नई दिल्ली: यह पहला मौका नहीं जब प्रज्ञा ठाकुर को बीजेपी हाईकमान ने उनके राजनैतिक आचरण के लिए चेतावनी दी हो. सोमवार को बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष जे पी नड्डा ने जब प्रज्ञा ठाकुर को बीजेपी आफिस बुलाकर डांटा फटकारा तब भी प्रज्ञा के खिलाफ अनुशासनात्मक कारवाई की रिपोर्ट उनके टेबल पर पड़ी धूल खा रही थी.
पिछले दो महीने में बीजेपी अनुशासनात्मक समिति के पास तीन मामले कारवाई के लिए भेजे गए. तीनों मामलों की रिपोर्ट अनुशासन समिति ने बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को सौंप दी है पर कारवाई का अब भी इंतज़ार है. इन तीनों मामलों में पहला मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से भारतीय जनता पार्टी की सांसद साध्वी प्रज्ञा, दूसरा उत्तरी कन्नड़ से सांसद अनंत हेगड़े और तीसरा दक्षिण कन्नड़ से भाजपा सांसद नलिन कुमार कटील का लोकसभा चुनाव के दौरान नाथूराम गोडसे की तारीफ़ करने से जुड़ा है. और अगर पिछले पांच साल की बात करें तो अनुशासनहीनता के 11 बड़े मामलों में केवल एक कीर्ति झा आज़ाद के मामले में ही बीजेपी ने कार्रवाई करते हुए उन्हें निलंबित किया है. बाकी मामलों में नेताओं को चेतावनी देकर छोड़ दिया गया.
पिछले पांच सालों में कितने नेताओं का मामला बीजेपी अनुशासन समिति के पास गये और उनका क्या हुआ.
आकाश विजयवर्गीय
सबसे ताज़ा मामला बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश विजयवर्गीय का है. बल्लामार विधायक की करतूतों पर नाराज़गी जताते हुए प्रधानमंत्री ने पार्टी की संसदीय दल की मीटिंग में कहा था ‘ऐसे लोगों को पार्टी से बाहर कर देना चाहिये.’ प्रधानमंत्री की नाराज़गी के बाद भी मध्यप्रदेश ईकाई ने आकाश विजयवर्गीय पर अब तक कोई कारवाई नहीं की है. इस मामले में तो राज्य अनुशासन समिति ने आकाश को नोटिस तक जारी नहीं किया.
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राज्य अनुशासन समिति के अध्यक्ष बाबूसिंह रघुवंशी ने आकाश का बचाव करते हुए कहा, ‘पीएम के भाषण का वीडियो नहीं है कि सचमुच पीएम ने कारवाई के लिए ऐसा बयान दिया था. ‘बाबू सिंह ने आकाश का बचाव करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री ने पिटाई के समय ही आकाश पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की बात कही थी अब इतने दिनों के बाद कार्रवाई करने से कोई फायदा नहीं होगा. वहीं प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष राकेश सिंह से जब भी कार्रवाई की बात पूछी गई तो वे टालमटोल करते दिखे .
प्रज्ञा ठाकुर
टॉयलेट विवाद से पहले प्रज्ञा ठाकुर ने चुनाव प्रचार के दौरान मुंबई हमलों के दौरान मारे गए एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे का मज़ाक उड़ाया था, और कहा था कि उनके श्राप के कारण ही करकरे की मौत हुई थी. करकरे के बाद प्रज्ञा ने नाथूराम गोडसे को देशभक्त करार दिया था.
प्रज्ञा ने भोपाल में चुनाव प्रचार करते हुए कहा था, ‘नाथूराम गोडसे देशभक्त थे और रहेंगे और जो लोग उन्हें हत्यारा कहते हैं उन्हें इस चुनाव में मुंहतोड़ जबाब मिलेगा.’ प्रज्ञा की जगहंसाई के बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने दस दिनों के अंदर बीजेपी अनुशासन समिति को कार्रवाई करने को कहा था .पीएम मोदी ने प्रचार के दौरान कहा था वे कभी दिल से प्रज्ञा को माफ़ नहीं कर पाएंगें .अनुशासन समिति की रिपोर्ट पर अब तक कोई कारवाई नहीं हुई है.
अनंत हेगड़े
पिछली मोदी सरकार में मंत्री रहे उत्तरी कर्नाटक के अनंत हेगड़े ने भी चुनाव प्रचार के दौरान ट्वीट किया था कि सात दशक के बाद नाथू राम गोडसे की आत्मा ख़ुश हो रही होगी कि देश के बदले माहौल में उनका केस लड़ा जा रहा है. उनका मामला भी अनुशासन समिति को भेजा गया था.
