हैं. अगर कोई पार्टी छोड़ता है तो यह पहले ही तय हो चुका होगा कि उसकी जगह किसे टिकट मिलेगा.
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सौदेबाजी के साथ आंतरिक कलह बढ़ने के भी आसार
गोवा का सियासी गणित जटिल किस्म का है. राज्य की राजनीति में टीएमसी और आप के जोरदारी से कदम रखने के बाद भाजपा विधायकों ने अपने परिजनों के लिए टिकट मांगना तेज कर दिया है. भाजपा के एक नेता के मुताबिक, कम से कम 10 पार्टी नेता इस समय अपने बच्चों या पत्नियों को टिकट दिलाने की कवायद में जुटे हैं.
उदाहरण के तौर पर कलंगुट से भाजपा विधायक माइकल लोबो ने इस महीने की शुरुआत में अपनी तरफ से घोषित कर दिया कि लोबो के अपने निर्वाचन क्षेत्र से सीट सिओलिम सीट से उनकी पत्नी दलीला के चुनाव लड़ने की ‘पूरी संभावना’ है. उन्होंने मापुसा सीट से संभावित प्रत्याशी के तौर पर अपने दोस्त सुधीर कंडोलकर के लिए भी समर्थन जताया, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कंडोलकर—जो अभी कांग्रेस में है—किस पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ते हैं.
मापुसा के मौजूदा भाजपा विधायक जोशुआ डिसूजा ने सोमवार को लोबो के खिलाफ कथित पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए कार्रवाई की मांग की और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, जिन्हें भाजपा ने गोवा चुनाव का प्रभारी बनाया है, लोबो की केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ बैठक कराने के लिए उन्हें नई दिल्ली लेकर आए ताकि उनके दल बदलने की संभावना खत्म की जा सके.
हालांकि, भाजपा सूत्रों का कहना है कि लोबो कभी भी पार्टी छोड़ सकते हैं और वह पहले से ही कांग्रेस के साथ संपर्क में हैं. वह उत्तरी गोवा की पांच-छह सीटों के सियासी गणित पर असर डाल सकते हैं. ऐसे में भाजपा को इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए लोबो—जिनका करीब 20 सीटों पर मजबूत जनाधार है—को अपने पाले में बनाए रखने की जरूरत है.
पिछले हफ्ते, भाजपा के एक अन्य प्रमुख भाजपा नेता और 2017 के चुनावी उम्मीदवार रहे विश्वजीत कृष्णराव राणे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की उपस्थिति में आप में शामिल हो गए थे.
राणे ने दिप्रिंट से कहा, ‘मैं गोवा के लिए (पूर्व मुख्यमंत्री) मनोहर पर्रिकर के कार्यों से प्रभावित होकर भाजपा में शामिल हुआ था. (मौजूदा मुख्यमंत्री) प्रमोद सावंत के पास उस तरह की दूरदृष्टि नहीं है, न ही उनमें गोवा के विकास को लेकर किसी तरह का कोई जुनून है. इस सरकार में भ्रष्ट लोगों का बोलबाला है.’
मंड्रेम विधानसभा क्षेत्र में मौजूदा विधायक दयानंद सोपटे और पूर्व मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत परसेकर के बीच तनातनी चल ही रही है. 2017 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर सोपटे ने भाजपा के तत्कालीन विधायक परसेकर को हराया था. सोपटे 2018 में भाजपा में शामिल हो गए. अब, सोपटे ने अपने चुनावी कार्यालय का उद्घाटन किया है और परसेकर पर यह कहते हुए निशाना साधा है कि उन्होंने उनकी हार सुनिश्चित करने के लिए मनगढ़ंत आरोप लगाए हैं. फडणवीस सोमवार को सोपटे की दावेदारी पर राजी हो गए, लेकिन परसेकर कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए.
परसेकर ने दिप्रिंट को बताया, ‘सिर्फ दलबदल करने वाले विधायक ही नहीं हैं—हमारे सभी विधायक अपने लिए संभावनाएं तलाशने की कोशिश में इधर-उधर हाथ-पैर मार रहे हैं. अब इतने सारे डिपार्टमेंटल स्टोर (राजनीतिक दल मैदान में) आ गए हैं कि सबके सामने कई सारे विकल्प मौजूद हैं. इससे मुख्य दलों पर दबाव कम होगा.’
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उत्तर में एमजीपी के साथ गठबंधन बेहद अहम
भाजपा के सामने दूसरी बड़ी चुनौती, कम से कम अपने उत्तरी गोवा के गढ़ में, वोटों को बंटने से रोकने की है. बहुकोणीय मुकाबले में किसी सीट पर हार-जीत तय करने के लिए 5,000-6,000 वोटों की ही जरूरत पड़ती है.
पर्रिकर ने 2017 में एमजीपी के तीन विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई थी. लेकिन 2019 में उनके निधन के बाद नए मुख्यमंत्री सावंत ने कांग्रेस के 10 और एमजीपी के दो दलबदलुओं की मदद से भाजपा के लिए बहुमत जुटाया. एमजीपी के अकेले बचे विधायक और पार्टी प्रमुख सुदीन धवलीकर को तब उपमुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया था.
