नई दिल्ली: पांच साल पहले राष्ट्रीय राजधानी में हुई सांप्रदायिक हिंसा को दर्शाती एक फिल्म ‘2020 दिल्ली’ अपनी रिलीज़ से पहले ही राजनीतिक तूफान खड़ा कर चुकी है.
यह फिल्म रविवार को सिनेमाघरों में रिलीज़ होनी थी, लेकिन निर्देशक देवेंद्र मालवीय ने कहा कि उन्हें अभी भी सेंसर बोर्ड से सर्टिफिकेट का इंतज़ार है.
कांग्रेस ने इस फिल्म को — जो पहले 5 फरवरी को होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव से ठीक तीन दिन पहले रिलीज़ होने वाली थी — “विभाजनकारी और भाजपा द्वारा मतदाताओं को ध्रुवीकृत करने का प्रयास” करार दिया है, जबकि निर्देशक मालवीय ने कहा कि इसका उद्देश्य “समाज के भीतर की गलतफहमियों को दिखाना” है.
नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के बाद उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों पर बनी फिल्म तब विवादों में घिर गई जब कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने 26 जनवरी को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और चुनाव आयोग से इसकी रिलीज़ को रोकने का आग्रह किया.
पार्टी ने आरोप लगाया कि ‘2020 दिल्ली’ का उद्देश्य चुनावों से पहले मतदाताओं को प्रभावित करना और मुस्लिम समुदाय को गलत तरीके से पेश करना था.
मालवीय ने कांग्रेस के आरोपों का खंडन किया है और फिल्म में भाजपा का हाथ होने की बात से साफ इनकार किया है. उन्होंने बुधवार को दिप्रिंट से कहा, “जो लोग फिल्म का विरोध कर रहे हैं, वह नहीं चाहते कि कड़वी सच्चाई सामने आए और हम सभी जानते हैं कि दंगों की सच्चाई को छिपाकर किसे फायदा हो सकता है. सच्चाई सामने आनी चाहिए.”
रिलीज़ के समय को लेकर विवाद पर उन्होंने कहा: “भारत में, हर छह महीने में किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं. निर्माता चुनाव कार्यक्रम के आधार पर रिलीज़ की तारीख तय नहीं कर सकते.”
रविवार की प्रेस कॉन्फ्रेंस में सिंघवी ने कहा था कि “पार्टी अपने सभी राजनीतिक विरोधियों से पूछना चाहेगी, खासकर दिल्ली चुनाव के संदर्भ में, क्या आपको चुनाव प्रचार में अपने उम्मीदवारों पर भरोसा नहीं है?”
उन्होंने कहा, “क्या आप निश्चित हार से इतने निराश हैं? आप सांप्रदायिक रूप से प्रेरित फिल्म पर उतर आए हैं, जिसका उद्देश्य मतदाताओं को भड़काना, विभाजित करना और गुमराह करना है.”
कांग्रेस के कई अन्य नेताओं ने भी फिल्म की रिलीज़ के समय पर सवाल उठाए हैं.
भाजपा प्रवक्ता आर.पी. सिंह ने दिप्रिंट से कहा कि पार्टी वैसे भी दिल्ली में जीत रही है. उन्होंने कहा, “हमें जीत के लिए किसी फिल्म की ज़रूरत नहीं है. कांग्रेस एक गैर-मुद्दे को मुद्दा बना रही है.”
मालवीय ने भी जोर देकर कहा कि फिल्म की रिलीज़ टाइमिंग का “दिल्ली चुनाव या भाजपा के पक्ष में कोई लेना-देना नहीं है”.
उन्होंने कहा कि “फिल्म के पीछे एक संदेश समाज के भीतर की खामियों को उजागर करना है”.
उन्होंने बताया, “जब दिल्ली में विरोध प्रदर्शन चल रहे थे और उसके बाद जब दंगे शुरू हुए, तो मामले की गंभीरता ने मुझे प्रभावित किया और मैंने अवधारणा बनाना और शोध करना शुरू कर दिया. इस तरह हमें (फिल्म निर्माताओं को) दिल्ली दंगों की वास्तविक घटनाओं पर एक फिल्म बनाने का ख्याल आया.”
उन्होंने यह भी कहा कि “समाज में शांति के लिए मुसलमानों को पिछली गलतियों को स्वीकार करना होगा.”
