scorecardresearch
Monday, 23 December, 2024
होमराजनीति'एक परिवार, एक टिकट': हिमाचल विधानसभा चुनाव से पहले दोहरी चुनौती से जूझ रही है BJP

‘एक परिवार, एक टिकट’: हिमाचल विधानसभा चुनाव से पहले दोहरी चुनौती से जूझ रही है BJP

सत्ता विरोधी भावनाओं और बगावत के हालात को साधने के लिए भाजपा ने कई स्थापित नेताओं के परिवार के सदस्यों को मैदान में उतारा है. स्थानीय नेताओं का दावा है कि इस समय 'जीतने की योग्यता' सबसे ज्यादा मायने रखती है.

Text Size:

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘वंशवाद’ की राजनीति को लेकर कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दलों पर लगातार हमलावार रहे है, लेकिन अब हिमाचल प्रदेश में 12 नवंबर को होने वाले मतदान से पहले भाजपा खुद अपनी ‘एक परिवार, एक टिकट’ की नीति पर टिके रहने और साथ ही ‘दमदार’ राजनीतिक परिवारों को भी खुश रखने की दोहरी चुनौती से जूझ रही है.

हालांकि, पार्टी ने एक परिवार से एक से अधिक सदस्यों को मैदान में न उतारने के मामले में सावधानी बरती है, लेकिन ऐसा लगता है कि उसने एक तरह का समझौते वाला फार्मूला भी ईजाद कर लिया है. कुछ उदाहरणों में जहां उसने सत्ता विरोधी लहर से बचने के लिए मौजूदा विधायक को टिकट नहीं दिया है, वहीं बगावत को रोकने के लिए उनके बेटे, बेटी या पत्नी को टिकट देने की पेशकश की गई है.

19 अक्टूबर को भाजपा ने 62 उम्मीदवारों के नामों के साथ अपनी पहली सूची जारी की थी और अगले ही दिन शेष छह उम्मीदवारों की सूची भी जारी कर दी गई. एक ओर जहां पार्टी ने कई स्थापित नेताओं के परिवार के सदस्यों को समायोजित किया है, वहीं इस सूची में हिमाचल के दो बार के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल – जो केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के पिता हैं – का नाम शामिल नहीं किया गया है.

हिमाचल भाजपा के एक उपाध्यक्ष ने उनका नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘इस पहाड़ी राज्य में, निर्वाचन क्षेत्रों का आकार बहुत छोटा है. पिछली बार प्रेम कुमार धूमल केवल 3,000 मतों से हारे थे और सुरेश भारद्वाज 1,000 से कम मतों से जीते थे. यही कारण है कि पार्टी को उन जगहों पर नेताओं के रिश्तेदारों को समायोजित करना पड़ता है, जहां हमें मौजूदा विधायक के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर के बारे में फीडबैक मिला था. ‘

उन्होंने यह भी कहा कि इस चुनाव में जीत ही एकमात्र ‘चयन मापदंड’ है. उन्होंने कहा, ‘यह प्रयोगों का समय नहीं है, इसलिए कई जगहों पर नेताओं के परिवार के सदस्यों को मैदान में उतारा गया. लेकिन, कांग्रेस के विपरीत, हमने ‘एक परिवार, एक टिकट’ के अपने नियम को कायम रखा है.’

राजनीतिक पर्यवेक्षक भी इस बात से सहमत हैं कि भाजपा शक्तिशाली राजनीतिक परिवारों को खफा करने का खतरा मोल नहीं ले सकती.

हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रमेश कुमार ने कहा, ‘कोई भी पार्टी किसी वंशवादी राजनेता को टिकट देने से इनकार करने का जोखिम नहीं लेना चाहती क्योंकि वह उन्हें जीतने में बढ़त देता है और राजनीति केवल जीतने के बारे में है, चाहे वह किसी भी कीमत पर हो.’ साथ ही, उनका कहना था कि किसी अवधारणा का निर्माण करना और इसे धरातल पर लागू करना दो अलग-अलग बातें हैं.