अब भाजपा की तमाम कोशिशों के बावजूद एमजीपी गठबंधन के लिए राजी होने में हिचकिचा रही है. एमजीपी ने पहले 12 सीटें मांगी थी, और अब कम से कम आठ सीटें देने पर बातचीत जारी है. फडणवीस और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी व अन्य भाजपा नेताओं ने पिछले महीने एमजीपी के नेताओं धवलीकर और उनके भाई दीपक से तीन बार मुलाकात की है. सत्ताधारी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी स्थिति का जायजा लेने के उद्देश्य से दो दिन (24-25 नवंबर) के लिए गोवा का दौरा किया था.
भाजपा की एक अन्य पूर्व सहयोगी पार्टी, विजय सरदेसाई की जीएफपी सीट बंटवारे पर कांग्रेस के साथ बातचीत में लगी है. सरदेसाई ने हटाए जाने से चार महीने पहले मार्च 2019 में धवलीकर की जगह उपमुख्यमंत्री का पद संभाला था.
भाजपा के एक प्रमुख नेता ने दिप्रिंट तो बताया, ‘एमजीपी के साथ गठबंधन की कोशिश में हमारी तरफ से पूरी ताकत लगाना यही संकेत देता है कि स्थिति सामान्य नहीं है. मौजूदा हालात में किसी भी पार्टी के लिए बहुमत पाना आसान नहीं होगा. अगर गठबंधन हुआ तो हम बेहतर स्थिति में होंगे. लेकिन जो कुछ भी होना है वह चुनाव के बाद होगा.’
जब जीत का अंतर काफी कम हो तो इस तरह का गठबंधन ही स्थितियों को बदल सकता है. उदाहरण के तौर पर 2017 में सिरोदा विधानसभा सीट पर कांग्रेस को 11,156 वोटों के साथ जीत हासिल हुई थी, जबकि भाजपा को 6,286 और एमजीपी को 5,815 वोट मिले थे. इन दोनों के बीच गठजोड़ होने पर उनके साझा वोट से इस सीट पर जीत सुनिश्चित हो सकती थी. पोंडा और सांताक्रूज समेत 10 ऐसी सीटें हैं, जहां भाजपा एमजीपी के साथ गठबंधन करके जीत हासिल कर सकती थी. और इस बार भाजपा अकेले चुनाव लड़ने का जोखिम उठाने को तैयार नहीं है.
दक्षिण में अल्पसंख्यक वोट विभाजित करेगी टीएमसी
कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले दक्षिण गोवा में टीएमसी की मौजूदगी के कारण अल्पसंख्यक वोटों के संभावित विभाजन को लेकर भाजपा काफी उत्साहित है. राज्य की जनसंख्या में हिंदुओं, ईसाइयों और मुस्लिमों की आबादी क्रमशः 66, 26 और 8.33 प्रतिशत है. भाजपा के 27 विधायकों में से 15 कैथोलिक हैं. इनमें से आठ कांग्रेस के पूर्व विधायक हैं जो दक्षिण गोवा में जीते थे.
अब, विवादास्पद नागरिकता (संशोधन) अधिनियम को ठंडे बस्ते में डाल दिए जाने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से पोप फ्रांसिस को भारत आने का न्योता दिए जाने के बाद भाजपा दक्षिण गोवा में अपनी चुनावी संभावनाओं के काफी बेहतर होने की उम्मीद कर रही है.
भाजपा विधायक सोपटे ने कहा, ‘प्रधानमंत्री की पोप के साथ बैठक ने बहुत अच्छा संकेत दिया है, और कैथोलिक समुदाय का भाजपा में भरोसा बढ़ा है. इससे हमें फायदा होगा. टीएमसी भी भाजपा विरोधी कुछ वोटों को काटेगी, जो अंततः हमारे पक्ष में ही जाएगा.’
2017 के विधानसभा चुनावों में 17 सीटों पर जीत हासिल करने वाली कांग्रेस के पास अब सिर्फ पांच विधायक बचे हैं, क्योंकि उसके विधायक पाला बदलकर भाजपा में शामिल हो गए थे. एमजीपी में सिर्फ धवलीकर ही एकमात्र विधायक बचे हैं, बाकी दो भाजपा में शामिल हो गए थे और जीएफपी के तीन सदस्य हैं.
भाजपा नेताओं ने कहा कि इन दोनों छोटे दलों ने पर्रिकर की ईमानदारी और गडकरी की दोस्ती के कारण सत्ताधारी पार्टी को समर्थन दिया था. 2012 में एमजीपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने के बाद भाजपा ने पर्रिकर के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत हासिल किया. हालांकि, अगर गोवा में एक बार फिर त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति आती है तो मुख्यमंत्री सावंत के लिए छोटे दलों का विश्वास हासिल करना सबसे कड़ी चुनौती होगी.
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