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सांप्रदायिक डायलॉग
सांप्रदायिक दंगों पर आधारित ‘2020 दिल्ली’ शाहीन बाग में शुरू हुए सीएए विरोधी प्रदर्शनों, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की राष्ट्रीय राजधानी की यात्रा और उसी समय कैसे हिंसा भड़की, इस पर बनी है. यह फिल्म एक दिन की घटनाओं पर केंद्रित है और हिंसा में फंसे आम लोगों और “दंगों के पीछे की साजिश” की कहानी को बताती है.
तीन मिनट के ट्रेलर में सांप्रदायिक रंग के कई डायलॉग हैं, जैसे ‘मुसलमान पर हाथ डालने का नतीजा क्या होता है’ और ‘इस देश में 80 प्रतिशत हिंदू हैं, लेकिन सवेरे से जान बचाकर भाग रहा है कौन?’
टीज़र में ‘हम लेकर रहेंगे आज़ादी’ और ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ जैसे नारे गूंज रहे हैं.
इसमें पड़ोसी देशों में हिंदू अल्पसंख्यकों की दुर्दशा और बलात्कार, हत्या और जबरन धर्मांतरण जैसे मुद्दों का भी उल्लेख किया गया है.
बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय द्वारा सोशल मीडिया पर फिल्म का ट्रेलर साझा किए जाने के एक दिन बाद, दिल्ली कांग्रेस ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया कि “चुनाव प्रक्रिया के दौरान और उससे ठीक पहले पार्टियों द्वारा लोकतंत्र को अधीन करने और उसे नुकसान पहुंचाने और विकृत करने के लिए किए गए घोर अशिष्ट प्रयास”.
इसमें कहा गया, “चलिए 2020 दिल्ली में फिल्म की रिलीज़ को ध्यान में रखते हैं. फिल्म को बीजेपी नेताओं द्वारा इस तरह से प्रचारित किया गया है जैसे कि वह फिल्म के सह-निर्देशक/निवेशक/निर्माता हों. वह इसे प्रोपगेंडा के साथ बढ़ावा दे रहे हैं. फिल्म का ट्रेलर बीजेपी के मिस्टर मालवीय के सोशल मीडिया हैंडल पर साझा किया गया था. यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि इसमें घटनाओं का बहुत बढ़ा-चढ़ाकर और विकृत क्रम था.”
‘पिछली गलतियां स्वीकार कीजिए, तभी शांति कायम होगी’
‘2020 दिल्ली’ के साथ बतौर निर्देशक अपनी शुरुआत कर रहे देवेंद्र मालवीय ने फिल्म बनाने के पीछे की अपनी सोच को समझाया.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “जब सीएए लाया गया, तो सताए गए अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा को लेकर बहस शुरू हुई. यह कानून सताए गए अल्पसंख्यकों के लिए था, लेकिन इसके खिलाफ अभियान शुरू हो गया और दंगे हो गए. एक फिल्म निर्माता के तौर पर, यह सच्ची घटना मेरे दिमाग में कौंधी और हमने इस पर रिसर्च शुरू की.”
उन्होंने कहा, “हमारा कर्तव्य इस घटना की कई परतों को खोलना था. अगर किसी व्यक्ति को कैंसर है, तो उससे छिपने से कैंसर दूर नहीं होता. हमारे देश में अतीत को भूलने का जश्न मनाया जाता है, जबकि अतीत को याद दिलाने वालों को सांप्रदायिक कहा जाता है. हमने फिल्म में इस मुद्दे को उठाया है और दंगों की अलग-अलग परतों को खोलने की पूरी कोशिश की है.”
मालवीय के अनुसार, उन्होंने 500 डॉक्यूमेंट्री, 200 विज्ञापन फिल्में, ‘स्वच्छ भारत अभियान’ का निर्देशन किया है और ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘जवान’ और ‘एनिमल’ के वीएफएक्स में अहम भूमिका निभाई है.
उन्होंने पूछा, “हम अतीत की सच्चाई से क्यों डरते हैं? और सच्चाई को छिपाने से किसका फायदा होगा? अगर किसी समुदाय ने पहले में गलतियां की हैं, तो उसे सामने आना चाहिए. पिछली गलतियों को स्वीकार करने में कोई बुराई नहीं है. शांति तभी स्थापित हो सकती है जब मुस्लिम समुदाय अपनी पिछली गलतियों को स्वीकार करे.”