कुमार का दावा है कि, ‘वंशवाद की राजनीति कांग्रेस और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों में शुरू जरूर हुई थी लेकिन भाजपा ने इसे तहेदिल से अपनाया है.’

हालांकि, संतुलन बिठाने के पार्टी के हरसम्भव प्रयासों के बावजूद, कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में संकटपूर्ण स्थितियां पैदा हो गई हैं.

एक असमंजस वाली स्थिति

कुल्लू के पूर्व शाही परिवार के दो वंशजों ने भाजपा के लिए परेशानी का सबब पैदा कर दिया है. हालांकि पार्टी ने शुरुआत में कुल्लू सदर सीट से पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष महेश्वर सिंह को उम्मीदवार घोषित किया था, लेकिन इस सप्ताह की शुरुआत में उसे सिंह की उम्मीदवारी वापस लेनी पड़ी.

कथित तौर पर इसका कारण यह था कि महेश्वर अपने बेटे हितेश्वर, जो स्वयं भाजपा से टिकट की उम्मीद कर रहे थे, को बंजार सीट से एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन वापस लेने के लिए राजी नहीं कर सके. इन दोनों पिता- पुत्र ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन दाखिल किया.

आखिरकार, शुक्रवार को, महेश्वर सिंह अपना नामांकन पत्र वापस लेने के लिए सहमत हो गए, लेकिन इससे पहले भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को इस मामले में पड़ना पड़ा. कथित तौर पर, महेश्वर सिंह को एक बैठक के लिए शिमला लाने हेतु गुरुवार को पार्टी का एक हेलिकॉप्टर कुल्लू भेजा गया था.

हालांकि, इस बात की कोई खास संभावना नहीं है कि हितेश्वर भी अपने पिता के नक्शेकदम पर चलेंगे. उनकी पत्नी विभा सिंह, जो कुल्लू जिला परिषद की सदस्य भी हैं, ने इस सप्ताह अपने पति की ओर से राज्य के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मुलाकात की थी और कहा था कि बंजार के लोगों ने ‘13 साल’ तक हितेश्वर के चुनाव लड़ने का इंतजार किया था और अब वह पीछे नहीं हटेंगे.

महिलाओं ने कहीं खोया तो कहीं पाया

धर्मपुर के मौजूदा विधायक और इस सीट से सात बार चुनाव जीतने वाले राज्य के जल शक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर, के परिवार में एक और दिलचस्प वंशवादी प्रतियोगिता चल रही है,

इस बार भाजपा ने उनके बेटे रजत ठाकुर को मैदान में उतारा है, जिससे परिवार में कुछ देर के लिए बगावत हो गई थी.

जब इस निर्णय की घोषणा की गई, तो महेंद्र सिंह की बेटी वंदना गुलेरिया ने 19 अक्टूबर को भाजपा महिला मोर्चा की महासचिव के पद से इस्तीफा दे दिया और ट्वीट किया – ‘परिवारवाद में हर बार बेटियों की ही बलि क्यूं ली जाती है?’ हालांकि, उसके बाद से ऐसा लगता है कि वह मान गई है.

वंदना गुलेरिया अपने पिता महेंद्र सिंह ठाकुर और भाई रजत ठाकुर, जिन्हें भाजपा का टिकट मिला है,के साथ | @VandanaGulbjp

दो अन्य मामलों में, पत्नियों ने अपने- अपने पतियों की जगह ले ली है. भाजपा ने पूर्व विधायक और वर्तमान भाजपा जिलाध्यक्ष बलदेव शर्मा की पत्नी माया शर्मा को बरसर से चुनाव मैदान में उतारा है.