नलिन कुमार क़टील
कर्नाटक से सांसद रहे क़टील ने कहा था कि गोडसे ने एक आदमी को मारा था, कसाब ने 72 आदमी को मारा था और राजीव गांधी ने 17,000 को मारा तो बताएं कौन सबसे ज़्यादा निर्दयी था? उनका मामला भी अनुशासन समिति के पास भेजा गया था. भाजपा अनुशासन समिति के एक सदस्य बतातें है कि तीनों ही मामलों में हमने जांच कर पंद्रह दिन पहले रिपोर्ट राष्ट्रीय अध्यक्ष को सौंप दिया है अब इस पर फ़ैसला पार्टी हाईकमान को करना है.
ऐसे ही अनुशासनहीनता के मामले में बीजेपी की मध्य प्रदेश ईकाई ने मीडिया कॉर्डिनेटर रहे अनिल सौमित्र को छह साल के लिए पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था.अनिल सौमित्र ने गांधी को पाकिस्तान का राष्ट्रपिता बताया था.
साक्षी महाराज
2014 में मोदी सरकार के बनते ही पहली फ़जीहत साक्षी महराज ने कराई थी. साक्षी महराज ने नाथू राम गोडसे को राष्ट्रभक्त करार देते हुए कहा था, ‘गोडसे देशभक्त थे.’ इस बयान के बाद संसद का शीतकालीन सत्र एक हफ़्ते तक नहीं चल सका था. गतिरोध तोड़ने के लिए संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू के कहने पर साक्षी महराज ने माफी मांगी पर कोई उनके खिलाफ कोई कारवाई नहीं हुई.
साक्षी महाराज उसके बाद भी रुके नहीं. 2014 के दिल्ली चुनाव से ठीक पहले साक्षी महराज ने कहा कि हिन्दु महिलाओं को कम से कम चार बच्चे पैदा करने चाहिये. पार्टी की अनुशासन समिति में मसला भेजा गया. पार्टी अध्यक्ष ने फटकार लगाई, साक्षी महाराज से जब पूछा गया तो उन्होंने ‘रात गई बात गई’ कह कर मामले को ठंडा कर दिया.
साध्वी निरंजन ज्योति
केन्द्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री रही निरंजन ज्योति ने 2014 के दिसंबर में दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार की शुरुआत करते हुए कहा था कि ‘आपको रामजादो (राम से जन्मे )और हरामज़ादों के बीच में किससे चुनना है इसका फ़ैसला करना है.’ मामला अनुशासन समिति में गया. संसद में माफी मांगनी पड़ी लेकिन उनपर भी कारवाई कोई नहीं हुई यहां तक कि वे पहले और दूसरे कार्यकाल में मंत्रिमंडल में बरकार रहीं.
यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा
बीजेपी के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा और शत्रुघ्न सिन्हा ने पूरे कार्यकाल के दौरान नोटबंदी से लेकर जीएसटी, 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार, अर्थव्यवस्था की खास्ता हालात से लेकर रोज़गार के संकट जैसे मुद्दों पर सरकार की लगातार किरकिरी कराई पर पार्टी उनके खिलाफ कारवाई से बचती रही.
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लोकसभा चुनाव से पहले शत्रुघ्न सिन्हा ने खुद बीजेपी छोड़कर कांग्रेस ज्वाइन कर लिया. ऐसे अनुशासनहीनता के मामलों में आडवाणी के अध्यक्ष रहते उमा भारती और जसवंत सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा गया था.
कीर्ति आज़ाद
कीर्ति आज़ाद ने 2015 में पिछली सरकार में वित्त मंत्री रहे अरूण जेटली पर दिल्ली क्रिकेट अकादमी में 400 करोड़ के अनियमितता का आरोप लगाया था. जिसपर पार्टी ने कीर्ति झा पर कारवाई करते हुए उन्हें निलंबित कर दिया था बाद में लोकसभा चुनाव से पहले फरवरी 2019 में कीर्ति आज़ाद कांग्रेस में शामिल हो गए. केन्द्रीय बीजेपी ने पिछले पांच साल में अनुशासनहीनता पर यही एक बड़ी कारवाई की.
ज़्यादातर मामलों में पार्टी और सरकार की फ़जीहत करने के बाद भी बीजेपी ने बड़े नेताओं के खिलाफ अनुशासनात्मक कारवाई नहीं की इसकी वजह बताते हुए बीजेपी अनुशासन समिति के एक सदस्य कहते हैं, ‘ज्यादातर मामले बड़े नेताओं से जुड़े होते हैं और मौके की नज़ाकत और राजनैतिक माहौल के मुताबिक बीजेपी अध्यक्ष और संगठन मंत्री फ़ैसला लेतें हैं, कई बार नेताओं के चुनावी टिकट काटकर भी दंडित किया जाता है.आखिर फ़ैसला नहीं लेना भी तो एक फ़ैसला है.’