उन्होंने दिप्रिंट से कहा कि “समाज में सद्भाव स्थापित करने के लिए हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों को बड़ा दिल दिखाना होगा, लेकिन यह तभी स्थापित हो सकता है जब मुसलमान अपनी पिछली गलतियों को स्वीकार करने के लिए तैयार हों.”
“अगर किसी जगह पर मंदिर है और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण कहता है कि मंदिर के अस्तित्व के पर्याप्त सबूत हैं, तो एक समुदाय उस दावे और अपनी पिछली गलती को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है. समाज में शांति के लिए उन्हें बड़ा दिल रखना होगा.”
मालवीय ने कहा, “जहां हिंदुओं की जिम्मेदारी है, वहां वह भी बड़ा दिल दिखाएंगे.”
जब उनसे पूछा गया कि क्या वे भाजपा नेताओं के लिए फिल्म की स्पेशल स्क्रीनिंग की योजना बना रहे हैं, तो मालवीय ने ऐसी किसी भी योजना से इनकार किया.
2020 में दिल्ली में फरवरी में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले, कई भाजपा नेताओं को सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों को “देशद्रोही” कहते हुए सुना गया था.
एक चुनावी रैली के दौरान, भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर ने ‘देश के गद्दारों को’ का नारा लगाया, जिस पर भीड़ ने ‘गोली मारो सालों को’ कहकर जवाब दिया. एक अन्य सांसद प्रवेश वर्मा ने कहा कि शाहीन बाग में प्रदर्शनकारी “घरों में घुस सकते हैं और हमारी बेटियों और बहनों के साथ बलात्कार कर सकते हैं”.
दिल्ली चुनाव लड़ रहे भाजपा नेता कपिल मिश्रा ने जनवरी 2020 में ‘एक्स’ पर पोस्ट किया था कि “पाकिस्तान शाहीन बाग में घुस गया है, शहर में मिनी पाकिस्तान बन गया है, पाकिस्तानी दंगाई दिल्ली की सड़कों पर कब्ज़ा कर रहे हैं”.
उत्तर-पूर्वी दिल्ली के जाफराबाद में सीएए के समर्थन में रैली करने के मिश्रा के फैसले के बारे में कहा गया कि इससे राष्ट्रीय राजधानी में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए.
उस साल 23 फरवरी को मिश्रा ने पुलिस को सड़कों पर जाम लगा रहे सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों को हटाने का अल्टीमेटम दिया और लोगों से इसके जवाब में इकट्ठा होने को कहा. इसके बाद जाफराबाद के पास सीएए समर्थक और विरोधी प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़पें हुईं जो बाद में एक पूर्ण सांप्रदायिक हिंसा में बदल गईं. इन दंगों में 53 लोगों की जान चली गई.
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‘अनोखा सिनेमाई अनुभव’
दिप्रिंट से बात करते हुए मालवीय ने बताया कि उनकी फिल्म “सिंगल-शॉट में शूट की गई है, जो इसे एक अनूठा सिनेमाई अनुभव बनाती है”. उन्होंने कहा, “यह दर्शकों को कहानी का हिस्सा होने का एहसास कराती है. सच्ची घटनाओं को दिखाने के लिए सिंगल शॉट में शूटिंग करना चुनौतीपूर्ण है और पोस्ट-प्रोडक्शन में समय लगता है.”
‘2020 दिल्ली’ को भारत की पहली सिंगल-शॉट हिंदी फीचर फिल्म के रूप में प्रचारित किया जा रहा है. कहा जा रहा है कि इस तकनीक का इस्तेमाल 1948 में अल्फ्रेड हिचकॉक की ‘रोप’ में किया गया था. हालांकि, इसमें सीमित कट छिपाए गए थे, इसलिए यह फिल्म विद्वानों के बीच बहस का विषय बना हुआ है.
पहली वन-शॉट अनएडिटेड फीचर फिल्म ‘रूसी आर्क’ (2002) थी, जिसे रूसी फिल्म निर्माता अलेक्जेंडर सोकुरोव ने बनाया था.
वन-शॉट फिल्मिंग को यथार्थवाद की श्रेणी में रखा गया है क्योंकि यह दर्शकों को “बिना रुके देखने का अनुभव” देता है, इसलिए फिल्म निर्माता इसे संवेदनशील विषयों के लिए चुनते हैं.
मालवीय ने कहा, “हमने इस तकनीक का इस्तेमाल इसलिए किया है ताकि दर्शक टॉलरेंस के आधार पर राष्ट्र विरोधी दंगों के पीछे की साजिश को गहराई से समझ सकें.”
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