बलदेव तीन बार के विधायक थे, लेकिन वह पिछले दो विधानसभा चुनाव हार चुके हैं. भाजपा को अब उम्मीद है कि उनकी पत्नी, जो दो बार जिला भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष रहीं थीं और वर्तमान में महिला मोर्चा की राज्य कार्यकारिणी की सदस्य हैं, कांग्रेस के मौजूदा विधायक इंदर दत्त लखनपाल को हराने में सक्षम होंगी.

दूसरे मामले में चंबा से भाजपा के मौजूदा विधायक पवन नैय्यर की पत्नी नीलम नैय्यर को टिकट दिया गया है.

शुरू में जब उम्मीदवारों की सूची जारी की गई थी तो पार्टी ने इस सीट से इंदिरा कपूर का नाम दिया था, लेकिन बाद में इसे बदलकर नीलम का नाम आगे कर दिया गया. ऐसा कथित तौर पर मौजूदा विधायक के बगावत के डर से और कपूर के खिलाफ एक पुराने भ्रष्टाचार के मामले के कारण किया गया है.


यह भी पढ़ें: सुनक की ताजपोशी पर खुश हो रहे हैं भारतीय, लेकिन वंश परंपरा और वफादारी दोनों में फर्क है


बेटों और भाइयों का मामला

भाजपा जिन सबसे विवादास्पद उम्मीदवारों को मैदान में उतार रही है, उनमें से एक मंडी सदर से विधायक अनिल शर्मा हैं, जो दिवंगत पूर्व केंद्रीय मंत्री सुख राम के बेटे हैं. उन्होंने साल 2007 से इस सीट पर कब्जा जमाये रखा है. विशेष बात यह है कि 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा के प्रति अपनी निष्ठा में बदलाव लाने से पहले वे कांग्रेस के साथ थे. विश्वासघात के तमाम आरोप लगाए जाने के बावजूद उन्हें टिकट मिल गया था.

इस बार उन्होंने कथित तौर पर प्रियंका गांधी वाड्रा से मुलाकात की थी और आगामी चुनावों के लिए अपने और अपने बेटे आश्रय शर्मा, जिन्होंने इस महीने की शुरुआत में कांग्रेस छोड़ दी थी, के लिए टिकट मांगा था. हालांकि, जब उन्हें वहाँ से कोई पक्का आश्वासन नहीं मिला तो उन्होंने भाजपा से बने रहने का फैसला किया.

उन्हें साल 2019 में मंडी से उनके बेटे और तत्कालीन कांग्रेस उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले भाजपा उम्मीदवार के लिए प्रचार में जाने से इनकार करने के बाद राज्य मंत्रिमंडल से भी हटा दिया गया था.

इस बीच भाजपा नेता प्रवीण शर्मा ने मंडी से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नामांकन दाखिल किया है और साथ ही उन्होंने पार्टी नेतृत्व पर पार्टी की विचारधारा के खिलाफ पारिवारिक राजनीति को बढ़ावा देने का आरोप भी लगाया है.

पार्टी ने जिन अन्य राजनीतिक उत्तराधिकारियों को नामित किया है, उनमें भोरंज से दिवंगत पूर्व शिक्षा मंत्री ईश्वर दास धीमान के बेटे अनिल धीमान शामिल हैं.

अनिल के पिता ने 2016 में उनकी मृत्यु से पहले तक छह विधानसभा चुनाव जीते थे. अनिल के पिता की मृत्यु के बाद पार्टी ने उन्हें टिकट देने से इनकार कर दिया था, लेकिन इस बार धीमान जूनियर ने धमकी दी थी कि अगर भाजपा ने उन्हें मैदान में नहीं उतारा तो वे स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ेंगे.

नतीजतन, उन्हें समायोजित करने के लिए मौजूदा विधायक कामेश कुमारी को टिकट से वंचित कर दिया गया.

साल 2017 में मिली हार के बावजूद, भाजपा ने शिमला से दो बार के सांसद वीरेंद्र कश्यप के भाई राजेश कश्यप पर भरोसा जताया है.

