बेंगलुरु: इस साल की शुरुआत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) मुख्यालय के दौरे के दौरान एक अनुसूचित जाति (एससी) विधायक के साथ कथित ‘दुर्व्यवहार’ को लेकर कर्नाटक में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी और विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच आमना-सामना हो रहा है.
यह तब हुआ जब कर्नाटक चुनाव में टिकट नहीं मिलने के बाद भाजपा छोड़ने वाले गुलिहट्टी शेखर की एक वॉयस रिकॉर्डिंग भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बी.एल.संतोष को भेजी गई थी, जो वायरल है और कन्नड़ टीवी समाचार चैनलों पर लूप में चलाई जा रही है.
कथित घटना जनवरी के आसपास की है जब शेखर को “एससी होने” के कारण नागपुर में संघ मुख्यालय में केशव बलिराम हेडगेवार संग्रहालय में प्रवेश से रोक दिया गया था. शेखर वड्डा समुदाय से आते हैं, जिसे कर्नाटक में एससी के रूप में वर्गीकृत किया गया है.
प्रेस को जारी एक बयान में आरएसएस ने शेखर के आरोप का खंडन करते हुए कहा कि संघ कार्यालय में आगंतुकों को नाम दर्ज कराने के बाद प्रवेश की अनुमति देने की कोई व्यवस्था नहीं है. आरएसएस दक्षिण मध्य क्षेत्र कार्यवाह एन. तिप्पेस्वामी ने विज्ञप्ति में कहा, “इसलिए, यह आरोप निराधार हैं. चाहे वह आरएसएस का कोई भी परिसर हो या इस तरह के स्मारकों में, हर किसी को अप्रतिबंधित पहुंच है…किसी को प्रवेश से इनकार करने का सवाल कभी नहीं उठता.”
उन्होंने आगे कहा, “श्री गुल्लीहट्टी शेखर, जो दावा कर रहे हैं कि यह घटना विधानसभा चुनाव से चार महीने पहले हुई थी, तब से कई लोग संघ के नेताओं से मिल चुके हैं, लेकिन उन्होंने कहीं भी इस तथाकथित अपमान का मुद्दा नहीं उठाया. यह हैरानी की बात है कि ऐसा आरोप दस महीने बाद लगाया गया है.”
दिप्रिंट ने फोन के जरिए शेखर से संपर्क किया था उनका जवाब आने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
एक्स पर एक लंबी पोस्ट में कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया ने उत्पीड़ित वर्गों के खिलाफ भेदभावपूर्ण संस्कृति की आलोचना करते हुए, भाजपा के वैचारिक संरक्षक, आरएसएस पर अपनी पार्टी के हमले का नेतृत्व किया.
उन्होंने कहा, “भाजपा और आरएसएस परिवार दोनों, खुले तौर पर मुसलमानों का विरोध करते हुए, शूद्रों और दलितों के खिलाफ भी भेदभाव करते हैं. संघ परिवार के नेता, जो हमेशा ‘हम सभी हिंदू हैं’ मंत्र का जाप करते हैं, वास्तव में शूद्र और दलित समुदायों को सामाजिक रूप से हाशिए पर रखने की कोशिश करते हैं.”
उन्होंने पोस्ट में कहा, “गुलिहट्टी शेखर जैसे दलित समुदाय के नेताओं को संघ परिवार के सावरकर और गोलवलकर की विचारधाराओं के बजाय बाबासाहेब आंबेडकर और संविधान के सिद्धांतों में ही सही मायने में सुरक्षा मिल सकती है…”
सीएम ने यह भी उम्मीद जताई कि शेखर इस प्रकरण के बाद अपने अनुभव से सीखेंगे.
सिद्धारमैया ने आगे सवाल उठाया कि उत्पीड़ित समुदायों से कोई भी व्यक्ति संघ में आगे क्यों नहीं बढ़ पाया और इस बात पर जोर दिया कि किसी दलित को आरएसएस प्रमुख के पद पर नियुक्त किया जाए अन्यथा इसके “नेताओं को यह झूठ बोलकर लोगों को धोखा देना बंद करना चाहिए कि ‘हिंदू एक हैं’.”