कश्यप एक बार फिर सोलन सीट पर अपने ससुर और कांग्रेस के मौजूदा विधायक धनी राम शांडिल के खिलाफ ताल ठोकेंगे.

हमीरपुर में पार्टी ने पांच बार विधायक रहे दिवंगत ठाकुर जगदेव चंद के बेटे नरेंद्र ठाकुर को टिकट दिया है.

पूर्व मंत्री कुंज लाल ठाकुर के बेटे गोविंद सिंह ठाकुर एक बार फिर मनाली से चुनाव लड़ेंगे, वह 2007 से ही इस सीट पर काबिज हैं.

भाजपा आईटी सेल के पूर्व संयोजक और दिवंगत विधायक एवं पूर्व कृषि मंत्री नरिंदर ब्रगटा के बेटे चेतन ब्रगटा को जुब्बल-कोटखाई सीट से उम्मीदवार घोषित किया गया है.

चुनाव अभियान में व्यस्त चेतन ब्रगटा | ट्विटर//@chetanbragta

यह कदम पिछले साल चेतन को पार्टी से निष्कासित किए जाने के बाद उठाया गया है. तब उन्होंने अपने पिता और इस सीट से मौजूदा विधायक की मृत्यु के बाद हुए उपचुनाव में एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था. उस समय यह सीट कांग्रेस के ही वंशवादी नेता रोहित ठाकुर ने छीन ली थी.

चेतन ब्रगटा को कथित तौर पर वंशवाद की राजनीति पर लगाम लगाने के उद्देश्य से ही पिछले साल टिकट से वंचित कर दिया गया था, लेकिन इस बार भाजपा ने अपने इस रवैये में ढील दे दी है.

कांग्रेस की सूची में भरे पड़े हैं वंशवादी नाम

दिवंगत सीएम वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह हिमाचल कांग्रेस इकाई की अध्यक्ष हैं. उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह, जो शिमला ग्रामीण के मौजूदा विधायक हैं, उसी निर्वाचन क्षेत्र से फिर से चुनाव लड़ रहे हैं.

राज्य सरकार में मुख्य सचेतक और वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिवंगत ठाकुर राम लाल के पोते रोहित ठाकुर जुब्बल-कोटखाई सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. उन्होंने साल 2021 में हुए उपचुनाव के दौरान यह सीट जीती थी.

अनुभवी कांग्रेस नेता और पूर्व स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री कौल सिंह ठाकुर दरंग सीट से चुनाव लड़ रहे हैं और उनकी बेटी चंपा ठाकुर एक बार फिर मंडी सदर में अनिल शर्मा के खिलाफ चुनाव लड़ेंगी.

कांग्रेस ने नूरपुर से अजय महाजन (स्वर्गीय सत महाजन के पुत्र), फतेहपुर से भवानी पठानिया (स्वर्गीय सुजान सिंह पठानिया के पुत्र), नगरोटा बगवां से रघुवीर बाली (स्वर्गीय जी.एस. बाली के पुत्र) धर्मशाला के सुधीर शर्मा (दिवंगत पंडित संतराम के बेटे), पालमपुर के आशीष बुटेल (बीबीएल बुटेल के बेटे), दून के राम कुमार चौधरी (स्वर्गीय लज्जा राम के बेटे), कसौली के विनोद सुल्तानपुरी (दिवंगत केडी सुल्तानपुरी के बेटे), हर्षवर्धन चौहान शिलाई (गुमान सिंह चौहान के बेटे), जयसिंहपुर से यदविंदर गोमा (मिल्खी राम गोमा के बेटे), और रेणुका से विनय कुमार (डॉ प्रेम सिंह के बेटे) सहित कई अन्य वंशवादी उम्मीदवारों को भी चुनावी मैदान में उतारा है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: इंटरनेशनल फाइनेंस सेंटर से लेकर फॉक्सकॉन और टाटा-एयरबस तक- महाराष्ट्र का नुकसान, गुजरात का फायदा


 

share & View comments