Shudras and Dalits are effectively barred from the inner circles of the RSS. A revealing WhatsApp voice recording sent by the ex-BJP MLA Goolihatti Shekhar to B L Santosh shows this reality.
Both the BJP and the RSS Parivar, while openly opposing Muslims, also covertly… pic.twitter.com/yhnqLuZQEM
— Siddaramaiah (@siddaramaiah) December 6, 2023
इस बीच, शेखर ने कहा कि वह संघ और उसकी गतिविधियों का सम्मान करते हैं.
शेखर ने बुधवार को एक कन्नड़ न्यूज़ चैनल से कहा, “सिर्फ इसलिए कि मैं पार्टी में नहीं हूं, इसका मतलब यह नहीं है कि मैं उनका (आरएसएस) सम्मान नहीं करता. वे सब देश की सेवा, धर्म की रक्षा के बारे में हैं. मैं किसी के बारे में व्यक्तिगत तौर पर बात नहीं कर रहा हूं. जब मैं वहां (आरएसएस मुख्यालय) गया, तो कार्यालय में प्रवेश करने में कोई समस्या नहीं थी और चूंकि मुझे नहीं पता कि वहां और क्या था, कोई मुझे संग्रहालय में ले गया और मुझे इस समस्या का सामना करना पड़ा. मैंने केवल इसे साझा किया, बस इतना ही.”
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बीजेपी ने किया संघ का बचाव
कई भाजपा नेता, विशेष रूप से उत्पीड़ित समुदायों से, संघ के बचाव में आए हैं और कथित घटना के लगभग 10 महीने बाद शेखर के दावों के पीछे के उद्देश्यों पर सवाल उठाया है.
पूर्व डिप्टी सीएम गोविंद करजोल ने बुधवार को संवाददाताओं से कहा, “किसी भी स्पष्टीकरण की कोई आवश्यकता नहीं है. हम उसकी मानसिक स्थिति नहीं जानते. वह भाजपा में रहते हुए कुछ और कहते हैं और जब बाहर जाते हैं तो कुछ और कहते हैं. आरएसएस का उद्देश्य विभाजन रहित और जातिविहीन समाज बनाना है. आरएसएस के अंदर, कोई भी एक-दूसरे की जाति नहीं जानता.”
2008 में निर्दलीय के रूप में जीतने के बाद करजोल उन पहले विधायकों में से थे जिन्होंने बी.एस.येदियुरप्पा के पीछे अपना समर्थन दिया और दक्षिण भारत में भाजपा की पहली सरकार बनाने में मदद की थी.
सितंबर 2021 में कर्नाटक विधानसभा में शेखर के आंसू भरे भाषण में बताया गया कि कैसे उनकी मां उन 20,000 लोगों में शामिल थीं, जिन्हें जबरन ईसाई धर्म में परिवर्तित किया गया था. बीजेपी सरकार के तहत धर्मांतरण विरोधी कानून कर्नाटक धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2022 के लिए उत्प्रेरक बन गया.
लेकिन, “रूपांतरण की सीमा” निर्धारित करने के लिए एक सर्वे से साबित हुआ कि कोई रूपांतरण नहीं हुआ था. दिसंबर 2021 में भाजपा सरकार ने होसादुर्गा के तहसीलदार वाई. थिप्पेस्वामी को स्थानांतरित कर दिया, जिन्होंने एक रिपोर्ट दायर की थी जिसमें कहा गया था कि जबरन धर्म परिवर्तन का कोई मामला नहीं था.
कैबिनेट की मंजूरी के बावजूद, सिद्धारमैया सरकार ने 2024 के आम चुनाव पर विचार करने के बाद विवादास्पद धर्मांतरण विरोधी कानून को रद्द करने के लिए जुलाई में एक विधेयक पेश नहीं करने का फैसला किया.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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